(1)

मन रे परसी हरी के चरण।

सुभाग शीतल कमल कोमल, जगत ज्वाला हरण।

जिन चरण ध्रुव अटल किन्ही रख अपनी शरण।

जिन चरण ब्रह्माण भेद्यो नख शिखा सिर धरण।

जिन चरण प्रभु परसी लीन्हे करी गौतम करण।

जिन चरण फनी नाग नाथ्यो गोप लीला करण।

जिन चरण गोबर्धन धर्यो गर्व माधव हरण।

दासी मीरा लाल गिरीधर आगम तारण तरण॥

 


(2)

म्हारो प्रणाम श्री बांके बिहारी जी ।

मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे, कुंडल अलका कारी जी ।

अधर मधुर पर बन्सी बजावे, रीझी रिझावे राधा प्यारी जी ।

ये छवि देख मगन भई मीरा, मोहन गिरिबर धारी जी ।

(3)

बसो म्हारे नैनन में नंदलाल ।

मोर मुगट मकराक्रत कुंडल, अरूण तिलक सोहै भाल ।

मोहनी मूरति सॉवरि सूरति नैना बने बिसाल,

अवरसुवारस मुरली राजति डर बैजंती माल ।

मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल॥


 

(4)

आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी।

चित्त चढ़ो मेरे माधुरी मूरत उर बिच आन अड़ी।

कब की ठाढ़ी पंथ निहारूं अपने भवन खड़ी॥

कैसे प्राण पिया बिन राखूं जीवन मूल जड़ी।

मीरा गिरधर हाथ बिकानी लोग कहै बिगड़ी॥

(5)

म्हारां री गिरधर गोपाल दूसरां णा कूयां।
दूसरां णां कूयां साधां सकल लोक जूयां।
भाया छांणयां, वन्धा छांड्यां सगां भूयां।
साधां ढिग बैठ बैठ, लोक लाज सूयां।
भगत देख्यां राजी ह्यां, ह्यां जगत् देख्यां रूयां
दूध मथ घृत काढ लयां डार दया छूयां।
राणा विषरो प्याला भेज्यां, पीय मगण हूयां।
मीरा री लगण लग्यां होणा हो जो हूयां॥

 

(6)

मैं तो गिरधर के घर जाऊं।
गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम, देखत रूप लुभाऊं।
रैण पडै तब ही उठि जाऊं, भोर गये उठि आऊं।
रैणदिना बाके सेंग खेलूं, ज्यूं त्यूं वाहि रिझाऊं।
जो पहिरावै होई पहिरूं, जो दे सोई खाऊं।
मेरी उणकी प्रीत पुरानी, उण बिन पल न रहाऊं।
जहां बैठावें तितही बैठूं, बेचे को बिक जाऊं।
मीरा रे प्रभु गिरधरनागर, बार बार बलि जाऊं॥

 

 

(7)

बरजी री म्हां स्याम बिणा न रह्यां।।टेक।।
साधां संगत हरि सुख पास्यू जग सूं दूर रह्यां।
तम मण म्हारां जावाँ जास्यां, म्हारो सीस लह्यां।
मण म्हारो लाग्यां गिरधारी जगरा बोल सह्यां।
मीरां रे प्रभु हरि अबिनासी, थारी सरण गह्यां।।

 

(8)

नहिं भावै थाँरो देसलडो रँगरूडो।।टेक।।
थाँरे देसाँ में राणा साध नहीं छै, लोग बसै सब कूड़ो।
गहना गाँठी राणा हम सब त्यागा, त्याग्यो कररो चूड़ो।
काजल टीकी हम सब त्यागां, त्याग्यो छै बांधन जूड़ो।
मीरां के प्रभु गिरधरनागर, बर पायो छै पूरो।।

 

(9)

पग बाँध घुघरयाँ णाच्यारी।।टेक।।
लोग कह्याँ मीराँ बाबरी, सासु कह्याँ कुलनासाँ री।
विष रो प्यालो राणा भेज्याँ, पीवाँ मीराँ हाँसाँ री।
तण मण वार्यां हरि चरणमां दरसण अमरित प्यास्याँ री।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, यारी सरणाँ आस्याँ री।।

(10)

मेरे राणा जी मैं गोविन्द के गुण गाणा।

राजा रूठे नगरी राखे मैं हरी रुठया कहाँ जाणा।।

राणा भेजा विष का प्याला, मैं अमृत कह पी जाणा।

डिबिया में काला नाग भेजा, मैं शालिग्राम कर माणा।

मीरा बाई प्रेम दीवानी, मैं सांवरिया वर पाणा।

 

(11)

जोगी मत जा, मत जा मत जा, पांव पडूं म्हूं चेरी हौं।

प्रेम-भगति रो पैंडो ई न्यारो हम कूं गैल बताजा।

अगर-चंदण री चिता बणावूं, अपणे हाथ जलाजा।

बल-बल भई भस री ढेरी, अपणे अंग लगाजा।

मीरा रा प्रभु गिरधरनागर, जोत में जोत मिलाजा।

(12)

हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय।
घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय।
जौहरि की गति जौहरी जाणै की जिन जौहर होय॥
दरद की मारी बन-बन डोलूं बैद मिल्या नहिं कोय।
मीरा की प्रभु पीर मिटेगी जद बैद सांवरिया होय॥

(13)

को विरहिणी को दुःख जाणै हो ।
जा घट बिरहा सोई लख है, कै कोई हरि जन मानै हो।
रोगी अन्तर वैद बसत है, वैद ही ओखद जाणै हो।
विरह कद उरि अन्दर माँहि, हरि बिन सुख कानै हो।
दुग्धा आरत फिरै दुखारि, सुरत बसी सुत मानै हो।
चात्ग स्वाँति बूंद मन माँहि, पिव-पिव उकातणै हो।
सब जग कूडो कंटक दुनिया, दरध न कोई पिछाणै हो।
मीराँ के पति आप रमैया, दूजा नहिं कोई छाणै हो।।

(14)

पतियाँ मै कैसे लिखूँ, लिख्योरी न जाय।
कलम धरत मेरो कर कँपत है नैन रहे झड़ लाय।
बात कहुँ तो कहत न आवै, जीव रह्यो डरराय।
बिपत हमारी देख तुम चाले, कहिया हरिजी सूं जाय।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर चरण कमल रखाय ।।

(15)

री म्हाँ बैठ्याँ जागाँ, जगत सब सोवाँ।
बिरहण बैठ्याँ रंगमहल माँ, णेणा लड्या पोवाँ।
इक बिरहणि हम ऐसी देखी, अँसुवन की माला पोवै।
ताराँ गणताँ रेण बिहानाँ, सुख घड़ियारी जोवाँ ।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, मिल बिछड़याँ णा होवाँ।।

 

(16)

सखी, मेरी नींद नसानी हो।
पिवको पंथ निहारत सिगरी रैण बिहानी हो॥
सखिअन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो।
बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय ऐसी ठानी हो॥
अंग अंग व्याकुल भई मुख पिय पिय बानी हो।
अंतरबेदन बिरह की कोई पीर न जानी हो॥
ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो।
मीरा व्याकुल बिरहणी सुद बुध बिसरानी हो॥

 

(17)

म्हाँरे घर होता आज्यो महाराज।
नेण बिछास्यूँ हिवड़ो डास्यूँ, सर पर राख्यूँ विराज।
पाँवड़ाँ म्हारो भाग सवारण, जगत उधारण काज।
संकट मेट्या भगत जणाराँ, थाप्याँ पुन्न रा पाज।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, बाँह गह्यारी लाज।।

 

(18)

मेरे घर आवौ सुन्दर स्याम।
तुम आवा बिन सुष नहीं मेरे पीरी परी जैसे पान।
मेरे आसा और न स्वामी एक तिहारी ध्यान।
मीराँ के प्रभु बेगि मिलो अब, राषो जी मेरी मान।।

(19)

मेरो बेड़ो लगाज्यो पार, प्रभु जी मैं अरज करूँ छै।
या भव में मै बहु दुख पायो, संसा सोग निवार।
अष्ट करम की तलब लगी है, दूर करो दुख भार।
यो संसार सब बह्यो जात है, लख चौरासी री धार।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, आवागमन निवार।।

 

(20)

रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री।
होली खेल्या स्याम संग रंग सूं भरी, री ।
उड़त गलाल लाल बादला रो रंग लाल,

पिचकां उड़ावां, रंग-रंग री झरी, री।
चोवा चन्दण अरगजा म्हा, केसर णो गागर भरी री।
मीरां दासी गिरधरनागर, चेरी चरण धरी री।।

(21)

सहेलियाँ साजन घर आया हो।
बहोत दिनां की जोवती बिरहिण पिव पाया हो।।
रतन करूँ नेवछावरी ले आरति साजूं हो।
पिवका दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूं हो।।
पांच सखी इकठी भई मिलि मंगल गावै हो।
पिया का रली बधावणा आणंद अंग न मावै हो।
हरि सागर सूं नेहरो नैणां बंध्या सनेह हो।

(22)

स्याम बिण दुख पावां सजणी।
कुण म्हां धीर बँधावाँ।
यौ संसार कुबधि री भाँडो, साथ संगत णा भावाँ।
साधाँ जणरी निंद्या ठाणाँ, करमरा कुगत कुमाँवाँ।
राम नाम बिनि मकुति न पावां, फिर चौरासी जाबाँ।
साध संगथ माँ भूल णा जावाँ, मूरख जणम गमावाँ।

 

(23)

प्रभु सों मिलन कैसे होय।
पाँच पहर धन्धे में थीते, तीन पहर रहे सोय।
मानख जनम अमोलक पायो, सोतै सीतै डार्यो खोय।
मीराँ के प्रभु गिरधर भजीये होनी होय सो होय।।

 

(24)

हो जी हरि कित गये नेह लगाय।
नेह लगाय मेरो मन हर लीयो, रस भरी टेर सुनाय।
मेरे मन में ऐसी आवै, मरूँ जहर बिस खाय।
छाड़ि गये बिसवासघात करि, नेह केरी नाव चढ़ाय।
मीराँ के प्रभु कबरे मिलोगे, रहे मधुपुरी छाय।।

(25)

म्हारो मण हर लीण्या रणछोड़।
मोर मुगट सिर छत्र बिराँजाँ, कुंडल री छब ओर।
चरण पखार्यां रतणागर री, धारा गोमत जोर।
धजा पताका तट तट राजाँ झांलर री झकझोर।
भगत जणारो काज संवार्या म्हारा प्रभु रणछोर।
मीराँ रे प्रभु गिरधरनागर, गह्यो नन्दकिशोर।।