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रसखान का जीवन परिचय/रसखान का साहित्यिक परिचय /Raskhan ka jivan parichay in Hindi
रसखान का जीवन परिचय
रसखान का जीवन परिचय -
रसखान मध्यकालीन
कृष्ण-भक्ति काव्य के प्रमुख संप्रदाय निरपेक्ष कवि थे। हालांकि
इनके जन्म-समय, शिक्षा-दीक्षा, कार्य-व्यवसाय, निधन-काल आदि के विषय में कोई प्रमाणिक साक्ष्य अभी तक उपलब्ध नहीं है, फिर भी इनकी रचनाओं से कुछ संकेत सूत्र ग्रहण करते हुए इनका जन्म 1548
ईस्वी में एक समृद्ध पठान परिवार में दिल्ली में हुआ माना जाता है।
इनके पूर्वज राजवंश से संबंधित थे। इनका मूल नाम ‘सैयद
इब्राहिम’ था। लेकिन इनके काव्य में अत्यधिक रसिकता एवं
माधुर्य गुण के कारण लोग इन्हें ‘रसखान’ कहते थे। वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया
था। तब से यह ब्रजभूमि में जाकर रहने लगे थे। कहा जाता है कि तुलसीदास ने अपनी
स्वरचित रामचरित्तमानस की कथा सर्वप्रथम इन्हीं ही सुनाई थी। ऐसा माना जाता है कि
सन 1628 ईस्वी के आसपास इनका देहांत हो गया होगा।
रसखान की रचनाएँ
रचनाएं : रसखान का संपूर्ण
कृतित्व अभी तक प्राप्त नहीं है। फिर भी इनकी निम्नलिखित चार रचनाएं प्रमाणिक मानी
जाती हैं- ‘सुजान रसखान’, ‘प्रेम वाटिका’,
‘दानलीला’, ‘अष्टयाम’।
Raskhan ka jivan parichay in Hindi
रसखान की साहित्यिक विशेषताएं-
साहित्यिक विशेषताएं- रसखान की कविता में
कृष्ण-भक्ति को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया गया है। कवि को कृष्ण से संबंधित
प्रत्येक वस्तु से प्यार है । यही कारण है कि रसखान ब्रज क्षेत्र, यमुना
तट, वहां के वन और बाग, पशु-पक्षी, नदी-पर्वत आदि से अत्यधिक प्रेम करते थे। उन्होंने अपने सवैयों में श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य, उनकी वेशभूषा, बाल क्रीड़ा,
तथा बांसुरी वादन आदि का मनोहारी चित्रण किया है। कवि के लिए कृष्ण के बिना यह
संसार सूना है। उनकी कृष्ण भक्ति में गहनता तथा तन्मयता का आधिक्य है। यही नहीं
उनकी भक्ति में प्रेम, श्रृंगार और सौंदर्य का समन्वित रूप
देखा जा सकता है। लेकिन कवि द्वारा वर्णित प्रेम निश्चल होने के साथ-साथ आकर्षक भी
है। रसखान ने श्री कृष्ण के बालरूप का जो वर्णन किया है वह बहुत ही सुंदर बन पड़ा
है। वस्तुत: ये ‘भक्त’ और ‘कवि’ से भी पहले एक सहृदय भावुक व्यक्ति हैं। इनका
मन प्रेम ताप की उष्णता से विगलित विविध भाव-सरणियों के रूप में उमड़ पडा है। इनकी
एकांतिक प्रेममयी उमंग ने इनके काव्य को सचमुच ‘रस की खान’ बना दिया है।
रसखान की भाषा शैली:-
भाषा शैली:- रसखान ने सहज
सरल साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा भावानुकुल होने के साथ-साथ
स्वाभाविक भी है। कवि अपनी मधुर, सरस तथा प्रवाहमयी भाषा के
लिए प्रसिद्ध है। वह शब्दों के सरल रूपों का ही प्रयोग करते हैं। उन्होंने
अलंकारों का अनावश्यक प्रयोग नहीं किया, लेकिन मुहावरों का
प्रयोग करने में वे काफी सफल हुए हैं। मुक्त शैली में रचित इनका काव्य हिंदी
साहित्य की अमूल्य निधि है। कोमल कांत पदावली में रचित रसखान की कविता कृत्रिमता
से काफी दूर है। उन्होंने प्राय: दोहा, कवित और सवैया छंदों
का सफल प्रयोग किया है। अपने सवैयों के कारण यह उसी प्रकार प्रसिद्ध हैं, जिस प्रकार कबीर अपने दोहों के लिए तथा तुलसी अपनी चौपाइयों के लिए । रसखान के कृष्ण भक्ति प्रेम और श्रेष्ठ
काव्य की प्रशंसा करते हुए यह उचित ही कहा गया है- “इन मुसलमान हरिजनन पे कोटिक
हिंदू वारिए”।
रसखान का जीवन परिचय/रसखान का साहित्यिक परिचय /Raskhan ka jivan parichay in Hindi
1 टिप्पणियाँ
Mere ko blog banana hai kuch help milega kya
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