Parivar ki khadi me/Liladhar Jangudi/परिवार की खाड़ी में/लीलाधर जगूड़ी/कविता की व्याख्या

बिस्तरे के मुहाने पर

जंगली नदी का शोर हो रहा है

और थपेड़े

मकान की नींव से

मेरे तकिये तक आ रहे हैं

काँपते हुए पेड़ों को भांपते हुए

पत्नी ने कहा आँधी

और फिर बक्से के पास लौट आयी

 

मेरे उठते ही

खिड़की के रास्ते

कमरे से हाथ मिला रहा है

गाँव का आकाश

परिवार की खाड़ी में लंगर डालकर

मेरा जहाज खड़ा है

मैं इस बार भी कहीं नहीं पहुँचूंँगा

एक नरक की मजबूती के लिए

उठे हुए बखेड़े पर किलें ठोकता हुआ

सोच रहा हूँ

जरूर कोई दूसरा किनारा है

कैसे कहा जा सकता है

कि अब नहीं चटकेगी

बहती उम्मीद पर ठोकी हुई

मेरी साधारण आत्मा