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मियाँ नसीरुद्दीन/Miyan Nasiruddin/Krishna Sobti/कृष्णा सोबती/Class-11/आरोह/aroh/NCERT Solutions. |
मियां नसीरुद्दीन पाठ का सार
लेखिका : कृष्णा सोबती
यह शब्द चित्र लेखिका कृष्णा सोबती जी की एक प्रसिद्ध रचना है। जिसमें उन्होंने खानदानी नानबाई मियां नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्द चित्र अंकित किया है। मियां नसीरुद्दीन वैसे इंसान का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और सीखने को असली हुनर स्वीकार करते हैं। पाठ का सार इस प्रकार है-
दोपहर का समय था। लेखिका ने दिल्ली की जामा मस्जिद के पास मटियामहल के गढ़िया मोहल्ले से गुजरते हुए आटे का ढेर सनते देखा। पूछने पर पता चला कि ये खानदानी नानबाई मियां नसीरुद्दीन की दुकान है। अंदर मियां चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। मौसम की मार से पका चेहरा, आंखों में काइयाँ, भोलापन पेशानी (माथे) पर मंजे हुए कारीगर के तेवर। बातचीत से पता चला कि मियां के बोलने का अनोखा अंदाज है।
पहले तो मियां चौके की कोई अखबारनवीश (पत्रकार) तो नहीं। फिर तसल्ली से जवाब देने लगे। पता चला कि नानबाई का काम उनका खानदानी पेशा है। यह काम मियां ने अपने पिता मियां बरकत शाही नानबाई से सीखा है। मियां के दादा कल्लन भी नानबाई थे।
बापदादा की नसीहत के बारे में पूछने पर मियां बोले-काम करने से आता है। नसीहत नसीहतों से नहीं। पहले बर्तन धोना सीखा, फिर भट्टी बनाना और फिर भट्टी को आंच देना। सीधे-सीधे नानबाई का हुनर कोई नहीं सीख सकता। शिक्षा देने का प्रशिक्षण बड़ी चीज है। पहले हमने खोमचा लगाया तब यहां नानबाई बनना नसीब हुआ। मियां ने बताया कि वह खानदानी है। उनके बुजुर्गों से बादशाह सलामत ने पूछा कि मियां कोई ऐसी चीज खिला सकते हो? कोई ऐसी चीज खिलाओ जो ना आग से पके और ना पानी से बने। यह पूछने पर कि क्या चीज थी मियां बोले- यह हम नहीं बताएंगे। खानदानी नानबाई कुये में भी रोटी पका सकता है।
उस समय रहमत नामक व्यक्ति को पुकार लिया-मियां जी ने पूछा, "मियां रहमत, इस वक्त किधर को ? अरे वह लौंडिया न आई रुमाली लेने, शाम को मंगवा लीजो।" मियां नसीरुद्दीन से जब एक और प्रश्न देने का उत्तर देने का कष्ट करने के लिए लेखिका ने कहा, तो वह बोले - "पूछिए, अरे बात ही तो पूछिएगा जान तो न लेवेंगे। उसमें भी अब क्या देर! सत्तर के हो चुके, वालिद मरहूम को कुच किए अस्सी पर क्या मालूम हमें इतनी मोहलत मिले, ना मिले।”
लेखिका ने मियां जी से स्पष्ट रूप से प्रश्न पूछा कि उनके बुजुर्गों ने शाही बावर्ची खाने में तो काम किया ही होगा, किस बादशाह के यहां वे काम करते थे? मियां ने उत्तर देते हुए कहा-
“अजी साहिब, क्यों बाल की खाल निकालने पर तुले हैं! कह दिया न कि बादशाह के यहां काम करते थे- सो क्या काफी नहीं”? जब मियां से कहा गया कि जरा बादशाह का नाम बता दें तो उसे वक्त से मिला लिया जाता। मियां खिल्ली उड़ाते हुए बोले, “वक्त से वक्त को किसी ने मिलाया है आज तक!”
यह पूछने पर कि मियां के यहां कितनी तरह की रोटियां पकती है, मियां ने नामों की झड़ी लगा दी- “बाकरखानी, शीरमाल, ताफतान, बेसनी, खमीरी, रुमाली, गांव-दीदा, गाजेबान, तुनकी।”
फिर तेवर चढ़ाकर मियां बोले- “तुनकी पापड़ से भी ज्यादा महीन होती है।” फिर मियां अतीत की याद में खो कर बोले- “ उतर गए वे जमाने। और गए वे कदरदान जो पकाने-खाने की कद्र करना जानते थे! मियां अब क्या रखा है- निकाली तंदूर से-निगली और हज़म!”
मियां नसीरुद्दीन पाठ के अभ्यास के प्रश्न:-
प्रश्न-1 : मियां नसीरुद्दीन को "नानबाइयों का मसीहा" क्यों कहा गया है?
उत्तर - नानबाई का अर्थ है- विभिन्न प्रकार की रोटी बनाने व बेचने का काम करने वाला व्यक्ति। मियां नसीरुद्दीन भी एक प्रतिभाशाली नानबाई था। उन्हें "नानबाइयों का मसीहा" इसलिए कहा गया है क्योंकि वह खानदानी नानबाई थे। उनके पिता बरकत शाही नानबाई गढ़ैया वाले के नाम से जाने जाते थे और उनके दादा आला नानबाई मियां कल्लन के नाम से प्रसिद्ध थे। वह जामा मस्जिद के मटियामहल के गढ़ैया मोहल्ले के अकेले ही खानदानी नानबाई थे। वे नानबाई की कला में प्रवीण थे और इस कला के महान पारखी भी थे। वे चाहते थे कि लोग इस कला को सम्मान की दृष्टि से देखें। इन सब बातों को देखते हुए यह कहना सही है कि मियां नसीरुद्दीन "नानबाइयों का मसीहा" था।
प्रश्न-2: लेखिका मियां के पास क्यों गई थी?
उत्तर- लेखिका एक दोपहर को जामा मस्जिद से मटियामहल के गढ़ैया मोहल्ले की ओर से निकल रही थी तो उसकी नजर एक बिल्कुल साधारण सी दिखाई देने वाली दुकान पर पड़ी क्योंकि वहां पटापट की आवाज आ रही थी। वहां आटा भी साना जा रहा था। लेकिन लेखिका ने सोचा शायद सेवइयां बनाने की दुकान है। परंतु पूछने पर पता लगा कि खानदानी नानबाई मियां नसरुद्दीन की दुकान है। यह पता चलने पर उसने मियां नसीरुद्दीन से मुलाकात करने का निश्चय किया और उसकी दुकान में प्रवेश कर गई।
प्रश्न-3: बादशाह के नाम का प्रश्न आते ही लेखिका की बातों में मियां नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?
उत्तर- जब लेखिका ने मियां नसीरुद्दीन से पूछा कि आपके बुजुर्गों ने किस बादशाह के यहां बावर्चीखाने में काम किया होगा? मियां ने कहा बादशाह सलामत ने हमारे बुजुर्गों से कहा मियां नानबाई कोई ऐसी चीज बनाओ जो न आग से पके और न पानी से बने। तो हमारे बुजुर्गों ने ऐसा पकवान बनाया जिसे बादशाह ने खूब खाया और खूब सराहा। तो लेखिका ने पूछा किस बादशाह सलामत ने.......बहादुर शाह जफर या फिर ............। इतना सुनते ही मियां को लेखिका की बातों में दिलचस्पी न रही क्योंकि उसे लगा कि लेखिका तो न जाने कैसे-कैसे उल्टे सीधे सवाल पूछने लगी है। उसके मन में संदेह उत्पन्न हो गया। वे सोचने लगे कि न जाने कौन सी बात पूछ बैठे जिसका उससे पता ना हो। इसलिए मियां नसरुद्दीन की दिलचस्पी लेखिका की बातों से समाप्त होने लगी थी।
प्रश्न-4: मियां नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख कर यह मजबूर ने छेड़ने का फैसला किया- इस कथन से पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- जब मियां नसीरुद्दीन लेखिका के प्रश्नों के उत्तर देता हुआ व्याकुल सा हो गया तो उसने लेखिका के प्रश्नों के उल्टे-सीधे जवाब देने आरंभ कर दिये। जब लेखिका ने पूछा कि आपके वालिद किस बादशाह सलामत के यहां बावर्ची खाने में काम करते थे? मियां जी ने कहा, जहांपनाह बादशाह सलामत के यहां और किसके। लेखिका यह भी पूछना चाहती थी कि उसके कितने बेटे-बेटियां हैं? किंतु मियां के चेहरे पर किसी अंधड़ के आसार देख कर यह प्रसंग छोड़ने का निश्चय कर लिया था। लेखिका को लगा कि मियां बादशाह सलामत का नाम बताने में हिचक रहे हैं तथा हमारी सारी बातें और प्रश्न अब उन्हें व्यर्थ प्रतीत हो रहे है। अतः लेखिका ने शेष प्रश्न न पूछने में ही बुद्धिमता समझी। तब लेखिका ने पूछा कि आपकी भट्टी पर कितने प्रकार की रोटियां बनाई जाती हैं? इस पर मियां नसीरुद्दीन ने बताया कि उनकी भट्टी पर बाकरखानी, शीरमाल, ताफतान, बेसनी, खमीरी, रुमाली, गांव-दीदा, गाजेबान, तुनकी रोटियां बनाई जाती है। अतः स्पष्ट है कि लेखिका के प्रश्नों से उकताने पर ही मियां के मिजाज में अंतर आ गया था।
मियां नसीरुद्दीन का शब्द चित्र
प्रश्न- 5: पाठ में मियां नसीरुद्दीन का शब्द चित्र लेखिका ने कैसा खींचा है?
उत्तर- लेखिका के अनुसार मियां नसीरुद्दीन 70 वर्ष के हैं। उनकी आयु का प्रभाव उनके चेहरे पर स्पष्ट देखा जा सकता है। लेखिका के अनुसार वे बड़े बातूनी और अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाले बुजुर्ग थे। उनका व्यक्तित्व साधारण था। वह एक हाजिर जवाब व्यक्तित्व के धनी भी थे। उनके स्वभाव में स्नेह कम और रुखाई अधिक थी। वे तालीम और सीख के विषय में स्पष्ट विचार रखते थे। वह सदा काम में लगे रहते थे। दूसरों का शोषण करना उन्हें अच्छा नहीं लगता था।
वह अपने आप को पंचहजारी के समान समझते थे। बादशाह सलामत के विषय में अत्यंत तल्लीनता से बातें बताकर अपने बुजुर्गों की महानता सिद्ध करने में उन्हें विशेष आनंद की अनुभूति होती है। वह खाना पकाने की कला में निपुण थे। उनके चेहरे से ही एक मंजे हुए कारीगर की स्पष्ट झलक दिखाई देती थी। इस प्रकार लेखिका ने मियां नसीरुद्दीन का एक सजीव एवं आकर्षक शब्द चित्र प्रस्तुत किया है।
मियां नसीरुद्दीन की कौन-कौन सी बातें आपको अच्छी लगी
प्रश्न -6: मियां नसीरुद्दीन की कौन-कौन सी बातें आपको अच्छी लगी?
उत्तर- मियां नसीरुद्दीन की सबसे अच्छी बात तो यह है कि वह अपने व्यवसाय की कला में निपुण है। आज लोग अपने खानदानी पेशे को छोड़ते जा रहे हैं। किंतु उसे अपने खानदानी पेशे पर गर्व है तथा उसने उसने अपने व्यवसाय में उन्नति की है। ऐसे ही लोग पूर्व कलाओं को जीवित रख सकते हैं।
उनके जीवन की दूसरी अच्छी बात यह है कि काम सीखने से आता है। कर्म करने में विश्वास रखना भी बहुत बड़ी बात है। आज लोग आराम तलबी में पड़कर अपनी कार्यक्षमता खो बैठते हैं। वह 70 वर्ष की अवस्था में पहुंच कर भी खाना पकाने की कला में व्यस्त रहते हैं। उनकी तीसरी बात जो हमें अच्छी लगी कि वे अपने पूर्वजों का सम्मान करते थे। उनके चरित्र की विशेषता यह है कि वे अपनी कला का प्रशिक्षण दूसरों को उत्साह पूर्वक देते थे।
तालीम की तालीम ही बड़ी चीज होती है
प्रश्न -7: तालीम की तालीम ही बड़ी चीज होती है- यहां लेखिका ने तालीम शब्द का दो बार प्रयोग क्यों किया है? क्या आप दूसरी बार आए "तालीम" शब्द की जगह कोई अन्य शब्द रख सकते हैं? लिखिए।
उत्तर- तालीम का अर्थ है- "शिक्षा"। लेखिका ने यहां तालीम शब्द का दो बार प्रयोग किया है कि किसी भी विषय की जानकारी के लिए शिक्षा देनी पड़ती है। शिक्षा किस ढंग से ली जानी चाहिए, उसकी जानकारी रखना भी नितांत आवश्यक है। अतः शिक्षा की शिक्षा या शिक्षा प्राप्त करने की जानकारी होना अति आवश्यक है। दूसरी बार प्रयुक्त "तालीम" शब्द के स्थान पर हम "ज्ञान" शब्द का प्रयोग कर सकते हैं।
प्रश्न-8: मियां नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं जिसने अपने खानदानी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान समय में प्राय लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर- वर्तमान समय में लोग खानदानी या पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं। इसका मूल कारण है कि आज भौतिकवादी व उपयोगितावाद का युग है।आज सभी लोग आराम और ऐश्वर्य का जीवन-यापन करना चाहते हैं। नई पीढ़ी के लोग माता-पिता का अंकुश सहन नहीं करते इसलिए जरा सी बात को लेकर विद्रोह का झंडा उठा लेते हैं। इसके साथ आज हर व्यक्ति थोड़े से समय में अमीर हो जाना चाहता है। हर कार्य को उपयोगिता की दृष्टि से देखते हैं। इसलिए जिस कार्य में आय कम होती है उसे त्याग देने का निश्चय कर लेते हैं। कहने का भाव है कि धैर्य व सहनशीलता एवं संतोष की भावनाओं के अभाव के कारण आज लोग अपने पारिवारिक व्यवसाय को छोड़ते जा रहे हैं।
3 टिप्पणियाँ
Birth of date miya masuridin
जवाब देंहटाएंMiya nasiruddin ke baalid kis naam se peasiddh the
जवाब देंहटाएंबरकत शाही नानबाई गढ़ैया वाले के नाम से जाने जाते थे
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