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George Pancham Ki Naak Kamleshwar class 10/जार्ज पंचम की नाक-कमलेश्वर कक्षा 10 |
यह बात उस समय की है जब इंग्लैंण्ड की रानी ऐलिज़ाबेथ द्वितीय मय अपने
पति के हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनके चर्चे हो रहे थे। रोज़
लन्दन के अखबारों में ख़बरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए कैसी-कैसी तैयारियाँ
हो रही हैं.... रानी ऐलिजाबेथ का दर्ज़ी परेशान था कि हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर
रानी क्या पहनेगी ? उनका सेक्रेटरी और जासूस भी उनके पहले ही
इस महाद्वीप का तूफान दौरा करने वाला था.. आखिर कोई मजाक तो था नहीं, ज़माना चूंकी नया था, फौज-फाटे के साथ निकलने के दिन
बीत चुके थे इसलिए फोटोग्राफरों की फौज तैयार हो रही थी....
इंग्लैंड के अखबारों की कतरनें हिन्दुस्तान अखबारों में दूसरे दिन
चिपकी नज़र आती थी.... कि रानी ने एक ऐसा हल्के नीले रंग का सूट बनवाया है,
जिसका रेशमी कपड़ा हिन्दुस्तान से मंगवाया गया है... कि करीब 400
पौंड खर्चा उस सूट पर आया है।
रानी ऐलिज़ाबेथ की जन्मपत्री भी छपी। प्रिन्स फिलिप के कारनामे छपे,
और तो और उनके नौकरो, बावर्चियों खानसामों,
अंगरक्षकों की पूरी-की-पूरी जीवनियां देखने में आई ! शाही महल में
रहने और पलनेवाले कुत्तों तक की जीवनियाँ देखने में आईं ! शाही महल में रहने और
पलने वाले कुत्तों तक की तस्वीरें अखबारों में छप गईं ....
बड़ी धूम थी। बड़ा शोर-शराबा था। शंख इंग्लैंड में बज रहा था,
गूँज हिन्दुस्तान में आ रही थी।
इन अख़बारों से हिन्दुस्थान में सनसनी फैल रही थी.,....राजधानी में तहलका मचा हुआ था। जो रानी 5000 रुपये का
रेशमी सूट पहनकर पालम के हवाई अड्डे पर उतरेगी उसके लिए कुछ तो होना ही चाहिए। कुछ
क्या, बहुत कुछ होना चाहिए। जिसके बावर्ची पहले महायुद्ध में
जान हथेली पर लेकर लड़ चुके हैं, उसकी शान-शौकत से क्या कहने
और वही रानी दिल्ली आ रही है....
नई दिल्ली ने अपनी तरफ देखा और बेसाख़्ता मुंह से निकल गया –वह आएं
हमारे घर, खुदा की रहमत... कभी हम उनकों कभी अपने घर को
देखते हैं। और देखते-देखते नई दिल्ली का कायापलट होने लगा।
और करिश्मा तो यह था कि किसी ने किसी से नहीं कहा, किसी ने किसी को नहीं देखा- पर सड़कें जवान हो गई, बुढ़ापे
की धूल साफ हो गई। इमारतों ने नाज़नीनों की तरह श्रृंगार किया....
लेकिन एक बड़ी मुश्किल पेश थी.... वह थी जार्ज पंचम की नाक ! नई
दिल्ली में सब कुछ था, सब कुछ होता जा रहा था, सब कुछ हो जाने की उम्मीद थी, पर पंचम की नाक की
बड़ी मुसीबत थी ! दिल्ली में सब कुछ था...सिर्फ नाक नहीं थी।
इस नाक की भी एक लम्बी दास्तान है। इस नाक के लिए बड़े तहलके मचे थे
किसी वक्त ! आन्दोलन हुए थे। राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव भी दिये थे।
गर्मागर्म बहसें भी हुई थीं। अखबारों के पन्ने रंग गए थे। बहस इस बात पर थी कि
जार्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए ! और जैसा कि हर राजनीतिक आन्दोलन
में होता है, कुछ पक्ष में थे कुछ विपक्ष में और ज्यादातर
लोग खामोश थे। ख़ामोश रहनेवालों की ताकत दोनों तरफ थी...
यह आन्दोलन चल रहा था। जार्ज पंचम की नाक के लिए हथियारबंद पहरेदार
तैनात कर दिए गए थे.... क्या मजाल कि कोई उनकी नाक तक पहुँच जाए। हिन्दुस्तान में
जगह-जगह ऐसी नाकें खड़ी थीं और जिन तक लोगों के हाथ पहुँच गये उन्हें शानों –शौकत
के साथ उतारकर अजायबघरों में पहुँचा दिया गया। शाही लाटों की नाकों के लिए
गुरिल्ला युद्ध होता रहा।.....
उसी ज़माने में यह हादसा हुआ-इंडिया गेट के सामने वाली जार्ज पंचम
की लाट की नाक एकाएक गायब हो गई ! हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात रहे। गश्त
लगाते रहे...और लाट चली गई।
रानी आए और नाक न हो ! ...एकाएक यह परेशानी बढ़ी। बढ़ी सरगर्मी शुरू
हुई। देश के ख़ैरख़्वाहों की एक मीटिंग बुलाई गई और मसला पेश किया गया कि क्या
किया जाए ?’’ वहां सभी एकमत से इस बात पर सहमत थे कि अगर यह
नाक नहीं है, तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएंगी....
उच्च स्तर पर मशवरे हुए। दिमाग खरोंचे गए और यह तय किया गया कि हर
हालत में इस नाक का होना बहुत जरूरी है। यह तय होते ही एक मूर्तिकार को हुक्म दिया
गया कि फौरन दिल्ली में हाजिर हो। मूर्तिकार यों तो कलाकार था, पर ज़रा पैसे से लाचार था। आते ही उसने हुक्कामों के चेहरे देखे ... अजीब
परेशानी थी उन चेहरों पर; कुछ लटके हुए थे, कुछ उदास थे और कुछ बदहवास थे। उनकी हालत देखकर लाचार कलाकार की आँखों में
आँसू आ गए ....तभी एक आवाज सुनाई दी ‘‘मूर्तिकार ! जार्ज पंचम की नाक लगनी है।’’
मूर्तिकार ने सुना और जवाब दिया नाक लग जाएगी पर मुझे पता होना
चाहिए कि यह लाट कब और कहां बनी थी ? इस लाट के लिए पत्थर
कहाँ से लाया गया था ?’’
सब हुक्कामों ने एक -दूसरे की तरफ ताका...एक की नज़र ने दूसरे से
कहा कि यह बताना ज़िम्मेदारी तुम्हारी है ! खैर मामला हल हुआ। एक क्लर्क को फोन
किया गया और इस बात की पूरी छानबीन करने का काम सुपुर्द कर दिया गया !....
पुरातत्त्व विभाग की फाइलों के पेट चीरे गये, पर कुछ भी पता
नहीं चला। क्लर्क ने लौटकर कमेटी के सामने कांपते हुए बयान किया- ‘‘सर ! मेरी खता
माफ हो फाइलें सब कुछ हज़म कर चुकी हैं !’’
हुक्मरानों के चेहरों पर उदासी के बादल छा गए । एक खास कमेटी बनाई
गई और उसके जिम्मे यह काम दे दिया गया कि जैसे भी हो यह काम होना है और इस नाक का
दारोमदार आप पर है । आखिर मूर्तिकार को फिर बुलाया गया...उसने मसला हल कर दिया ।
वह बोला-"पत्थर की किस्म का ठीक पता नहीं चलता, तो
परेशान मत होइए...मैँ हिन्दुस्तान के हर पहाड़ पर जाऊँगा और ऐसा ही पत्थर खोजकर
लाऊँगा !" कमेटी के सदस्यों की जान-में-जान आई । सभापति ने चलते-चलते गर्व से
कहा-"ऐसी क्या चीज, हैं जो अपने हिन्दुस्तान में मिलती
नहीं । हर चीज़ इस देश के गर्भ में छिपी है...जरूरत खोज लाने की है...खोज करने के
लिए मेहनत करनी होगी, इस मेहनत का फल हमें मिलेगा...आने वाला
जमाना खुशहाल होगा ।"
वह छोटा-सा भाषण फौरन अखबारों में छप गया ।
मूर्तिकार हिन्दुस्तान के पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के
दौरे पर निकल पड़े। कुछ दिन बाद वह हताश लौटे, उनके चेहरे पर
लानत बरस रही थी, उन्होंने सिर लटकाकर खबर
दी…"हिन्दुस्तान का चप्पा-चप्पा खोज डाला, पर इस किस्म
का पत्थर कहीं नहीं मिला। यह पत्थर विदेशी है!"
सभापति ने तैश में आकर कहा-"लानत है आपकी अक्ल पर ! विदेशों की
सारी चीज हम अपना चुके हैं...दिल-दिमाग, तौर-तरीके और
रहन-सहन...जब हिन्दुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल
सकता !"
मूर्तिकार चुप खड़ा था । सहसा उसकी आँखों में चमक आ गई । उसने
कहा-"एक बात मैं कहना चाहूंगा, लेकिन इस शर्त पर कि यह
बात अखबारवालों तक न पहुंचे..."
सभापति की आँखों में भी चमक आई । चपरासी को हुक्म हुआ और कमरे के सब
दरवाजे बन्द कर दिए गए । तब मूर्तिकार ने कहा-"देश में अपने नेतायों की
मूर्तियाँ भी हैं...अगर इजाजत हो...अगर आप लोग ठीक समझें, तो
मेरा मतलब है, तो...जिसकी नाक इस लाट पर ठीक बैठे. उसे उतार
लाया जाए..."
सवने सबकी तरफ़ देखा । सबकी आँखों में एक क्षण की बदहवासी के बाद
खुशी तैरने लगी । सभापति ने धीमे से कहा…"लेकिन बड़ी होशियारी से !"
और मूर्तिकार फिर देश-दौरे पर निकल पड़ा । जार्ज पंचम की खोई हुई
नाक का नाप उसके पास था । दिल्ली से वह बम्बई पहुंचा...दादाभाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, कावस जी जहाँगीर-सबकी नाकें उसने टटोलीं, नापीं और
गुजरात की ओर भागा-गांधीजी, सरदार पटेल, विट्ठलभाई पटेल, महादेव देसाई की मूर्तियों को परखा
और बंगाल की ओर चला-गुरूदेव रवीन्द्रनाथ, सुमाषचन्द्र बोस,
राजा रामामोहन राय आदि को भी देखा, नाप-जोख की
और बिहार की तरफ चला । बिहार होता हुआ उत्तर प्रदेश की ओर आया...चन्द्रशेखर आजाद,
बिस्मिल, मोतीलाल नेहरु, मदमोहन मालवीय की लाटों के पास गया...घबराहट में मद्रास भी पहुंचा,
सत्यमूर्ति को भी देखा, और मैसूर, केरल आदि सभी प्रदेशों का दौरा करता हुआ पंजाब पहुंचा…लाला लाजपतराय और
भगतसिंह की लाटों से मी सामना हुआ । आखिर दिल्ली पहुंचा और अपनी मुश्किल बयान
की-"पूरे हिन्दुस्तान की मूर्तियों की परिक्रमा कर आया । सबकी नाकों का नाप
लिया…पर जार्ज पंचम…की नाक से सब बड़ी…निकलीं!.."
सुनकर सब हताश हो गए और झुंझलाने लगे । मूर्तिकार ने ढाढ़स बंधाते
हुए आगे कहा, "सुना था कि बिहार सेक्रेटेरियट के सामने
सन् ब्यालीस में शहीद होनेवाले तीन बच्चों की मूर्तियाँ स्थापित हैं...शायद बच्चों
की नाक ही फिट बैठ जाए, यह सोचकर वहाँ भी पहुंचा पर...इन
तीनों की नाकें भी इससे कहीं बड़ी बैठती हैं । अब बतायए, मैं
क्या करूँ ?"
...राजधानी में सब तैयारियां थीं । जार्ज पंचम की लाट को मल-मलकर
नहलाया गया था । रोगन लगाया गया था । सब कुछ था, सिर्फ नाक
नहीं थी !
बात फिर बड़े हुक्मरानों तक पहुंची । बड़ी खलबली मची…अगर जार्ज पंचम
के नाक न लग पाई, तो फिर रानी का स्वागत करने का मतलब ?
यह तो अपनी नाक कटानेवाली बात हुई ।
लेकिन मूर्तिकार पैसे से लाचार था...यानी हार माननेवाला कलाकार नहीं
था । एक हैरतअंगेज ख्याल उसके दिमाग में कौंधा और उसने पहली शर्त दुहराई । जिस
कमरे में कमेटी बैठी हुई थी, उसके दरवाजे फिर बन्द हुए और
मूर्तिकार ने अपनी नई योजना पेश की-"चूँकि नाक लगना एकदम जरुरी है, इसलिए मेरी राय है कि चालीस करोड़ में से कोई एक जिंदा नाक काटकर लगा दी
जाए..."
बात के साथ ही सन्नाटा छा गया । कुछ मिनटों की खामोशी के बाद सभापति
ने सबकी ओर देखा । सबको परेशान देखकर मूर्तिकार कुछ अचकचाया और धीरे-से
बोला…"आप लोग क्यों घबराते हैं । यह काम मेरे ऊपर छोड़ दीजिए...नाक चुनना मेरा
काम है...आपकी सिर्फ इजाजत चाहिए !"
कानाफूसी हुई और मूर्तिकार को इजाजत दे दी गई ।
अखबारों में सिर्फ इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ
पर इण्डिया गेट के पास वाली जार्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है ।
नाक लगने से पहले फिर हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई । मूर्ति
के आस-पास का तालाब सुखाकर साफ किया गया । उसकी खाद निकाली गई । और ताजा पानी डाला
गया, ताकि जो जिन्दा नाक लगाई जाने वाली थी वह सूखने न पाए ।
इस बात की खबर औरों को नहीं थी । यह सब तैयारियां भीतर-भीतर चल रही थीं । रानी के
आने का दिन नजदीक आता जा रहा था । मूर्तिकार खुद अपने बताए हल से परेशान था ।
जिन्दा नाक लाने के लिए उसने कमेटीवालों से कुछ और मदद मांगी । वह उसे दी गई ।
लेकिन इस हिदायत के साथ कि एक खास दिन हर हालत में नाक लग जाएगी।
और वह दिन आया ।
जार्ज पंचम के नाक लग गई ।
सब अखबारों ने खबरें छापीं कि जार्ज पंचम के जिंदा नाक लगाई गई है...यानी
ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती ।
लेकिन उस दिन के अखबारों में एक बात गौर करने की थी । उस दिन देश
में कहीं भी किसी उद्घाटन की खबर नहीं थी । किसी ने कोई फीता नहीं काटा था । कोई
सार्वजनिक सभा नहीं हुई थी । कहीं भी किसी का अभिनंदन नहीं हुआ था, कोई मानपत्र भेंट करने की नौबत नहीं आई थी । किसी हवाई अड्डे या स्टेशन पर
स्वागत-समारोह नहीं हुआ था । किसी का ताजा चित्र नहीं छपा था ।
सब अखबार खाली थे ।
पता नहीं ऐसा क्यों हुआ था ?
नाक तो सिर्फ एक चाहिए थी और वह भी बुत के लिए ।
यह बात उस समय की है जब इंग्लैंण्ड की रानी ऐलिज़ाबेथ द्वितीय मय अपने पति के हिन्दुस्तान पधारने वाली थीं। अखबारों में उनके चर्चे हो रहे थे। रोज़ लन्दन के अखबारों में ख़बरें आ रही थीं कि शाही दौरे के लिए कैसी-कैसी तैयारियाँ हो रही हैं.... रानी ऐलिजाबेथ का दर्ज़ी परेशान था कि हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर रानी क्या पहनेगी ? उनका सेक्रेटरी और जासूस भी उनके पहले ही इस महाद्वीप का तूफान दौरा करने वाला था.. आखिर कोई मजाक तो था नहीं, ज़माना चूंकी नया था, फौज-फाटे के साथ निकलने के दिन बीत चुके थे इसलिए फोटोग्राफरों की फौज तैयार हो रही थी....
इंग्लैंड के अखबारों की कतरनें हिन्दुस्तान अखबारों में दूसरे दिन चिपकी नज़र आती थी.... कि रानी ने एक ऐसा हल्के नीले रंग का सूट बनवाया है, जिसका रेशमी कपड़ा हिन्दुस्तान से मंगवाया गया है... कि करीब 400 पौंड खर्चा उस सूट पर आया है।
रानी ऐलिज़ाबेथ की जन्मपत्री भी छपी। प्रिन्स फिलिप के कारनामे छपे, और तो और उनके नौकरो, बावर्चियों खानसामों, अंगरक्षकों की पूरी-की-पूरी जीवनियां देखने में आई ! शाही महल में रहने और पलनेवाले कुत्तों तक की जीवनियाँ देखने में आईं ! शाही महल में रहने और पलने वाले कुत्तों तक की तस्वीरें अखबारों में छप गईं ....
बड़ी धूम थी। बड़ा शोर-शराबा था। शंख इंग्लैंड में बज रहा था, गूँज हिन्दुस्तान में आ रही थी।
इन अख़बारों से हिन्दुस्थान में सनसनी फैल रही थी.,....राजधानी में तहलका मचा हुआ था। जो रानी 5000 रुपये का रेशमी सूट पहनकर पालम के हवाई अड्डे पर उतरेगी उसके लिए कुछ तो होना ही चाहिए। कुछ क्या, बहुत कुछ होना चाहिए। जिसके बावर्ची पहले महायुद्ध में जान हथेली पर लेकर लड़ चुके हैं, उसकी शान-शौकत से क्या कहने और वही रानी दिल्ली आ रही है....
नई दिल्ली ने अपनी तरफ देखा और बेसाख़्ता मुंह से निकल गया –वह आएं हमारे घर, खुदा की रहमत... कभी हम उनकों कभी अपने घर को देखते हैं। और देखते-देखते नई दिल्ली का कायापलट होने लगा।
और करिश्मा तो यह था कि किसी ने किसी से नहीं कहा, किसी ने किसी को नहीं देखा- पर सड़कें जवान हो गई, बुढ़ापे की धूल साफ हो गई। इमारतों ने नाज़नीनों की तरह श्रृंगार किया....
लेकिन एक बड़ी मुश्किल पेश थी.... वह थी जार्ज पंचम की नाक ! नई दिल्ली में सब कुछ था, सब कुछ होता जा रहा था, सब कुछ हो जाने की उम्मीद थी, पर पंचम की नाक की बड़ी मुसीबत थी ! दिल्ली में सब कुछ था...सिर्फ नाक नहीं थी।
इस नाक की भी एक लम्बी दास्तान है। इस नाक के लिए बड़े तहलके मचे थे किसी वक्त ! आन्दोलन हुए थे। राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव भी दिये थे। गर्मागर्म बहसें भी हुई थीं। अखबारों के पन्ने रंग गए थे। बहस इस बात पर थी कि जार्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए ! और जैसा कि हर राजनीतिक आन्दोलन में होता है, कुछ पक्ष में थे कुछ विपक्ष में और ज्यादातर लोग खामोश थे। ख़ामोश रहनेवालों की ताकत दोनों तरफ थी...
यह आन्दोलन चल रहा था। जार्ज पंचम की नाक के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे.... क्या मजाल कि कोई उनकी नाक तक पहुँच जाए। हिन्दुस्तान में जगह-जगह ऐसी नाकें खड़ी थीं और जिन तक लोगों के हाथ पहुँच गये उन्हें शानों –शौकत के साथ उतारकर अजायबघरों में पहुँचा दिया गया। शाही लाटों की नाकों के लिए गुरिल्ला युद्ध होता रहा।.....
उसी ज़माने में यह हादसा हुआ-इंडिया गेट के सामने वाली जार्ज पंचम की लाट की नाक एकाएक गायब हो गई ! हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात रहे। गश्त लगाते रहे...और लाट चली गई।
रानी आए और नाक न हो ! ...एकाएक यह परेशानी बढ़ी। बढ़ी सरगर्मी शुरू हुई। देश के ख़ैरख़्वाहों की एक मीटिंग बुलाई गई और मसला पेश किया गया कि क्या किया जाए ?’’ वहां सभी एकमत से इस बात पर सहमत थे कि अगर यह नाक नहीं है, तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएंगी....
उच्च स्तर पर मशवरे हुए। दिमाग खरोंचे गए और यह तय किया गया कि हर हालत में इस नाक का होना बहुत जरूरी है। यह तय होते ही एक मूर्तिकार को हुक्म दिया गया कि फौरन दिल्ली में हाजिर हो। मूर्तिकार यों तो कलाकार था, पर ज़रा पैसे से लाचार था। आते ही उसने हुक्कामों के चेहरे देखे ... अजीब परेशानी थी उन चेहरों पर; कुछ लटके हुए थे, कुछ उदास थे और कुछ बदहवास थे। उनकी हालत देखकर लाचार कलाकार की आँखों में आँसू आ गए ....तभी एक आवाज सुनाई दी ‘‘मूर्तिकार ! जार्ज पंचम की नाक लगनी है।’’
मूर्तिकार ने सुना और जवाब दिया नाक लग जाएगी पर मुझे पता होना चाहिए कि यह लाट कब और कहां बनी थी ? इस लाट के लिए पत्थर कहाँ से लाया गया था ?’’
सब हुक्कामों ने एक -दूसरे की तरफ ताका...एक की नज़र ने दूसरे से कहा कि यह बताना ज़िम्मेदारी तुम्हारी है ! खैर मामला हल हुआ। एक क्लर्क को फोन किया गया और इस बात की पूरी छानबीन करने का काम सुपुर्द कर दिया गया !.... पुरातत्त्व विभाग की फाइलों के पेट चीरे गये, पर कुछ भी पता नहीं चला। क्लर्क ने लौटकर कमेटी के सामने कांपते हुए बयान किया- ‘‘सर ! मेरी खता माफ हो फाइलें सब कुछ हज़म कर चुकी हैं !’’
हुक्मरानों के चेहरों पर उदासी के बादल छा गए । एक खास कमेटी बनाई गई और उसके जिम्मे यह काम दे दिया गया कि जैसे भी हो यह काम होना है और इस नाक का दारोमदार आप पर है । आखिर मूर्तिकार को फिर बुलाया गया...उसने मसला हल कर दिया । वह बोला-"पत्थर की किस्म का ठीक पता नहीं चलता, तो परेशान मत होइए...मैँ हिन्दुस्तान के हर पहाड़ पर जाऊँगा और ऐसा ही पत्थर खोजकर लाऊँगा !" कमेटी के सदस्यों की जान-में-जान आई । सभापति ने चलते-चलते गर्व से कहा-"ऐसी क्या चीज, हैं जो अपने हिन्दुस्तान में मिलती नहीं । हर चीज़ इस देश के गर्भ में छिपी है...जरूरत खोज लाने की है...खोज करने के लिए मेहनत करनी होगी, इस मेहनत का फल हमें मिलेगा...आने वाला जमाना खुशहाल होगा ।"
वह छोटा-सा भाषण फौरन अखबारों में छप गया ।
मूर्तिकार हिन्दुस्तान के पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे पर निकल पड़े। कुछ दिन बाद वह हताश लौटे, उनके चेहरे पर लानत बरस रही थी, उन्होंने सिर लटकाकर खबर दी…"हिन्दुस्तान का चप्पा-चप्पा खोज डाला, पर इस किस्म का पत्थर कहीं नहीं मिला। यह पत्थर विदेशी है!"
सभापति ने तैश में आकर कहा-"लानत है आपकी अक्ल पर ! विदेशों की सारी चीज हम अपना चुके हैं...दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन...जब हिन्दुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता !"
मूर्तिकार चुप खड़ा था । सहसा उसकी आँखों में चमक आ गई । उसने कहा-"एक बात मैं कहना चाहूंगा, लेकिन इस शर्त पर कि यह बात अखबारवालों तक न पहुंचे..."
सभापति की आँखों में भी चमक आई । चपरासी को हुक्म हुआ और कमरे के सब दरवाजे बन्द कर दिए गए । तब मूर्तिकार ने कहा-"देश में अपने नेतायों की मूर्तियाँ भी हैं...अगर इजाजत हो...अगर आप लोग ठीक समझें, तो मेरा मतलब है, तो...जिसकी नाक इस लाट पर ठीक बैठे. उसे उतार लाया जाए..."
सवने सबकी तरफ़ देखा । सबकी आँखों में एक क्षण की बदहवासी के बाद खुशी तैरने लगी । सभापति ने धीमे से कहा…"लेकिन बड़ी होशियारी से !"
और मूर्तिकार फिर देश-दौरे पर निकल पड़ा । जार्ज पंचम की खोई हुई नाक का नाप उसके पास था । दिल्ली से वह बम्बई पहुंचा...दादाभाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, कावस जी जहाँगीर-सबकी नाकें उसने टटोलीं, नापीं और गुजरात की ओर भागा-गांधीजी, सरदार पटेल, विट्ठलभाई पटेल, महादेव देसाई की मूर्तियों को परखा और बंगाल की ओर चला-गुरूदेव रवीन्द्रनाथ, सुमाषचन्द्र बोस, राजा रामामोहन राय आदि को भी देखा, नाप-जोख की और बिहार की तरफ चला । बिहार होता हुआ उत्तर प्रदेश की ओर आया...चन्द्रशेखर आजाद, बिस्मिल, मोतीलाल नेहरु, मदमोहन मालवीय की लाटों के पास गया...घबराहट में मद्रास भी पहुंचा, सत्यमूर्ति को भी देखा, और मैसूर, केरल आदि सभी प्रदेशों का दौरा करता हुआ पंजाब पहुंचा…लाला लाजपतराय और भगतसिंह की लाटों से मी सामना हुआ । आखिर दिल्ली पहुंचा और अपनी मुश्किल बयान की-"पूरे हिन्दुस्तान की मूर्तियों की परिक्रमा कर आया । सबकी नाकों का नाप लिया…पर जार्ज पंचम…की नाक से सब बड़ी…निकलीं!.."
सुनकर सब हताश हो गए और झुंझलाने लगे । मूर्तिकार ने ढाढ़स बंधाते हुए आगे कहा, "सुना था कि बिहार सेक्रेटेरियट के सामने सन् ब्यालीस में शहीद होनेवाले तीन बच्चों की मूर्तियाँ स्थापित हैं...शायद बच्चों की नाक ही फिट बैठ जाए, यह सोचकर वहाँ भी पहुंचा पर...इन तीनों की नाकें भी इससे कहीं बड़ी बैठती हैं । अब बतायए, मैं क्या करूँ ?"
...राजधानी में सब तैयारियां थीं । जार्ज पंचम की लाट को मल-मलकर नहलाया गया था । रोगन लगाया गया था । सब कुछ था, सिर्फ नाक नहीं थी !
बात फिर बड़े हुक्मरानों तक पहुंची । बड़ी खलबली मची…अगर जार्ज पंचम के नाक न लग पाई, तो फिर रानी का स्वागत करने का मतलब ? यह तो अपनी नाक कटानेवाली बात हुई ।
लेकिन मूर्तिकार पैसे से लाचार था...यानी हार माननेवाला कलाकार नहीं था । एक हैरतअंगेज ख्याल उसके दिमाग में कौंधा और उसने पहली शर्त दुहराई । जिस कमरे में कमेटी बैठी हुई थी, उसके दरवाजे फिर बन्द हुए और मूर्तिकार ने अपनी नई योजना पेश की-"चूँकि नाक लगना एकदम जरुरी है, इसलिए मेरी राय है कि चालीस करोड़ में से कोई एक जिंदा नाक काटकर लगा दी जाए..."
बात के साथ ही सन्नाटा छा गया । कुछ मिनटों की खामोशी के बाद सभापति ने सबकी ओर देखा । सबको परेशान देखकर मूर्तिकार कुछ अचकचाया और धीरे-से बोला…"आप लोग क्यों घबराते हैं । यह काम मेरे ऊपर छोड़ दीजिए...नाक चुनना मेरा काम है...आपकी सिर्फ इजाजत चाहिए !"
कानाफूसी हुई और मूर्तिकार को इजाजत दे दी गई ।
अखबारों में सिर्फ इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इण्डिया गेट के पास वाली जार्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है ।
नाक लगने से पहले फिर हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई । मूर्ति के आस-पास का तालाब सुखाकर साफ किया गया । उसकी खाद निकाली गई । और ताजा पानी डाला गया, ताकि जो जिन्दा नाक लगाई जाने वाली थी वह सूखने न पाए । इस बात की खबर औरों को नहीं थी । यह सब तैयारियां भीतर-भीतर चल रही थीं । रानी के आने का दिन नजदीक आता जा रहा था । मूर्तिकार खुद अपने बताए हल से परेशान था । जिन्दा नाक लाने के लिए उसने कमेटीवालों से कुछ और मदद मांगी । वह उसे दी गई । लेकिन इस हिदायत के साथ कि एक खास दिन हर हालत में नाक लग जाएगी।
और वह दिन आया ।
जार्ज पंचम के नाक लग गई ।
सब अखबारों ने खबरें छापीं कि जार्ज पंचम के जिंदा नाक लगाई गई है...यानी ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती ।
लेकिन उस दिन के अखबारों में एक बात गौर करने की थी । उस दिन देश में कहीं भी किसी उद्घाटन की खबर नहीं थी । किसी ने कोई फीता नहीं काटा था । कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई थी । कहीं भी किसी का अभिनंदन नहीं हुआ था, कोई मानपत्र भेंट करने की नौबत नहीं आई थी । किसी हवाई अड्डे या स्टेशन पर स्वागत-समारोह नहीं हुआ था । किसी का ताजा चित्र नहीं छपा था ।
सब अखबार खाली थे ।
पता नहीं ऐसा क्यों हुआ था ?
नाक तो सिर्फ एक चाहिए थी और वह भी बुत के लिए ।
अभ्यास के प्रश्न
प्रश्न-1: सरकारी तंत्र में जार्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है।
उत्तर: सरकारी तंत्र में जार्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह दो तरह की मानसिकता को दर्शाती है। आधुनिक भारत में भी हम इस बात पर सबसे अधिक खुश होते हैं जब इंगलैंड या अमेरिका हमारी पीठ ठोंकता है। हमें लगता है कि हमें हर समय किसी पश्चिम के देश के सर्टिफिकेट की जरूरत है। इस मुद्दे का दूसरा पहलू है कि सरकारी तंत्र में लोग तिल का ताड़ बनाने में माहिर होते हैं।
प्रश्न-2: रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?
उत्तर: रानी एलिजाबेथ का दरजी इसलिए परेशान था कि रानी भारत, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर क्या-क्या पहनेंगीं। दरजी अपने कर्तव्य के प्रति इमानदार था। इसलिए उसकी परेशानी वाजिब थी।
प्रश्न-3:
‘और देखते
ही देखते
नई दिल्ली
का काया
पलट होने
लगा’ – नई
दिल्ली के
काया पलट
के लिए
क्या-क्या
प्रयत्न किए
गए होंगे?
उत्तर: नई
दिल्ली के
कायापलट के
लिए कई
काम किए
गए होंगे।
उदाहरण के
लिए; सड़कों
की मरम्मत,
फुटपाथ की
मरम्मत, साइनबोर्ड
और भवनों
की रंगाई
पुताई, पेड़ों
की कटाई
छँटाई, आदि।
आज
की पत्रकारिता
में चर्चित
हस्तियों के
पहनावे और
खान-पान
संबंधी आदतें
आदि के
वर्णन का
दौर चल
पड़ा है:
प्रश्न-4: इस प्रकार
की पत्रकारिता
के बारे
में आपके
क्या विचार
हैं?
उत्तर: इस प्रकार की पत्रकारिता मानसिक खालीपन को दर्शाता है। जिन पत्रकारों के पास लिखने के लिए मुद्दों का अभाव होता है वही इस प्रकार की पत्रकारिता करते हैं।
उत्तर: इस प्रकार की पत्रकारिता मानसिक खालीपन को दर्शाता है। जिन पत्रकारों के पास लिखने के लिए मुद्दों का अभाव होता है वही इस प्रकार की पत्रकारिता करते हैं।
प्रश्न-5: इस तरह
की पत्रकारिता
आम जनता
विशेषकर युवा
पीढ़ी पर
क्या प्रभाव
डालती है?उत्तर: इस
तरह की
पत्रकारिता आम
जनता को
सपनों की
दुनिया में
ले जाने
का काम
करती है।
युवा पीढ़ी
को तड़क
भड़क की
दुनिया शायद
ज्यादा भाती
है। प्राय:
हर नामचीन
अखबार के
साथ एक
रंगबिरंगा सेक्शन
छपता है
जिसमें फिल्मी
हस्तियों, खिलाड़ियों
और अन्य
मशहूर हस्तियों
की रंगबिरंगी
तस्वीरें होती
हैं। अधिकांश
युवा केवल
इस सेक्शन
को ही
ध्यान से
देखते हैं
क्योंकि गंभीर
संपादकीय से
उन्हें कोई
मतलब नहीं
होता है।
प्रश्न-6: जार्ज
पंचम की
लाट की
नाक को
पुन: लगाने
के लिए
मूर्तिकार ने
क्या-क्या
यत्न किए?
उत्तर: जार्ज
पंचम की
लाट की
नाक को
पुन: लगाने
के लिए
मूर्तिकार ने
बड़े यत्न
किए। पहले
तो वह
पूरे हिंदुस्तान
की खाक
छानता रहा
ताकि उसे
मूर्ति में
इस्तेमाल हुए
पत्थर जैसा
ही पत्थर
मिल जाए।
फिर वह
हिंदुस्तानी नेताओं
की मूर्तियों
की नाक
का मुआयना
करने निकल
पड़ा। जब
इससे भी
बात न
बनी तो
वह पटना
सेक्रेटेरियट के
पास लगी
किशोरवय स्वतंत्रता
सेनानियों की
मूर्तियों को
भी देखने
चला गया।
प्रश्न-7: प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए ‘फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं।‘ ‘सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ ताका।‘ पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
उत्तर: एक कमेटी बनाई गई जिसके जिम्मे यह काम सौंपा गया। लानत है आपकी अक्ल पर। विदेश की सारी चीजें हम अपना चुके हैं। यदि जार्ज पंचम की नाक न लग पाई तो फिर रानी का स्वागत करने का क्या मतलब।
प्रश्न-8: नाम मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए।
उत्तर: यह पूरी रचना नाक के मुद्दे पर ही आधारित है। जार्ज पंचम की नाक मुख्य मुद्दा है जिसके न रहने से महारानी के नाराज होने का खतरा है। हुक्मरानों को लगता है कि हिंदुस्तान की नाक बचाने के लिए जार्ज पंचम की नाक का पुन:निर्माण जरूरी है। मूर्तिकार को लगता है कि हिंदुस्तान के हर दिवंगत नेता की नाक जार्ज पंचम की नाक से बड़ी है। आखिरकार जब किसी आम आदमी की नाक को काटकर जार्ज पंचम की मूर्ति में लगाया जाता है तो सबको लगता है कि पूरे हिंदुस्तान की नाक कट गई। सभी अखबार इसके सांकेतिक विरोध में उस दिन कोई और खबर नहीं छापते हैं।
प्रश्न-9: जार्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है।
उत्तर: मूर्तिकार को पता चलता है कि हर भारतीय नेता; यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक; जार्ज पंचम की नाक से बड़ी है। इस कथन के द्वारा लेखक हमारे आत्मसम्मान की ओर संकेत करता है। भले ही सभी हुक्मरान रानी के स्वागत की तैयारियों में लग जाएँ लेकिन जब बात अपनी नाक की हो तो कोई विरला ही मिलेगा जो इससे समझौता करने को तैयार होगा।
प्रश्न-10: अखबारों ने जिंदा नाक लगाने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया?
उत्तर: अखबारों ने तथ्य को तोड़-मरोड़कर पेश किया। अखबारों में लिखा गया कि मूर्तिकार ने इतना बेहतर काम किया था कि नाक बिल्कुल असली लगती थी। ऐसा संभवत: दो कारणों से किया गया होगा। रानी और उनके मातहतों को ये न लगे कि उन्हें खुश करने के लिए हम अपनी नाक कटवाने को भी तैयार हो गए। दूसरा कारण ये है कि सही बात पता चलने पर जनता में आक्रोश न उत्पन्न हो जाए।
प्रश्न-11: “नई दिल्ली में सब था ......सिर्फ नाक नहीं थी।“ इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर: यह पंक्ति भी हमारी उस मानसिकता को दर्शाता है जिसके कारण हम पश्चिमी देशों को प्रगति का पर्याय मानते हैं। आपने कई नेताओं को कहते हुए सुना होगा कि पटना को हांगकांग बना देंगे या मुंबई को लंदन बना देंगे। वे शायद यह भूल जाते हैं हर शहर की अपनी एक अलग आत्मा होती है और अपना एक व्यक्तित्व होता है। लेकिन हमारी हीन भावना के कारण हम यह समझ बैठते हैं कि नई दिल्ली में सब कुछ है केवल नाक नहीं है।
प्रश्न-12: जार्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
उत्तर: जार्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन पत्रकारों को शायद अपनी बड़ी भूल का अहसास हो गया था। उस दिन केवल एक गुमनाम आदमी की नाक नहीं कटी थी बल्कि पूरे हिंदुस्तान की नाक कट गई थी। जिन अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए हजारों जिंदगियाँ कुर्बान हो गईं, उसी में से एक की बेजान बुत की नाक बचाने के लिए हमने अपनी नाक कटवा ली। इसलिए उस दिन शर्म से अखबार वाले चुप थे।
George Pancham Ki Naak Kamleshwar class 10/जार्ज पंचम की नाक-कमलेश्वर कक्षा 10George Pancham Ki Naak Kamleshwar class 10/जार्ज पंचम की नाक-कमलेश्वर कक्षा 10George Pancham Ki Naak Kamleshwar class 10/जार्ज पंचम की नाक-कमलेश्वर कक्षा 10
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