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Foreign-Secretary-S-Jaishankar/एस. जयशंकर : परिचय/सुब्रह्मण्यम जयशंकर/भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर |
एस. जयशंकर : परिचय
एस. जयशंकर (S. Jaishankar) ब्यूरोक्रेट्स के परिवार से हैं।
यही कारण है ज्यादातर समय उनके परिवार का ठिकाना दिल्ली रहा। वे तमिल हैं। उनके आईएएस पिता के. सुब्रह्मणयम फॉदर ऑफ इंडियन स्ट्रेटजिक थॉट्स माने जाते थे, जबकि मां म्यूजिक में पीएचडी हैं। जेएनयू में पढ़े हैं। वहां एडमिशन लेने की भी कहानी है। वे
एडमिशन तो आईआईटी में
लेने गए थे। लेकिन पास ही जेएनयू में भीड़ देखने पहुंच गए और एडमिशन लेकर लौटे।
उनकी मुलाकात अपनी पहली पत्नी शोभा से यहीं हुई। बड़ा बेटा ध्रुव अमेरिका में एक
थिंक टैंक के साथ काम करता है। बहू कसांड्रा अमेरिकन है। बेटी मेधा लॉस एंजिलिस
में फिल्म इंडस्ट्री में हैं। पहली पत्नी शोभा की कैंसर से मौत के बाद एस. जयशंकर
ने जापानी मूल की क्योको से शादी की। जयशंकर को अंग्रेजी, हिंदी और तमिल
के अलावा रूसी, जापानी और हंगेरियन भाषा भी आती हैं। 24 साल के थे जब आईएफएस अधिकारी बन गए थे। 2013 में अमेरिका में राजदूत बने तो खोब्रागड़े केस से
सामना हुआ। चीन में भारत के सबसे
लंबे वक्त तक राजदूत रहे। रिटायरमेंट को 72 घंटे
बाकी थे, तब अचानक उन्हें विदेश सचिव बना दिया गया।
एस. जयशंकर : शिक्षा
एस. जयशंकर (S Jaishankar) की प्रारंभिक शिक्षा, दिल्ली के श्रीनिवासपुरी स्थित कैंब्रिज स्कूल में हुई। स्कूली पढाई पूरी करने के बाद, उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफ़न्स कॉलेज से बीए किया। इसके बाद इन्होंने जवाहर लाल यूनिवर्सिटी से राजनीतिशास्त्र में एमए किया। जेएनयू से ही इन्होंने, अंतर्राष्ट्रीय संबंध में एमफिल और पीएचडी भी की।
एस. जयशंकर : सेवाएँ
एस. जयशंकर (S Jaishankar) भारत के आर्थिक हितों के साथ-साथ सुरक्षा क्षेत्र की अनिवार्यता को भी अच्छी तरह समझते हैं और उन्होंने उसके बीच सही संतुलन बिठाया है।’जयशंकर काफी लंबे समय तक पेइचिंग में भारतीय राजदूत रहे। हाल तक भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों में गिरावट आई थी, लेकिन जयशंकर को अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते में बदलाव और इसमें बेहतरी लाने का श्रेय दिया जाता है। हालांकि उनके दूसरे सहयोगी कहते हैं कि इसका मतलब यह नहीं कहा जा सकता है कि उनकी विदेश नीति अमेरिका पर केंद्रित है। वर्ष 2007 में जयशंकर सिंगापुर में भी भारत के राजदूत थे। यह द्वीपीय देश आसियान क्षेत्र के साथ संपर्क बढ़ाने के लिए काफी अहम है और इससे जयशंकर को यह आभास हुआ कि इस क्षेत्र में सुरक्षा तंत्र विकसित करने की जरूरत है।
एस. जयशंकर (S Jaishankar) ने बुडापेस्ट, प्राग और टोक्यो में भी सेवाएं दी हैं। उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय में पी.एचडी. और एम.फिल. किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह चाहते थे कि जयशंकर प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े, लेकिन बाद में उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और वॉशिंगटन में भारत के राजदूत रहे जयशंकर के बीच दो शक्ति केंद्र बनाने की संभावनाओं के बारे में सोचा।
एस. जयशंकर की असैन्य परमाणु
समझौते में भूमिका
एस. जयशंकर (S Jaishankar) 1977 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए थे और उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और चेक गणराज्य में भारतीय राजदूत और सिंगापुर में उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया। जयशंकर ने 2007 में यूपीए सरकार द्वारा हस्ताक्षरित भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर बातचीत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा भारत और अमेरिका के बीच देवयानी खोबरागड़े विवाद को सुलझाने में भी जयशंकर की अहम भूमिका थी।
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