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बहुत से पत्थर पड़े हैं |
बहुत से पत्थर पड़े हैं
बहुत से पत्थर पड़े हैं पृथ्वी पर
कुछ तो समुद्री दहाड़ तक सुने हुए हैं
कुछ ने सुनी है सिर्फ बारिश की आवाजें
बहुत से ऐसी जगह पड़े हैं
जहां पानी की आवाज ही नहीं जाती
तपस्वियों की तरह हमसे बहुत दूर
ऐसे भी पत्थर हैं
जिन्होंने सिर्फ गिरती बर्फ की
गुम होती हुई आवाज सुनी है
हमारे चारों ओर बिखरी हैं नुकीली ठोकरें
जिन्होंने न पानी की आवाजें सुनी है न बर्फ की
खून की आवाजों के अलावा
पानी की आवाज के बिना जो पत्थर गुजरे हैं
वे मलबे और दल-दल में चुभे हुए होंगे कहीं
दिल पत्थरों पर से गुजरी होगी नदी
उन्होंने अगर पानी से मिलाई होगी अपनी आवाज
तो रेत हो चुके होंगे
और कछारों में बगुलो संग बगुले बनकर उड़ रहे होंगे ।
अगर वे नदी मार्गों से अलग छिटके पड़े हैं
वर्षा की झड़ियों से भी अछूत कहीं
तो पानी के स्पर्श और उसकी आवाजों के लिए
तड़प रहे होंगे
अपने स्थिर आकार में ।
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