Atamnirbhar Haryana/New way for atamnirbhar Haryana/आत्मनिर्भर हरियाणा

 

आत्मनिर्भर हरियाणा

Atamnirbhar Haryana/New way for atamnirbhar Haryana/आत्मनिर्भर हरियाणा 

हर व्यक्ति के लिए आत्मनिर्भरता ही सबसे बड़ा और अच्छा गुण होती है। इसके साथ ही यह उसके लिए बड़ा सहारा भी बनती है। यदि व्यक्ति आत्मनिर्भर रहेगा तो उसको किसी दूसरे की बहुत ही कम जरूरत पड़ेगी और वह खुद बड़ी से बड़ी मुश्किल का आसानी से मुकाबला कर सकता है। आत्मनिर्भर होना जितना जरूर व्यक्ति के लिए है उतना ही जरूरी किसी एक राज्य या देश के विकास के लिए भी है। जब हम आत्मनिर्भरता की बात करते हैं तो उसमें आत्मविश्वास, स्वावलंबन, स्वदेशी जैसे भारतीय संस्कार स्वत: ही आ जाते है।

अगर हम हरियाणा के भौगोलिक परिस्थितियों पर विचार करें तो 44,212 वर्ग किलोमीटर में विस्तारित 2,53,51,462 जनसंख्या वाला राज्य 1 नवंबर 1966 से ही उन्नति के पथ पर निरंतर अग्रसर है। वर्तमान आंकड़ों के अनुसार यहां की साक्षरता दर 75.55% है। प्रशासनिक दृष्टि से हरियाणा राज्य 22 जिलों, 140 खंडों तथा 7356 गांवों में बटा हुआ है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एन.सी.आर.) के निकट होने के कारण तथा सामाजिक सुरक्षा व प्रशासनिक कौशल के प्रभाव से हरियाणा में निवेश के लिए उपयुक्त माहौल है। वर्तमान में गुडगांव, धारूहेड़ा, रेवाड़ी, फरीदाबाद आदि नगर औद्योगिक नगरों में परिवर्तित हो चुके हैं। जिसमें कार, मोटरसाइकिल, ट्रैक्टर तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के वाणिज्य कार्यालय स्थापित है। हरियाणा इस समय भारत में 4.9% की हिस्सेदारी के साथ निर्यात योगदान के मामले में 6वें स्थान पर है। निर्यात किए जाने वाले शीर्ष उत्पादों में कृषि उपकरण, मशीनरी और कलपुर्जे, चावल, गवारगम शामिल हैं। हरियाणा सॉफ्टवेयर का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। हरियाणा का केंद्रीय पूल में खाद्यान्न में भी बड़ा योगदान है। भारत से बासमती चावल का 60% निर्यात हरियाणा से होता है।

आत्मनिर्भर हरियाणा (आगे का मार्ग)

 आत्मनिर्भर हरियाणा के मार्ग को प्रशस्त करने के लिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि हम वर्तमान में प्रशासनिक स्तर पर चल रहे टॉप-डाउन मॉडल की अपेक्षाविकेंद्रीकरणतथास्थानीयकरणपर जोर दें। हम अपने आंतरिक निवेश संसाधन के साथ-साथ बाहरी मदद भी ले सकते हैं। हरियाणा के स्थानीय ब्रांड जो अपने-अपने क्षेत्र में उम्दा कार्य कर रहे हैं। उनको और ज्यादा प्रोत्साहित करके वैश्विक स्तर पर पहुंच बनाने में प्रशासनिक, वित्तीय वातावरण बनाने की दिशा में सरकार सहयोगी की भूमिका में अपना रोल अदा करें। इसके लिए अगर वर्तमान में चल रही पॉलिसियों में संशोधन करना पड़े तो उसके लिए भी सरकार को पहल करनी चाहिए।

आत्मनिर्भर हरियाणा के प्रोत्साहन हेतु कुछ विशेष बिंदु :

 (1)ज्ञान आधारित उद्योग

 (2) दवा निर्माण क्षेत्र

 (3) इवेंट मैनेजमेंट, मनोरंजन आधारित सेवाएं

 (4) बागवानी और अन्य मूल्य संवर्धन इकाइयाँ 

 (5) कृषि, डेयरी और खाद्य प्रोसेसिंग जोन

 (6) स्वस्थ जीवन शैली आधारित पर्यटन उद्योग

 (7) कचरा निपटान एवं पुन: नवीनीकरण सम्बन्धी उद्योग

 (8) सांस्कृतिक एवं धार्मिक पर्यटन

 (9) आधारभूत संरचना संबंधी विकास

 (10) पूर्व स्थापित उद्योगों की क्षमता में विकास

 (11)  नीतिगत सुधार करना एवं पॉलिसी में स्थायित्व


(1)ज्ञान आधारित उद्योग

 सोनीपत में स्थित एजुकेशन सिटी को ज्ञान आधारित सिटी में परिवर्तन किया जा सकता है जहाँ रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए एक बेहतर माहौल तैयार हो सके। आयुर्वेद औषधियों और उनके उपयोग के मॉडल पर अनुसंधान करना ताकि उनको वैश्विक स्वीकार्यता मिल सके। इसके साथ साथ फार्मास्यूटिकल्स, बायोटेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक्स,कंप्यूटर समन्धित हार्डवेयर, ऑटोमोबाइल के डिजाइन, अनुसंधान तथा उसमें सूचना तकनीक के प्रयोग पर बल देना।

(2) दवा निर्माण क्षेत्र:

 आयुर्वेदिक दवाओं के लिए एक मैन्युफैक्चरिंग हब विकसित करना। चीन पर फार्मा क्षेत्र के कच्चे माल हेतु निर्भरता को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर कच्चे माल हेतु एक केंद्र के रूप में विकसित करना। एजुकेशन सिटी को दवा के क्षेत्र में नई अनुसंधान और निर्माण के एक सहायक के रूप में उसकी सेवाएँ लेना इसके अलावा फार्मा सेक्टर में उपयोग होने वाले इक्विपमेंट्स के निर्माण के लिए उद्योग स्थापित करने को प्रोत्साहन देना।

 (3) इवेंट मैनेजमेंट, मनोरंजन आधारित सेवाएं

 मनोरंजन आधारित उद्योग के लिए कुछ ऐसे स्थानों को चिन्हित किया जा सकता है जहां पर हम सांस्कृतिक मेले, शादियां, मनोरंजक पार्क, होटल्स, गेम और थीम आधारित कार्यक्रम आयोजित करवाने की सुविधा प्रदान कर सकते हैं। कुरुक्षेत्र में धार्मिक महत्व जैसे गीता जयंती की तर्ज पर  सांस्कृतिक त्योहार मनाए जा सकते हैं। इस प्रकार की सुविधाएं देना कि वहां पर यह सारी एक्टिविटीज पूरे साल भर के लिए आयोजित किए जा सके। इस कार्य के लिए सूरजकुंड, मोरनी की पहाड़ियां उपयुक्त स्थान हो सकते हैं। क्योंकि यह दिल्ली तथा चंडीगढ़ के नजदीक है। कई और भी बड़े शहरों के आसपास इस प्रकार के क्षेत्र विकसित किए जा सकते हैं।

 (4) औषधीय पौधें, बागवानी और अन्य मूल्य संवर्धन इकाइयाँ

 औषधीय पौधों के पौधारोपण के लिए यमुनानगर जिले को एक केंद्र के रूप में विकसित करना। जहां पर आयुर्वैदिक इंडस्ट्री भी लगे और वहां का पर्यावरण भी औषधीय पौधों के अनुकूल है। इसके अलावा फल और सब्जियों के लिए विशेष तौर पर एक्सीलेंस केंद्र बनाए जाएं जिनकी मदद से किसानों को विशेष लाभ हो और सभी तकनीक तथा अन्य इनपुट्स एक ही छत से प्राप्त हो सके। डेयरी तथा मछली पालन के क्षेत्र में भी फूड प्रोसेसिंग की इंडस्ट्री स्थापित की जा सकती है। जिसके लिए हिसार तथा जींद एक बेहतर स्थान साबित हो सकते हैं।

 (5) कृषि, डेयरी और खाद्य प्रोसेसिंग जोन:

हरियाणा खाद्यान्न के मामले में केंद्रीय पूल में आपूर्ति करने वाला मुख्य राज्य है। बासमती चावल के निर्यात में हरियाणा का कुल निर्यात भारतवर्ष के 60% अंश के बराबर है। अभी तक जो अनाज भंडारण की सुविधाएं हैं उनमें बहुत ज्यादा अनाज खराब हो जाता है। इसलिए अनाज भंडारण के लिए उच्च तकनीक आधारित गोदाम बनाई जानी चाहिए। जहां पर अनाजों का भंडारण मशीनीकृत तथा पेस्टिसाइड्स से रहित हो ताकि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उत्तम रहे।

कृषि विपणन को ऑनलाइन सिस्टम से जोड़ दिया जाए तथा वर्तमान में हरियाणा में स्थित चावल उद्योग को भी वैश्विक स्तर पर अपने कदम और तेजी से बढ़ाए जाने चाहिए, ताकि हम विश्व में चावल निर्यात के क्षेत्र में अग्रणी राज्य के रूप में उभर सके जिसका लाभ हरियाणा के किसानों को मिल सके।

(6) स्वस्थ जीवन शैली आधारित पर्यटन उद्योग

हरियाणा में पंचकर्म आधारित स्वास्थ्य लाभ हेतु केंद्र बनाए जाने की बहुत संभावनाएं हैं। जहां पर प्राकृतिक चिकित्सा, पारंपरिक तरीकों से विश्रांति की सुविधा हो इसके अलावा  स्वास्थ्य पर्यटन को आयुष से भी जोड़ा जा सकता है। इस का  वैश्विक प्रचार किया जाए ताकि विश्व में इसके बारे में जानकारी प्राप्त हो सके । यमुनानगर के साथ में लगते हुए क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त हो सकते हैं। 

(7) अपशिष्ट प्रबंधन एवं पुन: नवीनीकरण सम्बन्धी उद्योग

 शहरों और गांवों से जो नियमित रूप से अपशिष्ट निकलता है। उसके निपटान या प्रबंधन के लिए हम सही दिशा में अभी तक काम नहीं कर पाए हैं। इसके अलावा बड़े औद्योगिक केंद्रों में से जो औद्योगिक कचरा निकलता है। उसे भी पुनर्नवीनीकरण के माध्यम से एक स्क्रैप इंडस्ट्री में बदला जा सकता है। इसके लिए बड़े पैमाने पर प्लांट स्थापित करने की आवश्यकता है। 

 (8) सांस्कृतिक एवं धार्मिक पर्यटन

हरियाणा में सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र में बहुत अधिक संभावनाएं है। इसके लिए हमें राज्य में स्थित कृष्णा सर्किट, बुद्धा सर्किटराखीगढ़ी को पुरातत्व की दृष्टि से विकास करके तथा जींद और पानीपत को भी वहां के सांस्कृतिक मेलों के माध्यम से धार्मिक पर्यटन की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है। इन सभी क्षेत्रों में आधारभूत संरंचना को बढ़ाकर और भी प्रगति हासिल की जा सकती है।

(9) आधारभूत संरचना संबंधी विकास

 हरियाणा में  राज्य राजमार्गों को बी.ओ.टी. मॉडल के आधार पर 6-लेन बनाया जा सकता है। जिससे कृषि, औधोगिक  तथा अन्य उत्पादों को बंदरगाहों, एयरपोर्ट तथा एनसीआर के बीच लाने ले जाने में सुगमता हो सकती है। इससे उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे बड़े पैमाने पर रोजगार भी निर्माण होगा।

 (10) पूर्व स्थापित उद्योगों की क्षमता में विकास

 हरियाणा में कुछ ऐसे उद्योग थे जिन्हें भारतवर्ष में प्रसिद्धी प्राप्ति थी। जैसे जगाधरी का बर्तन उद्योग, पानीपत में  होजरी व कंबल उद्योग, जींद की खांड तथा डेयरी प्रोडक्ट्स, रोहतक का गेवर और पुंडरी की फिरनी। इन सब चीजों को एक ब्रांड के रूप में विकसित करना, इनकी मार्केटिंग और वित्त पोषण के माध्यम से इस क्षेत्र में रोजगार की बड़ी संभावनाएं  तलाशी जा सकती हैं। इस हेतु एक जिला-एक उत्पाद को प्रोत्साहित करने की निति अपनाई जा सकती है।

(11)  नीतिगत सुधार करना एवं पॉलिसी में स्थायित्व:

 नीतिगत सुधार करना एवं पॉलिसी में स्थायित्व लाना जिससे उद्योग तथा व्यापार में विश्वास पैदा हो सके। व्यापार को सरकार के सहायक के रूप में देखना । व्यापारियों को नियमों के बारे में शिक्षित करना ताकि वह किसी प्रकार का पॉलिसी वंचन ना कर सके तथा आर्थिक दंड इत्यादि से होने वाली समस्याओं से छुटकारा पा सके।  ई-गवर्नेंस के माध्यम से सिंगल विंडो सिस्टम द्वारा व्यापार तथा उद्योग संबंधी सभी प्रकार की अनुमति को देने का प्रावधान करना। इससे निवेश में बड़ी मदद मिलेगी तथा आत्मनिर्भर-हरियाणा की दिशा में और तेजी से कदम बढ़ाए जा सकते हैं। 

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