माँ और भगवान
मैं अपने छोटे मुख
कैसे करूँ तेरा गुणगान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
माता कौशल्या के घर
में जन्म राम ने पाया
ठुमक-ठुमक आँगन में चलकर सबका हृदय
जुड़ाया
पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के
प्राण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
दे मातृत्व देवकी को
यसुदा की गोद सुहाई
ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई
सारे ब्रजमंडल में गूँजी थी वंशी की तान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
तेरी समता में तू ही
है मिले न उपमा कोई
तू न कभी निज सुत से रूठी मृदुता अमित
समोई
लाड़-प्यार से सदा सिखाया तूने सच्चा
ज्ञान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
कभी न विचलित हुई
रही सेवा में भूखी प्यासी
समझ पुत्र को रुग्ण मनौती मानी रही उपासी
प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत
कल्याण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
‘विकल’ न होने दिया पुत्र
को कभी न हिम्मत हारी
सदय अदालत है सुत हित में सुख-दुख में
महतारी
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
जगदीश प्रसाद
सारस्वत ‘विकल’
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