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कथा - पटकथा/अभिव्यक्ति और माध्यम/कथा और पटकथा में अंतर/katha patkatha/abhivyakti aur madhyam |
अभिव्यक्ति और माध्यम
(कक्षा-11)
कथा-पटकथा
"पटकथा" शब्द दो शब्दों 'पट' और 'कथा' के मेल से बना है। कथा का अर्थ है- 'कहानी' तथा पट का अर्थ है 'पर्दा'। अर्थात ऐसी कथा जो पर्दे पर दिखाई जाए, उसे पटकथा कहते हैं। फिल्मों या धारावाहिकों आदि का मूल आधार यह पटकथा ही होती है। निर्देशक, अभिनेता, तकनीशियन, सहायकों आदि को अपने-अपने विभागों की सभी सूचनाएं व जानकारी पटकथा से ही मिलती है। पटकथा किसी उपन्यास, कहानी, ऐतिहासिक पात्र, घटना आदि पर आधारित होती है। उदाहरण के लिए 'शरतचंद्र चट्टोपाध्याय' के प्रसिद्ध उपन्यास 'देवदास' पर हिंदी सिनेमा में तीसरी बार फिल्म बनी है।
पटकथा के विषय में जानकारी प्राप्त करने के पश्चात आप यह जानना चाहेंगे कि पटकथा का निर्माण कैसे किया जाए। फिल्म या टीवी की पटकथा का चरित्र नाटक विधा के साथ बहुत मिलती है। नाटक की भांति पटकथा में पात्र चरित्र-चित्रण, नायक-प्रतिनायक, घटनास्थल, दृश्य, कहानी का क्रमिक-विकास आदि सब कुछ होता है। द्वंद, टकराहट और फिर समाधान यह सब पटकथा के आवश्यक तत्व या अंग होते हैं। पटकथा लेखक इन्हीं तत्वों को आधार बनाकर पटकथा की रचना करता है। आज अनेक फिल्मों व टीवी सीरियलों की पटकथाओं का निर्माण बहुत ज्यादा मात्रा में हो रहा है।
नाटक और पटकथा के कुछ तत्वों समान होते हैं, किंतु पटकथा और नाटक में कुछ मूल अंतर भी होते हैं। नाटक और पटकथा दोनों में दृश्य योजना होती है। किन्तु नाटक के दृश्य पटकथा के दृश्यों से लंबे होते हैं। इसी प्रकार नाटक में सीमित स्थान होता है जबकि फिल्म या टीवी सीरियल की पटकथा में कोई सीमा नहीं होती। प्रत्येक दृश्य किसी नए स्थान पर घटित हो सकता है। दोनों दृश्यों में एक मूलभूत अंतर है कि नाटक एक सजीव कला माध्यम है। जहां अभिनेता अपने जीवंत दर्शकों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन करता है। जबकि सिनेमा या टीवी में पूर्व रिकॉर्डेड छवियों या ध्वनियाँ होतीहैं। नाटक को सीमित अवधि के दौरान ही मंचित किया जाता है, जबकि फिल्म का समय 2 दिन से 2 वर्ष तक भी हो सकता है। नाटक के कार्य व्यापार व दृश्यों की संख्या और चरित्रों की संख्या सीमित होती है। किंतु सिनेमा टीवी में फ्लैशबैक या फ्लैश फॉरवर्ड अर्थात अतीत व आने वाले समय की कल्पना आदि को तकनीक के माध्यम से दिखाकर घटनाक्रम को किसी भी रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। नाटक में एक ही समय एक ही काल खंड की घटनाओं को प्रस्तुत किया जाता है। जबकि फिल्म या टीवी में एक ही समय में अलग-अलग स्थानों पर क्या घटित हो रहा है, को एक साथ दिखाया जा सकता है। नाटक और पटकथा के अंतर को विभिन्न कहानियों को फिल्माने की प्रक्रिया से और भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
दृश्य पटकथा की मूल इकाई होता है। एक स्थान पर एक ही समय में चल रहे कार्य व्यापार के आधार पर दृश्य की तरह की जाती है। स्थान, समय व कार्य व्यापार आदि इन तीनों में से किसी एक के बदल जाने पर दृश्य बदल जाता है। हमारे पाठ्यक्रम में 'रजनी' के एक उदाहरण से दृश्य की संरचना की परिकल्पना और भी स्पष्ट हो जाएगी।
दृश्य-एक-लीला बेन नामक महिला के फ्लैट से शुरू होता है। समय शायद दोपहर का है। क्योंकि उसका बेटा स्कूल से वापस आने वाला है।
दृश्य-दो-अगले दिन स्कूल के हेड मास्टर के कमरे में और वक्त फिर वही दिन का है।
दृश्य-तीन - उसी दिन रजनी का फ्लैट और वक्त है शाम का।
यह सारे अलग-अलग लोकेशन पर अलग-अलग दृश्य हैं। इसी प्रकार हम अलग-अलग स्थान, समय और कार्य व्यापार को लेकर अलग-अलग दृश्यों के संरचना कर सकते हैं।
पटकथा लिखते समय इस बार यह बात ध्यान देने योग्य है कि दृश्य संख्या के साथ दृश्य की लोकेशन या घटनास्थल अवश्य लिखा जाता है। वह कमरा पार्क है, रेलवे स्टेशन है, या विद्यालय का द्वार है। उसके पश्चात का दिन, समय, रात, सुबह, दोपहर आदि इसके पश्चात यह बताना होगा कि घटना बाहर घट रही है या कमरे में।
यह पटकथा लिखने का अंतरराष्ट्रीय स्तर है । आज फिल्मों व टीवी के कार्यक्रमों के निर्माण में टेक्निकल वस्तुओं का सहारा लिया जाता है। पटकथा में संकेतों का अत्यधिक महत्व है। इनसे फिल्म या टीवी में काम करने वाले हर व्यक्ति को उनके काम में मदद मिलती है। दृश्य के अंत में कट टू ,रिजॉल्व टू, फेड डाउट आदि जैसी जानकारियाँ निर्देशक, एडिटर के काम को सरल बना देती है।
आज के वैज्ञानिक युग में कंप्यूटर पर ऐसे सॉफ्टवेयर आ गए हैं, जिनमें कथा-पटकथा का प्रारूप बना बनाया होता है। आपके द्वारा दी गई छोटी सी गलती भी तुरंत पकड़ ली जा सकती है तथा उसको सुधारने के सुझाव भी दिए जाते हैं।
पटकथा लिखते समय सर्वप्रथम हमें उन आधारों का ध्यान पूर्वक अध्ययन कर लेना चाहिए, जिनको लेकर पटकथा लिखी जा रही है। पटकथा ही किसी फिल्म या धारावाहिक का मूलाधार होती है। पटकथा के अनुसार ही निर्देशक, अभिनेता, कैमरे के पीछे काम करने वाले तकनीशियनों तक को उनके कार्यक्षेत्र का बोध होता है। पटकथा का आधार है 'कथा'। अतः कथा का चुनाव बहुत ध्यान पूर्वक करना चाहिए। इसके पश्चात हमें देखना होगा कि पटकथा की संरचना 'ढांचा' कैसे तैयार किया जाना चाहिए। पटकथा में द्वंद व टकराहट की स्थिति होनी चाहिए, जिससे कथा में गति आएगी। फिल्म या धारावाहिक रोचक बनेगा। पटकथा के दृश्य, समय और कार्य व्यापार के अनुकूल होने चाहिए। दृश्य छोटे एवं गतिशील होने से कहानी में गति आएगी। पटकथा में 'फ्लैशबैक' या 'फ्लैश फॉरवर्ड' की तकनीक का प्रयोग करके पूरी लोकेशन को स्पष्ट करने का प्रयोग किया जाना चाहिए।
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