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वाख की व्याख्या - लल्द्यद /Wakh Laldyad Hindi class 9 NCERT Solutions |
ललद्यद/वाख
रस्सी कच्चे
धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार्।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे॥
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार्।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे॥
भावार्थ
: इस कविता में रोजमर्रा की साधारण चीजों को उपमा के तौर पर उपयोग करके गूढ़ भक्ति
का वर्णन किया गया है। नाव का मतलब है जीवन की नैया। इस नाव को हम कच्चे धागे की
रस्सी से खींच रहे होते है। कच्चे धागे की रस्सी बहुत कमजोर होती है और हल्के दबाव
से ही टूट जाती है। हालाँकि हर कोई अपनी पूरी सामर्थ्य से अपनी जीवन नैया को
खींचता है। लेकिन इसमें भक्ति भावना के कारण कवयित्री ने अपनी रस्सी को कच्चे धागे
का बताया है। भक्त के सारे प्रयास वैसे ही बेकार हो रहे हैं जैसे कोई मिट्टी के
कच्चे सकोरे में पानी भरने की कोशिश करता हो और वह इधर उधर बह जाता है।
भक्त
इस उम्मीद से ये सब कर रहा है कि कभी तो भगवान उसकी पुकार सुनेंगे और उसे भवसागर
से पार लगायेंगे। उसके दिल में भगवान के नजदीक पहुँचने की इच्छा बार बार उठ रही
है।
खा खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।
भावार्थ : यदि कोई आडम्बर से भरी हुई पूजा करता
है तो उससे कुछ नहीं मिलता है। पूजा नहीं करने वाला अपने अहंकार में डूब जाता है।
यदि आप अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं तो समझिये कि आपने असली पूजा
की। इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने से ही ज्ञान के बंद दरवाजे आपके लिए खुल जाते
हैं। हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हमें हमारे शरीर से बाहर की दुनिया से तालमेल और संपर्क
बिठाने में मदद करती हैं। देखना, सुनना, सूंघना,
स्पर्श करना और स्वाद लेना; ये सारी क्रियाएँ
हमारे लिए बहुत जरूरी हैं। लेकिन यदि आपने इन किसी पर से भी अपना नियंत्रण खो दिया
तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। उदाहरण के लिए स्वाद को लीजिए। मिठाई यदि ज्यादा
खाई जाये तो उससे मधुमेह जैसी खतरनाक बीमारी हो जाती है।
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह्।
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई।
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई।
भावार्थ : किसी का जब इस संसार में जन्म होता है
तो वह एक युगों से चल रहे सीधे तरीके से होता है। ऊपर वाला सबको एक ही जैसा बनाकर
भेजता है। लेकिन जब हम अपनी जीवन यात्रा तय करते हैं तो बीच में कई बार भटक जाते
हैं।
योग में सुषुम्ना नाड़ी पर नियंत्रण को बहुत महत्व
दिया गया है। कहा गया है कि योग से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है और उससे
शारीरिक और मानसिक फायदे होते हैं। ये भी बताया जाता है कि यह नियंत्रण आपको ईश्वर
के करीब पहुँचने में मदद करता है।
आखिर में जब भक्त की नाव को भगवान पार लगा देते हैं
तो वह कृतध्न होकर उन्हें कुछ देना चाहता है। लेकिन भक्त की श्रद्धा की पराकाष्ठा
ऐसी है कि उसे लगता है कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। जो कुछ उसने जीवन
में पाया वो सब तो भगवान का दिया हुआ है। वह तो खाली हाथ इस संसार में आया था और
खाली हाथ ही वापस गया।
थल थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू मुसलमां।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान॥
भेद न कर क्या हिंदू मुसलमां।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान॥
भावार्थ : ईश्वर तो हर जगह और हर प्राणी में वास करते हैं। वे
हिंदू या मुसलमान में भेद नहीं करते। यदि आप अपने अंदर टटोलने की कोशिश करेंगे तो
आपको ईश्वर मिल जाएंगे।
वाख/ललद्यद
NCERT Solution/ अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर :-
प्रश्न-1
: ‘रस्सी’ यहाँ किसके
लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
उत्तर: यहाँ पर जीवन की नैया को खींचने के
लिए किये जा रहे प्रयासों को रस्सी की संज्ञा दी गई है। यह रस्सी कच्चे धागे की
बनी है अर्थात बहुत ही कमजोर है और कभी भी टूट सकती है।
प्रश्न-2
: कवयित्री द्वारा
मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
उत्तर: कवयित्री के प्रयास ऐसे ही हैं
जैसे कोई मिट्टी के कच्चे सकोरे में पानी भरने की कोशिश कर रहा हो। ऐसे में पानी
जगह से जगह से रिसने लगता है और कसोरा भर नहीं पाता है। कवयित्री को लगता है कि
भक्त के प्रयास निरर्थक साबित हो रहे हैं।
प्रश्न-3
: कवयित्री को ‘घर जाने
की चाह’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: यहाँ पर भगवान से मिलने की इच्छा
को घर जाने की चाह बताया गया है।
भाव स्पष्ट कीजिए:
प्रश्न-4 :(अ) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
उत्तर: आखिर में जब भक्त की नाव को भगवान पार लगा देते हैं तो वह कृतध्न होकर उन्हें कुछ देना चाहता है। लेकिन भक्त की श्रद्धा की पराकाष्ठा ऐसी है कि उसे लगता है कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। जो कुछ उसने जीवन में पाया वो सब तो भगवान का दिया हुआ है। वह तो खाली हाथ इस संसार में आया था और खाली हाथ ही वापस गया।
प्रश्न-4 :(आ) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर: यदि कोई आडम्बर से भरी हुई पूजा करता है तो उससे कुछ नहीं मिलता है। पूजा नहीं करने वाला अपने अहंकार में डूब जाता है।
प्रश्न-4 :(अ) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
उत्तर: आखिर में जब भक्त की नाव को भगवान पार लगा देते हैं तो वह कृतध्न होकर उन्हें कुछ देना चाहता है। लेकिन भक्त की श्रद्धा की पराकाष्ठा ऐसी है कि उसे लगता है कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। जो कुछ उसने जीवन में पाया वो सब तो भगवान का दिया हुआ है। वह तो खाली हाथ इस संसार में आया था और खाली हाथ ही वापस गया।
प्रश्न-4 :(आ) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर: यदि कोई आडम्बर से भरी हुई पूजा करता है तो उससे कुछ नहीं मिलता है। पूजा नहीं करने वाला अपने अहंकार में डूब जाता है।
प्रश्न-5 : बंद द्वार की साँकल
खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर: बंद द्वार की
साँकल खोलने के लिए कवि ने इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का सुझाव दिया है। इसका
मतलब है कि यदि आप सच्चे मायने में भगवान को पाना चाहते हैं तो आपको लोभ और लालच
से मोहभंग करना होगा।
प्रश्न-6 : ईश्वर प्राप्ति के
लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन
उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?
उत्तर: आई सीधी राह से,
गई न सीधी राह्।
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
प्रश्न-7 : ‘ज्ञानी’
से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर: वैसा मनुष्य
ज्ञानी होता है जिसे अपने आप की सही पहचान होती है। कवयित्री का मानना है कि जो
मनुष्य मंदिर-मस्जिद या विभिन्न देवी देवताओं में उलझा रहता है उसे ज्ञान नहीं मिल
पाता है। जिसने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया वही सच्चा ज्ञानी है।
हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है:
प्रश्न-8 : आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?
उत्तर: आज का समाज धर्म और जाति के
नाम पर बँटा हुआ है। कई जगह सांप्रदायिक झगड़े होते हैं। कई बार एक जाति के लोग
किसी अन्य जाति के लोगों के खिलाफ हथियार उठा लेते हैं। इससे पारस्परिक सौहार्द्र
मिट जाता है। एक आदमी का दूसरे आदमी पर से विश्वास उठ जाता है।
प्रश्न-9 : आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।
उत्तर: हमें धर्म या समुदाय की
सीमाओं से परे होकर एक दूसरे के साथ भाईचारा बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। हमें दूसरे
के धर्म की इज्जत करनी चाहिए। आपसी सहयोग से ही हर तरफ खुशहाली और तरक्की आएगी।
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