Vriksh Hatya/Liladhar Jangudi/वृक्ष हत्या/लीलाधर जगूड़ी

 


मुझे ही देखने पड़ेंगे

अपनी छोटी-छोटी आंखों से बड़े-बड़े कौतुक

मैं ही हूँ वह

स्प्रिंगदार कुर्सी के सामने टंगा हुआ

वसंत का चित्र

मुझे ही झाड़ने पड़ेंगे सब पत्ते

मुझे ही उघाड़नी पड़ेंगी एक-एक ठूंठ की

गयी-गुजरी आँखें

सभ्यता फैलाने वाले एक आदमी से मिलकर

ऐसा सोचते हुए मैं जब लौट रहा था

15 तारीख वाले दुर्भाग्य की बगल में

देखा कि एक पेड़ अपने युद्ध में

हरा हो रहा है

मेरे सामने मक्कारी में बदल गई

सभ्यता फैलाने वाले चेहरे की तपस्या

उसने उस वृक्ष को गांजा और कहा

यह एक तोरण एक मंच

और एक सिंहासन के लिए काफी है

कुल्हाड़ियों के जुलूस से पहले

जब वह उसे आंज रहा था

पक्षी आए

और बुरी तरह चिंचियाने लगे

उसने कहा पक्षियों का कलरव

पक्षियों का समूहगान सुनो

मैंने कहा

ये अपने घोंसलों के लिए रो रहे हैं

यह इस साल के

फूल

फल

और पत्ते

देख रहे हैं इस करवट लेते पेड़ के अंदर

जब कि तुम लकड़ी देख रहे हो

उछल मेरे रक्त उछल

इस छल की रक्षा में व्यवधान पैदा कर

मुझको एक ही गम है कि जितनी भी हो

उथल-पुथल कम है

 

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