चार्ली चैप्लिन यानी हम सब Charlie Chaplin yani hum sab class 12
संसार
के महानतम् अभिनेता चार्ली चैप्लिन के बारे में रचित इस निबंध में चार्ली के अभिनय
की आधारभूत विशेषताओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं। चार्ली के अभिनय
में हास्य और करुणा का मिश्रित संतुलन ही उन्हें आम जनता के अपने कष्टों और दुखों
तक ले जाता है। इस तरह वे अभिनय के माध्यम से आम जन से सीधे जुड़ाव करते हैं।
चार्ली के जीवन के एक सौ
तीस साल पूरे हो चुके हैं, और उनकी फिल्में बच्चों से लेकर
बूढ़ों तक लगातार अपनी लोकप्रियता बनाये हुए हैं। उनकी पहली फिल्म थी, ‘मेकिंग ए लिविंग’ उसे बने हुए भी सौ साल से ज्यादा हो रहे हैं।
चार्ली की फिल्मों का मूल
बुद्धि पर नहीं, भावनाओं और मनुष्यता पर टिका हुआ है। उनकी
फिल्मों की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि उन्हें पागलखाने के मरीज, साधारण जन और आइंस्टीन जैसे महान प्रतिभावान एक साथ देख सकते हैं और उसका
आनंद ले सकते हैं।
चार्ली ने फिल्म कला को
लोकतांत्रिक बनाया और दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को भी तोड़ा। चार्ली के
बचपन की कुछ घटनाओं ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। उनमें से एक यह है, कि जब वे बीमार थे, तब उनकी मां ने उन्हें ईसा मसीह
के जीवन के बारे में पढ़कर सुनाया था। उससे उन्हें स्नेह, करुणा
और मानवता के गुणों को ग्रहण किया था।
करुणा को हास्य में और
हास्य को करुणा में बदल देने वाले वे एकमात्र अभिनेता हैं। भारतीय फिल्मों और
अभिनेताओं पर भी चार्ली का खासा असर देखा जा सकता है। राजकपूर तो जीवन भर चार्ली
से ही प्रेरित रहे। चार्ली की अधिकतर फिल्में मूक हैं। भाषा से परे। इसीलिये
उन्हें ज्यादा से ज्यादा मानवीय होना पड़ा। मानवीयता की भाषा ने ही चार्ली को विश्व
भर के दर्शकों तक पहुंचाया। चार्ली की फिल्में आम आदमी की विविध असफलताओं को
दिखाती हैं, जो कि असल में उसकी असफलताएं नहीं हैं,
बल्कि एक क्रूरतावादी सभ्यता के आगे लाचार हो गये आम आदमी का कड़वा
सच हैं।
इस आम आदमी के साथ खड़े
चार्ली सदा अमर रहेंगे।
गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर :
गद्यांश:
अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली होते हैं, जिसके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं। हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है। अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में हम क्लैव्य और पलायन के शिकार हो सकते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए जीत भी सकते हैं। मूलतः हम सब चार्ली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्शों में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।
अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली होते हैं, जिसके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं। हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है। अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में हम क्लैव्य और पलायन के शिकार हो सकते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए जीत भी सकते हैं। मूलतः हम सब चार्ली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्शों में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।
प्रश्न : 1 : अपने
जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम क्या होते हैं?
उत्तर : अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली होते हैं।
उत्तर : अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली होते हैं।
प्रश्न : 2 : किनके
रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं?
उत्तर : जो लोग अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में चार्ली के टिली होते हैं, उनके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं।
उत्तर : जो लोग अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में चार्ली के टिली होते हैं, उनके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं।
प्रश्न : 3 : मूलतः हम
सब चार्ली क्यों हैं?
उत्तर : मूलतः हम सब चार्ली इसलिये हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते।
उत्तर : मूलतः हम सब चार्ली इसलिये हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते।
प्रश्न : 4 : जब हम
आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली क्यों हो जाता है?
उत्तर : जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली इसलिये हो जाता है, क्योंकि सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में हम पराजित हो जाते हैं।
उत्तर : जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली इसलिये हो जाता है, क्योंकि सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में हम पराजित हो जाते हैं।
चार्ली चैप्लिन यानी हम सब के प्रश्नोत्तर।
प्रश्न : 1 : लेखक ने
ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी
कुछ कहा जाएगा?
उत्तर : लेखक के ऐसा कहने के कारण इस प्रकार हैं-
1. पश्चिम में बार-बार चार्ली का समय लौटता हुआ दिखायी देता है।
2. चार्ली की अभिनय कला की इतनी परतें हैं, कि फिल्म-समीक्षा को भी अपने नये मानदंड बनाने के लिये विवश होना पड़ेगा।
3. विकासशील दुनिया में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है, निरंतर नया दर्शक वर्ग चार्ली की फिल्मों को देखने के लिए तैयार होता रहा है।
4. चैप्लिन की ऐसी कुछ फ़िल्में और इस्तेमाल में न लायी गई रीलें प्राप्त हुई हैं, जिनके बारे में अब तक लोगों को पता न था। इन पर भी चर्चा होगी।
उत्तर : लेखक के ऐसा कहने के कारण इस प्रकार हैं-
1. पश्चिम में बार-बार चार्ली का समय लौटता हुआ दिखायी देता है।
2. चार्ली की अभिनय कला की इतनी परतें हैं, कि फिल्म-समीक्षा को भी अपने नये मानदंड बनाने के लिये विवश होना पड़ेगा।
3. विकासशील दुनिया में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है, निरंतर नया दर्शक वर्ग चार्ली की फिल्मों को देखने के लिए तैयार होता रहा है।
4. चैप्लिन की ऐसी कुछ फ़िल्में और इस्तेमाल में न लायी गई रीलें प्राप्त हुई हैं, जिनके बारे में अब तक लोगों को पता न था। इन पर भी चर्चा होगी।
प्रश्न : 2 :
चैप्लिन ने न सिर्फ़ फ़िल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों
की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने का और
वर्ण-व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत
हैं?
उत्तर : लोकतांत्रिक बनाने का अर्थ है, फिल्म कला को आम जनता
के सरोकारों से जोड़ना। वर्ग और वर्ण-व्यवस्था को तोड़ने का आशय है, समाज में प्रचलित अमीर-गरीब, वर्ण, जाति और धर्म के भेदभाव से परे रहकर कला का सृजन करना। चार्ली ने
फिल्म-दर्शकों को वर्ग और वर्ण व्यवस्थावादी दृष्टि से देखने की परंपरा को तोड़ा।
इससे पहले लोग जाति, धर्म, समूह या
वर्ण के लिए फ़िल्म बनाते थे। कुछ कलात्मक फ़िल्में भी बनती थीं, जिनका खास दर्शक वर्ग होता था, परंतु चार्ली ने ऐसी
फ़िल्में बनाई जिनको देखकर आम आदमी उससे अपना रिश्ता जोड़ सके और आनंद भी अनुभव करे।
इसलिये हम प्रश्नकर्ता से सहमत हैं।
चार्ली ने अपनी फ़िल्मों
में आम आदमी को स्थान दिया, इसलिए उनकी फिल्मों ने समय,
भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं को लाँघ कर सार्वभौमिक लोकप्रियता
हासिल की। चार्ली ने यह सिद्ध कर दिया कि कला स्वतन्त्र होती है, वह अपने सिद्धांत स्वयं बनाती है।
प्रश्न : 3 : लेखक ने
चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गाँधी और नेहरू ने
भी उनका सानिध्य क्यों चाहा?
उत्तरः- लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण राजकपूर द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘आवारा’ को कहा
है, क्योंकि इसी फ़िल्म में पहली बार राजकपूर ने फ़िल्म के
नायक को लोगों की दृष्टि में परिहास का पात्र बनाया था। इस फ़िल्म के बाद से भारतीय
फ़िल्मों में चार्ली की तरह ही नायक-नायिकाओं की खुद पर हँस सकने वाली फिल्मों की
परंपरा आरंभ हुई।
गाँधी जी और नेहरु जी इस कारण वे चार्ली का सानिध्य चाहते थे, क्योंकि वे चार्ली की तरह ही विश्व-मानव थे। सीमाओं से परे और मनुष्यता से अटूट प्रेम करने वाले। आम आदमी के साथ जुड़ाव रखने वाले।
गाँधी जी और नेहरु जी इस कारण वे चार्ली का सानिध्य चाहते थे, क्योंकि वे चार्ली की तरह ही विश्व-मानव थे। सीमाओं से परे और मनुष्यता से अटूट प्रेम करने वाले। आम आदमी के साथ जुड़ाव रखने वाले।
प्रश्न : 4 : लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों?
क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?
उत्तरः- लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में रस को श्रेयस्कर माना है। इसका कारण
यह है कि किसी भी कलाकृति में एक साथ कई रसों के आ जाने से कला अधिक समृद्धशाली और
रुचिकर हो जाती है। उदाहरण स्वरुप किसी चोर का चोरी के उद्देश्य से घर में घुसना,
घुसते हुए डरना (भयानक रस), फिर कमरे में सोयी
किसी युवती के सौंदर्य पर मुग्घ होना (श्रृंगार रस), और किसी
आहट को पाकर खिड़की से कूद जाना (वीर रस) कई रसों की एक साथ सृष्टि करेगा।
प्रश्न : 5 : जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे संपन्न बनाया?
उत्तरः- चार्ली का बचपन संघर्षों में बीता था। पिता से अलगाव,
परित्यक्ता माँ, दूसरे दर्जे की स्टेज
अभिनेत्री का बेटा होना, दरिद्रता और माँ का पागलपन की
बीमारी से संघर्ष करना उसके जीवन को दुखपूर्ण बनाती रहीं। इसके अलावा साम्राज्य,
पूंजीवाद तथा सामंतशाही के दुष्प्रभाव से मगरूर समाज द्वारा अपमानित
किया जाना, ठुकराया जाना जैसी जटिल परिस्थितियों ने चार्ली
को एक ‘घुमंतू’ चरित्र बना दिया था। उन्होंने बड़े माने जाने लोगों की असली सच्चाई
को अपनी आँखों से देखा और उसे अनुभूत करके अपनी फ़िल्मों में उनका चित्रण करके उन
पर हंसने का अवसर आम आदमी को मुहैया कराया।
प्रश्न : 6 : चार्ली चैप्लिन की फ़िल्मों में निहित त्रासदी/करूणा/हास्य का सामंजस्य
भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?
उत्तर : चार्ली चैप्लिन की फ़िल्मों में निहित त्रासदी/करूणा/हास्य का सामंजस्य
भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में इसलिये नहीं आता, क्योंकि भारतीय कला में रसों की महत्ता तो है, परंतु
करुण रस के साथ हास्य रस का सामंजस्य करना भारतीय कला परंपरा में नहीं है।
हमारे यहां हास्य को
करुणा में नहीं बदला जाता। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ में जो हास्य है, वह ‘दूसरों’ पर है और दूसरे के दुखों से प्रेरित है। संस्कृत के नाटकों
में जो विदूषक पात्र रचा गया है, वह राज-व्यक्तियों से कुछ
बदतमीजियाँ तो अवश्य करता है, किंतु करुणा और हास्य का
सामंजस्य उसमें भी नहीं पाया जाता।
प्रश्न : 7 : चार्ली सबसे ज्य़ादा स्वयं पर कब हँसता है?
उत्तरः- चार्ली स्वयं पर सबसे ज्य़ादा तब हँसता है, जब वह
स्वयं को गर्वोन्नत, आत्म-विश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा
समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्य़ादा शक्तिशाली तथा
श्रेष्ठ, अपने ‘वज्र से भी कठोर’ अथवा ‘फूल से भी कोमल’ क्षण
में प्रदर्शित करता है।
प्रश्न : 8 : आपके विचार से मूक और सवाक् फ़िल्मों में से किसमें ज्य़ादा परिश्रम करने की
आवश्यकता है और क्यों?
उत्तर : मेरे विचार से सवाक् फिल्मों की तुलना में मूक फ़िल्मों में ज्य़ादा परिश्रम
करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि सवाक फ़िल्मों में कलाकार
अपने अभिनय के साथ संवादों का लाभ भी ले सकता है। मूक फ़िल्मों में कलाकार को केवल
अपने गहरे अभिनय और देह-भाषा के सहारे ही सब कुछ अभिव्यक्त करना पड़ता है।
प्रश्न : 9 : ‘चार्ली हमारी वास्तविकता है, जबकि सुपरमैन स्वप्न’,
आप इन दोनों में खुद को कहाँ पाते हैं?
उत्तर : मैं इन दोनों में अपने आप को चार्ली के करीब पाता हूँ, क्योंकि एक आम इंसान होने के कारण हमारी तकलीफें सदा हमारे साथ होती हैं।
उच्चकोटि के नायकत्व वाले स्वप्न देखकर भी हम असल जिंदगी में सदा बेचारे और लाचार
ही रहे आते हैं।
प्रश्न : 10 : आजकल विवाह आदि उत्सव, समारोहों एवं रेस्तराँ में आज
भी चार्ली चैप्लिन का रूप धर किसी व्यक्ति से आप अवश्य टकराए होंगे। सोचकर बताइए
कि बाज़ार ने चार्ली चैप्लिन का कैसा उपयोग किया है?
उत्तर : बाज़ार ने चार्ली की असीम लोकप्रियता का उपयोग अपने ग्राहकों को लुभाने और खुद चार्ली को मात्र उपहास का प्रतीक बना देने में किया है। वे उसके लिये एक फायदावादी चरित्र से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
भाषा की
बात
प्रश्न : 1 : ‘…तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है’। वाक्य में चार्ली शब्द की पुनरुक्ति
से किस प्रकार की अर्थ-छटा प्रकट होती है? इसी प्रकार के
पुनरुक्त शब्दों का प्रयोग करते हुए कोई तीन वाक्य बनाइए। यह भी बताइए कि संज्ञा
किन स्थितियों में विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने लगती है?
उत्तर : तो चेहरा
चार्ली-चार्ली हो जाता है। वाक्य में ‘चार्ली’ शब्द की पुनरुक्ति आम आदमी की
बेचारगी का बोध कराती है।
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