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नमक का दारोगा/मुंशी प्रेमचंद/पाठ का सार तथा अभ्यास के प्रश्न /Namak Ka Daroga/Munshi Premchand/Class 11/NCERT Solutions |
कहानी - नमक का दारोग
“नमक का दरोगा” पाठ का सार
“नमक का दरोगा” कहानी ‘प्रेमचंद’ की बहुचर्चित कहानियों में से एक है। यह एक आदर्श वादी, यथार्थवादी रचना है। कहानी में पंडित अलोपीदीन धन की ताकत का प्रतिनिधित्व करने वाला पात्र है, जबकि कर्म योगी मुंशी वंशीधर धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाला पात्र है। कहानी का सार इस प्रकार से है
अंग्रेजी शासन में जब से नमक पर कर लगाया और नमक का नया विभाग बना एवं प्रकृति द्वारा दी गई वस्तु के प्रयोग करने का निषेध किया गया तब से लोगों ने अनेक प्रकार से चोरी-छिपे व छल-प्रपंच से रिश्वत देकर नमक का व्यापार आरंभ कर दिया। इससे अधिकारियों को लाभ हो रहा था। लोग पटवारगिरी छोड़कर नमक विभाग में नौकरी करना चाहते थे। इसके दरोगा पद के लिए वकीलों का भी मन ललचा जाता था। ऐसे में वंशीधर एक शिक्षित युवक नौकरी की तलाश में घर से निकला तो उस समय उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। परिवार कर्ज से दबा हुआ था। उसके पिताजी तो उसे ऐसी नौकरी करने का परामर्श देते थे जिसमें वेतन भले ही कम हो किंतु रिश्वत का जुगाड़ अवश्य हो। किंतु वंशीधर इस विचार से सहमत नहीं थे। वह धार्मिक प्रवृत्ति वाला युवक था। उसके पिता ने रिश्वत लेने के लिए कई बातें बताई और सावधानी से काम निकालने के मंत्र भी दिए । उपदेश के पश्चात आशीर्वाद भी दिया । वंशीधर घर से शुभ घड़ी में निकले थे और नमक विभाग में दरोगा के पद पर नियुक्त हो गए। वेतन अच्छा और ऊपर की कमाई का तो ठिकाना ही नहीं। उसके वृद्ध पिता मुंशी जी को जब यह समाचार मिला तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा, पड़ोसियों को भी जलन होने लगी।
वंशीधर ने शीघ्र ही पद संभाला और पूरी ईमानदारी से अपना कार्य करने लगे। कुछ ही समय में उसने अपनी कार्यकुशलता और अच्छे व्यवहार से बड़े-बड़े अधिकारियों का विश्वास जीत लिया। नमक के दफ्तर से एक मील की दूरी पर जमुना बहती थी। जिस पर नावों का पुल बना हुआ था। एक बार जाड़े की रात में दरोगा बंशीधर को पुल पर से गाड़ियों के गुजरने की आवाज सुनाई दी। उन्हें संदेह हुआ कि कुछ तो गड़बड़ है। वह तुरंत तैयार हुए और घोड़े पर सवार होकर नदी के पास पहुंच गए । वहां उन्हें गाड़ियों की एक लंबी कतार दिखाई दी। उन्होंने डांट कर पूछा किस की गाड़ियां हैं? कुछ देर चुप्पी के बाद उत्तर मिला - पंडित अलोपीदीन की। जो उस इलाके के प्रतिष्ठित जमीदार तथा बड़े व्यापारी भी थे और अंग्रेज अधिकारियों में उनकी पैठ थी। लेकिन यह पूछने पर कि इनमें क्या है? सन्नाटा छा गया। वंशीधर का संदेह बढ़ गया बोरे को टटोल कर देखा तो भ्रम दूर हो गया यह नमक ही था। पंडित अलोपीदीन अपने सजे हुए रथ पर सवार कुछ सोते जागते से चले आते थे। गाड़ी वालों ने घबराकर जगाया और बोले "महाराज दरोगा ने गाड़ियां रोक दी हैं और घाट पर खड़े आपको बुलाते हैं"।
पंडित अलोपीदीन को विश्वास था कि लक्ष्मी जी के सामने सब झुक जाते हैं। यहां तक कि न्याय व नीति भी। पंडित जी लेटे-लेटे बोले, चले-चलो हम आते हैं। घाट पर दरोगा के पास पहुंचकर बोले -"बाबू जी आशीर्वाद कहिए हमसे ऐसा कौन सा अपराध हुआ की गाड़ियां रोक दी गई"? वंशीधर बोले "सरकारी हुक्म है"। पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर को ₹25,000 तक की रिश्वत देने की लालच दिया किंतु उन पर धन का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यहां तक कि ₹40,000 पर भी नहीं। धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला और दरोगा जी ने पंडित अलोपीदीन को हिरासत में ले लिया। पंडित अलोपीदीन हथकड़ियों को देखकर मूर्छित होकर गिर पड़े।
रात होते ही जो लोग पंडित जी की जय-जय करते थे, उनकी स्थिति पर तरह-तरह की टीका टिप्पणी करने लगे। जब पंडित अलोपीदीन हथकड़िया पहनकर अदालत की तरफ चले तो पूरे शहर में हलचल मच गई। लोगों की भीड़ देखने के लिए जमा हो गई। लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि पंडित अलोपीदीन कानून के पंजे में फंस गए। उसी समय वकीलों की एक फौज उनकी सहायता के लिए प्रस्तुत हो गई। अब धन और धर्म में युद्ध आरंभ हो गया था। वंशीधर चुपचाप खड़े थे उसके पास सत्य के सिवाय को दूसरा बल नहीं था। उनकी तरफ गवाह भी डावा-डोल हो रहे थे। मुकदमा डिप्टी मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश हुआ और कुछ ही क्षणों में पंडित अलोपीदीन को रिहा कर दिया गया। उनके पक्ष में मजिस्ट्रेट ने भी लिख दिया कि वे भले आदमी हैं। उनके खिलाफ दिए गए प्रमाण निर्मूल हैं। नमक दरोगा वंशीधर के लिए भी कहा गया कि हम प्रसन्न हैं वह अपने काम के प्रति सजग और सचेत हैं। उन्हें भविष्य में सचेत रहने को कहा गया।
जब पंडित अलोपीदीन मुस्कुराते हुए अदालत से बाहर निकले। सभी लोग उनकी तारीफ कर रहे थे। उनके स्वजन धन लूटा रहे थे। दूसरी और वंशीधर पर व्यंग बाण छोड़े जा रहे थे। आज बंशीधर को संसार का खेदजनक विचित्र अनुभव हुआ। उन्हें लगा कि न्याय व विद्वता के पुजारी सम्मान के पात्र नहीं हैं।
वंशीधर ने धन से बैर ले कर अच्छा नहीं किया था। एक सप्ताह के पश्चात ही उन्हें नौकरी से निकाले जाने का पत्र मिल गया। वह बहुत दुखी मन से घर गया। बूढ़े पिता जी को पता चला तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने बंशीधर को भला-बुरा सुना दिया।उनकी माता जी की भी चार धाम की यात्रा की कल्पनाएं मिट्टी में मिल गई थी। पत्नी ने भी कुछ दिन सीधे मुंह बात नहीं की।
एक सप्ताह के पश्चात एक दिन संध्या के समय पंडित अलोपीदीन बंशीधर के घर आ पहुंचे। मुंशी जी उनके स्वागत सत्कार के लिए भागे आए। झुक कर सलाम किया तथा खुशामदी की बातें करने लगे। अपने बेटे बंशीधर की बुराई की तथा उसे कुल का कलंक तक कह डाला किंतु पंडित अलोपीदीन ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और उसे कुल तिलक मनुष्य बताया। उन्होंने वंशीधर को अपने कारोबार का स्थाई मैनेजर नियुक्त करने के लिए विनम्र भाव से प्रार्थना की। यह सुनकर बंशीधर के मन का मैल भी धुल गया। पंडित अलोपीदीन ने वेतन के अतिरिक्त हर सुविधा देने का वायदा भी किया। पंडित जी ने अपराध बोध से भरी हुई वाणी में निवेदन करते हुए कहा कि " परमात्मा से यही प्रार्थना है कि आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरव्वत, उदंड, कठोर किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखें"।
प्रस्तुत कहानी को पढ़कर पता चलता है कि अंतिम प्रसंग से पहले तक की सभी घटनाएं प्रशासनिक व न्यायिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और समाज द्वारा इस भ्रष्टाचार को स्वीकार करने की भावना को यथार्थ रूप में उजागर करती हैं। यहां ईमानदार व्यक्ति के अभिमन्यु की तरह निहत्थे और अकेले पड़ जाने की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करना भी कहानी का लक्ष्य है। किंतु पंडित अलोपीदीन द्वारा वंशीधर की इमानदारी के फलस्वरूप मैनेजर के पद पर नियुक्ति कर देना इमानदारी का सत्कार करना और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना है।
“नमक का दरोगा” पाठ के अभ्यास के प्रश्न
उत्तर: "नमक का दरोगा" कहानी में कहानी का मुख्य पात्र वंशीधर हमें सर्वाधिक प्रभावित करता है। कहानी के सभी पात्रों में वंशीधर ही आदि से लेकर अंत तक कर्तव्य परायण, धर्मनिष्ठ एवं चरित्रवान बना रहता है। भले ही उसका पिता रिश्वत लेने की सलाह देता है। उसके चारों ओर का समाज भ्रष्टाचार से परिपूर्ण है फिर भी वह कमल के फूल की भांति कीचड़ में रहते हुए भी उस से ऊपर उठकर मानवीय एवं नैतिक जीवन मूल्यों का पालन करता है। जब सारा समाज उसके विरुद्ध खड़ा था तो भी उसने अपना सत्य निष्ठा का मार्ग नहीं छोड़ा। इसलिए वंशीधर हमें कहानी के सभी पात्रों में से सर्वाधिक प्रभावित करता है।
उत्तर: पंडित अलोपीदीन कहानी का मुख्य पुरुष पात्र है। कहानी में कथानक में गतिशीलता उसके चरित्र के कारण बनी रहती है। उसके व्यक्तित्व के दो प्रमुख पहलू उभर कर सामने आते हैं।
(1) अशुभ अथवा भ्रष्टाचारी व्यक्तित्व : कहानी के आरंभ में पता चलता है कि वह नमक के व्यापार में खूब हेराफेरी करता है। कर्मचारियों को रिश्वत देकर अपनी सभी गलत व गैरकानूनी कार्य भी करवा लेता है। उसे अपने धन की शक्ति पर बहुत घमंड है। उसने सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत देकर भ्रष्ट कर दिया है। वह अंधेरे में बड़े आराम से चोरी का व्यापार करता है। उसने लालच देकर न्यायालय के न्यायाधीशों एवं वकीलों को भ्रष्ट कर दिया और दोषी होने पर भी न्याय को अपने पक्ष में कर लेता है।
(1) शुभ व्यक्तित्व: कहानी के आरंभ में वह वंशीधर को तरह-तरह का लालच देकर भ्रष्ट करना चाहता है और न्यायालय में न्याय को अपने पक्ष में करके उसे नीचा दिखाता है और नौकरी से निकलवा देता है। कहानी के अंत में यही अलोपीदीन वंशीधर की कर्तव्य परायणता एवं धर्म निष्ठा की तारीफ करता है। इतना ही नहीं उसे सम्मान पूर्वक अपनी सारी संपत्ति का प्रबंधक नियुक्त करता है। उसकी यह बात हमें प्रभावित करती है। उसके व्यक्तित्व का यही शुभ पक्ष है।
उत्तर: वृद्ध मुंशी- वृद्ध मुंशी के चरित्र से तात्कालिक समाज में भ्रष्ट चरित्र का परिचय मिलता है। वह कैसा पात्र है जो अपने बेटे को रिश्वत लेने के लिए प्रेरित करता है? समाज में आज भी ऐसे अनेक लोग हैं जो अपने बच्चों को रिश्वत व ऊपरीआय बनाने के परामर्श देते हैं। एक स्थान पर वंशीधर कहता है कि "नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना। यह तो पीर की मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूंढो जहां कुछ ऊपरी आय हो। गरज वाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। मेरी जन्म भर की यही कमाई है।"
वकील: आज के युग में वकीलों के जीवन का मुख्य लक्ष्य कानूनी व गैरकानूनी काम की चिंता किए बिना धन कमाना है। जब अंग्रेजी सरकार ने नमक पर पाबंदी लगा दी तो नमक के दरोगा का पद महत्वपूर्ण हो गया। तब सभी वकील अपनी वकालत छोड़ कर नमक के दरोगा बनने की इच्छा व्यक्त करते थे। वे दरोगा बनने को महत्वपूर्ण समझने लगे थे। सरकारी व गैर सरकारी वकील न्याय की जीत पर खुश होने की अपेक्षा अपने मुवक्किल की जीत पर खुश होते हैं। न्याय का गला घोटे जाने पर भी खुश होते हैं। न्याय के रक्षक ही भक्षक बन जाए तो न्याय की यह सबसे बड़ी पराजय है। दोषी एवं भ्रष्टाचारी अलोपीदीन के पक्ष में फैसला होने पर वह खुश होते हैं।
शहर की भीड़: शहरवासियों की भीड़ सदा ही तमाशे जैसा मजा लेती है। उन्हें तो अलोपीदीन जैसे नए-नए भ्रष्टाचारी लोग देखने में आनंद आता है। यदि वे स्वयं भी भ्रष्टाचार में लिप्त है किंतु किसी भ्रष्टाचारी की कलई खुलने पर उसे पापी कहने और उसका जुलूस निकालने से भी नहीं चूकते।
उत्तर: "नमक का दरोगा" कहानी के अन्य दो शीर्षक यह हो सकते हैं- (1) असत्य पर सत्य की जीत (2) ईमानदारी।
(1) असत्य पर सत्य की जीत: यह शीर्षक कहानी की मूल समस्या से जुड़ा हुआ है। वंशीधर सत्यता के पथ पर चलता है और सेठ अलोपीदीन असत्य के पथ पर। आरंभ में भले ही बंशीधर को हार का मुंह देखना पड़ा किंतु अंत में भ्रष्टाचारी और असत्य पथ गामी अलोपीदीन बंशीधर के सामने गिड़गिड़ाता नजर आता है। उसके गुणों की प्रशंसा करता है।इससे सिद्ध होता है कि असत्य पर सत्य की जीत हुई है।
(2) ईमानदारी : यह शीर्षक कहानी के उस मर्म को छूता है जो सबको प्रभावित करता है। इमानदारी का पथ जितना कठिन और संघर्षमय है उतना ही मूल्यवान और सम्मानीय भी है।
उत्तर: पंडित अलोपीदीन अपने क्षेत्र का अमीर और प्रभावशाली व्यक्ति था। किंतु उसे हथकड़ियों में अदालत में जाता देख समाज के छोटे-बड़े सभी लोगों ने उसकी निंदा की थी। किंतु विडंबना यह थी कि जो उसकी निंदा कर रहे थे वह भी दूध के धुले नहीं थे। उनमें से कई भ्रष्टाचारी थे, फर्जी फाइल तैयार करते थे, कर चोरी करते थे, यहां तक कि बिना टिकट यात्रा भी करते थे। वह अपने को ईमानदार और देव तुल्य समझते थे तथा अलोपीदीन की निंदा कर रहे थे। वस्तुतः यह सब लोग पंडित अलोपीदीन की निंदा करके स्वयं को सच्चा सिद्ध करना चाहते थे। यह लोग अलोपीदीन की धन दौलत से ईर्ष्या भाव रखते थे।
उत्तर: "नमक का दरोगा" शीर्षक कहानी में तात्कालिक समाज का व्यापक चित्रण किया गया है। आज भी यह कहानी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कि उस समय थी जब यह लिखी गई थी। समाज की अनेक समस्याएं ज्यों की त्यों चली आ रही है। आज के समाज में कितना भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी है। सब लोग धन के गुलाम बने हुए हैं। धन के लालच में व्यक्ति निम्न से निम्न कार्य करने में जरा भी नहीं हिचकते। नौकरियों के संबंध में बंशीधर के पिता वृद्ध मुंशी का कथन शत प्रतिशत सत्य सिद्ध हो रहा है। इस बेईमानी की यात्रा में माता-पिता, पत्नी, यहां तक की संतान भी सम्मिलित हैं। सभी की दृष्टि में धन सब कुछ हो गया है। सत्यता, धर्म, कर्तव्य, देशभक्ति, इमानदारी आदि गुणों का कोई महत्व नहीं रह गया है।
आज भी अदालतों में पैसे लेकर झूठी गवाही दी जाती है। वकील भी झूठ का ही साथ देते हैं। यहां तक कि न्यायधीश भी धन की शक्ति और राजनीतिक शक्ति के आगे घुटने टेक चुके हैं। न्याय-अन्याय का मानदंड धन व प्रभाव ही रह गया है। इस कहानी में सामाजिक संबंधों को भी यथार्थ रूप में उजागर किया गया है। दुनिया में कोई संबंध सच्चाई की नींव पर नहीं खड़ा है। सब पैसे के साथी बन चुके हैं। इस कटु सत्य से आज कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। फिर भी इसे सही मानकर चल रहे हैं।
नमक का दारोगा/मुंशी प्रेमचंद/पाठ का सार तथा अभ्यास के प्रश्न /Namak Ka Daroga/Munshi Premchand/Class 11/NCERT Solutionsनमक का दारोगा/मुंशी प्रेमचंद/पाठ का सार तथा अभ्यास के प्रश्न /Namak Ka Daroga/Munshi Premchand/Class 11/NCERT Solutions
2 टिप्पणियाँ
Bhai questions and answers chahiye the ye sab nahi kuch kam ka diya karo yar
जवाब देंहटाएंsahi hai
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