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अनुवाद : परिभाषा और स्वरूप
आधुनिक शिक्षण में अनुवाद कला का विशेष महत्व है। हमारे दैनिक जीवन में ऐसे अनेक मौके आते हैं, जब हमें किसी अन्य भाषा भाषी व्यक्ति के साथ वार्तालाप का आश्रय लेना पड़ता है। भाषा लोगों में आपसी विचार विमर्श करने का माध्यम है। किसी विचार विमर्श में अनुवाद की आवश्यकता तब पड़ती है जब दो विभिन्न भाषा बोलने वाले व्यक्तियों को परस्पर बातचीत करने के लिए कहा जाता है। अतः अनुवाद का संबंध दो भाषाओं से है। इसके द्वारा एक भाषा के विचारों को किसी दूसरी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। पर्यटन, व्यवसाय से जुड़े गाइड अनुवाद द्वारा ही स्वदेशी या विदेशी लोगों के बीच संपर्क स्थापित करते हैं। अनुवाद की परंपरा काफी प्राचीन है। धार्मिक और ललित साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद काफी लंबे काल से चला आ रहा है। आज रामायण, महाभारत, बाइबल आदि धर्म ग्रंथों के हिंदी अनुवाद उपलब्ध हो जाते हैं। इसी प्रकार से बांग्ला, तमिल, तेलुगू तथा अंग्रेजी के साहित्यकारों की रचनाएं उपलब्ध हो जाती हैं। जैसे-जैसे आज वैज्ञानिक प्रगति होती जा रही है, वैसे-वैसे अनुवाद का महत्व बढ़ता जा रहा है। विधि, विज्ञान, प्रशासन, बैंकिंग आदि में अनुवाद की आवश्यकता पड़ती जा रही है। जब से बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में अपनी गतिविधियां बढ़ी हैं, तब से अनुवाद कार्य में काफी वृद्धि हुई है।
अनुवाद वही व्यक्ति कर सकता है, जिसे कम से कम दो भाषाओं का समुचित ज्ञान हो - जैसे अंग्रेजी-हिंदी, हिंदी-तमिल, मराठी-हिंदी आदि। जिस मूल भाषा में अनुवाद किया जाता है, उसे स्त्रोत भाषा कहते हैं। जिसमें स्त्रोत भाषा का अनुवाद होता है उसे लक्ष्य भाषा कहते हैं। अनुवाद की मूल इकाई अर्थ है। इसका मूल अर्थ यह है कि हम एक भाषा में व्यक्त हुए अर्थों को दूसरी भाषा में कैसे व्यक्त करते हैं।
अनुवाद के प्रकार :
शब्द अनुवाद
भावानुवाद
छायानुवाद
सारानुवाद
व्याख्या अनुवाद
आशु अनुवाद
शब्द अनुवाद : इस अनुवाद में स्रोत भाषा की रचना के प्रत्येक शब्द पर ध्यान दिया जाता है। यह अनुवाद शब्द प्रति शब्द होता है। इसका मतलब यह है कि स्रोत भाषा के प्रत्येक शब्द का अनुवाद लक्ष्य भाषा में उसी क्रम में किया जा सकता है।
स्रोत भाषा :Ram is going to school.
लक्ष्य भाषा : राम है जा रहा स्कूल।
इस प्रकार का अनुवाद विज्ञान, विधि में ही उपयोगी होता है, अन्यत्र नहीं।
भावानुवाद : इस प्रकार के अनुवाद में मूल रचना के शब्दों एवं वाक्य रचना आदि पर ध्यान न देकर उसके भाव या अर्थ पर ध्यान दिया जाता है। शब्द अनुवाद में जहां मूल सामग्री की भाषा पर ध्यान दिया जाता है, वही भावानुवाद में रचना के मूल भाव पर ध्यान दिया जाता है। भावानुवाद में अनुवादक की सृजनात्मक शक्ति अधिक काम करती है।
छायानुवाद : स्त्रोत भाषा की मूल रचना को पढ़ने के बाद अनुवादक जो कुछ समझता है, अनुभव करता है या जो छाप उसके मन पर पड़ती है, उसका लक्ष्य भाषा में जब रूपांतरण करता है तो उसे छाया अनुवाद कहते हैं। इस प्रकार के अनुवाद में रचना में आए नाम, स्थान व वातावरण आदि का भी देशीकरण कर दिया जाता है। उदाहरण के रूप में शेक्सपियर के नाटक ‘मर्चेंट ऑफ वेनिस’ का छाया अनुवाद हिंदी में देखा जा सकता है।
सारानुवाद : इस प्रकार के अनुवाद में स्रोत भाषा की मूल रचना की मुख्य बातों को लेकर उन्हें लक्ष्य भाषा में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें संक्षिप्तता, सरलता और स्पष्टता की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है। लोकसभा और राज्यसभा में होने वाले वाद-विवादों का अनुवाद इसी प्रकार से होता है।
व्याख्या अनुवाद : इसमें स्रोत भाषा की कृति का अनुवाद करते समय मुख्य विषय की व्याख्या होती है। ऐसा करते समय महत्वपूर्ण अंशों का स्पष्टीकरण करने के लिए अनुवादक उदाहरण या प्रमाण देता हुआ चलता है। क्योंकि इसमें अनुवादक अनुवाद न करके व्याख्या की जाती है, इसे व्याख्या अनुवाद करते हैं। उदाहरण के रूप में ‘लोकमान्य तिलक’ ने ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ का जो अनुवाद किया है, वह केवल अनुवाद नहीं है। बल्कि इसे व्याख्या अनुवाद कहना अधिक उचित होगा।
आशु अनुवाद : जब भिन्न-भिन्न भाषा बोलने वाले व्यक्ति आपस में बातचीत करते हैं तो उस समय उनकी सहायता के लिए तत्काल भाषांतरण की आवश्यकता पड़ती है। ऐसा करने वाले व्यक्ति को आशु अनुवादक या दुभाषिया कहते हैं। इस प्रकार के अनुवादक को अधिक सोचने अथवा शब्दकोश की सहायता लेने का अवसर नहीं मिलता फिर भी उस से आशा की जाती है कि उसका अनुवाद सटीक एवं सुंदर हो। इस प्रकार के अनुवाद में अनुवादक से आशा की जाती है कि उसे संबंधित भाषाओं का समुचित ज्ञान व अनुभव हो । लोकसभा, राज्यसभा, राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में आशु अनुवादक की आवश्यकता पड़ती है।
अनुवादक के गुण:
अनुवाद का महत्व आधुनिक युग में दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। सामान्यतः एक भाषा की सामग्री को दूसरी भाषा में बदलना अनुवाद कहलाता है। यह कार्य इतना कहने सुनने में आसान लगता है उतना है नहीं। यह एक कला है । इसे प्राप्त करने के लिए एक अनुवादक के में निम्नलिखित गुण होने आवश्यक है-
1. अनुवादक का सबसे प्रमुख गुण उसका अपने कार्य के प्रति समर्पण होना है।
2. जिस एक भाषा की सामग्री का दूसरी भाषा में अनुवाद करना होता है, अनुवादक के लिए उन दोनों भाषाओं का ज्ञान होना अति अनिवार्य है।
3. अनुवाद के लिए तटस्थता अति अनिवार्य है।
4.अनुवादक को स्त्रोत और लक्ष्य दोनों भाषाओं की सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का बोध होना भी अति आवश्यक है।
5. अनुवादक के मन में सभी भाषाओं के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए।
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