कोरोना पर कविता
जिसके डर से सभी कांप रहे हैं,
उसका नाम कोरोना है।
हर दिन अपना रूप बदलता,
जैसे कोई जादू-टोना है।
आया था तू चीन से,
आकर हाहाकार मचाया।
बचा न दुनिया का कोई कोना,
जहां न तूने उत्पात मचाया।
कभी ठिठकता, कभी उछलता,
जाने कैसा खेल रचाया है।
तुझे कितनी ज्यादा भूख लगी है
जो लाखों को ग्रास बनाया है।
क्या इटली, क्या फ्रांस-ब्राजील,
सबको कोरोना ने सताया है।
जो था सबसे शक्तिशाली,
उस अमेरिका को भी झुकाया है।
भारतवासी रहे सुरक्षित,
हम लॉकडाउन भी सह गए।
पहली लहर में हुए चौकन्ने,
इसलिए कम नुकसान में रह गए।
समय बिता, हम हुए लापरवाह,
बन गए भीड़, छोड़ा मास्क लगाना।
हुए शिकार दूसरी लहर के,
घर-घर बना कोरोना का ठिकाना।
हुए श्मशान भी हाउसफुल,
उखड़ी सांसे मानव की।
नहीं मिली ऑक्सीजन समय पर,
नजर लगी किसी दानव की।
वक्त अभी भी है, संभल जाओ,
कदमों को संभालो घर में।
नाते-रिश्तो को समझा लेंगे,
अगर जान बची रही जिगर में।
वक्त बुरा है कष्ट तो होगा,
हमको फर्ज निभाना होगा।
वैक्सीन की ढाल पहन कर,
हरदम मास्क लगाना होगा।
जज्बा अपना रखे बुलंद,
वक्त यह भी बीत जाएगा।
कोरोना की इस जंग में भी,
भारत फिर से जीत जाएगा।
भारत फिर से जीत जाएगा।।
(C) दुलीचंद कालीरमन
Corona par Kavita in Hindi/Corona par Kavita/कोरोना पर कविता
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