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Biography-Mahadevi-Verma/महादेवी वर्मा-जीवन परिचय |
जीवन परिचय
महादेवी वर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य के छायावाद की
प्रमुख स्तंभ हैं। उनका जन्म सन 1907 ई. में उत्तर प्रदेश
के फर्रुखाबाद में हुआ था। उनके पिता का नाम गोविंद प्रसाद वर्मा था तथा उनकी माता हेमरानी एक धार्मिक
महिला थी। बचपन से ही
महादेवी जी के मन पर भक्ति का प्रभाव पड़ा। इनकी शिक्षा इंदौर तथा प्रयाग में हुई। इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से ऍम.ए. (संस्कृत) की
परीक्षा पास की। यह प्रयाग महिला
विद्यापीठ के प्राचार्य पद पर कार्यरत रही। महादेवी जी आजीवन अध्ययन-अध्यापन कार्य में लीन रही। 1956 ई. में भारत सरकार ने
इनको पदमभूषण की उपाधि से विभूषित किया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने इनको भारत-भारती सम्मान प्रदान किया। सन 1987 ई. में ‘यामा’ संग्रह पर इनको ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। उनकी साहित्य सेवा को देखते हुए दिल्ली
विश्वविद्यालय ने उनको डी.लिट्. की उपाधि से अलंकृत किया। अंततः सन 1987 ई. में यह महान
साहित्य सेवी अपना महान साहित्य संसार को सौंपकर चिरनिद्रा में लीन हो गई।
रचनाएँ:
प्रश्न:
- लेखक कालिदास को श्रेष्ट कवी क्यों मानता है ?
- आम कवि व कालिदास में क्या अंतर हैं?
- ‘शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी”-आशय स्पष्ट करें।
- दुष्यंत के खीझने का क्या कारन था ? अंत में उसे क्या समझ में आया ?
उत्तर –
- लेखक ने कालिदास को श्रेष्ठ कवि माना है क्योंकि कालिदास के शब्दों व अर्थों में सामंजस्य है। वे अनासक्त योगी की तरह स्थिर-प्रज्ञता व विदग्ध प्रेमी का हृदय भी पा चुके थे। श्रेष्ठ कवि के लिए यह गुण आवश्यक है।
- ओम कवि शब्दों की लय, तुक व छंद से संतुष्ट होता है, परंतु विषय की गहराई पर ध्यान नहीं देता है। हालाँकि स्रकालिदास कविता के बाहरी तत्वों में विशेषज्ञ तो थे ही, वे विषय में डूबकर लिखते थे।
- लेखक का मानना है कि शकुंतला सुंदर थी, परंतु देखने वाले की दृष्टि में सौंदर्यबोध होना बहुत जरूरी है। कालिदास की सौंदर्य दृष्टि के कारण ही शकुंतला का सौंदर्य निखरकर आया है। यह कवि की कल्पना का चमत्कार है।
- दुष्यंत ने शकुंतला का चित्र बनाया था, परंतु उन्हें उसमें संपूर्णता नहीं दिखाई दे रही थी। काफी देर बाद उनकी समझ में आया कि शकुंतला के कानों में शिरीष पुष्प नहीं पहनाए थे, गले में मृणाल का हार पहनाना भी शेष था।
प्रश्न 7:
कालिदास सौंदर्य के बाहय आवरण को भेदकर उसके भीतर तक पहुँच सकते थे, दुख हो कि सुख, वे अपना भाव-रस उस अनासक्त कृपीवल की भाँति खींच लेते थे जो निर्दलित ईक्षुदंड से रस निकाल लेता है। कालिदास महान थे, क्योंकि वे अनासक्त रह सके थे। कुछ इसी श्रेणी की अनासक्ति आधुनिक हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत में है। कविवर रवींद्रनाथ में यह अनासक्ति थी। एक जगह उन्होंने लिखा-‘राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही अभ्रभेदी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।” फूल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अँगुली है। वह इशारा है।
प्रश्न:
- कालिदास की सौंदर्य-दूष्टि के बारे में बताइए।
- कालिदास की समानता आधुनिक काल के किन कवियों से दिखाई गाई ?
- रवींद्रनाथ ने राजोद्यान के सिंहद्वार के बारे में क्या लिखा हैं?
- फूलों या पेड़ों से हमें क्या प्रेरणा मिलती हैं?
उत्तर –
- कालिदास की सौंदर्य-दृष्टि सूक्ष्म व संपूर्ण थी। वे सौंदर्य के बाहरी आवरण को भेदकर उसके अंदर के सौंदर्य को प्राप्त करते थे। वे दुख या सुख-दोनों स्थितियों से अपना भाव-रस निकाल लेते थे।
- कालिदास की समानता आधुनिक काल के कवियों सुमित्रानंदन पंत व रवींद्रनाथ टैगोर से दिखाई गई है। इन स में अनासक्त भाव है। तटस्थता के कारण ही ये कविता के साथ न्याय कर पाते हैं।
- रवींद्रनाथ ने एक जगह लिखा है कि राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही गगनचुंबी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।
- फूलों या पेड़ों से हमें जीवन की निरंतरता की प्रेरणा मिलती है। कला की कोई सीमा नहीं होती। पुष्प या पेड़ अपने सौंदर्य से यह बताते हैं कि यह सौंदर्य अंतिम नहीं है। इससे भी अधिक सुंदर हो सकता है।
प्रश्न 8:
शिरीष तरु सचमुच पक्के अवधूत की भाँति मेरे मन में ऐसी तरंगें जगा देता है जो ऊपर की ओर उठती रहती हैं। इस चिलकती धूप में इतना सरस वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाहय परिवर्तन-धूप, वर्षा, आँधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बूढ़ा रह सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ है? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है।
प्रश्न:
- शिरीष के वृक्ष की तुलना अवधूत से क्यों की गई है ? यह वृक्ष लेखक में किस प्रकार की भावना जनता है ?
- चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष हमें क्या प्रेरणा दे रहा हैं?
- गद्यांश में देश के ऊपर के किस बवंडर के गुजरने की ओर संकेत किया गया हैं?
- अपने देश का एक बूढ़ा कौन था ? ऊसे बूढ़े और शिरीष में समानता का आधार लेखक ने क्या मन है ?
उत्तर –
- अवधूत से तात्पर्य अनासक्त योगी से है। जिस तरह योगी कठिन परिस्थितियों में भी मस्त रहता है, उसी प्रकार शिरीष का वृक्ष भयंकर गर्मी, उमस में भी फूला रहता है। यह वृक्ष मनुष्य को हर परिस्थिति में संघर्षशील, जुझारू व सरस बनने की भावना जगाता है।
- चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष हमें प्रेरणा देता है कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए तथा हर परिस्थिति में मस्त रहना चाहिए।
- इस गद्यांश में देश के ऊपर से सांप्रदायिक दंगों, खून-खराबा, मार-पीट, लूटपाट रूपी बवंडर के गुजरने की ओर संकेत किया गया है।
- ‘अपने देश का एक बूढ़ा’ महात्मा गांधी है। दोनों में गजब की सहनशक्ति है। दोनों ही कठिन परिस्थितियों में सहज भाव से रहते हैं। इसी कारण दोनों समान हैं।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (सन्यासी) की तरह क्यों माना है ?
अथवा
शिरीष की तुलना किससे और क्यों की गई हैं?
उत्तर –
कालजयी संन्यासी का अर्थ है हर युग में स्थिर और अवस्थित रहना। वह किसी भी युग में विचलित या विगलित नहीं होता। शिरीष भी कालजयी अवधूत है। वसंत के आगमन के साथ ही लहक जाता है और आषाढ़ तक निश्चित रूप से खिला रहता है। जब उमस हो या तेज़ लू चल रही हो तब भी शिरीष खिला रहता है। उस पर उमस या लू का कोई प्रभाव पड़ता नहीं दिखता। वह अजेयता के मंत्र का प्रचार करता रहता है इसलिए वह कालजयी अवधूत की तरह है।
प्रश्न 2:
“हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती हैं।” प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें?
उत्तर –
हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है। मनुष्य को हृदय की कोमलता बचाने के लिए बाहरी तौर पर कठोर बनना पड़ता है तभी वह विपरीत दशाओं का सामना कर पाता है। शिरीष भी भीषण गरमी की लू को सहन करने के लिए बाहर से कठोर स्वभाव अपनाता है तभी वह भयंकर गरमी, लू आदि को सहन कर पाता है। संत कबीरदास, कालिदास ने भी समाज को उच्चकोटि का साहित्य दिया, परंतु बाहरी तौर पर वे सदैव कठोर बने रहे।
प्रश्न 3:
द्वविवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है ? स्पष्ट करें?
अथवा
द्ववेदी जी ने ‘शिरीष के फूल’ पाठ में ” शिरीष के माध्यम से कोलाहल और संघर्ष से भरे जीवन में अविचल रहकर जिंदा रहने की सिख दी है। ” इस कथन की सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
उत्तर –
लेखक ने कहा है कि शिरीष वास्तव में अद्भुत अवधूत है। वह किसी भी स्थिति में विचलित नहीं होता। दुख हो या सुख उसने कभी हार नहीं मानी अर्थात् दोनों ही स्थितियों में वह निर्लिप्त रहा। मौसम आया तो खिल गया वरना नहीं। लेकिन खिलने न खिलने की स्थिति से शिरीष कभी नहीं डरा। प्रकृति के नियम से वह भलीभाँति परिचित था। इसलिए चाहे कोलाहल हो या संघर्ष वह जीने की इच्छा मन में पाले रहता है।
प्रश्न 4:
‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ हैं!” ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वचस्व की वतमान सभ्यता के सकट की अोर सकेत किया हैं। कैसे?
उत्तर –
‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!” ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। आज मनुष्य में आत्मबल का अभाव हो गया है। अवधूत सांसारिक मोहमाया से ऊपर उठा हुआ व्यक्ति होता है। शिरीष भी कष्टों के बीच फलता-फूलता है। उसका आत्मबल उसे जीने की प्रेरणा देता है। आजकल मनुष्य आत्मबल से हीन होता जा रहा है। वह मानव-मूल्यों को त्यागकर हिंसा, असत्य आदि आसुरी प्रवृत्तियों को अपना रहा है। आज चारों तरफ तनाव का माहौल बन गया है, परंतु गाँधी जैसा अवधूत लापता है। अब ताकत का प्रदर्शन ही प्रमुख हो गया है।
प्रश्न 5:
कवी (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का ह्रदय एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत करके लेखक ने साहित्य – कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाए।
उत्तर –
कवि या साहित्यकार के लिए अनासक्त योगी जैसी स्थित प्रज्ञता होनी चाहिए क्योंकि इसी के आधार पर वह निष्पक्ष और सार्थक काव्य (साहित्य) की रचना कर सकता है। वह निष्पक्ष भाव से किसी जाति, लिंग, धर्म या विचारधारा विशेष को प्रश्रय न दे। जो कुछ समाज के लिए उपयोग हो सकता है उसी का चित्रण करे। साथ ही उसमें विदग्ध प्रेमी का-सा हृदय भी होना ज़रूरी है। क्योंकि केवल स्थित प्रज्ञ होकर कालजयी साहित्य नहीं रचा जा सकता। यदि मन में वियोग की विदग्ध हृदय की भावना होगी तो कोमल भाव अपने-आप साहित्य में निरूपित होते जाएंगे, इसलिए दोनों स्थितियों का होना अनिवार्य है।
प्रश्न 6:
‘सवग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता हैं, जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी हैं?” पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर –
लेखक का मानना है कि काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। समय परिवर्तनशील है। हर युग में नयी-नयी व्यवस्थाएँ जन्म लेती हैं। नएपन के कारण पुराना अप्रासंगिक हो जाता है और धीरे-धीरे वह मुख्य परिदृश्य से हट जाता है। मनुष्य को चाहिए कि वह बदलती परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को बदल ले। जो मनुष्य सुख-दुख, आशा-निराशा से अनासक्त होकर जीवनयापन करता है व विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेता है, वही दीर्घजीवी होता है। ऐसे व्यक्ति ही प्रगति कर सकते हैं।
प्रश्न 7:
आशय स्पष्ट कीजिए –
- दुरंत प्राणधारा और सवव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की अख बचा पाएँगे। भोले हैं वे।हिलते-डुलते रहो, स्थान बद्रलते रहो, आगे की ओर मुहं किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि सरे।
- जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया , वह भी क्या कवी है ? …. मैं कहता हूँ कि कवी बनना है मेरे दोस्तो, तो फक्कड़ बनो।
- फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं हैं। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई आँगुली हैं। वह इशारा हैं।
उत्तर –
- लेखक कहता है कि काल रूप अग्नि और प्राण रूपी धारा का संघर्ष सदा चलता रहता है। मूर्ख व्यक्ति तो यह समझते हैं कि जहाँ टिके हैं वहीं टिके रहें तो मृत्यु से बच जाएंगे लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है। यदि स्थान परिवर्तन करते रहे अर्थात् जीने के ढंग को बदलते रहे तो जीवन जीना आसान हो जाता है। जीवन को एक ही ढरें पर चलोओगे तो समझो अपना जीवन नीरस हो गया। नीरस जीवन का अर्थ है मर जाना। अतः गतिशीलता ज़रूरी
- लेखक का मानना है कि कवि बनने के लिए फक्कड़ बनना ज़रूरी है। जिस कवि में निरपेक्ष और अनासक्ति भाव नहीं होते वह श्रेष्ठ कवि नहीं बन सकता और जो कवि पहले से लिखी चली आ रही परंपरा को ही काव्य में अपनाता है वह भी कवि नहीं है। कबीर फक्कड़ थे, इसलिए कालजयी कवि बन गए। अतः कवि बनना है तो फक्कड़पने को ग्रहण करो।
- लेखक के कहने का आशय है कि अंतिम परिणाम का अर्थ समाप्त होना नहीं है जो यह समझता है वह निरा बुद्धू है। फल हो या पेड़ वह यही बताते हैं कि संघर्ष की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है। इसी प्रक्रिया से गुजरकर सफलता रूपी परिणाम मिलते हैं।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1:
शिरीष के पुष्प को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ मक की प्रचड़ गरमी में फूलने वाले फूल को ‘शीतपुष्प’ की सज्ञा किस आधार पर दी गयी होगी ?
उत्तर –
लेखक ने शिरीष के पुष्प को ‘शीतपुष्प’ कहा है। ज्येष्ठ माह में भयंकर गरमी होती है, इसके बावजूद शिरीष के पुष्प खिले रहते हैं। गरमी की मार झेलकर भी ये पुष्प ठंडे बने रहते हैं। गरमी के मौसम में खिले ये पुष्प दर्शक को ठंडक का अहसास कराते हैं। ये गरमी में भी शीतलता प्रदान करते हैं। इस विशेषता के कारण ही इसे ‘शीतपुष्प’ की संज्ञा दी गई होगी।
प्रश्न 2:
कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधी जी के व्यक्तित्व की वशेषता बन गए ?
उत्तर –
गांधी जी सदैव अहिंसावादी रहे। दया, धर्म, करुणा, परोपकार, सहिष्णुता आदि भाव उनके व्यक्तित्व की कोमलता को प्रस्तुत करते हैं। वे जीवनभर अहिंसा का संदेश देते रहे लेकिन उनके व्यक्तित्व में कठोर भाव भी थे। कहने का आशय है। कि वे सच्चाई के प्रबल समर्थक थे और जो कोई व्यक्ति उनके सामने झूठ बोलने का प्रयास करता उसका विरोध करते। वे उस पर क्रोध करते। तब वे झूठे व्यक्ति को भला-बुरा भी कहते चाहे वह व्यक्ति कितने ही ऊँचे पद पर क्यों न बैठा हो। उनके लिए सत्य का एक ही मापदंड था दूसरा नहीं। इसी कारण कोमल और कठोर दोनों भाव उनके व्यक्तित्व की विशेषता बन गए।
प्रश्न 3:
आजकल अंतर्राष्टीय बाज़ार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत – से किसान सैग – सब्जी व् अन्न उत्पादन छोड़कर फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे है। इसी मुददे को विषय बनाते हुए वाद – विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 4:
हज़ारीप्रसाद दविवेदी ने इस पथ की तरह ही वनस्पतियों के संदर्भ में कई व्यक्तित्व – व्यंजक ललित निबंध और भी लिखे है -कुटज ,आम फिर बैरा गए ,अशोक के फूल ,देवदारु आदि। शीक्षक की सहायता से इन्हें ढूँढ़िए और पढ़िए ?
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 5:
द्वविवेदी जी की वनस्पतियों में ऐसी रुचि का क्या कारण हो सकता हैं? आज साहित्यिक रचना-फलक पर प्रकृति की उपस्थिति न्यून से न्यून होती जा रही हैं। तब ऐसी रचनाओं का महत्व बढ़ गया हैं। प्रकृति के प्रति आपका द्वष्टिकोण रुचिपूर्ण हैं या उपेक्षामय2 इसका मूल्यांकन करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
भाषा की बात
प्रश्न 1:
‘दस दिन फूले और फिर खखड़-खखड़’-इस लोकोक्ति से मिलते-जुलते कई वाक्यांश पाठ में हैं। उन्हें छाँटकर लिखें।
उत्तर –
ऐसे वाक्यांश निम्नलिखित हैं –
- ऐसे दुमदारों से लैंडूरे भले।
- जो फरा सो झरा।
- जो बरा सो बुताना।
- न ऊधो का लेना, न माधो का देना।
- जमे कि मरे।
- वयमपि कवयः कवयः कवयस्ते कालिदासाद्या ।
महादेवी वर्मा जी एक महान साहित्य सेवी थी। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार मानी जाती हैं। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से अनेक साहित्यिक
विधाओं का विकास किया। उनकी प्रमुख
रचनाएं निम्नलिखित हैं-
प्रश्न:
- लेखक कालिदास को श्रेष्ट कवी क्यों मानता है ?
- आम कवि व कालिदास में क्या अंतर हैं?
- ‘शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी”-आशय स्पष्ट करें।
- दुष्यंत के खीझने का क्या कारन था ? अंत में उसे क्या समझ में आया ?
उत्तर –
- लेखक ने कालिदास को श्रेष्ठ कवि माना है क्योंकि कालिदास के शब्दों व अर्थों में सामंजस्य है। वे अनासक्त योगी की तरह स्थिर-प्रज्ञता व विदग्ध प्रेमी का हृदय भी पा चुके थे। श्रेष्ठ कवि के लिए यह गुण आवश्यक है।
- ओम कवि शब्दों की लय, तुक व छंद से संतुष्ट होता है, परंतु विषय की गहराई पर ध्यान नहीं देता है। हालाँकि स्रकालिदास कविता के बाहरी तत्वों में विशेषज्ञ तो थे ही, वे विषय में डूबकर लिखते थे।
- लेखक का मानना है कि शकुंतला सुंदर थी, परंतु देखने वाले की दृष्टि में सौंदर्यबोध होना बहुत जरूरी है। कालिदास की सौंदर्य दृष्टि के कारण ही शकुंतला का सौंदर्य निखरकर आया है। यह कवि की कल्पना का चमत्कार है।
- दुष्यंत ने शकुंतला का चित्र बनाया था, परंतु उन्हें उसमें संपूर्णता नहीं दिखाई दे रही थी। काफी देर बाद उनकी समझ में आया कि शकुंतला के कानों में शिरीष पुष्प नहीं पहनाए थे, गले में मृणाल का हार पहनाना भी शेष था।
प्रश्न 7:
कालिदास सौंदर्य के बाहय आवरण को भेदकर उसके भीतर तक पहुँच सकते थे, दुख हो कि सुख, वे अपना भाव-रस उस अनासक्त कृपीवल की भाँति खींच लेते थे जो निर्दलित ईक्षुदंड से रस निकाल लेता है। कालिदास महान थे, क्योंकि वे अनासक्त रह सके थे। कुछ इसी श्रेणी की अनासक्ति आधुनिक हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत में है। कविवर रवींद्रनाथ में यह अनासक्ति थी। एक जगह उन्होंने लिखा-‘राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही अभ्रभेदी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।” फूल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अँगुली है। वह इशारा है।
प्रश्न:
- कालिदास की सौंदर्य-दूष्टि के बारे में बताइए।
- कालिदास की समानता आधुनिक काल के किन कवियों से दिखाई गाई ?
- रवींद्रनाथ ने राजोद्यान के सिंहद्वार के बारे में क्या लिखा हैं?
- फूलों या पेड़ों से हमें क्या प्रेरणा मिलती हैं?
उत्तर –
- कालिदास की सौंदर्य-दृष्टि सूक्ष्म व संपूर्ण थी। वे सौंदर्य के बाहरी आवरण को भेदकर उसके अंदर के सौंदर्य को प्राप्त करते थे। वे दुख या सुख-दोनों स्थितियों से अपना भाव-रस निकाल लेते थे।
- कालिदास की समानता आधुनिक काल के कवियों सुमित्रानंदन पंत व रवींद्रनाथ टैगोर से दिखाई गई है। इन स में अनासक्त भाव है। तटस्थता के कारण ही ये कविता के साथ न्याय कर पाते हैं।
- रवींद्रनाथ ने एक जगह लिखा है कि राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही गगनचुंबी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।
- फूलों या पेड़ों से हमें जीवन की निरंतरता की प्रेरणा मिलती है। कला की कोई सीमा नहीं होती। पुष्प या पेड़ अपने सौंदर्य से यह बताते हैं कि यह सौंदर्य अंतिम नहीं है। इससे भी अधिक सुंदर हो सकता है।
प्रश्न 8:
शिरीष तरु सचमुच पक्के अवधूत की भाँति मेरे मन में ऐसी तरंगें जगा देता है जो ऊपर की ओर उठती रहती हैं। इस चिलकती धूप में इतना सरस वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाहय परिवर्तन-धूप, वर्षा, आँधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बूढ़ा रह सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ है? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है।
प्रश्न:
- शिरीष के वृक्ष की तुलना अवधूत से क्यों की गई है ? यह वृक्ष लेखक में किस प्रकार की भावना जनता है ?
- चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष हमें क्या प्रेरणा दे रहा हैं?
- गद्यांश में देश के ऊपर के किस बवंडर के गुजरने की ओर संकेत किया गया हैं?
- अपने देश का एक बूढ़ा कौन था ? ऊसे बूढ़े और शिरीष में समानता का आधार लेखक ने क्या मन है ?
उत्तर –
- अवधूत से तात्पर्य अनासक्त योगी से है। जिस तरह योगी कठिन परिस्थितियों में भी मस्त रहता है, उसी प्रकार शिरीष का वृक्ष भयंकर गर्मी, उमस में भी फूला रहता है। यह वृक्ष मनुष्य को हर परिस्थिति में संघर्षशील, जुझारू व सरस बनने की भावना जगाता है।
- चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष हमें प्रेरणा देता है कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए तथा हर परिस्थिति में मस्त रहना चाहिए।
- इस गद्यांश में देश के ऊपर से सांप्रदायिक दंगों, खून-खराबा, मार-पीट, लूटपाट रूपी बवंडर के गुजरने की ओर संकेत किया गया है।
- ‘अपने देश का एक बूढ़ा’ महात्मा गांधी है। दोनों में गजब की सहनशक्ति है। दोनों ही कठिन परिस्थितियों में सहज भाव से रहते हैं। इसी कारण दोनों समान हैं।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (सन्यासी) की तरह क्यों माना है ?
अथवा
शिरीष की तुलना किससे और क्यों की गई हैं?
उत्तर –
कालजयी संन्यासी का अर्थ है हर युग में स्थिर और अवस्थित रहना। वह किसी भी युग में विचलित या विगलित नहीं होता। शिरीष भी कालजयी अवधूत है। वसंत के आगमन के साथ ही लहक जाता है और आषाढ़ तक निश्चित रूप से खिला रहता है। जब उमस हो या तेज़ लू चल रही हो तब भी शिरीष खिला रहता है। उस पर उमस या लू का कोई प्रभाव पड़ता नहीं दिखता। वह अजेयता के मंत्र का प्रचार करता रहता है इसलिए वह कालजयी अवधूत की तरह है।
प्रश्न 2:
“हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती हैं।” प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें?
उत्तर –
हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है। मनुष्य को हृदय की कोमलता बचाने के लिए बाहरी तौर पर कठोर बनना पड़ता है तभी वह विपरीत दशाओं का सामना कर पाता है। शिरीष भी भीषण गरमी की लू को सहन करने के लिए बाहर से कठोर स्वभाव अपनाता है तभी वह भयंकर गरमी, लू आदि को सहन कर पाता है। संत कबीरदास, कालिदास ने भी समाज को उच्चकोटि का साहित्य दिया, परंतु बाहरी तौर पर वे सदैव कठोर बने रहे।
प्रश्न 3:
द्वविवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है ? स्पष्ट करें?
अथवा
द्ववेदी जी ने ‘शिरीष के फूल’ पाठ में ” शिरीष के माध्यम से कोलाहल और संघर्ष से भरे जीवन में अविचल रहकर जिंदा रहने की सिख दी है। ” इस कथन की सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
उत्तर –
लेखक ने कहा है कि शिरीष वास्तव में अद्भुत अवधूत है। वह किसी भी स्थिति में विचलित नहीं होता। दुख हो या सुख उसने कभी हार नहीं मानी अर्थात् दोनों ही स्थितियों में वह निर्लिप्त रहा। मौसम आया तो खिल गया वरना नहीं। लेकिन खिलने न खिलने की स्थिति से शिरीष कभी नहीं डरा। प्रकृति के नियम से वह भलीभाँति परिचित था। इसलिए चाहे कोलाहल हो या संघर्ष वह जीने की इच्छा मन में पाले रहता है।
प्रश्न 4:
‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ हैं!” ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वचस्व की वतमान सभ्यता के सकट की अोर सकेत किया हैं। कैसे?
उत्तर –
‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!” ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। आज मनुष्य में आत्मबल का अभाव हो गया है। अवधूत सांसारिक मोहमाया से ऊपर उठा हुआ व्यक्ति होता है। शिरीष भी कष्टों के बीच फलता-फूलता है। उसका आत्मबल उसे जीने की प्रेरणा देता है। आजकल मनुष्य आत्मबल से हीन होता जा रहा है। वह मानव-मूल्यों को त्यागकर हिंसा, असत्य आदि आसुरी प्रवृत्तियों को अपना रहा है। आज चारों तरफ तनाव का माहौल बन गया है, परंतु गाँधी जैसा अवधूत लापता है। अब ताकत का प्रदर्शन ही प्रमुख हो गया है।
प्रश्न 5:
कवी (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का ह्रदय एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत करके लेखक ने साहित्य – कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाए।
उत्तर –
कवि या साहित्यकार के लिए अनासक्त योगी जैसी स्थित प्रज्ञता होनी चाहिए क्योंकि इसी के आधार पर वह निष्पक्ष और सार्थक काव्य (साहित्य) की रचना कर सकता है। वह निष्पक्ष भाव से किसी जाति, लिंग, धर्म या विचारधारा विशेष को प्रश्रय न दे। जो कुछ समाज के लिए उपयोग हो सकता है उसी का चित्रण करे। साथ ही उसमें विदग्ध प्रेमी का-सा हृदय भी होना ज़रूरी है। क्योंकि केवल स्थित प्रज्ञ होकर कालजयी साहित्य नहीं रचा जा सकता। यदि मन में वियोग की विदग्ध हृदय की भावना होगी तो कोमल भाव अपने-आप साहित्य में निरूपित होते जाएंगे, इसलिए दोनों स्थितियों का होना अनिवार्य है।
प्रश्न 6:
‘सवग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता हैं, जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी हैं?” पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर –
लेखक का मानना है कि काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। समय परिवर्तनशील है। हर युग में नयी-नयी व्यवस्थाएँ जन्म लेती हैं। नएपन के कारण पुराना अप्रासंगिक हो जाता है और धीरे-धीरे वह मुख्य परिदृश्य से हट जाता है। मनुष्य को चाहिए कि वह बदलती परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को बदल ले। जो मनुष्य सुख-दुख, आशा-निराशा से अनासक्त होकर जीवनयापन करता है व विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेता है, वही दीर्घजीवी होता है। ऐसे व्यक्ति ही प्रगति कर सकते हैं।
प्रश्न 7:
आशय स्पष्ट कीजिए –
- दुरंत प्राणधारा और सवव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की अख बचा पाएँगे। भोले हैं वे।हिलते-डुलते रहो, स्थान बद्रलते रहो, आगे की ओर मुहं किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि सरे।
- जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया , वह भी क्या कवी है ? …. मैं कहता हूँ कि कवी बनना है मेरे दोस्तो, तो फक्कड़ बनो।
- फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं हैं। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई आँगुली हैं। वह इशारा हैं।
उत्तर –
- लेखक कहता है कि काल रूप अग्नि और प्राण रूपी धारा का संघर्ष सदा चलता रहता है। मूर्ख व्यक्ति तो यह समझते हैं कि जहाँ टिके हैं वहीं टिके रहें तो मृत्यु से बच जाएंगे लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है। यदि स्थान परिवर्तन करते रहे अर्थात् जीने के ढंग को बदलते रहे तो जीवन जीना आसान हो जाता है। जीवन को एक ही ढरें पर चलोओगे तो समझो अपना जीवन नीरस हो गया। नीरस जीवन का अर्थ है मर जाना। अतः गतिशीलता ज़रूरी
- लेखक का मानना है कि कवि बनने के लिए फक्कड़ बनना ज़रूरी है। जिस कवि में निरपेक्ष और अनासक्ति भाव नहीं होते वह श्रेष्ठ कवि नहीं बन सकता और जो कवि पहले से लिखी चली आ रही परंपरा को ही काव्य में अपनाता है वह भी कवि नहीं है। कबीर फक्कड़ थे, इसलिए कालजयी कवि बन गए। अतः कवि बनना है तो फक्कड़पने को ग्रहण करो।
- लेखक के कहने का आशय है कि अंतिम परिणाम का अर्थ समाप्त होना नहीं है जो यह समझता है वह निरा बुद्धू है। फल हो या पेड़ वह यही बताते हैं कि संघर्ष की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है। इसी प्रक्रिया से गुजरकर सफलता रूपी परिणाम मिलते हैं।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1:
शिरीष के पुष्प को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ मक की प्रचड़ गरमी में फूलने वाले फूल को ‘शीतपुष्प’ की सज्ञा किस आधार पर दी गयी होगी ?
उत्तर –
लेखक ने शिरीष के पुष्प को ‘शीतपुष्प’ कहा है। ज्येष्ठ माह में भयंकर गरमी होती है, इसके बावजूद शिरीष के पुष्प खिले रहते हैं। गरमी की मार झेलकर भी ये पुष्प ठंडे बने रहते हैं। गरमी के मौसम में खिले ये पुष्प दर्शक को ठंडक का अहसास कराते हैं। ये गरमी में भी शीतलता प्रदान करते हैं। इस विशेषता के कारण ही इसे ‘शीतपुष्प’ की संज्ञा दी गई होगी।
प्रश्न 2:
कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधी जी के व्यक्तित्व की वशेषता बन गए ?
उत्तर –
गांधी जी सदैव अहिंसावादी रहे। दया, धर्म, करुणा, परोपकार, सहिष्णुता आदि भाव उनके व्यक्तित्व की कोमलता को प्रस्तुत करते हैं। वे जीवनभर अहिंसा का संदेश देते रहे लेकिन उनके व्यक्तित्व में कठोर भाव भी थे। कहने का आशय है। कि वे सच्चाई के प्रबल समर्थक थे और जो कोई व्यक्ति उनके सामने झूठ बोलने का प्रयास करता उसका विरोध करते। वे उस पर क्रोध करते। तब वे झूठे व्यक्ति को भला-बुरा भी कहते चाहे वह व्यक्ति कितने ही ऊँचे पद पर क्यों न बैठा हो। उनके लिए सत्य का एक ही मापदंड था दूसरा नहीं। इसी कारण कोमल और कठोर दोनों भाव उनके व्यक्तित्व की विशेषता बन गए।
प्रश्न 3:
आजकल अंतर्राष्टीय बाज़ार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत – से किसान सैग – सब्जी व् अन्न उत्पादन छोड़कर फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे है। इसी मुददे को विषय बनाते हुए वाद – विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 4:
हज़ारीप्रसाद दविवेदी ने इस पथ की तरह ही वनस्पतियों के संदर्भ में कई व्यक्तित्व – व्यंजक ललित निबंध और भी लिखे है -कुटज ,आम फिर बैरा गए ,अशोक के फूल ,देवदारु आदि। शीक्षक की सहायता से इन्हें ढूँढ़िए और पढ़िए ?
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 5:
द्वविवेदी जी की वनस्पतियों में ऐसी रुचि का क्या कारण हो सकता हैं? आज साहित्यिक रचना-फलक पर प्रकृति की उपस्थिति न्यून से न्यून होती जा रही हैं। तब ऐसी रचनाओं का महत्व बढ़ गया हैं। प्रकृति के प्रति आपका द्वष्टिकोण रुचिपूर्ण हैं या उपेक्षामय2 इसका मूल्यांकन करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
भाषा की बात
प्रश्न 1:
‘दस दिन फूले और फिर खखड़-खखड़’-इस लोकोक्ति से मिलते-जुलते कई वाक्यांश पाठ में हैं। उन्हें छाँटकर लिखें।
उत्तर –
ऐसे वाक्यांश निम्नलिखित हैं –
- ऐसे दुमदारों से लैंडूरे भले।
- जो फरा सो झरा।
- जो बरा सो बुताना।
- न ऊधो का लेना, न माधो का देना।
- जमे कि मरे।
- वयमपि कवयः कवयः कवयस्ते कालिदासाद्या ।
काव्य संग्रह: दीपशिखा, यामा,
निहार, नीरजा, रश्मि, सांध्यगीत।
संस्मरण और रेखाचित्र: अतीत के चलचित्र,
स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, मेरा परिवार।
निबंध संग्रह: श्रृंखला की
कड़ियां, आपदा, संकल्पिता, भारतीय संस्कृति के स्वर, क्षणदा।
आलोचना: विभिन्न काव्य संग्रहों की भूमिकाएं, हिंदी का
विवेचनात्मक गद्य।
संपादन: चांद, आधुनिक कवि काव्यमाला आदि।
प्रश्न:
- लेखक कालिदास को श्रेष्ट कवी क्यों मानता है ?
- आम कवि व कालिदास में क्या अंतर हैं?
- ‘शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी”-आशय स्पष्ट करें।
- दुष्यंत के खीझने का क्या कारन था ? अंत में उसे क्या समझ में आया ?
उत्तर –
- लेखक ने कालिदास को श्रेष्ठ कवि माना है क्योंकि कालिदास के शब्दों व अर्थों में सामंजस्य है। वे अनासक्त योगी की तरह स्थिर-प्रज्ञता व विदग्ध प्रेमी का हृदय भी पा चुके थे। श्रेष्ठ कवि के लिए यह गुण आवश्यक है।
- ओम कवि शब्दों की लय, तुक व छंद से संतुष्ट होता है, परंतु विषय की गहराई पर ध्यान नहीं देता है। हालाँकि स्रकालिदास कविता के बाहरी तत्वों में विशेषज्ञ तो थे ही, वे विषय में डूबकर लिखते थे।
- लेखक का मानना है कि शकुंतला सुंदर थी, परंतु देखने वाले की दृष्टि में सौंदर्यबोध होना बहुत जरूरी है। कालिदास की सौंदर्य दृष्टि के कारण ही शकुंतला का सौंदर्य निखरकर आया है। यह कवि की कल्पना का चमत्कार है।
- दुष्यंत ने शकुंतला का चित्र बनाया था, परंतु उन्हें उसमें संपूर्णता नहीं दिखाई दे रही थी। काफी देर बाद उनकी समझ में आया कि शकुंतला के कानों में शिरीष पुष्प नहीं पहनाए थे, गले में मृणाल का हार पहनाना भी शेष था।
प्रश्न 7:
कालिदास सौंदर्य के बाहय आवरण को भेदकर उसके भीतर तक पहुँच सकते थे, दुख हो कि सुख, वे अपना भाव-रस उस अनासक्त कृपीवल की भाँति खींच लेते थे जो निर्दलित ईक्षुदंड से रस निकाल लेता है। कालिदास महान थे, क्योंकि वे अनासक्त रह सके थे। कुछ इसी श्रेणी की अनासक्ति आधुनिक हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत में है। कविवर रवींद्रनाथ में यह अनासक्ति थी। एक जगह उन्होंने लिखा-‘राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही अभ्रभेदी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।” फूल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अँगुली है। वह इशारा है।
प्रश्न:
- कालिदास की सौंदर्य-दूष्टि के बारे में बताइए।
- कालिदास की समानता आधुनिक काल के किन कवियों से दिखाई गाई ?
- रवींद्रनाथ ने राजोद्यान के सिंहद्वार के बारे में क्या लिखा हैं?
- फूलों या पेड़ों से हमें क्या प्रेरणा मिलती हैं?
उत्तर –
- कालिदास की सौंदर्य-दृष्टि सूक्ष्म व संपूर्ण थी। वे सौंदर्य के बाहरी आवरण को भेदकर उसके अंदर के सौंदर्य को प्राप्त करते थे। वे दुख या सुख-दोनों स्थितियों से अपना भाव-रस निकाल लेते थे।
- कालिदास की समानता आधुनिक काल के कवियों सुमित्रानंदन पंत व रवींद्रनाथ टैगोर से दिखाई गई है। इन स में अनासक्त भाव है। तटस्थता के कारण ही ये कविता के साथ न्याय कर पाते हैं।
- रवींद्रनाथ ने एक जगह लिखा है कि राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही गगनचुंबी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।
- फूलों या पेड़ों से हमें जीवन की निरंतरता की प्रेरणा मिलती है। कला की कोई सीमा नहीं होती। पुष्प या पेड़ अपने सौंदर्य से यह बताते हैं कि यह सौंदर्य अंतिम नहीं है। इससे भी अधिक सुंदर हो सकता है।
प्रश्न 8:
शिरीष तरु सचमुच पक्के अवधूत की भाँति मेरे मन में ऐसी तरंगें जगा देता है जो ऊपर की ओर उठती रहती हैं। इस चिलकती धूप में इतना सरस वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाहय परिवर्तन-धूप, वर्षा, आँधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बूढ़ा रह सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ है? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है।
प्रश्न:
- शिरीष के वृक्ष की तुलना अवधूत से क्यों की गई है ? यह वृक्ष लेखक में किस प्रकार की भावना जनता है ?
- चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष हमें क्या प्रेरणा दे रहा हैं?
- गद्यांश में देश के ऊपर के किस बवंडर के गुजरने की ओर संकेत किया गया हैं?
- अपने देश का एक बूढ़ा कौन था ? ऊसे बूढ़े और शिरीष में समानता का आधार लेखक ने क्या मन है ?
उत्तर –
- अवधूत से तात्पर्य अनासक्त योगी से है। जिस तरह योगी कठिन परिस्थितियों में भी मस्त रहता है, उसी प्रकार शिरीष का वृक्ष भयंकर गर्मी, उमस में भी फूला रहता है। यह वृक्ष मनुष्य को हर परिस्थिति में संघर्षशील, जुझारू व सरस बनने की भावना जगाता है।
- चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष हमें प्रेरणा देता है कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए तथा हर परिस्थिति में मस्त रहना चाहिए।
- इस गद्यांश में देश के ऊपर से सांप्रदायिक दंगों, खून-खराबा, मार-पीट, लूटपाट रूपी बवंडर के गुजरने की ओर संकेत किया गया है।
- ‘अपने देश का एक बूढ़ा’ महात्मा गांधी है। दोनों में गजब की सहनशक्ति है। दोनों ही कठिन परिस्थितियों में सहज भाव से रहते हैं। इसी कारण दोनों समान हैं।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (सन्यासी) की तरह क्यों माना है ?
अथवा
शिरीष की तुलना किससे और क्यों की गई हैं?
उत्तर –
कालजयी संन्यासी का अर्थ है हर युग में स्थिर और अवस्थित रहना। वह किसी भी युग में विचलित या विगलित नहीं होता। शिरीष भी कालजयी अवधूत है। वसंत के आगमन के साथ ही लहक जाता है और आषाढ़ तक निश्चित रूप से खिला रहता है। जब उमस हो या तेज़ लू चल रही हो तब भी शिरीष खिला रहता है। उस पर उमस या लू का कोई प्रभाव पड़ता नहीं दिखता। वह अजेयता के मंत्र का प्रचार करता रहता है इसलिए वह कालजयी अवधूत की तरह है।
प्रश्न 2:
“हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती हैं।” प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें?
उत्तर –
हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है। मनुष्य को हृदय की कोमलता बचाने के लिए बाहरी तौर पर कठोर बनना पड़ता है तभी वह विपरीत दशाओं का सामना कर पाता है। शिरीष भी भीषण गरमी की लू को सहन करने के लिए बाहर से कठोर स्वभाव अपनाता है तभी वह भयंकर गरमी, लू आदि को सहन कर पाता है। संत कबीरदास, कालिदास ने भी समाज को उच्चकोटि का साहित्य दिया, परंतु बाहरी तौर पर वे सदैव कठोर बने रहे।
प्रश्न 3:
द्वविवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है ? स्पष्ट करें?
अथवा
द्ववेदी जी ने ‘शिरीष के फूल’ पाठ में ” शिरीष के माध्यम से कोलाहल और संघर्ष से भरे जीवन में अविचल रहकर जिंदा रहने की सिख दी है। ” इस कथन की सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
उत्तर –
लेखक ने कहा है कि शिरीष वास्तव में अद्भुत अवधूत है। वह किसी भी स्थिति में विचलित नहीं होता। दुख हो या सुख उसने कभी हार नहीं मानी अर्थात् दोनों ही स्थितियों में वह निर्लिप्त रहा। मौसम आया तो खिल गया वरना नहीं। लेकिन खिलने न खिलने की स्थिति से शिरीष कभी नहीं डरा। प्रकृति के नियम से वह भलीभाँति परिचित था। इसलिए चाहे कोलाहल हो या संघर्ष वह जीने की इच्छा मन में पाले रहता है।
प्रश्न 4:
‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ हैं!” ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वचस्व की वतमान सभ्यता के सकट की अोर सकेत किया हैं। कैसे?
उत्तर –
‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!” ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। आज मनुष्य में आत्मबल का अभाव हो गया है। अवधूत सांसारिक मोहमाया से ऊपर उठा हुआ व्यक्ति होता है। शिरीष भी कष्टों के बीच फलता-फूलता है। उसका आत्मबल उसे जीने की प्रेरणा देता है। आजकल मनुष्य आत्मबल से हीन होता जा रहा है। वह मानव-मूल्यों को त्यागकर हिंसा, असत्य आदि आसुरी प्रवृत्तियों को अपना रहा है। आज चारों तरफ तनाव का माहौल बन गया है, परंतु गाँधी जैसा अवधूत लापता है। अब ताकत का प्रदर्शन ही प्रमुख हो गया है।
प्रश्न 5:
कवी (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का ह्रदय एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत करके लेखक ने साहित्य – कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाए।
उत्तर –
कवि या साहित्यकार के लिए अनासक्त योगी जैसी स्थित प्रज्ञता होनी चाहिए क्योंकि इसी के आधार पर वह निष्पक्ष और सार्थक काव्य (साहित्य) की रचना कर सकता है। वह निष्पक्ष भाव से किसी जाति, लिंग, धर्म या विचारधारा विशेष को प्रश्रय न दे। जो कुछ समाज के लिए उपयोग हो सकता है उसी का चित्रण करे। साथ ही उसमें विदग्ध प्रेमी का-सा हृदय भी होना ज़रूरी है। क्योंकि केवल स्थित प्रज्ञ होकर कालजयी साहित्य नहीं रचा जा सकता। यदि मन में वियोग की विदग्ध हृदय की भावना होगी तो कोमल भाव अपने-आप साहित्य में निरूपित होते जाएंगे, इसलिए दोनों स्थितियों का होना अनिवार्य है।
प्रश्न 6:
‘सवग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता हैं, जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी हैं?” पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर –
लेखक का मानना है कि काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। समय परिवर्तनशील है। हर युग में नयी-नयी व्यवस्थाएँ जन्म लेती हैं। नएपन के कारण पुराना अप्रासंगिक हो जाता है और धीरे-धीरे वह मुख्य परिदृश्य से हट जाता है। मनुष्य को चाहिए कि वह बदलती परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को बदल ले। जो मनुष्य सुख-दुख, आशा-निराशा से अनासक्त होकर जीवनयापन करता है व विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेता है, वही दीर्घजीवी होता है। ऐसे व्यक्ति ही प्रगति कर सकते हैं।
प्रश्न 7:
आशय स्पष्ट कीजिए –
- दुरंत प्राणधारा और सवव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की अख बचा पाएँगे। भोले हैं वे।हिलते-डुलते रहो, स्थान बद्रलते रहो, आगे की ओर मुहं किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि सरे।
- जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया , वह भी क्या कवी है ? …. मैं कहता हूँ कि कवी बनना है मेरे दोस्तो, तो फक्कड़ बनो।
- फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं हैं। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई आँगुली हैं। वह इशारा हैं।
उत्तर –
- लेखक कहता है कि काल रूप अग्नि और प्राण रूपी धारा का संघर्ष सदा चलता रहता है। मूर्ख व्यक्ति तो यह समझते हैं कि जहाँ टिके हैं वहीं टिके रहें तो मृत्यु से बच जाएंगे लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है। यदि स्थान परिवर्तन करते रहे अर्थात् जीने के ढंग को बदलते रहे तो जीवन जीना आसान हो जाता है। जीवन को एक ही ढरें पर चलोओगे तो समझो अपना जीवन नीरस हो गया। नीरस जीवन का अर्थ है मर जाना। अतः गतिशीलता ज़रूरी
- लेखक का मानना है कि कवि बनने के लिए फक्कड़ बनना ज़रूरी है। जिस कवि में निरपेक्ष और अनासक्ति भाव नहीं होते वह श्रेष्ठ कवि नहीं बन सकता और जो कवि पहले से लिखी चली आ रही परंपरा को ही काव्य में अपनाता है वह भी कवि नहीं है। कबीर फक्कड़ थे, इसलिए कालजयी कवि बन गए। अतः कवि बनना है तो फक्कड़पने को ग्रहण करो।
- लेखक के कहने का आशय है कि अंतिम परिणाम का अर्थ समाप्त होना नहीं है जो यह समझता है वह निरा बुद्धू है। फल हो या पेड़ वह यही बताते हैं कि संघर्ष की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है। इसी प्रक्रिया से गुजरकर सफलता रूपी परिणाम मिलते हैं।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1:
शिरीष के पुष्प को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ मक की प्रचड़ गरमी में फूलने वाले फूल को ‘शीतपुष्प’ की सज्ञा किस आधार पर दी गयी होगी ?
उत्तर –
लेखक ने शिरीष के पुष्प को ‘शीतपुष्प’ कहा है। ज्येष्ठ माह में भयंकर गरमी होती है, इसके बावजूद शिरीष के पुष्प खिले रहते हैं। गरमी की मार झेलकर भी ये पुष्प ठंडे बने रहते हैं। गरमी के मौसम में खिले ये पुष्प दर्शक को ठंडक का अहसास कराते हैं। ये गरमी में भी शीतलता प्रदान करते हैं। इस विशेषता के कारण ही इसे ‘शीतपुष्प’ की संज्ञा दी गई होगी।
प्रश्न 2:
कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधी जी के व्यक्तित्व की वशेषता बन गए ?
उत्तर –
गांधी जी सदैव अहिंसावादी रहे। दया, धर्म, करुणा, परोपकार, सहिष्णुता आदि भाव उनके व्यक्तित्व की कोमलता को प्रस्तुत करते हैं। वे जीवनभर अहिंसा का संदेश देते रहे लेकिन उनके व्यक्तित्व में कठोर भाव भी थे। कहने का आशय है। कि वे सच्चाई के प्रबल समर्थक थे और जो कोई व्यक्ति उनके सामने झूठ बोलने का प्रयास करता उसका विरोध करते। वे उस पर क्रोध करते। तब वे झूठे व्यक्ति को भला-बुरा भी कहते चाहे वह व्यक्ति कितने ही ऊँचे पद पर क्यों न बैठा हो। उनके लिए सत्य का एक ही मापदंड था दूसरा नहीं। इसी कारण कोमल और कठोर दोनों भाव उनके व्यक्तित्व की विशेषता बन गए।
प्रश्न 3:
आजकल अंतर्राष्टीय बाज़ार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत – से किसान सैग – सब्जी व् अन्न उत्पादन छोड़कर फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे है। इसी मुददे को विषय बनाते हुए वाद – विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 4:
हज़ारीप्रसाद दविवेदी ने इस पथ की तरह ही वनस्पतियों के संदर्भ में कई व्यक्तित्व – व्यंजक ललित निबंध और भी लिखे है -कुटज ,आम फिर बैरा गए ,अशोक के फूल ,देवदारु आदि। शीक्षक की सहायता से इन्हें ढूँढ़िए और पढ़िए ?
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 5:
द्वविवेदी जी की वनस्पतियों में ऐसी रुचि का क्या कारण हो सकता हैं? आज साहित्यिक रचना-फलक पर प्रकृति की उपस्थिति न्यून से न्यून होती जा रही हैं। तब ऐसी रचनाओं का महत्व बढ़ गया हैं। प्रकृति के प्रति आपका द्वष्टिकोण रुचिपूर्ण हैं या उपेक्षामय2 इसका मूल्यांकन करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
भाषा की बात
प्रश्न 1:
‘दस दिन फूले और फिर खखड़-खखड़’-इस लोकोक्ति से मिलते-जुलते कई वाक्यांश पाठ में हैं। उन्हें छाँटकर लिखें।
उत्तर –
ऐसे वाक्यांश निम्नलिखित हैं –
- ऐसे दुमदारों से लैंडूरे भले।
- जो फरा सो झरा।
- जो बरा सो बुताना।
- न ऊधो का लेना, न माधो का देना।
- जमे कि मरे।
- वयमपि कवयः कवयः कवयस्ते कालिदासाद्या ।
साहित्यिक
विशेषताएं: महादेवी वर्मा जी आधुनिक हिंदी साहित्य की मीरा मानी जाती हैं। वे छायावाद की महान कवयित्री हैं। लेकिन काव्य के साथ-साथ गद्य में भी उनका महान
योगदान रहा है। वे एक साहित्य
सेवी तथा समाजसेवी दोनों रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका पद्य साहित्य जितना अधिक आत्म केंद्रित है,
गद्य साहित्य उतना ही समाज केंद्रित है। महादेवी वर्मा के गद्य साहित्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
समाज का यथार्थ चित्रण: महादेवी वर्मा जी
ने अपने गद्य साहित्य समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण किया है। काव्य में जहां उन्होंने अपने सुख-दुख, वेदना आदि का
चित्रण किया है। वहीं गद्य में
समाज के सुख-दुख, गरीबी, शोषण आदि का यथार्थ वर्णन किया है। इनके रेखा चित्र एवं संस्मरणों में समाज में फैली
गरीबी, कुरीतियां, जाति-पाति, भेदभाव, धर्म, संप्रदाय आदि विषयों का यथार्थ के
धरातल पर अंकन हुआ है। वे एक समाज सेवी
लेखिका थी। जो साहित्य सेवा
के साथ-साथ समाज का उद्धार करने में भी
लगी रही।
निम्न वर्ग के प्रति सहानुभूति: महादेवी जी एक
कोमल ह्रदय लेखिका थी। उनके जीवन पर
महात्मा बुध, विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ आदि के विचारों का गहन प्रभाव पड़ा। जिसके कारण उनकी निम्न वर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति
रही है। उनके गद्य साहित्य
में समाज के पिछड़े वर्ग के अत्यंत मार्मिक चित्र चित्रित हैं । उन्होंने समाज के उच्च वर्ग द्वारा उपेक्षित कहे जाने
वाले लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की है। यही कारण है कि उन्होंने अपने गद्य साहित्य में अधिकांश पात्र निम्न वर्ग से
ग्रहण किए हैं।
प्रश्न:
- लेखक कालिदास को श्रेष्ट कवी क्यों मानता है ?
- आम कवि व कालिदास में क्या अंतर हैं?
- ‘शकुंतला कालिदास के हृदय से निकली थी”-आशय स्पष्ट करें।
- दुष्यंत के खीझने का क्या कारन था ? अंत में उसे क्या समझ में आया ?
उत्तर –
- लेखक ने कालिदास को श्रेष्ठ कवि माना है क्योंकि कालिदास के शब्दों व अर्थों में सामंजस्य है। वे अनासक्त योगी की तरह स्थिर-प्रज्ञता व विदग्ध प्रेमी का हृदय भी पा चुके थे। श्रेष्ठ कवि के लिए यह गुण आवश्यक है।
- ओम कवि शब्दों की लय, तुक व छंद से संतुष्ट होता है, परंतु विषय की गहराई पर ध्यान नहीं देता है। हालाँकि स्रकालिदास कविता के बाहरी तत्वों में विशेषज्ञ तो थे ही, वे विषय में डूबकर लिखते थे।
- लेखक का मानना है कि शकुंतला सुंदर थी, परंतु देखने वाले की दृष्टि में सौंदर्यबोध होना बहुत जरूरी है। कालिदास की सौंदर्य दृष्टि के कारण ही शकुंतला का सौंदर्य निखरकर आया है। यह कवि की कल्पना का चमत्कार है।
- दुष्यंत ने शकुंतला का चित्र बनाया था, परंतु उन्हें उसमें संपूर्णता नहीं दिखाई दे रही थी। काफी देर बाद उनकी समझ में आया कि शकुंतला के कानों में शिरीष पुष्प नहीं पहनाए थे, गले में मृणाल का हार पहनाना भी शेष था।
प्रश्न 7:
कालिदास सौंदर्य के बाहय आवरण को भेदकर उसके भीतर तक पहुँच सकते थे, दुख हो कि सुख, वे अपना भाव-रस उस अनासक्त कृपीवल की भाँति खींच लेते थे जो निर्दलित ईक्षुदंड से रस निकाल लेता है। कालिदास महान थे, क्योंकि वे अनासक्त रह सके थे। कुछ इसी श्रेणी की अनासक्ति आधुनिक हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत में है। कविवर रवींद्रनाथ में यह अनासक्ति थी। एक जगह उन्होंने लिखा-‘राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही अभ्रभेदी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।” फूल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अँगुली है। वह इशारा है।
प्रश्न:
- कालिदास की सौंदर्य-दूष्टि के बारे में बताइए।
- कालिदास की समानता आधुनिक काल के किन कवियों से दिखाई गाई ?
- रवींद्रनाथ ने राजोद्यान के सिंहद्वार के बारे में क्या लिखा हैं?
- फूलों या पेड़ों से हमें क्या प्रेरणा मिलती हैं?
उत्तर –
- कालिदास की सौंदर्य-दृष्टि सूक्ष्म व संपूर्ण थी। वे सौंदर्य के बाहरी आवरण को भेदकर उसके अंदर के सौंदर्य को प्राप्त करते थे। वे दुख या सुख-दोनों स्थितियों से अपना भाव-रस निकाल लेते थे।
- कालिदास की समानता आधुनिक काल के कवियों सुमित्रानंदन पंत व रवींद्रनाथ टैगोर से दिखाई गई है। इन स में अनासक्त भाव है। तटस्थता के कारण ही ये कविता के साथ न्याय कर पाते हैं।
- रवींद्रनाथ ने एक जगह लिखा है कि राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही गगनचुंबी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।
- फूलों या पेड़ों से हमें जीवन की निरंतरता की प्रेरणा मिलती है। कला की कोई सीमा नहीं होती। पुष्प या पेड़ अपने सौंदर्य से यह बताते हैं कि यह सौंदर्य अंतिम नहीं है। इससे भी अधिक सुंदर हो सकता है।
प्रश्न 8:
शिरीष तरु सचमुच पक्के अवधूत की भाँति मेरे मन में ऐसी तरंगें जगा देता है जो ऊपर की ओर उठती रहती हैं। इस चिलकती धूप में इतना सरस वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाहय परिवर्तन-धूप, वर्षा, आँधी, लू-अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बूढ़ा रह सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ है? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है।
प्रश्न:
- शिरीष के वृक्ष की तुलना अवधूत से क्यों की गई है ? यह वृक्ष लेखक में किस प्रकार की भावना जनता है ?
- चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष हमें क्या प्रेरणा दे रहा हैं?
- गद्यांश में देश के ऊपर के किस बवंडर के गुजरने की ओर संकेत किया गया हैं?
- अपने देश का एक बूढ़ा कौन था ? ऊसे बूढ़े और शिरीष में समानता का आधार लेखक ने क्या मन है ?
उत्तर –
- अवधूत से तात्पर्य अनासक्त योगी से है। जिस तरह योगी कठिन परिस्थितियों में भी मस्त रहता है, उसी प्रकार शिरीष का वृक्ष भयंकर गर्मी, उमस में भी फूला रहता है। यह वृक्ष मनुष्य को हर परिस्थिति में संघर्षशील, जुझारू व सरस बनने की भावना जगाता है।
- चिलकती धूप में भी सरस रहने वाला शिरीष हमें प्रेरणा देता है कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए तथा हर परिस्थिति में मस्त रहना चाहिए।
- इस गद्यांश में देश के ऊपर से सांप्रदायिक दंगों, खून-खराबा, मार-पीट, लूटपाट रूपी बवंडर के गुजरने की ओर संकेत किया गया है।
- ‘अपने देश का एक बूढ़ा’ महात्मा गांधी है। दोनों में गजब की सहनशक्ति है। दोनों ही कठिन परिस्थितियों में सहज भाव से रहते हैं। इसी कारण दोनों समान हैं।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (सन्यासी) की तरह क्यों माना है ?
अथवा
शिरीष की तुलना किससे और क्यों की गई हैं?
उत्तर –
कालजयी संन्यासी का अर्थ है हर युग में स्थिर और अवस्थित रहना। वह किसी भी युग में विचलित या विगलित नहीं होता। शिरीष भी कालजयी अवधूत है। वसंत के आगमन के साथ ही लहक जाता है और आषाढ़ तक निश्चित रूप से खिला रहता है। जब उमस हो या तेज़ लू चल रही हो तब भी शिरीष खिला रहता है। उस पर उमस या लू का कोई प्रभाव पड़ता नहीं दिखता। वह अजेयता के मंत्र का प्रचार करता रहता है इसलिए वह कालजयी अवधूत की तरह है।
प्रश्न 2:
“हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती हैं।” प्रस्तुत पाठ के आधार पर स्पष्ट करें?
उत्तर –
हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है। मनुष्य को हृदय की कोमलता बचाने के लिए बाहरी तौर पर कठोर बनना पड़ता है तभी वह विपरीत दशाओं का सामना कर पाता है। शिरीष भी भीषण गरमी की लू को सहन करने के लिए बाहर से कठोर स्वभाव अपनाता है तभी वह भयंकर गरमी, लू आदि को सहन कर पाता है। संत कबीरदास, कालिदास ने भी समाज को उच्चकोटि का साहित्य दिया, परंतु बाहरी तौर पर वे सदैव कठोर बने रहे।
प्रश्न 3:
द्वविवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है ? स्पष्ट करें?
अथवा
द्ववेदी जी ने ‘शिरीष के फूल’ पाठ में ” शिरीष के माध्यम से कोलाहल और संघर्ष से भरे जीवन में अविचल रहकर जिंदा रहने की सिख दी है। ” इस कथन की सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
उत्तर –
लेखक ने कहा है कि शिरीष वास्तव में अद्भुत अवधूत है। वह किसी भी स्थिति में विचलित नहीं होता। दुख हो या सुख उसने कभी हार नहीं मानी अर्थात् दोनों ही स्थितियों में वह निर्लिप्त रहा। मौसम आया तो खिल गया वरना नहीं। लेकिन खिलने न खिलने की स्थिति से शिरीष कभी नहीं डरा। प्रकृति के नियम से वह भलीभाँति परिचित था। इसलिए चाहे कोलाहल हो या संघर्ष वह जीने की इच्छा मन में पाले रहता है।
प्रश्न 4:
‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ हैं!” ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वचस्व की वतमान सभ्यता के सकट की अोर सकेत किया हैं। कैसे?
उत्तर –
‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!” ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। आज मनुष्य में आत्मबल का अभाव हो गया है। अवधूत सांसारिक मोहमाया से ऊपर उठा हुआ व्यक्ति होता है। शिरीष भी कष्टों के बीच फलता-फूलता है। उसका आत्मबल उसे जीने की प्रेरणा देता है। आजकल मनुष्य आत्मबल से हीन होता जा रहा है। वह मानव-मूल्यों को त्यागकर हिंसा, असत्य आदि आसुरी प्रवृत्तियों को अपना रहा है। आज चारों तरफ तनाव का माहौल बन गया है, परंतु गाँधी जैसा अवधूत लापता है। अब ताकत का प्रदर्शन ही प्रमुख हो गया है।
प्रश्न 5:
कवी (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का ह्रदय एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत करके लेखक ने साहित्य – कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाए।
उत्तर –
कवि या साहित्यकार के लिए अनासक्त योगी जैसी स्थित प्रज्ञता होनी चाहिए क्योंकि इसी के आधार पर वह निष्पक्ष और सार्थक काव्य (साहित्य) की रचना कर सकता है। वह निष्पक्ष भाव से किसी जाति, लिंग, धर्म या विचारधारा विशेष को प्रश्रय न दे। जो कुछ समाज के लिए उपयोग हो सकता है उसी का चित्रण करे। साथ ही उसमें विदग्ध प्रेमी का-सा हृदय भी होना ज़रूरी है। क्योंकि केवल स्थित प्रज्ञ होकर कालजयी साहित्य नहीं रचा जा सकता। यदि मन में वियोग की विदग्ध हृदय की भावना होगी तो कोमल भाव अपने-आप साहित्य में निरूपित होते जाएंगे, इसलिए दोनों स्थितियों का होना अनिवार्य है।
प्रश्न 6:
‘सवग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता हैं, जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी हैं?” पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर –
लेखक का मानना है कि काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। समय परिवर्तनशील है। हर युग में नयी-नयी व्यवस्थाएँ जन्म लेती हैं। नएपन के कारण पुराना अप्रासंगिक हो जाता है और धीरे-धीरे वह मुख्य परिदृश्य से हट जाता है। मनुष्य को चाहिए कि वह बदलती परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को बदल ले। जो मनुष्य सुख-दुख, आशा-निराशा से अनासक्त होकर जीवनयापन करता है व विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेता है, वही दीर्घजीवी होता है। ऐसे व्यक्ति ही प्रगति कर सकते हैं।
प्रश्न 7:
आशय स्पष्ट कीजिए –
- दुरंत प्राणधारा और सवव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की अख बचा पाएँगे। भोले हैं वे।हिलते-डुलते रहो, स्थान बद्रलते रहो, आगे की ओर मुहं किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि सरे।
- जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया , वह भी क्या कवी है ? …. मैं कहता हूँ कि कवी बनना है मेरे दोस्तो, तो फक्कड़ बनो।
- फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं हैं। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई आँगुली हैं। वह इशारा हैं।
उत्तर –
- लेखक कहता है कि काल रूप अग्नि और प्राण रूपी धारा का संघर्ष सदा चलता रहता है। मूर्ख व्यक्ति तो यह समझते हैं कि जहाँ टिके हैं वहीं टिके रहें तो मृत्यु से बच जाएंगे लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है। यदि स्थान परिवर्तन करते रहे अर्थात् जीने के ढंग को बदलते रहे तो जीवन जीना आसान हो जाता है। जीवन को एक ही ढरें पर चलोओगे तो समझो अपना जीवन नीरस हो गया। नीरस जीवन का अर्थ है मर जाना। अतः गतिशीलता ज़रूरी
- लेखक का मानना है कि कवि बनने के लिए फक्कड़ बनना ज़रूरी है। जिस कवि में निरपेक्ष और अनासक्ति भाव नहीं होते वह श्रेष्ठ कवि नहीं बन सकता और जो कवि पहले से लिखी चली आ रही परंपरा को ही काव्य में अपनाता है वह भी कवि नहीं है। कबीर फक्कड़ थे, इसलिए कालजयी कवि बन गए। अतः कवि बनना है तो फक्कड़पने को ग्रहण करो।
- लेखक के कहने का आशय है कि अंतिम परिणाम का अर्थ समाप्त होना नहीं है जो यह समझता है वह निरा बुद्धू है। फल हो या पेड़ वह यही बताते हैं कि संघर्ष की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है। इसी प्रक्रिया से गुजरकर सफलता रूपी परिणाम मिलते हैं।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1:
शिरीष के पुष्प को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ मक की प्रचड़ गरमी में फूलने वाले फूल को ‘शीतपुष्प’ की सज्ञा किस आधार पर दी गयी होगी ?
उत्तर –
लेखक ने शिरीष के पुष्प को ‘शीतपुष्प’ कहा है। ज्येष्ठ माह में भयंकर गरमी होती है, इसके बावजूद शिरीष के पुष्प खिले रहते हैं। गरमी की मार झेलकर भी ये पुष्प ठंडे बने रहते हैं। गरमी के मौसम में खिले ये पुष्प दर्शक को ठंडक का अहसास कराते हैं। ये गरमी में भी शीतलता प्रदान करते हैं। इस विशेषता के कारण ही इसे ‘शीतपुष्प’ की संज्ञा दी गई होगी।
प्रश्न 2:
कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधी जी के व्यक्तित्व की वशेषता बन गए ?
उत्तर –
गांधी जी सदैव अहिंसावादी रहे। दया, धर्म, करुणा, परोपकार, सहिष्णुता आदि भाव उनके व्यक्तित्व की कोमलता को प्रस्तुत करते हैं। वे जीवनभर अहिंसा का संदेश देते रहे लेकिन उनके व्यक्तित्व में कठोर भाव भी थे। कहने का आशय है। कि वे सच्चाई के प्रबल समर्थक थे और जो कोई व्यक्ति उनके सामने झूठ बोलने का प्रयास करता उसका विरोध करते। वे उस पर क्रोध करते। तब वे झूठे व्यक्ति को भला-बुरा भी कहते चाहे वह व्यक्ति कितने ही ऊँचे पद पर क्यों न बैठा हो। उनके लिए सत्य का एक ही मापदंड था दूसरा नहीं। इसी कारण कोमल और कठोर दोनों भाव उनके व्यक्तित्व की विशेषता बन गए।
प्रश्न 3:
आजकल अंतर्राष्टीय बाज़ार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत – से किसान सैग – सब्जी व् अन्न उत्पादन छोड़कर फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे है। इसी मुददे को विषय बनाते हुए वाद – विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 4:
हज़ारीप्रसाद दविवेदी ने इस पथ की तरह ही वनस्पतियों के संदर्भ में कई व्यक्तित्व – व्यंजक ललित निबंध और भी लिखे है -कुटज ,आम फिर बैरा गए ,अशोक के फूल ,देवदारु आदि। शीक्षक की सहायता से इन्हें ढूँढ़िए और पढ़िए ?
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 5:
द्वविवेदी जी की वनस्पतियों में ऐसी रुचि का क्या कारण हो सकता हैं? आज साहित्यिक रचना-फलक पर प्रकृति की उपस्थिति न्यून से न्यून होती जा रही हैं। तब ऐसी रचनाओं का महत्व बढ़ गया हैं। प्रकृति के प्रति आपका द्वष्टिकोण रुचिपूर्ण हैं या उपेक्षामय2 इसका मूल्यांकन करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।
भाषा की बात
प्रश्न 1:
‘दस दिन फूले और फिर खखड़-खखड़’-इस लोकोक्ति से मिलते-जुलते कई वाक्यांश पाठ में हैं। उन्हें छाँटकर लिखें।
उत्तर –
ऐसे वाक्यांश निम्नलिखित हैं –
- ऐसे दुमदारों से लैंडूरे भले।
- जो फरा सो झरा।
- जो बरा सो बुताना।
- न ऊधो का लेना, न माधो का देना।
- जमे कि मरे।
- वयमपि कवयः कवयः कवयस्ते कालिदासाद्या ।
मानवेतर प्राणियों के प्रति प्रेम भावना: महादेवी जी केवल मानव प्रेमी ही नहीं थी बल्कि अन्य प्राणियों से भी उनका गहरा
लगाव था। उन्होंने अपने घर
में भी कुत्ते, बिल्ली, गाय, नेवला आदि को पाला हुआ था। इनके रेखाचित्र और संस्मरण में इन मानवेतर प्राणियों
के प्रति इनका गहन प्रेम और संवेदना झंकृत होती है।
करुणा एवं प्रेम भावना का चित्रण: महादेवी वर्मा जी
के गद्य साहित्य की मूल संवेदना करुणा एवं प्रेम है। इनके साहित्य पर बुद्ध की करुणा और दुखवाद का गहरा
प्रभाव पड़ा है। यही कारण है कि
इनके गद्य साहित्य में मानव एवं मानवेतर प्राणियों के प्रति करुणा एवं प्रेम भावना
अत्यंत सजीव हो उठी है।
समाज सुधार की भावना: महादेवी जी एक
समाजसेवी भावना से ओत-प्रोत महिला थी। उनके जीवन पर महात्मा बुद्ध, विवेकानंद आदि के विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा। जिसके कारण उनकी वृत्ति समाज सेवा की ओर उन्मुख हो
गई। उन्होंने अपने
साहित्य के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों, विसंगतियों, विडंबना आदि को दूर करने
का भरपूर प्रयास किया। उन्होंने अपने
गद्य साहित्य में नारी शिक्षा का भरपूर समर्थन किया तथा नारी शोषण, बाल विवाह आदि
बुराइयों का खुलकर खंडन किया है।
वात्सल्य भावना का चित्रण: महादेवी वर्मा के
गद्य साहित्य में वात्सल्य रस का अनूठा चित्रण हुआ है। उनका मानव ही नहीं मानवेतर प्राणियों से भी वत्सल
प्रेम था। वे अपने घर में
पाले हुए कुत्ते, बिल्लियों, गाय, नेवला आदि प्राणियों की एक मां के समान सेवा
करती थी। यही प्रेम और सेवा
भावना उनके रेखाचित्र और संस्मरण में भी अभिव्यक्त हुआ है। लूसी नामक कुत्तिया की मृत्यु होने पर लेखिका एक माँ
की तरह रो पड़ी थी।
भाषा शैली: महादेवी वर्मा जी
एक श्रेष्ठ कवयित्री होने के साथ-साथ कुशल लेखिका भी थी। काव्य के साथ-साथ उनका गद्य साहित्य अत्यंत उत्कृष्ट
है। इनके गद्य साहित्य
की भाषा तत्सम प्रधान शब्दावली युक्त खड़ी
बोली है, जिसमें अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, तद्भव तथा साधारण बोलचाल की भाषा के
शब्दों का समायोजन हुआ है। इनकी भाषा अत्यंत सरल और प्रभावपूर्ण है। महादेवी वर्मा ने अपने निबंधों, रेखाचित्र और
संस्मरण में अनेक शैलियों को स्थान दिया है। इनके गद्य साहित्य में भावनात्मक, समीक्षात्मक, व्यंगात्मक आदि अनेक शैलियों
का रूप दृष्टिगोचर होता है। मुहावरों और लोकोक्तियों के कारण इनकी भाषा में रोचकता उत्पन्न हो गई है। कहीं-कहीं अलंकार का भी प्रयोग हुआ है। वहां इनकी भाषा में अधिक प्रभाव प्रवाहमयी हो गई है। इनकी भाषा पाठक के ह्रदय पर अमिट छाप छोड़ती है।
वस्तुतः महादेवी वर्मा जी प्रतिष्ठित कवयित्री होने के साथ-साथ महान लेखिका भी थी। उनका साहित्य हिंदी साहित्य में विशेष स्थान रखता है।
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