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Dholavira-world-heritage-site/भारत का 40वाँ विश्व धरोहर स्थल: धौलावीरा-India-40th-world-heritage-site-Dholavira |
भारत
का 40वाँ विश्व धरोहर स्थल:
धौलावीरा-India-40th-world-heritage-site-Dholavira
(Dholavira included in Super-40 Club for World Heritage Site Inscriptions)
यूनेस्को ने
गुजरात के धौलावीरा शहर को
भारत के 40वें विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया है।
यह प्रतिष्ठित सूची में शामिल होने वाली भारत में सिंधु
घाटी सभ्यता (Indus
Valley Civilisation- IVC) की पहली
साइट है।
इस सफल नामांकन के साथ भारत अब विश्व धरोहर स्थल
शिलालेखों के लिये सुपर-40
क्लब (Super-40 Club for World Heritage Site Inscriptions) में प्रवेश कर गया है।
भारत के अलावा इटली, स्पेन, जर्मनी, चीन और फ्रांस में 40 या अधिक
विश्व धरोहर स्थल हैं।
भारत में कुल मिलाकर 40 विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें 32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और एक मिश्रित स्थल शामिल है। रामप्पा मंदिर (तेलंगाना) भारत का 39 वां विश्व धरोहर स्थल था।
धौलावीरा के बारे में प्रमुख बिंदु: (Dholavira-world-heritage-site)
यह दक्षिण एशिया में सबसे अनूठी और अच्छी तरह से
संरक्षित शहरी बस्तियों में से एक है। इसकी खोज वर्ष 1968 में पुरातत्त्वविद्
जगतपति जोशी द्वारा की गई थी।
पाकिस्तान के मोहनजोदड़ो, गनेरीवाला और हड़प्पा तथा भारत के हरियाणा में
राखीगढ़ी के बाद धौलावीरा सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) का पांचवा सबसे बड़ा महानगर है।
( Indus Valley Civilisation- IVC) जो कि आज पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में पाई जाती
है, लगभग 2,500 ईसा
पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग में फली-फूली। यह मूल रूप से एक शहरी सभ्यता थी
तथा लोग सुनियोजित और अच्छी तरह से निर्मित कस्बों में रहते थे, जो व्यापार के केंद्र भी थे।
धौलावीरा में एक प्राचीन ( Indus Valley Civilisation- IVC) शहर के खंडहर हैं। इसके दो भाग हैं: एक चारदीवारी युक्त शहर और शहर के पश्चिम में एक कब्रिस्तान। चारदीवारी वाले शहर में एक मज़बूत प्राचीर से
युक्त एक दृढ़ीकृत गढ़/दुर्ग और अनुष्ठानिक स्थल तथा दृढ़ीकृत दुर्ग के नीचे एक शहर
स्थित था। गढ़ के पूर्व और
दक्षिण में जलाशयों की एक शृंखला पाई जाती है।
धौलावीरा की अवस्थिति: (Dholavira-world-heritage-site)
धोलावीरा का प्राचीन शहर गुजरात राज्य के कच्छ
ज़िले में एक पुरातात्त्विक स्थल है, जो ईसा पूर्व तीसरी
से दूसरी सहस्राब्दी तक का है। धौलावीरा
कर्क रेखा पर स्थित है। यह कच्छ के महान रण में
कच्छ रेगिस्तान वन्यजीव अभयारण्य में खादिर बेट द्वीप पर स्थित है। अन्य हड़प्पा पूर्वगामी शहरों के विपरीत, जो आमतौर पर नदियों और जल के बारहमासी स्रोतों के
पास स्थित हैं, धौलावीरा खादिर बेट द्वीप पर स्थित है।
धौलावीरा साइट विभिन्न खनिज और कच्चे माल के स्रोतों
(तांबा, खोल, एगेट-कारेलियन, स्टीटाइट, सीसा, बैंडेड चूना पत्थर तथा अन्य) के दोहन हेतु
महत्त्वपूर्ण थी। इसने मगन (आधुनिक
ओमान प्रायद्वीप) और मेसोपोटामिया क्षेत्रों में आंतरिक एवं बाहरी व्यापार को भी सुगम बनाया।
धौलावीरा में पाए गए पुरातात्त्विक परिणाम:
यहाँ पाए गए कलाकृतियों में टेराकोटा मिट्टी के बर्तन, मोती, सोने और तांबे के
गहने, मुहरें, मछलीकृत हुक, जानवरों की मूर्तियाँ, उपकरण, कलश एवं कुछ महत्त्वपूर्ण बर्तन शामिल हैं। तांबे के स्मेल्टर या भट्टी के अवशेषों से संकेत
मिलता है कि धौलावीरा में रहने वाले हड़प्पावासी धातु
विज्ञान जानते थे।
ऐसा माना जाता है कि धौलावीरा के व्यापारी वर्तमान राजस्थान, ओमान तथा संयुक्त अरब अमीरात से तांबा अयस्क प्राप्त करते थे और निर्मित उत्पादों का निर्यात करते थे।
धौलावीरा अगेट (Agate) की तरह
कौड़ी (Shells) एवं अर्द्ध-कीमती पत्थरों से बने आभूषणों के निर्माण का भी केंद्र था तथा इमारती लकड़ी का निर्यात भी करता था।
सिंधु घाटी लिपि में निर्मित 10 बड़े पत्थरों के शिलालेख है, शायद यह दुनिया का
सबसे पुराने साइन बोर्ड है। प्राचीन
शहर के पास एक जीवाश्म पार्क है जहाँ लकड़ी के जीवाश्म संरक्षित हैं। अन्य (Indus Valley Civilisation-
IVC) स्थलों पर कब्रों के
विपरीत धौलावीरा में मनुष्यों के किसी भी नश्वर अवशेष की खोज नहीं की गई है।
धौलावीरा स्थल की विशिष्ट विशेषताएँ: (Dholavira-world-heritage-site)
- · जलाशयों की व्यापक शृंखला।
- · बाहरी किलेबंदी।
- · दो बहुउद्देश्यीय मैदान, जिनमें से एक उत्सव के लिये और दूसरा बाज़ार के रूप में उपयोग किया जाता था।
- · अद्वितीय डिज़ाइन वाले नौ द्वार।
- · अंत्येष्टि वास्तुकला में ट्यूमुलस की विशेषता है - बौद्ध स्तूप जैसी अर्द्धगोलाकार संरचनाएँ।
- · बहुस्तरीय रक्षात्मक तंत्र, निर्माण और विशेष रूप से दफनाए जाने वाली संरचनाओं में पत्थर का व्यापक उपयोग।
धौलावीरा का पतन कैसे हुआ : (Dholavira-world-heritage-site)
- · इसका पतन मेसोपोटामिया के पतन के साथ ही हुआ, जो अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण का संकेत देता है।
- · हड़प्पाई, जो समुद्री लोग थे, ने मेसोपोटामिया के पतन के बाद एक बड़ा बाज़ार खो दिया जो इनके स्थानीय खनन, विनिर्माण, विपणन और निर्यात व्यवसायों को प्रभावित करते थे ।
- · जलवायु परिवर्तन और सरस्वती जैसी नदियों के सूखने के कारण धौलावीरा को गंभीर शुष्कता का परिणाम देखना पड़ा।
- · सूखे जैसी स्थिति के कारण लोग गंगा घाटी की ओर या दक्षिण गुजरात की ओर तथा महाराष्ट्र से आगे की ओर पलायन करने लगे।
- · इसके अलावा कच्छ का महान रण, जो खादिर द्वीप के चारों ओर स्थित है और जिस पर धोलावीरा स्थित है, यहाँ पहले नौगम्य हुआ करता था, लेकिन समुद्र का जल धीरे-धीरे पीछे हट गया और रण क्षेत्र एक कीचड़ क्षेत्र बन गया।
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