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Usha Class 12 Explanation : उषा कविता का भावार्थ/Usha Class 12 Summary |
Usha Class 12 Explanation : उषा कविता का भावार्थ
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उषा कविता का सारांश
इस
कविता में कवि ने रात के ढलने के बाद व सूर्योदय से पहले यानि भोर के समय के हर पल
रंग बदलते आकाश व प्रात: कालीन वातावरण का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है। कवि को
भोर का वह हर पल रंग बदलता आकाश कभी नीले शंख की भाँति तो कभी राख से लीपे हुए
चौके जैसा और कभी केसर से धुले हुए काले सिल की तरह दिखाई देता हैं।
कवि
सूर्योदय से पहले पल-पल रंग बदलते आकाश व प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर मंत्र मुग्ध
हैं। और उन पर चढ़ा यह प्रात : कालीन सौंदर्य का जादू सूर्योदय के साथ ही उतरता
हैं। इस कविता में कवि ने गांव की सुबह का बहुत मनोहारी वर्णन किया गया हैं।
उषा कविता की यह विशेषता हैं कि यह गावं की
सुबह का गतिशील शब्द चित्र हैं। राख से लीपा चौका , काली सिल में पीसा केसर और खड़िया से मली हुई
स्लेट , ये सब कविता को ग्रामीण परिवेश से जोड़ते हैं ।
और इन सभी शब्द चित्रों में गतिशीलता हैं।
Usha Class 12 Explanation
उषा कविता का भावार्थ
काव्यांश 1.
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लिपा चौका
(अभी गिला पडा है)
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में
कवि को प्रातः कालीन यानि भोर के समय का आकाश बहुत गहरा नीला दिखाई दे रहा है जो
उन्हें किसी नीले शंख के समान प्रतीत हो रहा है अर्थात आकाश में छाई गहरी नीलिमा
कवि को किसी नीले शंख की भाँति बहुत ही पवित्र व सुंदर दिखाई दे रहा हैं ।
धीरे-धीरे प्रातः कालीन
आसमान गहरे नीले से गहरा स्लेटी होने लगता है । और गहरे स्लेटी रंग का यह आकाश कवि
को ऐसा प्रतीत होता है जैसे राख से किसी ने चौके (गाँवों में खाना बनाने की जगह)
को लीप दिया हो ,
जिस कारण वो अभी भी
गीला पड़ा है। यानि वातावरण की नमी ने प्रातः कालीन वातावरण को और सुंदर , निर्मल व पवित्र बना दिया हैं।
काव्य सौंदर्य –
1.
नीले आकाश की तुलना नीले शंख से की है। इसीलिए यहां उपमा अलंकार है।
2.
आकाश के गहरे स्लेटी रंग व वातावरण की नमी की तुलना राख से लीपे चौके की
पवित्रता से की हैं। इसीलिए यहां उपमा अलंकार है।
3.
कविता का भाषा सहज व सरल है।
काव्यांश 2.
बहुत काली सिल
जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
भावार्थ –
धीरे-धीरे सूर्योदय
होने लगता है और आकाश में हल्की लालिमा छाने लगती है। अब स्लेटी रंग में सूर्य की
लालिमा का लाल रंग मिला आकाश कवि को ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने काले सिल
(मसाला पीसने का पत्थर) पर लाल केसर पीस कर उसे धो दिया हो। यानि कवि को उस वक्त
आकाश लाल केसर से धुले हुए उस काले सिल के समान दिखाई देता है। जिसको धोने के बाद
भी उसमें केसर का हल्का लाल रंग रह जाता है।
अपनी इसी बात को कवि एक
और उदाहरण के जरिये समझाते हैं। कवि कहते हैं कि आकाश में छाई सूर्य की लालिमा ऐसी
दिखाई दे रही है जैसे किसी बच्चे ने स्लेट पर लाल खड़िया चौक मल दी हो।
काव्य सौंदर्य –
1.
“काली सिल” में अनुप्रास अलंकार है।
2. “बहुत काली सिल , जरा से लाल केसर से” और “स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने” में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
काव्यांश 3.
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो ।
और
…..
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।
भावार्थ –
अब सूर्योदय हो चुका है
और सूर्य अपनी तेज किरणों के साथ आकाश में चमकने लगा है। इसी के साथ आकाश से धीरे
-धीरे गहरा नीला ,
स्लेटी व लाल रंग भी
गायब हो चुके हैं और अब आकाश एकदम निर्मल , स्वच्छ ,
सुंदर व नीला दिखाई दे
रहा है।
उपरोक्त पंक्तियों में
कवि कहते है कि सूरज की किरणें इस वक्त ऐसे दिखाई दे रही है जैसे किसी युवती की
गोरी काया (शरीर) इस निर्मल नीले जल में झिलमिला रही हो। यहाँ पर कवि ने नीले आकाश
की तुलना नीले जल से और सूरज की किरणें की तुलना गौरी युवती से की है।
कवि आगे कहते हैं कि आसमान में चढ़ते सूरज के साथ-साथ सम्मोहित कर देने वाले प्रात:
कालीन आकाश का जादू भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा हैं। क्योंकि अब सूर्योदय हो चुका
हैं।
काव्य सौंदर्य –
1.
“नील जल” में अनुप्रास अलंकार है।
2.
“नीले जल में या किसी की , गौर झिलमिल देह , जैसे हिल रही हो।” में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
3.
इस काव्यांश में उषा का मानवीकरण किया गया है।
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