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Viram Chinh (विराम चिन्ह) in Hindi – विराम चिन्ह के उदाहरण, परिभाषा, प्रकार और उनका प्रयोग |
Hindi
Grammar – हिन्दी व्याकरण (Vyakaran)
Viram
Chinh (विराम चिन्ह) in Hindi – विराम चिन्ह के उदाहरण, परिभाषा, प्रकार और उनका प्रयोग
लिखने में रुकावट या
विराम के स्थानों को जिन चिह्नों द्वारा प्रकट किया जाता है, उन्हें विराम-चिह्न कहते हैं। इनके प्रयोग से
वक्ता के अभिप्राय में अधिक स्पष्टता का बोध होता है। इनके अनुचित प्रयोग से अर्थ
का अनर्थ भी हो जाता है;
जैसे-
“कल रात एक नवयुवक मेरे पास पैरों में मोजे और
जूते, सिर पर टोपी, हाथ में छड़ी, मुँह में सिगार और कुत्ता पीछे-पीछे लिए आया”।
“कल रात एक नवयुवक मेरे पास, पैरों में मोजे और जूते सिर पर, टोपी हाथ में, छड़ी मुँह में, सिगार
और कुत्ता पीछे-पीछे लिए आया।”
विराम-चिह्नों के
बदलने से वाक्य का अर्थ भी बदल जाता है;
जैसे-
उसे रोको मत, जाने दो।
उसे रोको, मत जाने दो।
उन्नीसवीं शताब्दी में पूर्वार्द्ध तक हिन्दी तथा
अन्य भारतीय भाषाओं में विराम-चिह्नों के रूप में एक पाई (।) दो पाई (।।) का
प्रयोग होता था। कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना के बाद अंग्रेज़ों के
सम्पर्क में आने के कारण उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक अंग्रेज़ी के ही बहुत से
विराम-चिह्न हिन्दी में आ गए। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से हिन्दी में विरामादि
चिह्नों का व्यवस्थित प्रयोग होने लगा और आज हिन्दी व्याकरण में उन्हें पूर्ण
मान्यता प्राप्त है।
हिन्दी में
निम्नलिखित विराम-चिह्नों का प्रयोग होता है-
नाम – चिह्नों
पूर्ण विराम-चिह्न (Sign of full-stop ) – (।)
अर्द्ध विराम-चिह्न
(Sign of semi-colon) –
(;)
अल्प विराम-चिह्न (Sign of comma) – (,)
प्रश्नवाचक चिह्न (Sign of interrogation) – (?)
विस्मयादिबोधक चिह्न
(Sign of exclamation) –
(!)
उद्धरण चिह्न (Sign of inverted commas) – (” “) (”
“)
निर्देशक या रेखिका
चिह्न (Sign of dash) –
(—)
विवरण चिह्न (Sign of colon dash) – (:-)
अपूर्ण विराम-चिह्न
(Sign of colon) – (:)
योजक विराम-चिह्न (Sign of hyphen) – (-)
कोष्ठक (Brackets) – () [] {}
चिह्न (Sign of abbreviation) – 0/,/.
चह्न (Sign of elimination) + x + x + /…/…
प्रतिशत चिह्न (Sign of percentage) (%)
समानतासूचक चिह्न (Sign of equality) (=)
तारक
चिह्न/पाद-टिप्पणी चिह्न (Sign
of foot note) (*)
त्रुटि चिह्न (Sign of error; indicator) (^)
विराम चिन्ह का
प्रयोग
नीचे दिए गए
विराम-चिह्नों का प्रयोग हिन्दी भाषा में निम्न प्रकार किया जाता है-
पूर्ण विराम का
प्रयोग (।) पूर्ण विराम का
अर्थ है भली-भाँति ठहरना।
सामान्यतः पूर्ण
विराम का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है-
(i) प्रश्नवाचक और विस्मयादिबोधक वाक्यों को छोड़कर
शेष सभी वाक्यों के अन्त में पूर्ण विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
यह पुस्तक अच्छी है।
गीता खेलती है।
बालक लिखता है।
(ii) किसी व्यक्ति या वस्तु का सजीव वर्णन करते समय
वाक्यांशों के अन्त में भी पूर्ण विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
गोरा बदन।
स्फूर्तिमय काया।
मदमाते नेत्र।
भोली चितवन।
चपल अल्हड़ गति।
(iii) प्राचीन भाषा के पद्यों में अर्द्धाली के पश्चात्
पूर्ण विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
परहित सरिस धरम नहिं
भाई।
परपीड़ा सम नहिं
अधमाई।।
अर्द्ध विराम का
प्रयोग (;)
अर्द्ध विराम का
अर्थ है-आधा विराम। जहाँ पूर्ण विराम की तुलना में कम रुकना होता है, वहाँ अर्द्ध विराम का प्रयोग होता है। सामान्यतः
अर्द्ध विराम का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है-
(i) जहाँ संयुक्त वाक्यों के मुख्य उपवाक्यों में
परस्पर विशेष सम्बन्ध नहीं होता है, वहाँ अर्द्ध विराम
द्वारा उन्हें अलग किया जाता है;
जैसे-
उसने अपने माल को
बचाने के लिए अनेक उपाय किए; परन्तु वे सब निष्फल
हुए।
(ii) मिश्र वाक्यों में प्रधान वाक्य के साथ पार्थक्य
प्रकट करने के लिए अर्द्ध विराम का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
जब मेरे पास रुपये
होंगे; तब मैं आपकी सहायता करूँगा।
(iii) अनेक उपाधियों को एक साथ लिखने में, उनमें पार्थक्य प्रकट करने के लिए इसका प्रयोग
होता है;
जैसे-
डॉ. अशोक जायसवाल, एम.ए.; पी.एच.डी.; डी.लिट्.।
अल्प विराम का
प्रयोग (,)
अल्प विराम का अर्थ
है- न्यून ठहराव। वाक्य में जहाँ बहुत ही कम ठहराव होता है, वहाँ अल्प विराम का प्रयोग होता है। इस चिह्न का
प्रयोग सर्वाधिक होता है। सामान्यतः अल्प विराम का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों
में होता हैं-
(i) जहाँ एक तरह के कई शब्द, वाक्यांश या वाक्य एक साथ आते हैं. तो उनके बीच
अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
रमेश, सुरेश, महेश और वीरेन्द्र
घूमने गए।
(ii) जहाँ भावातिरेक के कारण शब्दों की पुनरावृत्ति
होती है, वहाँ अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
सुनो, सुनो, ध्यान से सुनो, कोई गा रहा है।
(iii) सम्बोधन के समय जिसे सम्बोधित किया जाता है, उसके बाद अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
वीरेन्द्र, तुम यहीं ठहरो।
(iv) जब हाँ अथवा नहीं को शेष वाक्य से पृथक् किया
जाता है, तो उसके बाद अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
हाँ, मैं कविता करूँगा।
(v) पर, परन्तु, इसलिए, अत:, क्योंकि, बल्कि, तथापि, जिससे आदि के पूर्व
अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
वह विद्यालय न जा
सका, क्योंकि अस्वस्थ था।
(vi) उद्धरण से पूर्व अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
राम ने श्याम से कहा, “अपना काम करो।”
(vii) यह, वह, तब, तो, और, अब, आदि के लोप होने पर वाक्य में अल्प विराम का
प्रयोग होता है;
जैसे-
जब जाना ही है, जाओ।
(viii) बस, वस्तुतः, अच्छा, वास्तव में आदि से
आरम्भ होने वाले वाक्यों में इनके पश्चात् अल्प विराम का प्रयोग होता है;
जैसे-
वास्तव में, मनोबल सफलता की कुंजी है।
(ix) तारीख के साथ महीने का नाम लिखने के बाद तथा सन्, संवत् के पूर्व अल्प विराम का प्रयोग किया जाता
है;
जैसे-
2 अक्टूबर, सन् 1869 ई. को गाँधी जी का जन्म हुआ।
(x) अंकों को लिखते समय भी अल्प विराम का प्रयोग किया
जाता है;
जैसे-
5, 6, 7, 8,
10, 20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 90, 100, 1000 आदि।
प्रश्नवाचक चिह्न का
प्रयोग (?)
जब किसी वाक्य में
प्रश्नात्मक भाव हो, उसके अन्त में प्रश्नवाचक चिह्न (?) लगाया जाता है। प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग
निम्नलिखित स्थितियों में होता है-
(i) प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग प्रश्नवाचक वाक्यों
के अन्त में किया जाता है;
जैसे
तुम्हारा क्या नाम
है?
(ii) प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग अनिश्चय की स्थिति
में किया जाता है;
जैसे
आप सम्भवत: दिल्ली
के निवासी हैं?
(iii) व्यंग्य करने की स्थिति में भी प्रश्नवाचक चिह्न
का प्रयोग होता है;
जैसे-
घूसखोरी नौकरशाही की
सबसे बड़ी देन है, है न?
(iv) जहाँ शुद्ध-अशुद्ध का सन्देह उत्पन्न हो, तो उस पर या उसकी बगल में कोष्ठक लगाकर उसके
अन्तर्गत प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया जाता है;
जैसे-
हिन्दी की पहली
कहानी ‘ग्यारह वर्ष का समय’ (?) मानी जाती है।
ऐसे वाक्य जिनमें
प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग नहीं होता
अप्रत्यक्ष कथन वाले
प्रश्नवाचक वाक्यों के अन्त में प्रश्नवाचक चिह्न नहीं लगाया जाता;
जैसे-
मैं यह नहीं जानता
कि मैं क्या चाहता हूँ।
जिन वाक्यों में
प्रश्न आज्ञा के रूप में हों, उन वाक्यों में
प्रश्नवाचक चिह्न नहीं लगाया जाता है;
जैसे-
मुम्बई की राजधानी
बताओ।
विस्मयादिबोधक चिह्न
का प्रयोग (!)
आश्चर्य, करुणा, घृणा, भय, विवाद, विस्मय आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए
विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग होता है। इसका प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में
होता है(i) विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग हर्ष, घृणा, आश्चर्य आदि भावों
को व्यक्त करने वाले शब्दों के साथ होता है;
जैसे-
अरे! वह अनुत्तीर्ण
हो गया।
वाह! तुम धन्य हो।
(ii) विनय, व्यंग्य, उपहास इत्यादि के व्यक्त करने वाले वाक्यों के
अन्त में पूर्ण विराम के स्थान पर विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे
आप तो हरिश्चन्द्र
हैं! (व्यंग्य)
हे भगवान! दया करो!
(विनय)
वाह! वाह! फिर
साइकिल चलाइए ! (उपहास)
उद्धरण चिह्न का प्रयोग
(‘….’) (“….”)
उद्धरण चिह्न दो
प्रकार के होते हैं—इकहरे चिह्न (‘….’) और
दोहरे चिह्न (“….”) .. उद्धरण चिह्नों का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों
में होता है-
(i) किसी लेख, कविता और पुस्तक
इत्यादि का शीर्षक लिखने में इकहरे उद्धरण . चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
मैंने तुलसीदास जी
का ‘रामचरितमानस’ पढ़ा है।
(ii) जब किसी शब्द की विशिष्टता अथवा विलगता सूचित
करनी होती है, तो इकहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
खाना का अर्थ ‘घर’ होता है।
(iii) उद्धरण के अन्तर्गत कोई दूसरा उद्धरण होने पर
इकहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
डॉ. वर्मा ने कहा है, “निराला जी की कविता ‘वह तोड़ती पत्थर’ बड़ी
मार्मिक है।”
(iv) जब किसी कथन को जैसा का तैसा उद्धृत करना होता है, तब दोहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
सरदार पूर्णसिंह का
कथन है-
“हल चलाने वाले और भेड़ चराने वाले स्वभाव से ही
साधु होते है।
निर्देशक या रेखिका
का प्रयोग (-)
किसी विषय-विचार
अथवा विभाग के मन्तव्य को सुस्पष्ट करने के लिए निर्देशक चिह्न या रेखिका चिह्न का
प्रयोग किया जाता है। निर्देशक या रेखिका का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता
है-
(i) जब किसी कथन को जैसा का तैसा उद्धृत करना होता है, तब उससे पहले रेखिका का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
तुलसी ने कहा है- “परहित सरिस धरम नहिं भाई।”
(ii) विवरण प्रस्तुत करने के पहले निर्देशक (रेखिका)
का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
रचना के आधार पर
शब्द तीन प्रकार के होते हैं—रूढ़, यौगिक और योगरूढ़।
(iii) जैसे, यथा और उदाहरण आदि
शब्दों के बाद रेखिका का प्रयोग होता है;
जैसे-
संस्कृति की ‘स’ ध्वनि फ़ारसी में ‘ह’ हो जाती है;
जैसे-
असुर > अहुर।
(iv) वाक्य में टूटे हुए विचारों को जोड़ने के लिए
रेखिका का प्रयोग होता है;
जैसे-
आज ऐसा लग रहा
है-मैं घर पहुँच गया हूँ।
(v) किसी कविता या अन्य रचना के अन्त में रचनाकार का
नाम देने से पूर्व रेखिका का प्रयोग होता है;
जैसे-
शायद समझ नहीं पाओ
तुम, मैं कितना मज़बूर हूँ। मन है पास तुम्हारे लेकिन, रहता इतनी दूर हूँ। ओंकार नाथ वर्मा
(vi) संवादों को लिखने के लिए निर्देशक चिह्न का
प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
सुरेश – क्या तुम स्कूल आओगे?
रमेश – हाँ।
विवरण चिह्न का
प्रयोग (:-)
सामान्यतः विवरण चिह्न का प्रयोग निर्देशक चिह्न
की भाँति ही होता है। विशेष रूप से जब किसी विवरण को प्रारम्भ करना होता है अथवा
किसी कथन को विस्तार देना होता है तब विवरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
निम्नलिखित विषयों
में किसी एक पर निबन्ध लिखिए :
(क) साहित्य और समाज
(ख) भाषा और व्याकरण
(ग) देशाटन.
(घ) विज्ञान वरदान है या अभिशाप
(ङ) नई कविता।
जयशंकर प्रसाद ने
कहा है:-‘जीवन विश्व की सम्पत्ति है।’
किसी वस्तु का
सविस्तार वर्णन करने में विवरण चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे:-
इस देश में कई
बड़ी-बड़ी नदियाँ हैं; जैसे:– गंगा, सिंधु, यमुना, गोदावरी आदि।
अपूर्ण विराम का
प्रयोग (:)
अपूर्ण विराम चिह्न विसर्ग की तरह दो बिन्दुओं के
रूप में होता है, इसलिए कभी-कभी विसर्ग का भ्रम होता है, फलत: इसका प्रयोग कम होता है। अपूर्ण विराम का
स्वतन्त्र प्रयोग किसी शीर्षक को उसी के आगे स्पष्ट करने में होता है;
जैसे-
कामायनी : एक
अध्ययन।
विज्ञान : वरदान या
अभिशाप
योजक चिह्न का
प्रयोग (-)
योजक चिह्न का
प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है-
(i) दो विलोम शब्दों के बीच योजक चिह्न का प्रयोग
होता है;
जैसे-
रात-दिन, यश-अपयश, आना-जाना।
(ii) द्वन्द्व समास के बीच योजक चिह्न का प्रयोग होता
है;
जैसे-
माता-पिता, भाई-बहन, गुरु-शिष्य।
(iii) दो समानार्थी शब्दों की पुनरुक्ति के बीच में भी
इसका प्रयोग होता है;
जैसे-
घर-घर, रात-रात, दूर-दूर।
(iv) जब विशेषण पदों का प्रयोग संज्ञा के अर्थ में
होता है;
जैसे-
भूखा-प्यासा, थका-माँदा, लूला-लँगड़ा
(v) गुणवाचक विशेषण के साथ यदि सा, सी का संयोग हो, तो उनके
बीच योजक-चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
छोटा-सा घर, नन्ही-सी बच्ची, बड़ा-सा
कष्ट।
(vi) दो प्रथम-द्वितीय प्रेरणार्थक के योग के बीच भी
योजक चिह्न का प्रयोग होता है;
जैसे-
करना-करवाना, जीतना-जितवाना, पीना-पिलवाना, खाना-खिलवाना, मरना-मरवाना।
कोष्ठक का प्रयोग (), { }, []
कोष्ठकों का प्रयोग
निम्नलिखित स्थितियों में होता है-
(i) जब किसी भाव या शब्द की व्याख्या करना चाहते हैं, किन्तु उस अंश को मूल वाक्य से अलग ही रखना चाहते
हैं, तो कोष्ठक का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
उन दिनों मैं सेठ
जयदयाल हाईस्कूल (अब इण्टर कॉलेज) में हिन्दी अध्यापक था।
(ii) नाटक या एकांकी में निर्देश के लिए कोष्ठक का
प्रयोग होता है;
जैसे-
(राजा का प्रवेश)
(पटाक्षेप)
(iii) किसी वर्ग के उपवर्गों को लिखते समय वर्णों या
संख्याओं को कोष्ठक में लिखा जाता है;
जैसे
(क) (ख)
(1) (2)
(i) (ii)
(iv) प्राय: बड़े [ ] और मझोले { } कोष्ठकों
का उपयोग गणित के कोष्ठक वाले सवालों को हल करने के लिए किया जाता है।
संक्षेपसूचक चिह्न
का प्रयोग (o,.)
संक्षेपसूचक चिह्न
का प्रयोग किसी नाम या शब्द के संक्षिप्त रूप के साथ होता है; जैसे-डॉक्टर के लिए (डॉ.), प्रोफेसर या प्रोपराइटर के लिए (प्रो.), पंडित के लिए (पं.), मास्टर ऑफ आर्ट्स के लिए (एम.ए.) और डॉ. ऑफ
फिलॉसफी के लिए (पी-एच.डी.) आदि।
(शून्य अधिक स्थान घेरता है, अत: इसके स्थान पर बिन्दु (.) का भी प्रयोग किया
जाता है।)
लोप सूचक चिह्न का
प्रयोग (x x x
x/…./—-)
जब किसी अवतरण का
पूरा उद्धरण न देकर कुछ अंश छोड़ दिया जाता है, तब लोप सूचक चिह्न
का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
सच-सरासर-सच, आज देश का हर नेता …… है।
नेताओं की वज्र XXXX से देश का हर नागरिक त्रस्त है। मेरा यदि वश होता
तो मैं इन सबको—-
प्रतिशत चिह्न का
प्रयोग (%)
सौ (100) संख्या के अन्तर्गत, जिस संख्या को प्रदर्शित करना होता है, उसके आगे प्रतिशत चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
सभा में 25% स्त्रियाँ थीं।
30% छूट के साथ पुस्तक की 50 प्रतियाँ भेज दें।
समानतासूचक/तुल्यतासूचक
चिह्न का प्रयोग ( = )
किसी शब्द का अर्थ
अथवा भाषा के व्याकरणिक विश्लेषण में समानता सूचक चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
कृतघ्न = उपकार न
मानने वाला।
तपः + वन = तपोवन।
पुन: + जन्म =
पुनर्जन्म।
क्षिति = पृथ्वी
तारक/पाद चिह्न का
प्रयोग (*)
इस चिह्न का प्रयोग
किसी विषय के बारे में विशेष सूचना या निर्देश देना हो, तो ऊपर तारक चिह्न लगा दिया जाता है और फिर पृष्ठ
के अधोभाग में रेखा के नीचे तारक चिह्न लगाकर उसका विवरण दिया जाता है, जिसे पाद-टिप्पणी (Foo Note) कहा जाता है;
जैसे-
रामचरितमानस
हमारे देश में
अत्यन्त लोकप्रिय ग्रन्थ है।
रामचरितमानस से
हमारा तात्पर्य तुलसीदास विरचित राम-कथा पर आधारित महाकाव्य से है।
त्रुटि चिह्न (^)
अक्षर, पद, पद्यांश या वाक्य के
छूट जाने पर छूटे अंश को उस वाक्य के ऊपर लिखने हेतु वाक्य के अंश के नीचे त्रुटि
चिह्न का प्रयोग किया जाता है;
जैसे-
विराम चिन्ह
वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली
1. नीचे लिखे वाक्यों में से किसमें विराम-चिह्नों
का सही प्रयोग हुआ है? (उत्तराखण्ड अध्यापक पात्रता परीक्षा- 2011)
(a) हाँ, मैं सच कहता हूँ
बाबूजी। माँ बीमार है। इसलिए मैं नहीं गया।
(b) हाँ मैं सच कहता हूँ। बाबूजी, माँ बीमार है। इसलिए मैं नहीं गया।
(c) हाँ, मैं सच कहता हूँ, बाबू जी, माँ बीमार है, इसलिए मैं नहीं गया।
(d) हाँ, मैं सच कहता हूँ, बाबू जी। माँ बीमार है इसलिए मैं नहीं गया।
उत्तर :
(c) हाँ, मैं सच कहता हूँ, बाबू जी, माँ बीमार है, इसलिए मैं नहीं गया।
2. विरामादि चिह्नों की दृष्टि से कौन-सा वाक्य
शुद्ध है? (उत्तराखण्ड अध्यापक पात्रता परीक्षा 2011)
(a) पिता ने पुत्र से कहा-देर हो रही है, कब आओगे
(b) पिता ने पुत्र से कहा-देर हो रही है, कब आओगे?
(c) पिता ने पुत्र से कहा-“देर हो रही है, कब आओगे?”
(d) पिता ने पुत्र से कहा, “देर हो रही है कब आओगे।
उत्तर :
(c) पिता ने पुत्र से कहा-“देर हो रही है, कब आओगे?”
3. जहाँ वाक्य की गति अन्तिम रूप ले ले, विचार के तार एकदम टूट जाएँ, वहाँ किस चिह्न का प्रयोग किया जाता है?
(a) योजक
(b) उद्धरण चिह्न
(c) अल्प विराम
(d) पूर्ण विराम
उत्तर :
(d) पूर्ण विराम
4. किस वाक्य में विरामादि चिह्नों का सही प्रयोग
हुआ है?
(a) आप मुझे नहीं जानते! महीने में मैं दो दिन ही
व्यस्त रहता हूँ।
(b) आप, मुझे नहीं जानते? महीने में मैं, दो दिन
ही व्यस्त रहता हूँ
(c) आप मुझे, नहीं जानते, महीने में मैं! दो दिन ही व्यस्त रहता हूँ
(d) आप मुझे नहीं, जानते; महीने में मैं दो दिन ही व्यस्त रहता हूँ?
उत्तर :
(a) आप मुझे नहीं जानते! महीने में मैं दो दिन ही
व्यस्त रहता हूँ।
5. किस वाक्य में विरामादि चिह्नों का सही प्रयोग
हुआ है?
(a) मैं मनुष्य में, मानवता
देखना चाहता हूँ। उसे देवता बनाने की मेरी इच्छा नहीं।
(b) मैं मनुष्य में मानवता देखना चाहता हूँ। उसे देवता
बनाने की, मेरी इच्छा नहीं।
(c) मैं मनुष्य में मानवता, देखना चाहता हूँ। उसे देवता बनाने की मेरी इच्छा
नहीं।
(d) मैं, मनुष्य में मानवता
देखना चाहता हूँ। उसे देवता बनाने की मेरी इच्छा नहीं।
उत्तर :
(b) मैं मनुष्य में मानवता देखना चाहता हूँ। उसे
देवता बनाने की, मेरी इच्छा नहीं।
6. पूर्ण विराम के स्थान पर एक अन्य चिह्न भी
प्रचलित है, वह है-
(a) अल्प विराम
(b) योजक चिह्न
(c) फुलस्टॉप
(d) विवरण चिह्न
उत्तर :
(c) फुलस्टॉप
7. जब से हिन्दी में अन्तर्राष्ट्रीय अंकों 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 0 का प्रयोग आरम्भ हुआ, तब से ।’ के स्थान पर किसका
प्रयोग होने लगा है?
(a) अर्द्ध विराम
(b) अल्प विराम
(c) विस्मयादिबोधक
(d) फुलस्टॉप
उत्तर :
(d) फुलस्टॉप
8. प्रश्नवाचक तथा विस्मयादिबोधक को छोड़कर सभी
वाक्यों के अन्त में प्रयुक्त होता है-
(a) पूर्ण विराम
(b) अर्द्ध विराम
(c) उद्धरण चिह्न
(d) विवरण चिह्न
उत्तर :
9. किस वाक्य में विराम-चिह्नों का सही प्रयोग हुआ
है?
(a) राम, मोहन, घर, पर्वत; संज्ञाएँ। यह, वह, तुम, मैं; सर्वनाम। लिखना, गाना, दौड़ना; क्रियाएँ।
(b) राम, मोहन, घर, पर्वत संज्ञाएँ; यह, वह, तुम, मैं सर्वनाम; लिखना, गाना, दौड़ना क्रियाएँ
(c) राम-मोहन, घर-पर्वत संज्ञाएँ!
यह-वह-तुम-मैं सर्वनाम! लिखना-गानदौड़ना संज्ञाएँ।
(d) राम मोहन घर पर्वत संज्ञाएँ। यह वह तुम मैं
सर्वनाम। लिखना, गाना, दौड़ना क्रियाएँ।
उत्तर :
(a) राम, मोहन, घर, पर्वत; संज्ञाएँ। यह, वह, तुम, मैं; सर्वनाम। लिखना, गाना, दौड़ना; क्रियाएँ।
10. जहाँ पूर्ण विराम की अपेक्षा कम रुकना अपेक्षित
हो, वहाँ ……. चिह्न · का प्रयोग किया जाता है।
(a) अर्द्ध विराम
(b) अल्प विराम
(c) संक्षेप चिह्न
(d) कोष्ठक
उत्तर :
(a) अर्द्ध विराम
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