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Essay on Beggary Problem in Hindi-भिक्षावृत्ति पर निबंध |
Essay on Beggary Problem in Hindi
भिक्षावृत्ति पर निबंध
एक आदर्श शासन व्यवस्था की बुनियाद होती है समानता, स्वतंत्रता, भूख एवं गरीबी
मुक्त शांतिपूर्ण जीवनयापन। राष्ट्र एवं समाज में भूख एवं गरीबी की स्थितियां एक
त्रासदी है, विडम्बना है एवं दोषपूर्ण शासन व्यवस्था की द्योतक है। आजादी के
बहत्तर वर्षों के बाद भी यदि भीख मांगने एवं भिखारियों के परिदृश्य देखने को मिलते
हैं, तो यह शर्मनाक
है। इन शर्म की रेखाओं का कायम रहना हमारी शासन व्यवस्था पर एक बदनुमा दाग है, शर्म की इन
रेखाओं को तोड़ने के लिए जिस श्रेष्ठ संवेदना का प्रदर्शन देश की सर्वोच्च अदालत ने
किया है, वह न केवल
स्वागत-योग्य है, बल्कि अनुकरणीय भी है। अदालत ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह
सड़कों से भिखारियों को हटाने के मुद्दे पर तथाकथित धनाढ्य एवं सम्पन्न वर्ग का
नजरिया नहीं अपनाएगी, क्योंकि भीख मांगना एक सामाजिक और आर्थिक समस्या एवं विवशता है।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की बेंच ने कहा कि वह
सड़कों और सार्वजनिक स्थलों से भिखारियों को हटाने का आदेश नहीं दे सकती, यह कहकर अदालत
ने शर्मी और बेशर्मी दोनों को मिटाने, भूख, गरीबी का संबोधन मिटाने की दिशा में सार्थक
पहल की है।
Essay on Beggary Problem in India
अदालत ने भिखारियों एवं भीख मांगने की विवशता को भोग
रहे लोगों के दर्द को समझा है। उसने इन शर्मनाक स्थितियों के कायम रहने के कारणों
की विवेचना करते हुए कहा कि शिक्षा और रोजगार की कमी के चलते बुनियादी जरूरतों को
पूरा करने के लिए ही लोग आमतौर पर भीख मांगने को मजबूर हो जाते हैं। अदालत का
इशारा साफ था कि भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाने की बजाय भीख मांगने के कारणों को
मिटाने पर ध्यान देना होगा। विदित हो कि याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च अदालत का दरवाजा
इस उम्मीद से खटखटाया था कि सर्वोच्च अदालत सड़कों-चैराहों पर लोगों को भीख मांगने
से रोकने के लिए कोई आदेश या निर्देश देगी। अदालत ने समस्या की व्याख्या जिस
संवेदना एवं मानवीयता के साथ की है, वह गरीबी हटाने की दिशा में आगे के फैसलों
के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। अदालत ने पूछा कि आखिर लोग भीख क्यों मांगते हैं? गरीबी के कारण
ही यह स्थिति बनती है।
भिक्षावृत्ति पर निबंध (500 शब्द)
एक आजाद मुल्क में, एक शोषणविहीन समाज में, एक समतावादी
दृष्टिकोण में और एक कल्याणकारी समाजवादी व्यवस्था में यह भूख एवं भिक्षा मांगने
की त्रासदी को जीना ऐसी बेशर्मी की रेखा है जिसे मिटाना हमारे शासन-व्यवस्था की
प्राथमिकता होनी चाहिए। यह रेखा सत्ता एवं शासन के कर्णधारों के लिए ”शर्म की रेखा“ होनी ही चाहिए, जिसको देखकर
उन्हें शर्म आनी ही चाहिए। कुछ ज्वलंत प्रश्न है कि जो रोटी नहीं दे सके वह सरकार
कैसी? जो अभय नहीं
बना सके, वह व्यवस्था
कैसी? जो इज्जत, स्नेह एवं दो
वक्त की रोटी नहीं दे सके, वह समाज एवं शासन कैसा? अगर तटस्थ दृष्टि से बिना रंगीन चश्मा लगाए
देखें तो हम सब गरीब एवं भिक्षुक हैं। गरीब, यानि जो होना चाहिए, वह नहीं है।
जो प्राप्त करना चाहिए, वह प्राप्त नहीं है। एक तरफ अतिरिक्त संसाधनों का अम्बार है तो
दूसरी ओर भूख एवं गरीबी है, दो वक्त की रोटी जुटाने के लिये सड़कों-चैराहों पर हाथ फैलाने की
विवशता है।
भिक्षावृत्ति पर निबंध
अदालत ने समस्या की व्याख्या जिस संवेदना एवं मानवीयता के साथ की है, वह गरीबी हटाने की दिशा में आगे के फैसलों के लिए मील का पत्थर साबित होगी। अदालत ने पूछा कि आखिर लोग भीख क्यों मांगते हैं? गरीबी, अभाव एवं सरकार की असंतुलन नीतियों के कारण ही यह स्थिति बनती है। आज की कूटनीति की यह बड़ी हैरत और आश्चर्य की बात है कि वह भूख को नहीं भिखारी को, गरीबी को नहीं गरीब को मिटाने की योजनाएं लागू करती है। वह यह सोचने में बहुत अच्छा लगता है कि सड़कों पर कोई भिखारी न दिखे, लेकिन सड़कों से भिखारियों को हटाने से क्या गरीबी दूर हो जाएगी? क्या जो लाचार हैं, जिनके पास आय का कोई साधन नहीं, जो दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पा रहे हैं, क्या उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा? गरीबी से भी ज्यादा भयावह है भूख एवं भीख मांगने की स्थितियां।
Essay on Street Beggars in India
भले ही सरकार भी ऐसे लोगों को गरीब मानती है जिनकी
वार्षिक आय सरकार के निर्धारित आंकड़ों से कम हो। लेकिन जिनकी आय का कोई जरिया ही न
हो, उनके लिये
सरकार ने क्या श्रेणी निर्धारित की है? बुद्धिजीवी हर आदमी को, यहां तक कि हर
देश को, तुलनात्मक
दृष्टि से गरीब मानते हैं। दार्शनिक गरीब उसको मानता है जो भयभीत है, जो थक गया है, जो अपनी बात
नहीं कह सकता। साधारण आदमी, झोंपड़ी में रहने वाले को, अभाव एवं भूख को जीने वाले को गरीब और महल
में रहने वाले को अमीर मानता है। खैर! यह सत्य है कि भिखारी की कोई सर्वमान्य
परिभाषा नहीं है। तब भीख एवं भिखारी की रेखा क्या? क्यों है? किसने खींची यह लक्ष्मण रेखा, जिसको कोई पार
नहीं कर सकता। जिस पर सामाजिक व्यवस्था चलती है, जिस पर राजनीति चलती है, जिसको भाग्य
और कर्म की रेखा मानकर उपदेश चलते हैं। वस्तुतः ये रेखाएं तथाकथित गरीबों, भूखों ने नहीं
खींचीं। आप सोचिए, भला कौन दिखायेगा अपनी जांघ। यह रेखाएं उन्होंने खींची हैं जो
अपनी जांघ ढकी रहने देना चाहते हैं। इस रेखा (दीवार) में खिड़कियां हैं, ईष्र्या की, दम्भ की, अहंकार की। पर
दरवाजे नहीं हैं इसके पार जाने के लिए। अब अदालत इसके पार जाने का रास्ता बना रही
है तो यह उसकी जागरूकता है, मानवीय सोच है।
भिक्षावृत्ति पर निबंध (250 शब्द)
जस्टिस चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ
वकील चिन्मय शर्मा से यह भी कहा कि कोई भीख नहीं मांगना चाहता। मतलब, सरकार को भीख
मांगने की समस्या से अलग ढंग एवं ईमानदार तरीके से निपटना होगा। इसमें कोई शक नहीं
कि सरकार असंख्य भारतीयों तक नहीं पहुंच पा रही है। मुख्यधारा से छिटके हुए वंचित
लोग भीख मांगने को विवश हैं। ऐसे लोगों तक जल्दी से जल्दी सरकारी योजनाओं का लाभ
पहुंचना चाहिए। जहां तक चैराहों पर भीख की समस्या है, तो स्थानीय
प्रशासन इस मामले में कदम उठा सकता है। सड़क पर भीख मांगने वालों को सचेत किया जा
सकता है कि वे किसी सुरक्षित जगह पर ही भीख मांगने जैसा कृत्य करें। भीख मांगना
अगर सामाजिक समस्या है, तो समाज को भी अपने स्तर पर इस समस्या का समाधान करना चाहिए।
समाज के आर्थिक रूप से संपन्न और सक्षम लोगों को स्थानीय स्तर पर सरकार के साथ
मिलकर भीख जैसी मजबूरी एवं त्रासदी का अंत करने के लिये पहल करना चाहिए।
Essay on Beggary Problem in Hindi
कोरोना महामारी के मद्देनजर भिखारियों और बेघर लोगों
के पुनर्वास और टीकाकरण का आग्रह करने वाली एक याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने
मंगलवार को केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करके उचित ही जवाब मांगा है। इस
याचिका की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उसमें महामारी के बीच भिखारियों और बेघर लोगों
के पुनर्वास, उनके टीकाकरण, आश्रय व भोजन उपलब्ध कराने का प्रशंसनीय आग्रह किया गया है। भीख
मांगने वाले और बेघर लोग भी कोरोना महामारी के संबंध में अन्य लोगों की तरह
चिकित्सा एवं अन्य सुविधाओं के हकदार हैं। केंद्र सरकार के साथ तमाम राज्य सरकारों
को स्वास्थ्य और रोजगार का दायरा बढ़ाना चाहिए, ताकि जो बेघर, निर्धन हैं, उन तक
मानवीयता का एहसास पुरजोर पहुंचे एवं एक आदर्श समाज संरचना का सूर्योदय हो।
प्रेषकः
(ललित गर्ग)
Essay on Beggary Problem in Hindi,भिक्षावृत्ति पर निबंध (1000 शब्द)
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