
hindi-essay-on-rakshabandhan/रक्षाबंधन का पर्व/essay-on-raksha-bandhan-in-hindi

प्रस्तावना
रक्षाबंधन भाई और बहन का वह त्योहार है जो मुख्यत: हिन्दुओं में प्रचलित है। लेकिन अब
इसे पुरे भारत के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं। पूरे भारत
में इस दिन माहौल देखने लायक होता है और हो भी क्यूं नहीं, यही तो एक ऐसा विशेष दिन है जो भाई-बहनों के लिए
बना है।
रक्षाबंधन का पर्व
और भारतीय संस्कृति
रक्षाबंधन का पर्व
भारतीय संस्कृति का ऐसा रत्न है जिसकी रंगीन किरणों में सुंदर रिश्ते झिलमिलाते
हैं। एक नन्हें से रंगीन धागे में प्यार की दौलत गुंथी जाती है। श्रावण मास की
पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन मनाया जाता है। इसे आमतौर पर भाई-बहनों का पर्व मानते
हैं लेकिन, अलग-अलग स्थानों एवं लोक परम्परा के अनुसार
अलग-अलग रूप में रक्षाबंधन का पर्व मानते
हैं।
भारत उत्सवों का देश
यूं तो भारत में वर्ष भर उत्सव आते रहते है लेकिन
रक्षा बंधन का इनमें विशेष महत्व है। भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य
की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक
महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है। सदियों से चला आ रहा यह
त्यौहार आज भी बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
रक्षाबंधन कब मनाया जाता है?
रक्षाबंधन, हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) की
पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्योहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक
है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की कलाई में राखी बांधती हैं, उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प
लेती हैं। हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है। राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कर्मकांड
नहीं रह गया है। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।
रक्षाबंधन कब और कैसे शुरू हुआ?
एक
बार की
बात है, देवताओं
और असुरों
में युद्ध
आरंभ हुआ।
युद्ध में
हार के
परिणाम स्वरूप, देवताओं
ने अपना
राज-पाठ
सब युद्ध
में गवा
दिया। अपना
राज-पाठ
पुनः प्राप्त
करने की
इच्छा से
देवराज इंद्र
देवगुरु बृहस्पति
से मदद
की गुहार
करने लगे।
तत्पश्चात देव
गुरु बृहस्पति
ने श्रावण
मास के
पूर्णिमा के
प्रातः काल
में निम्न
मंत्र से
रक्षा विधान
संपन्न किया।
“येन
बद्धो बलिराजा
दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन
त्वामभिवध्नामि रक्षे
मा चल
मा चलः।”
इस
पूजा से
प्राप्त सूत्र
को इंद्राणी
ने इंद्र
के हाथ
पर बांध
दिया। जिससे
युद्ध में
इंद्र को
विजय प्राप्त
हुआ और
उन्हें अपना
हारा हुआ
राज पाठ
दुबारा मिल
गया। तब
से रक्षा
बंधन का
त्योहार मनाया
जाने लगा।
रक्षाबंधन पर्व का संबंध रक्षा से है। जो भी आपकी
रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए आप उसे रक्षासूत्र बांध
सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युधिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्योहार अपनी सेना के साथ मनाओ इससे पाण्डवों एवं उनकी
सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति
होती है। रक्षाबंधन से संबंधित अनेक कथाएं हैं
रक्षाबंधन का इतिहास क्या है?
रक्षाबंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है।
वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। कथा इस प्रकार है-
राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना
की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।
गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान
कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में
भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन
ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी
की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया।
बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
रानी कर्मावती और हुमायूं का उल्लेख
इतिहास में राखी के महत्व के अनेक उल्लेख मिलते
हैं। मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना
की थी। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी।
कहते हैं, सिकंदर की पत्नी
ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध
के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था। पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी
राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया
था।
महाभारत में रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है।
जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए
राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।
शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट
आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर
चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया
था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।
कन्या-भ्रूण हत्या और रक्षा बंधन
आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्योंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता ने इस दुनिया में आने ही नहीं दिया। यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि जिस देश में कन्या-पूजन का विधान शास्त्रों में है वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आते हैं। यह त्योहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं। अगर हमने कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो मुमकिन है एक दिन देश में लिंगानुपात और तेजी से घटेगा और सामाजिक असंतुलन भी।
उपसंहार
आज यह त्योहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्योहार पर गर्व है। लेकिन भारत में जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं।
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त क्या है?
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 21 अगस्त 2021 की शाम 03 बजकर 45 मिनट तक।
पूर्णिमा तिथि समापन 22 अगस्त 2021 की शाम 05 बजकर 58 मिनट तक। शुभ मुहूर्त 22 अगस्त
की सुबह 05 बजकर 50 मिनट से
शाम 06 बजकर 03 मिनट तक। रक्षा बंधन के लिए
दोपहर में शुभ मुहूर्त 01 बजकर 44 से 04 बजकर 23 मिनट तक।
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