लता मंगेशकर का जीवन परिचय  |  Lata Mangeshkar ka jiwan parichay biography

लता मंगेशकर का जीवन परिचय  |  Lata Mangeshkar ka jiwan parichay biography


लता मंगेशकर 28 सितम्बर 2021 को 92 वर्ष की हो रही है। गायन के क्षेत्र में अब वे एक मिथक बन चुकी हैं। उनकी आवाज दुनिया के किसी हिस्से के भूगोल में कैद न होकर ब्रह्माण्ड व्यापी बन चुकी हैं। उन्हें संगीत की दुनिया में सरस्वती का अवतार माना जाता है। हम कह सकते हैं कि हमारे पास एक चांद है, एक सूरज है तो एक लता मंगेशकर भी है। सचमुच अद्भुत, अकल्पित, आश्चर्यकारी है उनका रचना, स्वर एवं संगीत संसार। इसे चमत्कार नहीं माना जा सकता, इसे आवाज का कोई जादू भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि यह हूनर, शोहरत एवं प्रसिद्धि एक लगातार संघर्ष एवं साधना की निष्पत्ति है। एक लंबी यात्रा है संघर्ष से सफलता की, नन्हीं लता से भारतरत्न स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर बनने तक की। संगीत की उच्चतम परंपराओं, संस्कारों एवं मूल्यों से प्रतिबद्ध एक महान् व्यक्तित्व है-लता मंगेशकर

स्वर-माधुर्य की साम्राज्ञी है लता मंगेशकर

लता मंगेशकर एक महान जीवन की अमर गाथा है। उनका जीवन अथाह ऊर्जा से संचालित एवं स्वप्रकाशी है। वह एक ऐसा प्रकाशपुंज है, जिससे निकलने वाली एक-एक रश्मि का संस्पर्श जड़ में चेतना का संचार कर सकता है। वो ब्रह्म है। कोई उससे बड़ा नहीं। वो प्रथम सत्य है और वही अंतिम सत्ता भी। वो स्वर है, ईश्वर है, यह केवल संगीत की किताबों में लिखी जाने वाली उक्ति नहीं, यह संगीत का सार है और इसी संगीत एवं स्वर-माधुर्य की साम्राज्ञी है लता मंगेशकर। गीत, संगीत, गायन और आवाज की जादूगरी की जब भी चर्चा होती है, सहज और बरबस ही एक नाम लोगों के होठों पर आ जाता है- लता मंगेशकर।

लता मंगेशकर का जन्म

लताजी का जन्म 28 सितंबर, 1929 इंदौर, मध्यप्रदेश में हुआ था। उनके पिता दीनानाथमंगेशकर एक कुशल रंगमंचीय गायक थे। लता का पहला नाम हेमाथा, मगर जन्म के 5 साल बाद माता-पिता ने इनका नाम लतारख दिया था और इस समय दीनानाथजी ने लता को तब से संगीत सिखाना शुरू किया। उनके साथ उनकी बहनें आशा, ऊषा और मीना भी सीखा करतीं थीं। लता हमेशा से ही ईश्वर के द्वारा दी गई सुरीली आवाज, जानदार अभिव्यक्ति व बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली अविश्वसनीय एवं विलक्षण क्षमता का उदाहरण रहीं हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी इस प्रतिभा को बहुत जल्द ही पहचान मिल गई थी। लेकिन पांच वर्ष की छोटी आयु में ही आपको पहली बार एक नाटक में अभिनय करने का अवसर मिला। शुरुआत अवश्य अभिनय से हुई किंतु आपकी दिलचस्पी तो संगीत में ही थी। इस शुभ्रवसना सरस्वती के विग्रह में एक दृढ़ निश्चयी, गहन अध्यवसायी, पुरुषार्थी और संवेदनशील संगीत-साधिका-आत्मा निवास करती है। उनकी संगीता-साधना, वैचारिक उदात्तता, ज्ञान की अगाधता, आत्मा की पवित्रता, सृजन-धर्मिता, अप्रमत्तता और विनम्रता उन्हें विशिष्ट श्रेणी में स्थापित करती है।

लता मंगेशकर की संगीत साधना

लताजी के पूर्वजों का पुण्य प्रबल था और उसी पुण्य की बदौलत बचपन के संघर्षपूर्ण हालातों में किसी सज्जन व्यक्ति की प्रेरणा से मास्टर विनायक की प्रफुल्ल पिक्चर्ससंस्था में लता को प्रवेश मिल गया। उस संस्था ने राजाभाऊ’, ‘पहली मंगल गौर’ ‘चिमुक संसारजैसे मराठी चित्रों में छोटी-छोटी भूमिकाएं मिलीं, जिन्हें लताजी ने बड़ी खूबी से निभाया। लताजी का लक्ष्य अभिनय की दुनिया नहीं था, वे संगीत की दुनिया में जाना चाहती थी। सौभाग्य से उन्हें पितृतुल्य संरक्षण और स्नेह देनेवाले गुरु खां साहब अमान अली मिल गए। उन्होंने डेढ़ साल तक लताजी को तालीम दी। तब लताजी ने हिन्दी-उर्दू का अभ्यास कर उच्चारण-दोष दूर करने का प्रयास शुरू कर दिया उनकी इस श्रम-साधना ने ही उन्हें यशस्वी गायिका बनाकर सफलता के सुमेरु पर पहुंचाया। हैदर साहब ने उन्हीं दिनों बाम्बे टाकीज में बन रही फिल्म मजबूरके लिए उन्हें पाश्र्वगायिका के रूप में लिया। मजबूरके गाने बड़े लोकप्रिय हुए और यहीं से लताजी का भाग्योदय शुरू हुआ। एक गुलाम हैदर ही क्या, 1947 से 2021 तक शायद एक भी ऐसा संगीत-निर्देशक नहीं होगा, जिसने लता से कोई न कोई गीत गवाकर अपने आपको धन्य न किया हो।

लता मंगेशकर ने किन संगीतकारों के साथ काम किया

लताजी के प्रशंसकों की संख्या दिनोंदिन बढ़ने लगी। इस बीच आपने उस समय के सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया। अनिल विश्वास, सलिल चैधरी, शंकर जयकिशन, एस.डी.बर्मन, आर.डी.बर्मन, नौशाद, मदनमोहन, सी. रामचंद्र इत्यादि सभी संगीतकारों ने आपकी प्रतिभा का लोहा माना। लताजी ने दो आंखें बारह हाथ, दो बीघा जमीन, मदर इंडिया, मुगल-ए-आजम आदि महान फिल्मों में गाने गाए हैं। आपने महल”, “बरसात”, “एक थी लड़की”, “बड़ी बहनआदि फिल्मों में अपनी आवाज के जादू से इन फिल्मों की लोकप्रियता में चार चांद लगाए।  

ऐ मेरे वतन के लोगों' सुनकर नेहरूजी रो पड़े थे

सात दशक की उनकी स्वर यात्रा में उनकी व्यक्तिगत ख्याति इतनी शिखरों पर आरुढ़ हो गई, कि लता अगर किसी संगीत-निर्देशक के लिए गाने से इंकार कर दें तो उसे फिल्म इंडस्ट्री से अपना बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ जाएगा। लता की एक सिद्धि और भी थी- जिसकी भाषा और उच्चारण की खिल्ली उड़ाई गई थी, एक दिन सभी भाषाओं पर उनका प्रभुत्व स्थापित हो गया। लोग उनसे उच्चारण सीखने लगे। फिल्मी गीतों के अतिरिक्त गैर फिल्मी गीतों और भजनों की भी रिकार्डिंग होती रही। सरकारी सम्मान के लिए भी जहां-तहां लता को ही बुलाया जाता रहा। चीनी आक्रमण के समय पंडित प्रदीप के अमर गीत ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी गाने के लिए लताजी को दिल्ली बुलवाया गया था। यह गीत सुनकर नेहरूजी रो पड़े थे। तो इतनी बड़ी मांग की आपूर्ति लता अकेले कैसे कर सकती थीं?

लताजी की सादगी एवं सरल स्वभाव

लताजी बहुत ही सादगीप्रिय एवं सरल स्वभाव की हैं। इतनी बड़ी कीर्ति और ऐश्वर्य के अभिमान का अहंकार उनमें कभी नहीं देखा गया। उनको आभूषणों का शौक नहीं, पहनने-ओढ़ने का शौक नहीं, खान-पान की भी शौकीन नहीं है। जीवन में दो ही बातों की उनमें लगन है, पहली अध्यात्म की, जिस पर वे विशेष ध्यान देती हैं और दूसरी शास्त्रीय संगीत सीखने की। लेकिन यह वे सब परमेश्वर की कृपा मानती है। लताजी को संगीत के अलावा खाना पकाने और फोटो खींचने का बहुत शौक है।

लता जी का स्वर तो सरस्वती जी का आशिर्वाद है 

गीत और संगीत का प्रवाह थमा नहीं है, कभी थमेगा भी नहीं। नादब्रह्म अभी निनादित है। गायक-गायिकाओं की लंबी कतारें आगे-पीछे होती रहेंगी। शिखर को छूने के प्रयत्न होते रहेंगे, किंतु लता मंगेशकर जिस शिखर पर पहुंचती हैं, वहां तक पहुंचने के सपने देखना भी बड़ी बात है। सृष्टि के गहन शून्य में शिव के डमरू से निकला नाद, प्रथम स्वर, प्रथम सूत्र और जगत में जीवंत हो उठा संगीत का संसार। संपूर्ण जगत नाचने लगा एक स्वर, एक लय, एक ताल में बंधकर। यह लय जिससे भी जाकर मिली तो स्वयं ब्रह्म हो गया। हर कामना से रहित, आत्मस्थित, आत्मप्रज्ञ। किसी ने इसे समाधि कहा और किसी ने मोक्ष, लेकिन साधक के लिए यह शांति है, आनंद है। अपूर्व, आध्यात्मिक शांति। अक्षरों में इसकी खोज व्यर्थ है। इसे समझने के लिए स्वरों को साथी बनाना पड़ता है और लता के स्वर तो सरस्वती के कंठ हैं। लता की स्वर की संगत को किसी आध्यात्मिक समागम से कम नहीं आंका जा सकता। जिन्होंने लता को नहीं सुना तो कभी नहीं जान पाएंगे कि उन्होंने क्या खो दिया।

भारत रत्न लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय गायिका

भारत रत्न लता मंगेशकर, भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका हैं, जिनका आठ दशकों का कार्यकाल विलक्षण एवं आश्चर्यकारी उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालांकि लताजी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में 30 हजार से ज्यादा फिल्मी और गैर-फिल्मी गाने गाए हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पाश्र्वगायक के रूप में रही है। सन 1974 में दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज बुक रिकॉर्डउनके नाम पर दर्ज है। उनकी जादुई आवाज के दीवाने भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पाश्र्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है।

भारत की स्वर कोकिला’ लता मंगेशकर 

वे फिल्म इंडस्ट्री की पहली महिला हैं जिन्हें भारत रत्न और दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त हुआ। वर्ष 1974 में लंदन के सुप्रसिद्ध रॉयल अल्बर्ट हॉल में उन्हें पहली भारतीय गायिका के रूप में गाने का अवसर प्राप्त है। उनकी आवाज की दीवानी पूरी दुनिया है। उनकी आवाज को लेकर अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी कह दिया कि इतनी सुरीली आवाज न कभी थी और न कभी होगी। भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर की आवाज सुनकर कभी किसी की आंखों में आंसू आए, तो कभी सीमा पर खड़े जवानों को हौंसला मिला। वे न केवल भारत बल्कि दुनिया के संगीत का गौरव एवं पहचान है। 

निधन (Death)

भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर की दिनांक 06 फ़रवरी 2022 को मुंबई के  Breach Candy  हॉस्पिटल में कोरोना के कारण मृत्यु हो गई। 

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