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Sangya in Hindi – संज्ञा के प्रकार, भेद और उदाहरण |
Sangya in Hindi
– संज्ञा के प्रकार, भेद और उदाहरण
“किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान या भाव के
नाम को संज्ञा कहते हैं।”
जैसे–अंशु, प्रवर, चेन्नई, भलाई,
मकान आदि।
उपर्युक्त उदाहरण में, अंशु और प्रवर : व्यक्तियों के नाम
चेन्नई : स्थान का नाम
मकान : वस्तु का नाम और
भलाई : भाव का नाम है।
संज्ञा को परम्परागत रूप से (प्राचीन मान्यताओं के आधार पर) पाँच
प्रकारों और आधुनिक मान्यताओं के आधार पर तीन प्रकारों में बाँटा गया है।
जातिवाचक संज्ञा (Common Noun) : जिन संज्ञाओं से एक जाति के अन्तर्गत आनेवाले सभी
व्यक्तियों, वस्तुओं, स्थानों के
नामों का बोध होता है, जातिवाचक संज्ञाएँ कहलाती हैं।
जैसे-
गाय : गाय कहने से पहाड़ी, हरियाणी, जर्सी, फ्रीजियन,
संकर, देशी, विदेशी,
काली, उजली, चितकबरी–इन सभी प्रकार की गायों का बोध होता है; क्योंकि
गाय जानवरों की एक जाति हुई।
लड़का : इसमें सभी तरह और सभी जगहों के लड़के आते हैं–रामू, श्यामू, प्रखर, संकेत, मोहन,
पीटर, करीम आदि–क्योंकि, मनुष्यों में एक खास अवस्थावाले
मानवों की एक जाति हुई–लड़का।
नदी : इसके अंतर्गत सभी नदियाँ आएँगी–गंगा, यमुना, सरयू,
कोसी, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, ह्वांगहो, टेन्नेसी,
नील, दजला, फुरात
वे सभी।
पहाड़ : इस जाति के अंतर्गत हिमालय, आल्प्स, फ्यूजियामा, मंदार–ये सभी पहाड़ आएँगे।
शहर : यह स्थानसूचक जातिवाचक संज्ञा है। इसके अंतर्गत तमाम शहर आएँगे–दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, मुम्बई, बेंगलुरू,
वाराणसी, पटना, कानपुर, लखनऊ ये सभी।
नोट : इसी जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत आधुनिक मान्यताओं के आधार पर द्रव्यवाचक
और समूहवाचक संज्ञाओं को रखा गया है।
व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun) : व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ उन्हीं वस्तुओं, व्यक्तियों, स्थानों की जातियों में से खास का
नाम बताती हैं। यानी, जो संज्ञाएँ किसी विशेष वस्तु,
व्यक्ति या स्थान के नामों का बोध कराए, व्यक्तिवाचक कहलाती हैं।
उदाहरण हम ऊपर की जातियों से ही खास–खास का नाम चुनते हैं–
जर्सी गाय, प्रखर कुमार,
ह्वांगहो, हिमालय पर्वत, बेंगुलुरू आदि। आप देख रहे हैं कि ‘जर्सी गाय’
से एक खास प्रकार की गाय का; ‘प्रखर
कुमार’ से एक खास व्यक्ति का; ‘ह्वांगहो’
से एक खास नदी का; ‘हिमालय पर्वत’
से एक खास पर्वत का और ‘बेंगलुरू’
से एक खास शहर का बोध हो रहा है। अतएव, ये
सभी व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ हैं।
भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun)
: जिन संज्ञाओं से पदार्थों या व्यक्तियों के धर्म,
गुण, दोष, आकार,
अवस्था, व्यापार या चेष्टा आदि भाव जाने
जाएँ, वे भाववाचक संज्ञाएँ होती हैं। भाववाचक संज्ञाएँ
अनुभवजन्य होती हैं, ये अस्पर्शी होती हैं।
उदाहरण क्रोध, घृणा, प्रेम, अच्छाई, बुराई,
बीमारी, लंबाई, बुढ़ापा, मिठास, बचपन,
हरियाली, उमंग, सच्चाई आदि। उपर्युक्त उदाहरणों में से आप किसी को छू नहीं सकते;
सिर्फ अनुभव ही कर सकते हैं।
कुछ भाववाचक संज्ञाएँ स्वतंत्र होती हैं तो कुछ विभिन्न प्रत्ययों को
जोड़कर बनाई जाती हैं। उपर्युक्त उदाहरणों को ही हम देखते हैं–
क्रोध, घृणा, प्रेम, उमंग आदि स्वतंत्र भाववाचक हैं;
किन्तु अच्छाई (अच्छा + आई), बुराई
(बुरा + आई), बीमारी (बीमार + ई), लम्बाई (लम्बा + आई), बुढ़ापा (बूढ़ा + पा),
मिठास (मीठा + आस), बचपन (बच्चा + पन),
हरियाली (हरी + आली), सच्चाई (सच्चा +
आई) प्रत्ययों के जोड़ने से बनाई गई भाववाचक संज्ञाएँ हैं।
नोट : भाववाचक संज्ञाओं के निर्माण से संबंधित बातें प्रत्यय–प्रकरण में दी गई हैं।
समूहवाचक संज्ञा (Collective
Noun) : सभा, संघ,
सेना, गुच्छा, गिरोह,
झुण्ड, वर्ग, परिवार
आदि समूह को प्रकट करनेवाली संज्ञाएँ ही समूहवाचक संज्ञाएँ हैं; क्योंकि यह संज्ञा समुदाय का बोध कराती है।
द्रव्यवाचक संज्ञा (Material Noun)
: जिन संज्ञाओं से ठोस, तरल,
पदार्थ, धातु, अधातु
आदि का बोध हो, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं।
द्रव्यवाचक संज्ञाएँ ढेर के रूप में मापी या तोली जाती हैं। ये अगणनीय हैं।
जैसे–
लोहा, सोना, चाँदी, तेल, घी,
डालडा, पानी, मिट्टी,
सब्जी, फल, अन्न,
चीनी, आटा, चूना,
आदि।
ध्यातव्य बातें:
1. रोचक बातें
‘फल’ द्रव्यवाचक संज्ञा है; क्योंकि इसे तोला जाता है। लेकिन, फल के
अंतर्गत तो सभी प्रकार के फल आते हैं। इस आधार पर ‘फल’
तो जातिवाचक संज्ञा हुई न? अब फलों में
यदि ‘आम’ की बात करें तो एक खास
प्रकार के फल का बोध होगा। इस हिसाब से ‘आम’ को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहना चाहिए। थोड़ा–सा
और आगे बढ़िए–’आम’ के अंतर्गत
सभी प्रकार के आम आएँगे–सीपिया, मालदा,
बंबइया, जर्दालू, सुकुल, गुलाबखास। तब तो ‘आम’ को जातिवाचक मानना उचित होगा और मालदा आम
को व्यक्तिवाचक; परन्तु यदि कोई मालदा आमों में से केवल ‘दुधिया मालदा’ की बात करे तब क्या माना जाएगा?
आपका स्पष्ट उत्तर होगा–व्यक्तिवाचक। अब
थोड़ा नीचे से (दुधिया मालदा) ऊपर (फल) तक जाकर देखें–
‘सभा’ समूहवाचक संज्ञा है; क्योंकि यह समुदाय का बोधक है। अच्छा भई, तो ‘आम सभा’, बाल सभा आदि क्या हैं?
दर्जी आपको मापता है और डॉक्टर तोलता या आप स्वयं को तोलते हैं। आपको
(मानव पाठक) क्या माना जाय–जातिवाचक? व्यक्तिवाचक? या फिर द्रव्यवाचक?
2. निष्कर्ष : संस्कृत के विद्वानों ने द्रव्यवाचक और समूहवाचक संज्ञाओं
का अंतर्भाव भाववाचक में माना है तो डा० किशोरी दास बाजपेयी ने अपने व्याख्यान में
निष्कर्ष निकालते हुए कहा–
“संज्ञा मात्र एक ही है–जातिवाचक संज्ञा–हम अध्ययन और समझदारी बढ़ाने
के लिए तथा बच्चों को सिखाने के लिए इसके भिन्न–भिन्न
प्रकारों की बातें करते हैं।”
शायद इसी उलझन के कारण आधुनिक वैयाकरणों ने आधुनिक अंग्रेजी भाषा का
अनुकरण करते हुए बिल्कुल साफ़ तौर पर माना है कि संज्ञाओं को मुख्य रूप से तीन
प्रकारों में बाँटा जाय।–
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun)
2. गणनीय संज्ञा (Countable Noun) और
3. अगणनीय संज्ञा (Uncountable Noun)
संज्ञाओं के विशेष प्रयोग
हम पहले ही बता चुके हैं कि शब्द अनेकार्थी होते हैं और पद एकार्थी और
पद भी तो निश्चित बंधन में नहीं रहते। जैसे-
वह अच्छा लड़का है।
(विशेषण)
वह लड़का अच्छा गाता है।
(क्रियाविशेषण)
तुम सारे ही आए, अच्छे कहाँ रह गए?
(सर्वनाम)
अच्छों को जाने दो।
(संज्ञा)
हम देख रहे हैं कि एक ही पद अपने नाम को बदल रहा है। नामों में यह
बदलाव प्रयोग के कारण होता है।
जब पद अपने नामों को बदल लेते हैं तो क्या संज्ञा प्रयोग के आधार पर
अपने नामों व प्रकारों को बदल नहीं सकती? कुछ उदाहरणों को देखें :
जातिवाचक से व्यक्तिवाचक में बदलाव
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें
गाँधी को राष्ट्रपिता कहा गया है।
मेरे दादाजी पुरी यात्रा पर निकले हैं।
गुरुजी का व्याकरण आज भी प्रामाणिक है।
वह व्यक्ति देवी का अनन्य भक्त है।
गोस्वामी जी ने रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की।
उपर्युक्त उदाहरणों में रेखांकित पद जाति की बात न कहकर खास–खास व्यक्ति एवं स्थान की बातें करते हैं। इसे इस
प्रकार समझें–
गाँधी : जातिवाचक संज्ञा–इसके अंतर्गत करमचन्द गाँधी, महात्मा गाँधी,
इंदिरा गाँधी, फिरोज गाँधी, राजीव गाँधी, संजय गाँधी, मेनका गाँधी, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, वरुण गाँधी आदि–आदि आते हैं; परन्तु उक्त वाक्य में ‘गाँधी’ का प्रयोग सिर्फ मोहनदास करमचन्द गाँधी (महात्मा गाँधी) हुआ है।
पुरी : यह भी जातिवाचक संज्ञा है। इसके अंतर्गत तमाम पुरियाँ (नगर)
जैसे– जगन्नाथपुरी, पावापुरी,
अलकापुरी आती हैं; परन्तु उक्त वाक्य
में केवल जगन्नाथपुरी के लिए पुरी का प्रयोग हुआ है।
इसी तरह, गुरुजी से : कामता
प्रसाद गुरु।
देवी से : दुर्गा
गोस्वामी से : तुलसीदास का बोध होता है।
इसी प्रकार, ‘संवत्’ का प्रयोग : विक्रमी संवत् के लिए
‘भारतेन्दु’ का प्रयोग : हरिश्चन्द्र के लिए ‘मालवीय’ का
प्रयोग : मदनमोहन के लिए और
‘नेहरू’ का प्रयोग : पं० जवाहर लाल के लिए होता
है।
स्पष्ट है कि जब कोई जातिवाचक संज्ञा किसी विशेष व्यक्ति/स्थान/वस्तु
के लिए प्रयुक्त हो, तब वह जातिवाचक
होते हुए भी व्यक्तिवाचक बन जाती है।
साधारणतया जातिवाचक संज्ञा का प्रयोग एकवचन और बहुवचन दोनों में होता
है; किन्तु व्यक्तिवाचक और भाववाचक संज्ञाएँ प्रायः
एकवचन में ही प्रयुक्त होती हैं–यह बात पूर्णतः सत्य नहीं
है। निम्नलिखित उदाहरणों को देखें-
1. पं० नेहरू बहुत बड़े राजनीतिज्ञ थे। यहाँ ‘नेहरू’
तो व्यक्तिवाचक संज्ञा है फिर भी बहुवचन क्रिया का प्रयोग हुआ है;
क्योंकि सम्मानार्थ व्यक्तिवाचक संज्ञा का बहुवचन में भी प्रयोग
होता है। यह बात भी पूर्णतया सत्य नहीं है। ये उदाहरण देखें–
(a) ईश्वर तेरा भला करे।
(b) उसका पिता बीमार है।
यहाँ ‘ईश्वर’ और ‘पिता’ का प्रयोग
आदरणीय होते हुए भी एकवचन में हुआ है।
‘ईश्वर’ का प्रयोग तो एकवचन में ही होता है;
परन्तु अपने पिता के लिए बहुवचन क्रिया लगाई जाती है। जैसे–मेरे पिताजी विभिन्न भाषाओं के जानकार हैं। इसी तरह शिक्षक का प्रयोग
एकवचन एवं बहुवचन दोनों में होता है
शिक्षक हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
पोषाहार–योजना से शिक्षक भी
बेईमान हो गया है।
व्यक्तिवाचक से जातिवाचक संज्ञा में बदलाव
नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दें
इस दुनिया में रावणों/कंसों की कमी नहीं।
एक ऐसा समय भी था, जब हमारे देश में
घर–घर सीता और सावित्री थीं।
इस देश में हरिश्चन्द्र घटते जा रहे हैं।
परीक्षा समाप्त होते ही वह कुम्भकरण बन बैठा।
कालिदास को नाट्यजगत् का शेक्सपीयर माना जाता है।
समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा गया है।
आल्प्स पर्वत यूरोप का हिमालय है।
उपर्युक्त उदाहरणों में रावण, कंस, सीता, सावित्री,
हरिश्चन्द्र, कुम्भकरण, शेक्सपीयर नेपोलियन और हिमालय का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के रूप में
हुआ है।
जब कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा एक व्यक्ति/वस्तु/स्थान विशेष के गुण की
प्रसिद्धि के कारण उस गुणवाले सभी पदार्थों के लिए प्रयुक्त होती है; तब ऐसी अवस्था में वह जातिवाचक बन जाती है।
व्यक्तिवाचक संज्ञा संसार में अकेली होती है; लेकिन वह जातिवाचक के रूप में प्रयुक्त होकर कई हो
जाती है।
भाववाचक का जातिवाचक में परिवर्तन भाववाचक संज्ञा का प्रयोग बहुवचन
में नहीं होता (भाववाचक रूप में); किन्तु जब उसका
रूप बहुवचन बन जाता है, तब वह भाववाचक न रहकर जातिवाचक बन
जाती है। नीचे लिखे उदाहरणों को ध्यानपूर्वक देखें-
आजकल भारतीय पहनावे बदल गए हैं।
अच्छाइयों को ग्रहण करो और बुराइयों का त्याग।
छात्रों को अपनी लिखावटों पर ध्यान देना चाहिए।
लाहौर में बम धमाकों से सर्वत्र चिल्लाहट सुनाई पड़ रही थीं।
मानवों के दिलों में ईर्ष्याएँ बढ़ती जा रही हैं।
उसके सपनों का सौदागर आया है।
मनुष्य मनुष्यताओं से विहीन अनादृत होता है।
उपर्युक्त उदाहरणों में रेखांकित पद भाववाचक से जातिवाचक बन गए हैं।
संज्ञाओं के कार्य-
वाक्य में दो भाग अनिवार्य रूप से होते हैं–उद्देश्य और विधेय। यदि वाक्य में उद्देश्य नहीं
रहे तो वाक्य सार्थक नहीं हो सकेगा। वाक्य के परमावश्यक तत्त्व–योग्यता, आकांक्षा और आसत्ति –नष्ट हो जाएँगे। नीचे लिखे वाक्यों पर गंभीरतापूर्वक विचार करें-
दौड़ता है। – कौन?
महँगा है। – क्या?
महान् राष्ट्र है। – कौन/क्या?
कठिन नहीं है। – क्या?
सस्ता हो गया है। – क्या?
क्या उपर्युक्त वाक्यों से अर्थ की पूर्णता स्पष्ट होती है? नहीं न?
अब इन्हीं वाक्यों के निम्नलिखित रूप देखें-
प्रवर दौड़ता है। – प्रवर (संज्ञा)
उद्देश्य
सोना महँगा है?- सोना (संज्ञा)
उद्देश्य
भारत महान् राष्ट्र है।- भारत (संज्ञा) उद्देश्य
गणित कठिन नहीं है। – गणित (संज्ञा)
उद्देश्य
कपड़ा सस्ता हो गया है। – कपड़ा (संज्ञा) उद्देश्य
अर्थात् संज्ञा वाक्य में उद्देश्य का काम कर वाक्य को सार्थक बना
देती है।
अब इन वाक्यों को देखें-
वह पढ़ता है। – क्या?
माता–पिता गए हैं। –
कहाँ?
उसने छड़ी से पीटा। – किसे किसको?
पेट्रोल से चलती है। – क्या?
वह परीक्षा में अच्छा लाया। – क्या?
उपर्युक्त वाक्यों में भी आकांक्षा शेष रह जाती है। यदि क्रमशः किताब, बाजार, कुत्ते को,
गाड़ी, अंक आदि संज्ञाएँ रहें तो वाक्य
इस प्रकार बनकर सार्थक हो जाएँगे :
वह किताब पढ़ता है।
माता–पिता बाजार गए हैं।
उसने छड़ी से कुत्ते को पीटा।
पेट्रोल से गाड़ी चलती है।
वह परीक्षा में अच्छा अंक लाया।
स्पष्ट है कि संज्ञाएँ वाक्य को सार्थकता प्रदान करती हैं।
संज्ञा के आवश्यक धर्म संज्ञा के तीन आवश्यक धर्म अथवा लक्षण माने गए
हैं :
संज्ञा का लिंग
संज्ञा का वचन और
संज्ञा का कारक।
यदि कोई पद संज्ञा है तो उसका निश्चित लिंग, वचन (एकवचन या बहुवचन) और कारकीय संबंध होगा। अतएव,
संज्ञा का रूपान्तरण तीन स्तरों पर होता है–लिंग, वचन और कारक।
2 टिप्पणियाँ
फूल में कोनसी संज्ञा है?
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है धन्यवाद - Hindi Grammar
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