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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन | Gandhi Jayanti 2021 |
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन | Gandhi Jayanti 2021
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन 2 अक्टूबर अब अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। गांधी की अहिंसा ने भारत को गौरवान्वित किया है, भारत ही नहीं, दुनियाभर में अब उनकी जयन्ती को बड़े पैमाने पर अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। गांधी के अनुयायियों एवं उनमें आस्था रखने वाले उन तमाम लोगों को इससे हार्दिक प्रसन्नता हुई है जो बापू के सिद्वान्तों से गहरे रूप में प्रभावित हैं, अहिंसा के प्रचार-प्रसार में निरन्तर प्रयत्नशील हैं। यह बापू की अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता का बड़ा प्रमाण है। यह एक तरह से गांधीजी को दुनिया की एक विनम्र श्रद्वांजलि है। यह अहिंसा के प्रति समूची दुनिया की स्वीकृति भी कही जा सकती है। पडोसी देश पाकिस्तान को भी अहिंसा की प्रासंगिकता और ताकत को समझते हुए आतंकवाद को प्रोत्साहन देना बन्द करना चाहिए।
हमें अपने विकारों और आवेगों पर विजय प्राप्त करना है
आज विज्ञान ने भौगोलिक दूरी पर विजय प्राप्त की है।
सारा संसार एक गेंद के समान छोटा हो गया है, पर दूसरी ओर भाई-भाई में मानसिक खाई चौड़ी होती जा
रही है। इस विरोधाभास के कारण पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में
बिखराव और तनाव बढ़ रहा है। यदि अहिंसा, शांति और समता की व्यापक प्रतिष्ठा नहीं होगी तो
भौतिक सुख-साधनों का विस्तार होने पर भी मानव शांति की नींद नहीं सो सकेगा।
अध्यात्म के आचार्यों ने हिंसा और युद्ध की मनोवृत्ति को बदलने के लिए
मनोवैज्ञानिक भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने कहा है- युद्ध करना परम धर्म है, पर सच्चा योद्धा वह है, जो दूसरों से नहीं स्वयं से युद्ध करता
है, अपने
विकारों और आवेगों पर विजय प्राप्त करता है। जो इस सत्य को आत्मसात कर लेता है, उसके जीवन की सारी दिशाएं बदल जाती हैं।
वह अपनी शक्तियों का उपयोग स्व-पर कल्याण के लिए करता है। जबकि एक हिंसक अपनी
बुद्धि और शक्ति का उपयोग विनाश और विध्वंस के लिए करता है। पडौसी देश को अपनी
अवाम के बारे में सोचना चाहिए। शायद वह कभी भी हिंसा एवं युद्ध नहीं चाहती है।
गांधी की प्रासंगिकता चमत्कारिक ढंग से बढ़ रही है
गांधीजी आज संसार के सबसे लोकप्रिय भारतीय बन गये हैं
संघर्षरत लोगों के लिये गांधी का सत्याग्रह ही सबसे माकूल हथियार है
आज जबकि समूची दुनिया में संघर्ष की स्थितियां बनी
हुई हैं, हर कोई
विकास की दौड़ में स्वयं को शामिल करने के लिये लड़ने की मुद्रा में है, कहीं सम्प्रदाय के नाम पर तो कहीं
जातीयता के नाम पर, कहीं
अधिकारों के नाम पर तो कहीं भाषा के नाम पर संघर्ष हो रहे हैं, ऐसे जटिल दौर में भी संघर्षरत लोगों के
लिये गांधी का सत्याग्रह ही सबसे माकूल हथियार नजर आ रहा है। पर्यावरणवादी हों या
अपने विस्थापन के विरुद्ध लड़ रहे लोग, सबको गांधीजी से ही रोशनी मिल रही है। क्योंकि
अहिंसा ही एक ऐसा शस्त्र है जिसमें तमाम तरह की समस्याओं के समाधान निहित हैं।
भारत की भूमि से यह स्वर लगातार उठता रहा है कि दुनिया की नई-नई उभरने वाली
समस्याओं के समाधान भारत के पास हैं। ऐसा इसलिये भी कहा जाता रहा है क्योंकि भारत
के पास महावीर, बुद्ध, गांधी जैसे महापुरुषों की एक समृद्ध
विरासत है।
जियो और जीने दो
भगवान महावीर कितना सरल किन्तु सटीक कहते हैं- सुख
सबको प्रिय है, दुःख
अप्रिय। सभी जीना चाहते हैं, मरना कोई
नहीं चाहता। हम जैसा व्यवहार स्वयं के प्रति चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार दूसरों के प्रति भी
करें। यही मानवता है और मानवता का आधार भी। मानवता बचाने में है, मारने में नहीं। किसी भी मानव, पशु-पक्षी या प्राणी को मारना, काटना या प्रताड़ित करना स्पष्टतः अमानवीय
है, क्रूरतापूर्ण
है। हिंसा-हत्या और खून-खच्चर का मानवीय मूल्यों से कभी कोई सरोकार नहीं हो सकता।
मूल्यों का सम्बन्ध तो ‘जियो और
जीने दो’ जैसे सरल
श्रेष्ठ उद्घोष से है।
अहिंसा व्यक्ति में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का संचार करती है
सह-अस्तित्व के लिए अहिंसा अनिवार्य है। दूसरों का
अस्तित्व मिटाकर अपना अस्तित्व बचाए रखने की कोशिशें व्यर्थ और अन्ततः घातक होती
हैं। आचार्य श्री उमास्वाति की प्रसिद्ध सूक्ति है- ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्’ अर्थात् सभी एक-दूसरे के सहयोगी होते
हैं। पारस्परिक उपकार-अनुग्रह से ही जीवन गतिमान रहता है। समाज और सामाजिकता का
विकास भी अहिंसा की इसी अवधारणा पर हुआ। इस प्रकार अहिंसा से सहयोग, सहकार, सहकारिता, समता और समन्वय जैसे उत्तम व उपयोगी मानवीय मूल्य
जीवन्त होते हैं। केन्द्र से परिधि तक परिव्याप्त अहिंसा व्यक्ति से लेकर विश्व तक
को आनन्द और अमृत प्रदान करती है। दुनिया में मानवीय-मूल्यों का ह्रास हो, मानवाधिकारों का हनन हो या अन्य
समस्याएं-एक शब्द में ‘हिंसा’ प्रमुखतम और मूलभूत समस्या है अथवा
समस्याओं का कारण है। और समस्त समस्याओं का समाधान भी एक ही है, वह है-अहिंसा। अहिंसा व्यक्ति में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की विराट भावना का संचार करती है। मनुष्य
जाति युद्ध, हिंसा और
आतंकवाद के भयंकर दुष्परिणाम भोग चुकी है, भोग रही है और किसी भी तरह के खतरे का भय हमेशा
बना हुआ है। मनुष्य, मनुष्यता
और दुनिया को बचाने के लिए अहिंसा से बढ़कर कोई उपाय-आश्रय नहीं हो सकता। इस दृष्टि
से अहिंसा दिवस सम्पूर्ण विश्व को अहिंसा की ताकत और प्रासंगिकता से अवगत कराने का
सशक्त माध्यम है।
अहिंसा मनुष्यता की प्राण-वायु है
यह स्पष्ट है कि हिंसा मनुष्यता के भव्य प्रासाद को
नींव से हिला देती है। मनुष्य जब दूसरे को मारता है तो स्वयं को ही मारता है, स्वयं की श्रेष्ठताओं को समाप्त करता है।
एक हिंसा, हिंसा के
अन्तहीन दुष्चक्र को गतिमान करती है। अहिंसा सबको अभय प्रदान करती है। वह
सर्जनात्मक और समृद्धदायिनी है। मानवता का जन्म अहिंसा के गर्भ से हुआ। सारे
मानवीय-मूल्य अहिंसा की आबोहवा में पल्लवित, विकसित होते हैं एवं जिन्दा रहते हैं। वस्तुतः
अहिंसा मनुष्यता की प्राण-वायु ऑक्सीजन है। प्रकृति, पर्यावरण पृथ्वी, पानी और प्राणिमात्र की रक्षा करने वाली अहिंसा
ही है।
विश्व 2 अक्टूबर को अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है
मानव ने ज्ञान-विज्ञान में आश्चर्यजनक प्रगति की है।
परन्तु अपने और औरों के जीवन के प्रति सम्मान में कमी आई है। विचार-क्रान्तियां
बहुत हुईं, किन्तु
आचार-स्तर पर क्रान्तिकारी परिवर्तन कम हुए। शान्ति, अहिंसा और मानवाधिकारों की बातें संसार में बहुत
हो रही हैं, किन्तु
सम्यक्-आचरण का अभाव अखरता है। गांधीजी ने इन स्थितियों को गहराई से समझा और
अहिंसा को अपने जीवन का मूल सूत्र बनाया। आज यदि विश्व 2 अक्टूबर को अहिंसा दिवस के रूप में मनाता
है, तो इसमें
कोई अचंभे वाली बात नहीं है। यह गांधीजी का नहीं बल्कि अहिंसा का सम्मान है।
प्रेषकः (ललित गर्ग)
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