Azadi ka amrit mahotsav par kavita-Azadi ka amrit mahotsav-आजादी का अमृत महोत्सव पर कविता

    आजादी का अमृत महोत्सव

    (कविता)



    आजादी का अमृत महोत्सव,

     भारतवर्ष मना रहा है

     आजादी के मतवालों की,

     याद फिर से दिला रहा है


    भारतीय सभ्यता अति प्राचीन,

     दुनिया को जिसने मार्ग दिखलाया

     खुद ही रास्ता भटक गए,

     जब अंधकार का युग था आया


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     बने गुलाम आक्रमणकारियों के,

     आपसी तकरार के कारण हम

     विदेशी भी शासक बन बैठे,

     ऐसे पतन में फस गए थे हम


     फिर 1857 में एक जली ज्वाला,

     सोई आजादी के नाम पर

     फिर कुछ अपनों की निर्लज्जता से,

     नहीं पहुंचे किसी अंजाम पर


     वीर शिवाजी, तात्या टोपे,

     उस लक्ष्मीबाई रानी ने

     आजाद, भगत सिंह, मंगल पांडे, 

     लाला लाजपत राय की कुर्बानी ने


     जड़े हिला दी साम्राज्यवाद की,

     गांधी जी के सत्याग्रह ने

    कुछ सत्य-अहिंसा की ताकत से, 

     कुछ जनता की जागृति ने







     आजादी को हुए साल पचहतर,

     अभी तो ली अंगड़ाई है

     आगे मंजिलें और भी हैं,

     अभी तो बाकी कई लड़ाई हैं


     याद करें उन रणबांकुरे को,

     जो अपनी जानों पर खेल गए

    तन-मन को न्योछावर कर के,

     काले-पानी की जेल गए


     नई पीढ़ी को भी जानना होगा,

     क्या आजादी की कीमत है?

    स्वतंत्रता ऐसे नहीं मिली थी, 

     यह लाखों जन की हिम्मत है


     फिर उठेगा मेरा भारतवर्ष,

     फिर विश्व गुरु का मान होगा

     फिर बनेंगे हम आत्मनिर्भर,

    फिर मुट्ठी में आसमान होगा


    (C) दुलीचंद कालीरमन


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