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महाकाव्य, खण्ड काव्य और मुक्तक काव्य में अंतर
काव्य के तीन मुख्य भेद प्रचलित हैं :
(1)
महाकाव्य
(2)
खण्ड-काव्य
(3)
मुक्तक
काव्य
महाकाव्य और खण्ड-काव्य में कथा का होना अनिवार्य है; इसलिए इन दोनों को प्रबंध काव्य कहा जाता है। प्रबंध काव्य के दोनों रुपों में घटना और चरित्र का
महत्व होता है। घटनाओं और चरित्रों के संबंध में भावों की योजना प्रबंध काव्य में
अनिवार्य है। महाकाव्य में मुख्य चरित्र के जीवन को समग्रता में धारण करने के कारण
विविधता और विस्तार होता है। महाकाव्य का सबसे अच्छा
उदाहरण तुलसीदास कृत “रामचरितमानस” हैं।
खण्ड काव्य में मुख्य चरित्र की किसी एक प्रमुख विशेषता या उसके जीवन की घटना का चित्रण होने के कारण अधिक विविधता और विस्तार नहीं होता। उदाहरण के रूप में हम “पंचवटी” को रख सकते हैं जिसे मैथिलीशरण गुप्त जी ने लिखा हैं।
मुक्तक काव्य में कथा-सूत्र
आवश्यक नहीं है । इसलिए उसमें घटना और चरित्र के अनिवार्य प्रसंग में भाव-योजना
नहीं होती। वह किसी भाव-विशेष को आधार बना कर की गई स्वतंत्र रचना है ।
काव्य-शास्त्र में महाकाव्य और
खण्ड-काव्य के लक्षण निम्नानुसार हैं:
महाकाव्य सर्गों में बँधा होता है । सर्ग आठ से अधिक होते हैं। वे न बहुत छोटे
न बहुत बड़े होते हैं । हर सर्ग में एक ही छंद होता है। किंतु सर्ग का अंतिम पद्य
भिन्न छंद का होता है । सर्ग के अंत में अगली कथा की सूचना होनी चाहिए। देवता या
उच्च कुल का क्षत्रिय इसका नायक होता है। श्रृंगार, वीर और शांत रस में से कोई एक रस अंगी होता है और अन्य रस गौण होते हैं।
नाटक की सभी संधियाँ रहती हैं। कथा ऐतिहासिक या लोक प्रसिद्ध होती है। धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष में
से कोई एक उसका फल होता है। खलों और सज्जनों का गुण-वर्णन भी होता है। इसमें
संध्या, सूर्य, चंद्रमा, रात्रि, दिन ,मृगया ,पर्वत, ऋतु, वन,
समुद्र, संयोग, वियोग,स्वर्ग, नरक,
नगर, यज्ञ, संग्राम,
यात्रा, विचाह आदि का सांगोपांग वर्णन
होता है।
खण्ड काव्य के विषय में कहा
गया है कि वह एक देशानुसारी होता है। यहाँ देश का अर्थ भाग या अंश है। खण्डकाव्य
में भी सर्ग होते हैं। हर सर्ग में छंद का बंधन इसमें भी होता है। लेकिन छंद
परिवर्तन जरूरी नहीं है। प्रकृति वर्णन आदि हो सकता है लेकिन वह भी आवश्यक नहीं है।
महा-काव्य और खण्ड-काव्य के जो लक्षण
बताए गए हैं, उनमें एक शर्त का पालन जरुरी
है और वह शर्त है उक्त सभी तत्वों का अविच्छिन्न या सुसंगत संबंध में होना। इसी का
नाम प्रबंध है ।
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