Rubaiyan aur gazal Class 12/ग़ज़ल और रुबाइयाँ (फ़िराक गोरखपुरी)

 

Rubaiyan aur gazal Class 12/ग़ज़ल और रुबाइयाँ (फ़िराक गोरखपुरी)

ग़ज़ल और रुबाइयाँ (फ़िराक गोरखपुरी)

(1)

    नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजु़क गिरहें खोले हैं
    या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर खोले हैं।

    नौरस = नया रस। गुंचे = कलियां। गिरहें = गांठ, बंधन। रंगो-बू = रंग और गंध।




    शायर अपनी ग़ज़ल के इस शेर में कहते हैं कि नये रस से सराबोर कलियां पंखुरियों के माध्यम से अपनी कोमल गांठों को खोल रही हैं अथवा रंग और गंध ही उड़ने के लिये बाग में अपने पंखों को फैला रही है।

    (2)

    तारे आंखें झपकावें हैं ज़र्रा-ज़र्रा सोये हैं
    तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं।

    शब = रात। ज़र्रा-ज़र्रा = कण-कण।

    रात के गुजरते पलों में अब तारे भी नींद से बोझिल आंखों को झपकाने लगे हैं। धरती का कण-कण इस समय नींद में चला गया है। सब कुछ शांत लगता है, परंतु यदि तुम सुन सको तो सन्नाटे का भी एक स्वर होता है, वह तुम्हें सुनायी देगा

    (3)

    हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
    किस्मत हम को रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।

    किस्मत = नियति।

    शायर फरमाते हें कि हम और हमारी नियति को एक ही काम मिला हुआ है। और वह यह कि हम उस पर और वह हम पर रोती रहती है।

    (4)

    जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
    मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।

    काश = कदाचित। परदा = राज।

    शायर का कहना है कि जो मेरी बदनामी करते फिरते हैं, कदाचित वे इतना और सोच पायें, कि मेरी कमियां बताने पर उनकी कमियां भी उजागर होती हैं।

    (5)

    ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
    तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं।

    बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास = बुद्धि और होश सहित। दीवाना = ज़ुनूनी।

    शायर का कहना है कि हम पूरे होश और विवेक के साथ यह सौदा करने को तैयार हैं कि प्रेम के बदले हमें दीवाना समझ लिया जाये तो हमें कोई ऐतराज नहीं।

    (6)

    तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
    सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं।

    दीवाना = ज़ुनूनी। गम = दुख। पासे-अदब = लिहाज। खयाल = परवाह।

    शायर अपनी प्रिया को संबोधित इस शेर में कहता है कि मुझे तुम्हारे दर्द का अहसास है। मुझे दुनिया का लिहाज भी है। इसीलिये मैं अव्यक्त रूप से चुपचाप रो लिया करता हूं। किसी को दिखाता नहीं। 

    (7)

    फ़ितरत का कायम है तवाज़ुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
    उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं।

    फ़ितरत = स्वभाव । कायम = स्थापित। तवाज़ुन = संतुलन। आलमे-हुस्नो-इश्क = सौंदर्य और प्रेम का वातावरण।

    शायर कहते हैं कि प्रेम और सौंदर्य में बड़ा अजीब सा संतुलन होता है, आप अपने को उसमें जितना गवांते हैं, बदले में उसी अनुपात में उसे हासिल करते हैं। अपने को खोये बिना उसे पाना असंभव है।

    Rubaiyan aur gazal Class 12

    (8)

    आबो-ताब अश्आर न पूछो तुम भी आंखें रक्खो हो
    ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रो ले हैं।

    आबो-ताब अश्आर = चमक-दमक के साथ। बैतों = शेर।

    शायर कहता है कि हमसे हमारे शेरों और अभिव्यक्ति की चमक-दमक के बारे में सवाल न कीजिये। आप के पास भी आंखें हैं। अगर देखने में समर्थ हो, तो खुद ही जान जाओगे कि ये शेरों की चमक है अथवा मेरे आंसुओं के मोतियों की रोशनी है। अर्थात दर्द की चमक से ही ये चमक रहे हैं।

    (9)

    ऐसे में तू याद आये है अंजुमने-मय में रिंदों को
    रात गए गर्दू पै फ़रिश्ते बाबे-गुनह जग खोले हैं।

    अंजुमने-मय = शराब की महफिल।रिंदों = शराबियों को। गर्दू = आसमान। फ़रिश्ते = देवदूम। बाबे-गुनह = गुनाह का अध्याय।

    शायर नायिका के लिये कहते हैं कि शराब की महफिल में वह शराबियों को इस तरह याद आया करती है, जैसे देवदूत रात को आसमान में गुनाहों का अध्याय खोला करते हैं।

    (10)

    सदके फ़िराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़
    इन ग़ज़लों के परदे में तो ‘मीर’ की ग़ज़लें बोले हैं।

    सदके = कुरबान। एजाजे-सुखन = उच्चकोटि का काव्य। परदे = आड़ में। ‘मीर’ – प्रसिद्ध शायर मीर तकी ‘मीर’।

    लोग कहते हैं कि ओ शायर फ़िराक, हम तुम पर कुरबान होते हैं, तुमने इतनी बेहतरीन शायरी कहां से उड़ा ली है? तुम्हारी ग़़ज़लों की ओट में से तो हमें मीर साहिब की ग़़ज़लें नज़र आती हैं।

     

     रुबाइयाँ (फ़िराक गोरखपुरी)

    (1)

    आंगन में लिये चांद के टुकड़े को खड़ी
    हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
    रह-रह के हवा में जो लोका देती है
    गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हंसी

    (2)

    नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
    उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
    किस प्यार से देखता है बच्चा मुंह को
    जब घुटनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े

    (3)

    दीवाली की शाम घर पुते और सजे
    चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
    वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
    बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए

    (4)

    आंगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है

    बालक तो हई चांद पै ललचाया है

    दर्पण उसे दे के कह रही है मां

    देख आईने में चांद उतर आया है


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