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अन्तर्राष्ट्रीय मातृत्व दिवस पर निबंध/Essay on International Mother Day, 09 May 2021
अन्तर्राष्ट्रीय मातृत्व
दिवस सम्पूर्ण
मातृ-शक्ति
को समर्पित
एक महत्वपूर्ण
दिवस है, जो
प्रतिवर्ष मई
माह के
दूसरे रविवार
को मनाया
जाता है, जिसे
मदर्स डे, मातृ
दिवस या
माताओं का
दिन चाहे
जिस नाम
से पुकारें
यह दिन
सबके मन
में विशेष
स्थान लिये
हुए है।
अमेरिका में
मदर्स डे
की शुरुआत
20वीं
शताब्दी के
आरंभ के
दौर में
हुई। विश्व
के विभिन्न
भागों में
यह अलग-अलग
दिन मनाया
जाता है।
मदर्ड डे
का इतिहास
करीब 400 वर्ष
पुराना है।
प्राचीन ग्रीक
और रोमन
इतिहास में
मदर्स डे
मनाने का
उल्लेख है।
भारतीय संस्कृति
में मां
के प्रति
लोगों में
अगाध श्रद्धा
रही हैं, यही
कारण है
कि आधुनिक
तरीकों से
मनाये जाने
वाले मातृत्व
दिवस के
प्रति भी
लोगों में
अपूर्व उत्साह
है।
मातृ दिवस-समाज
में माताओं
के प्रभाव
व सम्मान
का उत्सव
है। मां
शब्द में
संपूर्ण सृष्टि
का बोध
होता है।
मां के
शब्द में
वह आत्मीयता
एवं मिठास
छिपी हुई
होती है, जो
अन्य किसी
शब्दों में
नहीं होती।
मां नाम
है संवेदना, भावना
और अहसास
का। मां
के आगे
सभी रिश्ते
बौने पड़
जाते हैं।
मातृत्व की
छाया में
मां न
केवल अपने
बच्चों को
सहेजती है
बल्कि आवश्यकता
पड़ने पर
उसका सहारा
बन जाती
है। पूरी
जिंदगी भी
समर्पित कर
दी जाए
तो मां
के ऋण
से उऋण
नहीं हुआ
जा सकता
है। संतान
के लालन-पालन
के लिए
हर दुख
का सामना
बिना किसी
शिकायत के
करने वाली
मां के
साथ बिताये
दिन सभी
के मन
में आजीवन
सुखद व
मधुर स्मृति
के रूप
में सुरक्षित
रहते हैं।
समाज में
मां के
ऐसे उदाहरणों
की कमी
नहीं है, जिन्होंने
अकेले ही
अपने बच्चों
की जिम्मेदारी
निभाई। मातृ
दिवस सभी
माताओं का
सम्मान करने
के लिए
मनाया जाता
है। एक
बच्चे की
परवरिश करने
में माताओं
द्वारा सहन
की जानें
वालीं कठिनाइयों
के लिये
आभार व्यक्त
करने के
लिये यह
दिन मनाया
जाता है।
इस दिन
लोग अपनी
मां को
ग्रीटिंग कार्ड
और उपहार
देते हैं।
कवि राॅबर्ट
ब्राउनिंग ने
मातृत्व को
परिभाषित करते
हुए कहा
है- सभी
प्रकार के
प्रेम का
आदि उद्गम
स्थल मातृत्व
है और
प्रेम के
सभी रूप
इसी मातृत्व
में समाहित
हो जाते
हैं। पे्रम
एक मधुर, गहन, अपूर्व
अनुभूति है, पर
शिशु के
प्रति मां
का प्रेम
एक स्वर्गीय
अनुभूति है।
‘मां!’ यह
वो अलौकिक
शब्द है, जिसके
स्मरण मात्र
से ही
रोम-रोम
पुलकित हो
उठता है, हृदय
में भावनाओं
का अनहद
ज्वार स्वतः
उमड़ पड़ता
है और
मनोःमस्तिष्क स्मृतियों
के अथाह
समुद्र में
डूब जाता
है। ‘मां’ वो
अमोघ मंत्र
है, जिसके
उच्चारण मात्र
से ही
हर पीड़ा
का नाश
हो जाता
है। ‘मां’ की
ममता और
उसके आंचल
की महिमा
को शब्दों
में बयान
नहीं किया
जा सकता
है, उसे
सिर्फ महसूस
किया जा
सकता है।
जिन्होंने आपको
और आपके
परिवार को
आदर्श संस्कार
दिए। उनके
दिए गए
संस्कार ही
मेरी दृष्टि
में आपकी
मूल थाती
है। जो
हर मां
की मूल
पहचान होती
है।
हर संतान
अपनी मां
से ही
संस्कार पाता
है। लेकिन
मेरी दृष्टि
में संस्कार
के साथ-साथ
शक्ति भी
मां ही
देती है।
इसलिए हमारे
देश में
मां को
शक्ति का
रूप माना
गया है
और वेदों
में मां
को सर्वप्रथम
पूजनीय कहा
गया है।
श्रीमद् भगवद्
पुराण में
उल्लेख मिलता
है कि
माता की
सेवा से
मिला आशीष
सात जन्मों
के कष्टों
व पापों
को दूर
करता है
और उसकी
भावनात्मक शक्ति
संतान के
लिए सुरक्षा
कवच का
काम करती
है।
प्रख्यात वैज्ञानिक
और भारत
के पूर्व
राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे.
अब्दुल कलाम
ने मां
की महिमा
को उजागर
करते हुए
कहा है
कि जब
मैं पैदा
हुआ, इस
दुनिया में
आया, वो
एकमात्र ऐसा
दिन था
मेरे जीवन
का जब
मैं रो
रहा था
और मेरी
मां के
चेहरे पर
एक सन्तोषजनक
मुस्कान थी।
एक माँ
हमारी भावनाओं
के साथ
कितनी खूबी
से जुड़ी
होती है, ये
समझाने के
लिए उपरोक्त
पंक्तियां अपने
आप में
सम्पूर्ण हैं।
अब्राहम लिंकन
का मां
के बारे
में मार्मिक
कथन है
कि जो
भी मैं
हूँ, या
होने की
उम्मीद है, मैं
उसके लिए
अपने प्यारी
माँ का
कर्जदार हूँ।
किसी औलाद
के लिए
‘माँ’ शब्द
का मतलब
सिर्फ पुकारने
या फिर
संबोधित करने
से ही
नहीं होता
बल्कि उसके
लिए माँ
शब्द में
ही सारी
दुनिया बसती
है, दूसरी
ओर संतान
की खुशी
और उसका
सुख ही
माँ के
लिए उसका
संसार होता
है। क्या
कभी आपने
सोचा है
कि ठोकर
लगने पर
या मुसीबत
की घड़ी
में माँ
ही क्यों
याद आती
है क्योंकि
वो माँ
ही होती
है जो
हमें तब
से जानती
है जब
हम अजन्में
होते हैं।
बचपन में
हमारा रातों
का जागना, जिस
वजह से
कई रातों
तक माँ
सो भी
नहीं पाती
थी। वह
गिले में
सोती और
हमें सूखे
में सुलाती।
जितना माँ
ने हमारे
लिए किया
है उतना
कोई दूसरा
कर ही
नहीं सकता।
जाहिर है
माँ के
प्रति आभार
व्यक्त करने
के लिए
एक दिन
नहीं बल्कि
एक सदी, कई
सदियां भी
कम है।
मां प्राण
है, मां
शक्ति है, मां
ऊर्जा है, मां
प्रेम, करुणा
और ममता
का पर्याय
है। मां
केवल जन्मदात्री
ही नहीं
जीवन निर्मात्री
भी है।
मां धरती
पर जीवन
के विकास
का आधार
है। मां
ने ही
अपने हाथों
से इस
दुनिया का
ताना-बाना
बुना है।
सभ्यता के
विकास क्रम
में आदिमकाल
से लेकर
आधुनिककाल तक
इंसानों के
आकार-प्रकार
में, रहन-सहन
में, सोच-विचार, मस्तिष्क
में लगातार
बदलाव हुए।
लेकिन मातृत्व
के भाव
में बदलाव
नहीं आया।
उस आदिमयुग
में भी
मां, मां
ही थी।
तब भी
वह अपने
बच्चों को
जन्म देकर
उनका पालन-पोषण
करती थीं।
उन्हें अपने
अस्तित्व की
रक्षा करना
सिखाती थी।
आज के
इस आधुनिक
युग में
भी मां
वैसी ही
है। मां
नहीं बदली।
विक्टर ह्यूगो
ने मां
की महिमा
इन शब्दों
में व्यक्त
की है
कि एक
माँ की
गोद कोमलता
से बनी
रहती है
और बच्चे
उसमें आराम
से सोते
हैं।
मदर्स
डे मनाने
का उद्देश्य
यह है
कि मातृशक्ति
के इस
रूप के
प्रति लोग
अपनी कृतज्ञता
व्यक्त कर
सकें और
माताओं के
स्मरण के
साथ-साथ
मातृशक्ति के
प्रति अपने
कर्तव्यबोध के
प्रति सचेत
हों। मदर्स
डे का
पालन करना
मातृशक्ति का
सम्मान करना
है जो
निःस्वार्थ भाव
से अपने
बच्चों की
सेवा व
कल्याण के
लिए अपना
सारा जीवन
समर्पित कर
देती है।
अन्तर्राष्ट्रीय मातृत्व दिवस पर निबंध/Essay on International Mother Day, 09 May 2021
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