आलोक धन्वा का जीवन परिचय | Alok Dhanwa Biography in Hindi
आलोक धन्वा का जन्म 2 जुलाई 1948 को बिहार के मुंगेर जनपद के अंतर्गत ‘बेलबिहमा' गाँव में हुआ था।
आलोक को हिन्दी साहित्य के उन कवियों में गिना जाता है जिन्होंने कविता को एक नई
पहचान दी। उनकी कविताएं सामान्य व्यक्ति के जीवन से होकर गुजरती हैं।
‘भागी हुई लड़कियाँ', 'जनता का आदमी', 'गोली दागो पोस्टर', 'कपड़े के जूते' और 'ब्रूनों की बेटियाँ' व ‘कपड़े के जूते‘ हिन्दी की चर्चित प्रसिद्ध कविताएँ हैं।
आपकी पहली कविता '1972' में 'वाम' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। उसी वर्ष 'फ़िलहाल' में गोली दागो पोस्टर' कविता प्रकाशित हुई थी। आपकी कविताओं के अनुवाद अंग्रेज़ी और रूसी भाषा में हुए हैं।
आपके कविता संग्रह 'दुनिया रोज बनती है' ने जनमानस को बहुत प्रभावित किया और यह साहित्य-जगत में चर्चित रहा।
अपने बारे में धन्वाजी कहते हैं, "मैं एक इत्तफाकन कवि हूँ। मैं मुंगेर के एक गांव बेलबिहमा में पैदा हुआ, जो चारों तरफ छोटे पहाड़ों से उतरनेवाली छोटी-छोटी नदियों से घिरा है। जब मुंगेर के जिला स्कूल में मुझे दाखिला मिला, तो यहाँ भी गंगा से नजदीकी बनी रही। ऐसे प्राकृतिक वातावरण में कविताओं की रचना करना तो सहज स्वाभाविक बात है। यहां एक पुस्तकालय है श्रीकृष्ण सेवा सदन, जहां बहुत छोटी उम्र से ही मैं बैठने लगा और भिन्न-भिन्न साहित्यकारों की पुस्तकें पढ़ने लगा। मूलत: विज्ञान का छात्र होने के बावजूद साहित्य से लगाव हो गया। दरअसल समाज और प्रकृति दोनों से कवियों को प्रेरणा मिलती है।"
साहित्यिक कृतियाँ
कविता संग्रह : दुनिया रोज बनती है
सम्मान :
पहल सम्मान, नागार्जुन सम्मान, फ़िराक गोरखपुरी सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान, भवानी प्रसाद मिश्र स्मृति सम्मान।
साहित्यिक विशेषताएं :
आलोक धन्वा समकालीन
काव्य जगत के विशेष हस्ताक्षर हैं। वे एक संवेदनशील व्यक्ति हैं। इनका साहित्य
समकालीन समाज की संवेदना से ओतप्रोत है। ये सातवें, आठवें दशक के जन आंदोलनों से अत्यंत प्रभावित हुए इसलिए इनके
काव्य में समाज का यथार्थ चित्रण मिलता है। इनके साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का
भाव प्रमुखता से झलकता है।
आलोक धन्वा ने अपने
साहित्य में भारतीय संस्कृति एवं समाज का अनूठा चित्रांकन प्रस्तुत किया है। इनके
मन में अपने देश के प्रति गौरव की भावना है। यही गौरवपूर्ण भावना इनके साहित्य में झंकृत
होती है।
आलोक धन्वा बाल
मनोविज्ञान के कवि है। इन्होंने भागदौड़ की जिंदगी में उपेक्षित बालमन को जांच-परखकर उसका
अनूठा चित्रण किया है। ‘दुनिया रोज़ बनती है’ काव्य संग्रह की ‘पतंग’ कविता में बाल सुलभ चेष्टाओं एवं क्रियाकलापों का
सजीव एवं मनोहारी चित्रण हुआ है।
भाषा शैली : आलोक धन्वा अपने
साहित्य में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग करते हैं। इसके साथ-साथ संस्कृत
के तत्सम, तद्भव,
साधारण बोलचाल और विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।
इनके काव्य में कोमलकान्त पदावली का भी सजीव चित्रण हुआ है। इनकी अभिधात्मक शैली
भावपूर्ण है। प्रसाद गुण के साथ-साथ माधुर्य गुण का भी समायोजन हुआ
है। इनकी भाषा शैली में अनुप्रास, स्वरमैत्री, पदमैत्री, यमक,रूपक और मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग
हुआ है।
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