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Naresh Mehta Ka Sahityik Parichay/नरेश मेहता का साहित्यिक परिचय |
जीवन परिचय – श्री
नरेश मेहता नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरे तारसप्तक’ से
उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। श्री नरेश मेहता का जन्म 15 फरवरी, 1922 को
मध्यप्रदेश के मालवा जिले के शाजापुर गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ।उनके
पिता का नाम बिहारी लाल शुक्ल था। इनकी आरंभिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर हुई। बनारस
हिंदू विश्वविद्यालय से इन्होंने हिंदी साहित्य में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
साहित्य के क्षेत्र में श्री नरेश मेहता जी नवीनता तथा प्रयोग के पक्षपाती रहे हैं।
साम्यवादी विचारधारा का भी उनके साहित्य पर प्रभाव लक्षित होता है। साहित्य के
क्षेत्र में अपने अमूल्य योगदान के लिए उन्हें 1988 ईस्वी
में साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 1992 में
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे जीवन भर साहित्य साधना में लीन रहे। 22 नवंबर, 2000 को नरेश
मेहता जी का देहावसान हो गया ।
प्रमुख रचनाएँ – श्री
नरेश मेहता जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे।उन्होंने हिंदी साहित्य की
विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई।उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं : –
काव्य संग्रह – अरण्या, उत्सवा, बोलने दो चीड़ को, वनपाखी सुनो, तुम मेरा मौन हो आदि।
प्रबंध काव्य – संशय की
एक रात, महाप्रस्थान, प्रवाद पर्व।
कहानी संग्रह – एक
समर्पित महला, जलसाघर, तथापि।
उपन्यास – डूबते
मस्तूल, वह पथ बंधु था आदि।
काव्यगत विशेषताएँ / साहित्यिक विशेषताएँ
श्री नरेश मेहता जी का साहित्य जीवन के विभिन्न
पक्षों का उद्घाटन करता है।उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं :-
आधुनिकता बोध – श्री
नरेश मेहता जी की साहित्यिक रचनाओं में आधुनिकता का आग्रह दिखाई देता है। अपनी
मुक्तक कविताओं में तो वे आधुनिक विचारों को प्रकट करते ही हैं इसके साथ-साथ
पौराणिक कथाओं को भी एक नवीन दृष्टि से प्रस्तुत करते हैं। अपने प्रसिद्ध
प्रबंध-काव्य ‘संशय की एक रात’ में
राम-रावण युद्ध का वर्णन करते हुए हुए राम को एक संशयग्रस्त मनुष्य के रूप में
दिखाते हैं। वास्तव में वे पौराणिक कथाओं को भी आधुनिक परिप्रेक्ष्य में लिखते हैं।
भारतीय संस्कृति का उद्घाटन – श्री नरेश मेहता जी को भारतीय संस्कृति से विशेष
लगाव है। यद्यपि नरेश मेहता जी की रचनाओं पर साम्यवाद का प्रभाव लक्षित होता है
परंतु फिर भी वे भारतीय संस्कृति को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। आधुनिकता और नवीनता
के प्रबल समर्थक होने पर भी वे भारतीय संस्कृति के प्राचीन मूल्यों की अवहेलना
नहीं करते।
सामान्य जन-जीवन का चित्रण– श्री नरेश मेहता जी अपनी साहित्यिक रचनाओं में
सामान्य जनजीवन का चित्र करते हैं। वे अपनी रचनाओं में सामान्य मानव के हर्ष-विषाद, सफलता-असफलता, जय-पराजय, आशा-निराशा आदि का चित्रण करते हैं। यहां तक की
पुरानी लोक-कथाओं का वर्णन करते हुए भी वे लोक-प्रचलित नायकों को सामान्य मनुष्य
की भांति चित्रित करते हैं।
सामाजिक सरोकार– वैसे तो
कोई भी साहित्यकार समाज से कटकर साहित्य रचना नहीं कर सकता क्योंकि साहित्य और
समाज आपस में सदैव जुड़े रहते हैं परंतु श्री नरेश मेहता जी के साहित्य में सामाजिक
सरोकार की भावना अधिक मिलती है। उन्होंने अपने साहित्य में समाज का यथार्थ चित्रण
किया है। उनकी रचनाओं में सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं, रीति-रिवाज, पर्व, तीर्थ स्थान, जाति-भेद, वर्ग-भेद, सामाजिक शोषण आदि
सभी का वर्णन मिलता है।
मानवतावाद – श्री
नरेश मेहता जी का साहित्य मानवतावाद की भावना लिए हुए है। उनकी दृष्टि में कोई भी
मनुष्य छोटा या बड़ा नहीं है।सभी मानव एक समान हैं। उनके मानवतावाद की विचारधारा
अत्यंत व्यापक है।उनके मानवतावाद में केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व समाहित
है। वे सारे संसार को एक कुटुंब के समान मानते हैं तथा सभी के सुख व शांति की
कामना करते हैं।
प्रकृति-चित्रण– श्री
नरेश मेहता जी ने अपने काव्य में प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है। उनके काव्य में
प्रकृति का आलंबनगत व उद्दीपनगत दोनों रूपों में वर्णन मिलता है। अरण्या, बोलने दो चीड़ को, वनपाखी
सुनो आदि काव्य संग्रहों में प्रकृति का सुंदर वर्णन मिलता है। एक उदाहरण देखिए –
हिमालय के आंगन में
समीप में लगा बरसने स्वर्ण।
पिघलते हिमवानों के बीच
खिलखिला उठा दूब का वर्ण।
कला पक्ष – श्री
नरेश मेहता जी ने अपने साहित्य में आधुनिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इनकी भाषा, सरल, सहज स्वाभाविक एवं
विषयानुकूल है। इनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज आदि सभी
प्रकार के शब्द मिलते हैं। शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों प्रकार के अलंकार इनके
काव्य में मिलते हैं। इनके काव्य में नवीन प्रतीकों व नवीन उपमानोंका प्रयोग हुआ
है जिससे इनकी भाषा अत्यंत प्रभावशाली बन गई। काव्य रूप के दृष्टिकोण से इन्होंने
मुक्तक-काव्य तथा प्रबंध-काव्य दोनों प्रकार के काव्य लिखे हैं। इन्होंने
मुक्त-छंद में कविताएं लिखी हैं परंतु फिर भी इनकी कविताओं में लय व प्रवाह
दर्शनीय है ।
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