जातक कथा हिंदी कहानियां – Jatak katha/महात्मा बुद्ध की जातक कथाएं/Mahatma Budh ki jatak kathayen

जातक कथा हिंदी कहानियां – Jatak katha

 

जातक कथा भगवान बुद्ध से संबंधित है , उनके द्वारा कही गई बातों तथा अनुभव को जातक कथा के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। माना जाता है कि यह सभी जातक कथाएं भगवान बुद्ध के जीवन घटनाक्रम पर ही आधारित है।


भारतीय साहित्य में जातक कथा की संख्या अभी तक कितनी है इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। जातक कथा जीवन को जीने उनके आदर्श , प्रेरणा आदि से सराबोर है जो व्यक्ति जातक कथा को पढता है , समझता है तथा उससे शिक्षा ग्रहण करता है , वह जीवन में उचित आचरण करता है। अपने जीवन को सफल बनाने के लिए प्रयत्न करता है , उचित अनुचित आदि का उसे अनुभव होने लगता है , जिसके कारण वह अपने कल्याण का मार्ग चुनता है।

इस लेख में आप विभिन्न प्रकार के जातक कथा का अध्ययन करेंगे और अपने जीवन को सफल , समृद्ध और खुशहाल बनाने की दिशा में प्रयत्न करेंगे इस विश्वास के साथ यह लेख प्रस्तुत है।

जातक कथा हिंदी कहानियां-– Jatak katha

जातक कथा का अस्तित्व हजारों साल से भारतीय साहित्य में है , जो पूर्व समय में समाज को शिक्षा देने तथा उसका मार्गदर्शन करने के लिए प्रयोग किए जाते थे। पूर्व समय में जातक कथा मौखिक रूप से बोली तथा सुनाई जाती थी। जब संध्या समय लोगों की मंडली बैठती थी , तब जातक कथाओं आदि को कहा तथा सुना जाता था।

पूर्व समय का समाज कितना बौद्धिक स्तर पर विकसित था , यह विषय हम अनुभव कर सकते हैं। उस समय विद्यालयी शिक्षा  प्रचलन में नहीं थी जितनी वर्तमान में है। गुरु तथा महात्माओं के द्वारा बताए गए उचित मार्ग का ही अनुकरण उस समय का समाज किया करता था। कहानी , जातक कथा , जनश्रुति आदि से अपने उच्च ज्ञान को प्राप्त करता था जो उसके जीवन को एक दिशा देने और उचित मार्ग दिखाने का कार्य किया करती थी।


अधिक उत्साह में गवां दिए प्राण ( जातक कथा –Jatak katha)


विश्वास नगर का सेठ धनपाल बड़ा ही दानी और उच्च विचार का था। वह सदैव समाज के विषय में सोचता , उसके द्वार से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटता था।

दान पुण्य करना वह अपना सर्वोपरि धर्म मानता था।

सेठ की ख्याति दूर-दूर के राज्यों में भी थी।

सेठ से बड़ा व्यापारी कोई शायद ही होगा , वह जब भी व्यापार के लिए निकलता उसके काफिले में 25-30 बैल गाड़ियां अवश्य हुआ करती थी। कई कई दिनों की यात्रा करके वह दूर के देश तथा राज्य व्यापार के लिए जाया करता था और लौटते समय गांव के लोगों की आवश्यकता की वस्तुएं लाता। जिससे लोगों को अपने आवश्यकता की वस्तुएं सुलभता से मिल जाती थी। सेठ के इस व्यवहार से वहां के लोग काफी प्रसन्न रहते और सेठ को महात्मा मान कर उसका आदर करते थे।

एक समय की बात है सेठ दूर के राज्यों में व्यापार के लिए जा रहा था।

व्यापार की वस्तुओं से लदे 35 बैल गाड़ियां तैयार हुई , सेठ ने विचार किया क्यों ना इस बार व्यापार के साथ लोगों को तीर्थ यात्रा भी करा दिया जाए। सेठ ने अपने मन की बात गांव के लोगों के समक्ष रखी , लोगों को सेठ धनपाल की बातें बेहद लाभप्रद लगी।

तीर्थ यात्रा के लिए दो दल तैयार हो गए एक युवा , दल दूसरा वृद्ध दल।

समय के अनुसार सेठ अपना काफिला लेकर व्यापार के लिए निकला।

एक दिन का सफर काफी खुशनुमा बीता , सभी लोग एक साथ हंसते गाते आनंद के साथ आगे बढ़ते रहे। अगले दिन वृद्ध टोली भजन करती हुई अपने रास्ते को काट रही थी , वही युवा टोली गीत गाने गा रहे थे और जोर शोर से चिल्ला रहे थे।


इस पर वृद्ध टोली ने सेठ धनपाल को आपत्ति दर्ज कराई।


सेठ ने भी विचार किया और युवा टोली के मुखिया वीरेंद्र को अपने पास बुलाया और प्यार से समझाया। हमारे साथ एक दल जो बुजुर्ग है , वह तीर्थ यात्रा के लिए निकला है , जिन्हें तुम्हारा चिल्लाना और ऊंचे स्वर में गाना पसंद नहीं आ रहा।

थोड़ा सा धीरे आवाज किया जाए तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी।

वीरेंद्र उग्र स्वभाव का था , उसने सेठ धनपाल को रोबदार आवाज में कहा देखो सेठ हम किसी का दिया खाते नहीं है , हम अपने मन की करते हैं। हम युवा हैं , वह वृद्ध हैं तो हम उनके अनुसार तो नहीं चल सकते और वैसे भी हम लोग बैलगाड़ी धीरे-धीरे लेकर चल रहे हैं जिससे हमें काफी बोरियत हो रही है। आप सभी के चक्कर में हम धीरे-धीरे चलकर थक चुके हैं , अब हमसे इस प्रकार नहीं चला जाएगा। अगर हम से आपको तकलीफ है तो हम तेज गति से आगे निकल रहे हैं आप लोग आगे ही मिल लेना। ऐसा कहते हुए वीरेंद्र अपने साथियों के साथ तेज गति से सेठ धनपाल तथा वृद्ध टोली को पीछे छोड़कर आगे निकल गया।

सेठ धनपाल वृद्ध टोली के साथ धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा , रास्ते में रेगिस्तान आ गया।

बैल , गाड़ी खींचने में असमर्थ लग रहे थे ,

धूप बेहद कड़ी थी गर्मी से बुरा हाल होता जा रहा था।

सेठ ने रेगिस्तान में प्रवेश करने से पूर्व ही बैल गाड़ियों पर बड़े-बड़े मटके में शीतल जल भरवा लिया था।


यह पानी रास्ते में उनके लिए जीवन बचाने का कार्य करता रहा।


गर्मी से सभी की हालत खराब थी , यहां तक कि बैल भी ठीक प्रकार से गाड़ी नहीं खींच रहे थे। उनके जीभ बाहर लटक रहे थे। जैसे तैसे आधा मार्ग तो कट गया था , तभी अचानक सेठ ने अपनी और रेगिस्तानी लोगों का एक काफिला आते हुए देखा सेठ ने अपने दल को सतर्क कर दिया वह सभी सचेत हो जाएं हो सकता है कोई लुटेरा हो। शरीर पर काला कंबल ओढ़े , बाल रूखे सूखे , आंखों में लाली , लंबी लंबी मूछें जैसे भयानक डाकू प्रतीत होते हो।

वह पास आकर कहा भाई साहब पानी के इतने बोझ से बैलगाड़ी को भर रखा है , जिससे आपके बैल भार को खींच नहीं पा रहे हैं , पानी की मात्रा को कम कर दीजिए तो बैल भी कम वजन होने के कारण जल्दी चल पाएंगे और आपका रेगिस्तान से जल्दी निकलना हो पाएगा। आप लोग मूर्खता पूर्ण व्यवहार ना करें , बैल में भी जीव है। काफी देर उपदेश देने के बाद रेगिस्तानी दल वापस लौट गया। उनके लौटने के बाद सेठ कुछ असमंजस में पड़ गया , उसके साथी भी कहने लगे रेगिस्तानी लोगों ने बात तो सही कही है।


बैलगाड़ी में भार कम होगा तो बैल आसानी से और जल्दी रास्ता पूरा कर लेंगे।


किंतु सेठ पुराना अनुभव रखते थे , उन्होंने लोगों से कहा यह लोग हो सकता है डाकू हो ! अगर हम पानी को फेंक देंगे तो रास्ते में हमें पीने का पानी नहीं मिलेगा। पानी की कमी से हमारी शक्ति कमजोर होती जाएगी और यह हमारी कमजोरी का फायदा उठाकर सारा माल लूट कर ले जाएंगे। इसलिए बेहतर है उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया जाए। सभी लोग सेठ की बात को मान कर मार्ग में आगे बढ़े। रेगिस्तान खत्म होते ही शीतल ठंडी बयार बह रही थी सामने ही एक मीठा ताजे पानी का कुआं था जिस पर सभी लोगों ने हाथ मुंह धो कर राह की थकान उतरी। वहीं कुछ दूर पर लोगों ने कुछ युवकों के लाश को देखा।

पास जाकर मालूम हुआ वह अपने युवा साथी थे , जो हमसे बिछड़ कर आगे निकल आए थे। मार्ग का अनुभव ना होने के कारण वह रेगिस्तानी लोगों के झांसे में आ गए और अपने प्राण गवा बैठे। उन युवा लड़कों में कुछ और बुजुर्गों के पुत्र थे , तथा कुछ रिश्तेदार। सभी लोगों के चेहरे हंसते खेलते हुए से दुख में परिवर्तित हो गया।

 

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