सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
अट नहीं रही है
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तनसट नहीं रही है।
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज (भाग 2)' में संकलित कविता 'अट नहीं रही है' से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' जी हैं। इस कविता में कवि ने फागुन मास की मनोहारी व मादक शोभा का सजीव चित्रण किया है।
भावार्थ : इस कविता
में कवि ने वसंत ऋतु की सुंदरता का बखान किया है। वसंत ऋतु का आगमन हिंदी के फगुन
महीने में होता है। ऐसे में फागुन की आभा इतनी अधिक है कि वह कहीं समा नहीं पा रही
है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज (भाग 2)' में संकलित कविता 'अट नहीं रही है' से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' जी हैं। इस कविता में कवि ने फागुन मास की मनोहारी व मादक शोभा का सजीव चित्रण किया है।
भावार्थ : वसंत जब
साँस लेता है तो उसकी खुशबू से हर घर भर उठता है। कभी ऐसा लगता है कि बसंत आसमान
में उड़ने के लिए अपने पंख फड़फड़ाता है। कवि उस सौंदर्य से अपनी आँखें हटाना चाहता
है लेकिन उसकी आँखें हट नहीं रही हैं।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,कहीं पड़ी है उर में
मंद गंध पुष्प माल,
पाट-पाट शोभा श्री
पट नहीं रही है।
प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज (भाग 2)' में संकलित कविता 'अट नहीं रही है' से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' जी हैं। इस कविता में कवि ने फागुन मास की मनोहारी व मादक शोभा का सजीव चित्रण किया है।
भावार्थ : पेड़ों पर
नए पत्ते निकल आए हैं, जो कई रंगों के हैं। कहीं-कहीं पर कुछ पेड़ों के
गले में लगता है कि भीनी-भीनी खुशबू देने वाले फूलों की माला लटकी हुई है। हर तरफ
सुंदरता बिखरी पड़ी है और वह इतनी अधिक है कि धरा पर समा नहीं रही है।
अट नहीं रही है कविता का काव्य सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य :
यहां कवि यह
कहना चाहता है कि फागुन के महीने में प्रकृति सर्वत्र सुंदर दिखाई देती है। इन
पंक्तियों में तत्सम व तद्भव शब्दावली युक्त साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया
गया है। भाषा प्रसाद गुण युक्त व लाक्षणिक है। छंद मुक्त होने के बावजूद इन
पंक्तियों में सुर, लय व संगीत का पूर्ण निर्वाह
हुआ है। वर्णनात्मक शैली में रचित इन पंक्तियों में दृश्य व गंध बिंब का सफल
प्रयोग हुआ है। ‘पट नहीं रही है’ मुहावरे का सफल प्रयोग हुआ है।
अट नहीं रही है कविता के अभ्यास के प्रश्न :
प्रश्न: छायावाद की एक खास
विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन
पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर: कविता की कई पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है। उदाहरण के लिए;
जब कवि कहता है, ‘आभा फागुन की तन सट नहीं रही
है।‘ एक अन्य उदाहरण उस पंक्ति से लिया जा सकता जिसमें कवि कहता है कि उसकी आँखें
हट नहीं रही है चाहे वह उन्हें लाख हटाना चाहता है।
प्रश्न: कवि की आँख फागुन की
सुंदरता से क्यों हट नहीं रही है?
उत्तर: फागुन की सुंदरता इतनी गजब की है कि कवि के न चाहते हुए भी उसकी आँखें
उसपर से हट नहीं रही है। ऐसा अक्सर होता है जब हम किसी अत्यंत खूबसूरत चीज या
व्यक्ति को देखते हैं तो हमारी आँखें उसपर जैसे अनंत काल के लिए टिक जाती हैं।
प्रश्न: फागुन में ऐसा क्या होता
है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
उत्तर: हर ऋतु की अपनी विशेषता होती है। लेकिन फागुन शायद अन्य सब ऋतुओं से अलग
है। फागुन में दृश्यपटल पर तरह तरह के रंग बिखरे हुए मिलते हैं। यह वह ऋतु होती है
जब पेड़ों में नए पत्ते निकलते हैं और नाना प्रकार के फूल खिलते हैं। हवा में फूलों
की मादक सुगंध भरी हुई होती है।
प्रश्न: इन कविताओं के आधार पर
निराला के काव्य शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: निराला प्रकृति के बारे में लिखने वाले कवि थे। उनकी कविताओं में खड़ी
हिंदी का प्रयोग हुआ है। वे विभिन्न प्रकार के उपमाओं और अलंकारों के संयोजन से
प्रकृति की सुंदरता का बयान करते हैं।
अट नहीं रही है कविता के आधार पर निराला के काव्य शिल्प की विशेषताएं:
काव्य शिल्प का अर्थ है - कविता का कला पक्ष। इसे
हम अभिव्यक्ति पक्ष भी कहते हैं। निराला जी ने इन कविताओं में संस्कृत निष्ठ तत्सम
प्रधान साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है। कवि का शब्द चयन सर्वथा उचित और सटीक है। लेकिन कहीं-कहीं वे ठेठ ग्रामीण शब्दों का
प्रयोग करते हैं । कवि ने इन कविताओं में नाद सौंदर्य का विशेष ध्यान रखा है। गीती शैली की सभी विशेषताएं जैसे यथार्थ, अनुभूति, गेयता, प्रभाहमयी भाषा
इन कविताओं में देखी जा सकती है। यही नहीं छायावादी कविताएं होने के कारण कवि ने
सांकेतिक तथा प्रतीकात्मक शब्दावली का भी प्रयोग किया है। मुक्त छंद में रचित इन
कविताओं में निराला जी ने अनुप्रास, पुनरुक्ति-प्रकाश, उपमा, विशेषोक्ति एवं मानवीकरण अलंकारों का सफल
प्रयोग किया है।
अट नहीं रही है-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला/Nirala ki kavita at nahi rahi hai/At nahi rahi hai/at nahi rahi hai kavita ka saar/अट नहीं रही है कविता का भावार्थ
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