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काले मेघा पानी दे/धर्मवीर भारती/Dhramvir Bharti/Kale Megha Paani De |
काले मेघा पानी दे\लेखक-धर्मवीर भारती
पाठ का सारांश -‘काले मेघा पानी दे’ निबंध, लोकजीवन के विश्वास और विज्ञान के तर्क पर आधारित है। जब भीषण गर्मी के
कारण व्याकुल लोग वर्षा कराने के लिए पूजा-पाठ और कथा-विधान कर थक–हार जाते हैं तब वर्षा कराने के लिए अंतिम उपाय के रूप में इन्दर सेना
निकलती है| इन्दर सेना, नंग-धड़ंग
बच्चों की टोली है जो कीचड़ में लथपथ होकर गली-मोहल्ले में पानी माँगने निकलती है|
लोग अपने घर की छतों-खिड़कियों से इन्दर सेना पर पानी डालते हैं |
लोगों की मान्यता है कि इन्द्र, बादलों के
स्वामी और वर्षा के देवता हैं| इन्द्र की सेना पर पानी डालने
से इन्द्र भगवान प्रसन्न होकर पानी बरसाएंगे | लेखक का तर्क
है कि जब पानी की इतनी कमी है तो लोग मुश्किल से जमा
किए पानी को बाल्टी भर-भरकर इन्दर सेना पर डालकर पानी को क्यों बर्बाद करते है?
आर्यसमाजी विचारधारा वाला लेखक इसे अंधविश्वास मानता है | इसके विपरीत लेखक की जीजी उसे समझाती है कि यह पानी की बर्बादी नहीं बल्कि
पानी की बुवाई है | कुछ पाने के लिए कुछ देना पड़ता है |
त्याग के बिना दान नहीं होता| प्रस्तुत निबंध
में लेखक ने भ्रष्टाचार की समस्या को उठाते हुए कहा है कि जीवन में कुछ पाने के
लिए त्याग आवश्यक है। जो लोग त्याग और दान की महत्ता को नहीं मानते, वे ही भ्रष्टाचार में लिप्त रहकर देश और समाज को लूटते हैं| जीजी की आस्था, भावनात्मक सच्चाई को पुष्ट करती है
और तर्क केवल वैज्ञानिक तथ्य को सत्य मानता है। जहाँ तर्क, यथार्थ
के कठोर धरातल पर सच्चाई को परखता है तो वहीं आस्था, अनहोनी
बात को भी स्वीकार कर मन को संस्कारित करती है। भारत की स्वतंत्रता के ५० साल बाद
भी देश में व्याप्त भष्टाचार और स्वार्थ की भावना को देखकर लेखक दुखी है | सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएँ गरीबों तक क्यों नहीं पहुँच
पा रहीं हैं? काले मेघा के दल उमड़ रहे हैं पर आज भी गरीब की गगरी फूटी हुई क्यों है ?
लेखक ने यह प्रश्न पाठकों के लिए छोड़ दिया है |
प्रश्न1-इन्दर सेना घर-घर जाकर पानी क्यों माँगती थी?
उत्तर- गाँव के लोग बारिश के लिए भगवान इंद्र से प्रार्थना किया करते थे। जब पूजा-पाठ,व्रत आदि उपाय असफ़ल हो जाते थे तो भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गाँव के किशोर, बच्चे कीचड़ में लथपथ होकर गली-गली घूमकर लोगों से पानी माँगते थे।
प्रश्न2-इन्दरसेना को लेखक मेढक-मंडली क्यों कहता है, जीजी के बार–बार कहने पर भी वह
इन्दरसेना पर पानी फेंकने को राजी क्यों नहीं होता ?
उत्तर- इन्दरसेना का कार्य आर्यसमाजी विचारधारा वाले लेखक को अंधविश्वास लगता है, उसका मानना है कि यदि इंदरसेना देवता से पानी दिलवा सकती है तो स्वयं अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेती? पानी की कमी होने पर भी लोग घर में एकत्र किये हुए पानी को इंदरसेना पर फ़ेंकते हैं। लेखक इसे पानी की निर्मम बरबादी मानता है।
प्रश्न3- रूठे हुए लेखक को जीजी ने किस प्रकार समझाया?
उत्तर- जीजी ने लेखक को प्यार से लड्डू-मठरी खिलाते हुए निम्न तर्क दिए-
1- त्याग का महत्त्व- कुछ पाने के लिए कुछ देना पड़ता है।
2- दान की महत्ता- ॠषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है। जो चीज
अपने पास भी कम हो और अपनी आवश्यकता को भूलकर वह चीज दूसरों को दान कर देना ही
त्याग है |
3- इंद्रदेव को जल का
अर्ध्य चढ़ाना- इंदरसेना पर पानी फ़ेंकना पानी की बरबादी नहीं बल्कि
इंद्रदेव को जल का अर्ध्य चढ़ाना है।
4- पानी की बुवाई करना- जिस प्रकार किसान फ़सल उगाने के लिए जमीन पर बीज डालकर बुवाई करता है वैसे ही पानी वाले बादलों की फ़सल पाने के लिए इन्दर सेना पर पानी डाल कर पानी की बुवाई की जाती है।
प्रश्न4-नदियों का भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक
परिवेश में क्या महत्व है ?
उत्तर- गंगा भारतीय समाज में सबसे पूज्य
सदानीरा नदी है। जिसका भारतीय इतिहास में धार्मिक, पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व है | वह भारतीयों के लिए केवल एक नदी नहीं अपितु माँ
है, स्वर्ग की सीढ़ी है, मोक्षदायिनी
है। उसमें पानी नहीं अपितु अमृत तुल्य जल बहता है। भारतीय संस्कृति में नदियों के
किनारे मानव सभ्यताएँ फली-फूली हैं| बड़े-बड़े नगर, तीर्थस्थान नदियों के किनारे ही स्थित हैं ऐसे परिवेश मेंभारतवासी सबसे पहले गंगा मैया की जय ही
बोलेंगे। नदियाँ हमारे जीवन का आधार हैं, हमारा देश कृषि
प्रधान है। नदियों के जल से ही भारत भूमि हरी-भरी है । नदियों के बिना जीवन की
कल्पना नहीं कर सकते, यही कारण है कि हम भारतीय नदियों की
पूजा करते हैं |
प्रश्न4-आजादी के पचास वर्षों के बाद भी लेखक क्यों दुखी है, उसके मन में कौन से प्रश्न उठ रहे हैं?
उत्तर- आजादी के पचास वर्षों बाद भी भारतीयों की सोच में सकारात्मक बदलाव न देखकर लेखक दुखी है। उसके मन में कई प्रश्न उठ
रहे हैं-
1. क्या हम सच्चे
अर्थों में स्वतन्त्र हैं?
2. क्या हम अपने देश
की संस्कृति और सभ्यता को समझ पाए हैं?
3. राष्ट्र निर्माण
में हम पीछे क्यों हैं, हम देश के लिए क्या कर रहे हैं?
4. हम स्वार्थ और भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं, त्याग में विश्वास क्यों नहीं करते ?
5. सरकार द्वारा चलाई
जा रही सुधारवादी योजनाएँ गरीबों तक क्यों नहीं पहुँचती है?
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधित प्रश्नोत्तर
सचमुच ऐसे दिन होते जब
गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर
त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीतकर आषाढ का पहला
पखवाड़ा बीत चुका होता पर क्षितिज पर कहीं बादलों की रेख भी नहीं दीखती होती,
कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी
आता और आता भी तो आधी रात को, वो भी खौलता हुआ पानी हो |
शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब थी| जहाँ जुताई होनी चाहिए थी वहाँ खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर हो जाती फिर
उसमें पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती, लू ऐसी कि चलते-चलते आदमी
गिर पड़े | ढोर-डंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का
कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ
कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के
रूप में निकलती यह इन्दर सेना |
प्रश्न१- वर्षा न होने पर लोगों की क्या स्थिति हो गयी थी ?
उत्तर - वर्षा न होने पर गरमी के कारण लोग लू लगने से बेहोश होने लगे | गाँव-शहर सभी जगह
पानी का अभाव हो गया| कुएँ सूख गए, खेतों
की मिट्टी सूखकर पत्थर के समान कठोर होकर फट गयी| घरों में
नलों में पानी बहुत कम आता था | पशु
प्यास के मारे मरने लगे थे |
प्रश्न२- वर्षा के देवता कौन हैं उनको प्रसन्न करने के लिए क्या उपाय किए जाते
थे ?
उत्तर -वर्षा के देवता भगवान इन्द्र हैं| उनको
प्रसन्न करने के लिए पूजा–पाठ, कथा-विधान
कराए जाते थे | ताकि इन्द्र देव प्रसन्न होकर बादलों की सेना
भेजकर झमाझम बारिश कराएँ और लोगों के कष्ट दूर हों |
प्रश्न३- वर्षा कराने के अंतिम उपाय के रूप में क्या किया जाता था?
उत्तर –जब पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग हार जाते
थे तब अंतिम उपाय के रूप में इन्दर सेना आती थी | नंग-धडंग,
कीचड़ में लथपथ, ‘काले मेघा पानी दे
पानी दे गुड़धानी दे’ की टेर लगाकर
प्यास से सूखते गलों और सूखते खेतों के लिए मेघों को
पुकारती हुई टोली बनाकर निकल पड़ती थी|
प्रश्न४-आशय स्पष्ट करें –
जेठ के दसतपा बीतकर आषाढ़ का पहला पखवाड़ा बीत चुका होता पर क्षितिज में कहीं बादलों की रेख भी नजर नहीं आती |
आशय- जेठ का महीना है, भीषण गरमी है| तपते हुए दस दिन बीत कर आषाढ का महीना भी आधा बीत गया, पर पानी के लिए तड़पते, वर्षा की आशा में आसमान की ओर
ताकते लोगों को कहीं बादल नजर नहीं आ रहे |
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