Pahalwan ki Dholak/पहलवान की ढोलक/Fanishwar Nath Renu/फ़णीश्वरनाथ रेणु
पहलवान की ढोलक
फ़णीश्वरनाथ रेणु
पाठ का सारांश –आंचलिक कथाकार फ़णीश्वरनाथ रेणु की कहानी पहलवान की ढोलक में कहानी के मुख्य
पात्र लुट्टन के माता-पिता का देहांत उसके बचपन में
ही हो गया था | अनाथ
लुट्टन को उसकी विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया |
उसकी सास को गाँव वाले सताते थे | लोगों से
बदला लेने के लिए कुश्ती के दाँवपेंच सीखकर कसरत करके
लुट्टन पहलवान बन गया |
प्रश्न1- लुट्टन को पहलवान बनने की प्रेरणा
कैसे मिली ?
उत्तर- लुट्टन जब नौ साल का था तो
उसके माता-पिता का देहांत हो गया था | सौभाग्य से उसकी शादी हो चुकी थी| अनाथ लुट्टन को
उसकी विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया | उसकी सास को गाँव वाले परेशान करते थे| लोगों से
बदला लेने के लिए उसने पहलवान बनने की ठानी| धारोष्ण
दूध पीकर, कसरत कर उसने अपना बदन गठीला और ताकतवर बना लिया |
कुश्ती के दाँवपेंच सीखकर लुट्टन पहलवान बन गया |
उत्तर- रात के भयानक सन्नाटे मेंलुट्टन की ढोलक महामारी से जूझते लोगों को हिम्मत बँधाती थी | ढोलक की आवाज से रात की विभीषिका और सन्नाटा कम होता था| महामारी से पीड़ित लोगों की नसों में बिजली सी दौड़ जाती थी, उनकी आँखों के सामने दंगल का दृश्य
साकार हो जाता था और वे अपनी पीड़ा भूल खुशी-खुशी मौत को गले लगा
लेते थे। इस प्रकार ढोल की आवाज, बीमार-मृतप्राय
गाँववालों की नसों में संजीवनी शक्ति को भर बीमारी से लड़ने की प्रेरणा देती थी।
उत्तर- लुट्टन सिंह ने सर्वाधिक हिम्मत तब दिखाई जब दोनों बेटों की मृत्यु
पर वह रोया नहीं बल्कि हिम्मत से काम लेकर अकेले
उनका अंतिम संस्कार किया| यही नहीं, जिस
दिन पहलवान के दोनों बेटे महामारी की चपेट में आकर मर गए पर उस रात को भी पहलवान
ढोलक बजाकर लोगों को हिम्मत
बँधा रहा था| श्यामनगर के दंगल में पूरा जनसमुदाय चाँद
सिंह के पक्ष में था चाँद सिंह को हराते समय लुट्टन ने हिम्मत दिखाई और बिना हताश हुए दंगल में चाँद सिंह को चित कर दिया |
उत्तर- श्यामनगर के राजा कुश्ती के शौकीन थे। उन्होंने दंगल का आयोजन किया। पहलवान लुट्टन सिंह भी दंगल देखने पहुँचा ।
चांदसिंह नामक पहलवान जो शेर के बच्चे के नाम से प्रसिद्ध था, कोई भी पहलवान उससे भिड़ने की हिम्मत नहीं करता था। चाँदसिंह अखाड़े में
अकेला गरज रहा था। लुट्टन सिंह ने चाँदसिंह को चुनौती
दे दी और चाँदसिंह से भिड़ गया।ढ़ोल की आवाज सुनकर लुट्टन की नस-नस में जोश भर गया।उसने
चाँदसिंह को चारों खाने चित कर दिया। राजासाहब ने लुट्टन की वीरता से प्रभावित
होकर उसे राजपहलवान बना दिया।
उत्तर- पहलवान की अंतिम इच्छा थी कि उसे चिता पर पेट के बल लिटाया जाए क्योंकि
वह जिंदगी में कभी चित नहीं हुआ था| उसकी दूसरी इच्छा थी कि उसकी चिता को आग देते समय ढोल अवश्य बजाया जाए |
उत्तर- ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँवपेंच में
संबंध -
·
चट धा, गिड़ धा→ आजा भिड़ जा |
·
चटाक चट धा→ उठाकर पटक दे |
·
चट गिड़ धा→मत डरना |
·
धाक धिना तिरकट
तिना→ दाँव काटो , बाहर हो जाओ |
·
धिना धिना, धिक धिना→ चित करो
गद्यांश-आधारित अर्थग्रहण-संबंधित प्रश्नोत्तर
अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी | निस्तब्धता
करुण सिसकियों और आहों को अपने हृदय में ही बल पूर्वक दबाने की चेष्टा कर रही थी |
आकाश में तारे चमक रहे थे | पृथ्वी पर कहीं
प्रकाश का नाम नहीं| आकाश से टूट कर यदि कोई भावुक तारा
पृथ्वी पर आना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी |
अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे |
सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज रात की निस्तब्धता को भंग करती थी | गाँव की झोपडियों से
कराहने और कै करने की आवाज, हरे राम हे भगवान की टेर सुनाई
पड़ती थी| बच्चे भी निर्बल कंठों से माँ –माँ पुकारकर रो पड़ते थे |
(क) अँधेरी रात को आँसू
बहाते हुए क्यों दिखाया गया है ?
उत्तर– गाँव में
हैजा और मलेरिया फैला हुआ था | महामारी की चपेट में आकार लोग
मर रहे थे |चारों ओर मौत का सनाटा छाया था इसलिए अँधेरी रात
भी चुपचाप आँसू बहाती सी प्रतीत हो रही थी|
(ख) तारे के माध्यम से लेखक क्या
कहना चाहता है?
उत्तर– तारे के
माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि अकाल और महामारी से त्रस्त गाँव वालों की पीड़ा को
दूर करने वाला कोई नहीं था | प्रकृति भी गाँव वालों के दुःख
से दुखी थी| आकाश से टूट कर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर
आना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी |
(ग) रात की निस्तब्धता को कौन भंग करता था ?
उत्तर– सियारों की
चीख-पुकार, पेचक की डरावनी आवाजें और कुत्तों का सामूहिक
रुदन मिलकर रात के सन्नाटे को भंग करते थे |
(घ) झोपड़ियों से कैसी आवाजें आ रही हैं और क्यों?
उत्तर– झोपड़ियों से रोगियों के कराहने,
कै करने और रोने की आवाजें आ रही हैं क्योंकि गाँव के लोग मलेरिया
और हैजे से पीड़ित थे | अकाल के कारण अन्न की कमी हो गयी थी|
औषधि और पथ्य न मिलने के कारण लोगों की हालत इतनी बुरी थी कि कोई
भगवान को पुकार लगाता था तो कोई दुर्बल कंठ से माँ–माँ पुकारता था |
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