नागार्जुन (Nagarjuna) का जन्म 30 जून 1911 को बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में उनके ननिहाल सतलखा नामक ग्राम में हुआ था। नागार्जुन का असली नाम 'वैद्यनाथ मिश्र' था। उनके पिता तरौनी गाँव के निवासी थे। नागार्जुन  प्रगतिवादी विचारधारा के लेखक और कवि हैं। नागार्जुन ने 1945 ई. के आसपास साहित्य सेवा के क्षेत्र में क़दम रखा। शून्यवाद के कवि के रूप में नागार्जुन का नाम विशेष उल्लेखनीय है। हिन्दी साहित्य में उन्होंने 'नागार्जुन' तथा मैथिली में 'यात्री' उपनाम से रचनाओं का सृजन किया।


30 जून सन् 1911 के दिन ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा का चन्द्रमा हिन्दी काव्य जगत के उस दिवाकर के उदय का साक्षी था, जिसने अपनी फ़क़ीरी और बेबाक़ी से अपनी अनोखी पहचान बनाई। कबीर की पीढ़ी का यह महान कवि नागार्जुन के नाम से जाना गया। मधुबनी ज़िले के 'सतलखा गाँव' की धरती बाबा नागार्जुन की जन्मभूमि बन कर धन्य हो गई। यात्रीआपका उपनाम था और यही आपकी प्रवृत्ति की संज्ञा भी थी। परंपरागत प्राचीन पद्धति से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करने वाले बाबा नागार्जुन हिन्दी, मैथिली, संस्कृत तथा बांग्ला में कविताएँ लिखते थे। 

(Nagarjun/kavi parichay/Yatri/Vaidhynatha mishr/Hindi Poet Nagarjun//नागार्जुन की साहित्यिक विशेषताएं) 

मैथिली भाषा में लिखे गए आपके काव्य संग्रह पत्रहीन नग्न गाछके लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिन्दी काव्य-मंच पर अपनी सत्यवादिता और लाग-लपेट से रहित कविताएँ लम्बे युग तक गाने के बाद 5 नवम्बर सन् 1998 को ख्वाजा सराय, दरभंगा, बिहार में यह रचनाकार हमारे बीच से विदा हो गया। उनके स्वयं कहे अनुसार उनकी 40 राजनीतिक कविताओं का चिर प्रतीक्षित संग्रह विशाखाआज भी उपलब्ध नहीं है। संभावना भर की जा सकती है कि कभी छुटफुट रूप में प्रकाशित हो गयी हो, किंतु वह इस रूप में चिह्नित नहीं है। कुल मिलाकर तीसरा संग्रह अब भी प्रतीक्षित ही मानना चाहिए। हिंदी में उनकी बहुत-सी काव्य पुस्तकें हैं। यह सर्वविदित है। उनकी प्रमुख रचना-भाषाएं मैथिली और हिंदी ही रही हैं। मैथिली उनकी मातृभाषा है लेकिन अब तक प्रकाश में आ सके उनके समस्त लेखन का अनुपात विस्मयकारी रूप से मैथिली में बहुत कम और हिंदी में बहुत अधिक है। अपनी रचना अकाल और उसके बादकविता में अभिव्यक्त नागार्जुन की करुणा साधारण, दुर्भिक्ष के दर्द से बहुत आगे तक की लगती है। 'फटेहाली' महज कोई बौद्धिक प्रदर्शन है। इस पथ को प्रशस्त करने का भी मैथिली-श्रेय यात्री जी को ही है।

कृतियाँ

'युगधारा', खिचडी़', 'विप्‍लव देखा हमने', 'पत्रहीन नग्‍न गाछ', 'प्‍यासी पथराई आँखें', इस गुब्‍बारे की छाया में', 'सतरंगे पंखोंवाली', 'मैं मिलिट्री का बूढा़ घोड़ा' जैसी रचनाओं से आम जनता में चेतना फैलाने वाले नागार्जुन के साहित्‍य पर विमर्श का सारांश था कि बाबा नागार्जुन जनकवि थे और वे अपनी कविताओं में आम लोगों के दर्द को बयाँ करते थे। विचारक हॉब्‍सबाम ने इस सदी को अतिवादों की सदी कहा है। उन्होंने कहा कि नागार्जुन का व्यक्तित्व बीसवीं शताब्दी की तमाम महत्वपूर्ण घटनाओं से निर्मित हुआ था। वे अपनी रचनाओं के माध्यम से शोषण मुक्त समाज या यों कहें कि समतामूलक समाज निर्माण के लिए प्रयासरत थे। उनकी विचारधारा यथार्थ जीवन के अंतर्विरोधों को समझने में मदद करती है। वर्ष 1911 इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि उसी वर्ष शमशेर बहादुर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल, फैज एवं नागार्जुन पैदा हुए। लोकभाषा के संपर्क में रहने के कारण इनकी कविताएँ औरों से अलग है। सुप्रसिद्ध कवि आलोक धन्‍वा ने नागार्जुन की रचनाओं को संदर्भित करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में आज़ादी की लड़ाई की अंतर्वस्‍तु शामिल है। नागार्जुन के गीतों में काव्य की पीड़ा जिस लयात्मकता के साथ व्यक्त हुई है, वह अन्यत्र कहीं नहीं दिखाई देती। आपने काव्य के साथ-साथ गद्य में भी लेखनी चलाई। आपके अनेक हिन्दी उपन्यास, एक मैथिली उपन्यास तथा संस्कृत भाषा से हिन्दी में अनूदित ग्रंथ भी प्रकाशित हुए।

कविता-संग्रह - अपने खेत में, युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियां, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, हजार-हजार बाहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, इस गुबार की छाया में, ओम मंत्र, भूल जाओ पुराने सपने, रत्नगर्भ।

 (Nagarjun/kavi parichay/Yatri/Vaidhynatha mishr/Hindi Poet Nagarjun//नागार्जुन की साहित्यिक विशेषताएं) 

उपन्यास- रतिनाथ की चाची, बलचनमा, बाबा बटेसरनाथ, नयी पौध, वरुण के बेटे, दुखमोचन, उग्रतारा, कुंभीपाक, पारो, आसमान में चाँद तारे।

व्यंग्य- अभिनंदन

निबंध संग्रह- अन्न हीनम क्रियानाम

बाल साहित्य - कथा मंजरी भाग-1, कथा मंजरी भाग-2, मर्यादा पुरुषोत्तम, विद्यापति की कहानियाँ

मैथिली रचनाएँ-चित्रा , पत्रहीन नग्न गाछ (कविता-संग्रह), पारो, नवतुरिया (उपन्यास)।

बांग्ला रचनाएँ- मैं मिलिट्री का पुराना घोड़ा (हिन्दी अनुवाद)

ऐसा क्या कह दिया मैंने- नागार्जुन रचना संचयन

सम्मान और पुरस्कार

नागार्जुन को 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से उनके ऐतिहासिक मैथिली रचना पत्रहीन नग्न गाछ के लिए 1969 में नवाजा गया था। उन्हें साहित्य अकादमी ने 1994 में साहित्य अकादमी फेलो के रूप में नामांकित कर सम्मानित भी किया था।

काव्यगत विशेषताएं

समाज में व्याप्त विषमता का चित्रण : उन्होंने अपने काव्य में समाज में व्याप्त बुराइयों, विषमता, जातिगत भेदभाव, भ्रष्टाचार आदि का यथार्थ चित्रण किया है। उन्हें अपने काव्य में गरीब, शोषित एवं पीड़ित जनता के दुखों का चित्रण किया है।अकाल और उसके बादकविता में अभाव की स्थिति का अत्यंत ह्रदय स्पर्शी चित्रण किया गया है -

 कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास

 कई दिनों तक कानी कुतिया, सोई उनके पास

 कई दिनों तक लगी भीत पर, छिपकलियों की गश्त,

 कई दिनों तक चूहों की भी, हालत रही शिकस्त

 

जनवादी दृष्टिकोण : नागार्जुन की कविताएं समाज के ठोस धरातल पर चलती है। उनकी कविताएं कल्पना लोक में विचरण नहीं करती। उन्होंने अपने दुख के भीतर साधारण लोगों के दुखों को देखा है और उन्हें अपनी कविताओं में वाणी दी है। सर्वहारा वर्ग की व्यथा एवं पीड़ा को भी अपने काव्य में अभिव्यक्त किया है। जनसाधारण के प्रति सहानुभूति उनके काव्य की एक अन्य प्रमुख विशेषता है। नागार्जुन जी अभावग्रस्त लोगों के पक्षधर बनकर सामने आये। यही कारण है कि उन्होंने अपनी कविताओं में नगर और गांव की गरीब जनता का चित्रण किया है। उन्होने उन्हें एक स्थान पर लिखा है-

 कैसे लिखूं शांति की कविता

 अमन-चमन को कैसे कड़ियों में बांधू

शोषकों  के प्रति घृणा : नागार्जुन जी प्रगतिवादी कवि थे। उन्होंने अपने काव्य में जहां अभावग्रस्त लोगों के प्रति सहानुभूति का वर्णन किया है। वहीं शोषकों के प्रति घृणा भाव भी व्यक्त किया है। उन्होंने पूंजीपतियों और राजनीतिज्ञों के प्रति गहरा आक्रोश व्यक्त किया है। वे पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करके समाजवादी व्यवस्था को स्थापित करना चाहते थे, इसलिए उनके काव्य में एक और जहां पूंजीपतियों के प्रति आक्रोश प्रकट किया गया है, वहीं दूसरी ओर शोषकों के प्रति सहानुभूति की भावना भी है। वे प्रशासन के निठल्लेपन की ओर संकेत करते हुए लिखते हैं-

 पुलिस और पलटन के हाथी, कितना चारा खाते हैं,

 वही रंग है,, वही ढंग है, पर कुछ नहीं पाते हैं

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विद्रोह और क्रांति का स्वर : नागार्जुन के मन में उस व्यवस्था के प्रति विद्रोह की भावना है जो जनता का शोषण करती है या शोषण को बढ़ावा देती है। वे वर्तमान शासन व्यवस्था से असंतुष्ट हैं और  ऐसी व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं। अतः उनके काव्य में विद्रोह और क्रांति का स्वरूप तय हुआ है। वे वर्तमान समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, पाखंड, भाई-भतीजावाद से घृणा करते हैं। वर्तमान प्रजातंत्र  के विरोधी हैं जिसमें अमीर और गरीब की खाई बढ़ती जा रही है-

 देश हमारा भूखानंगा घायल है बीमारी से।

 मिले ना रोजी-रोटी भर के दर-दर बने भिखारी से

 

देश प्रेम की भावना : नागार्जुन की अधिकांश कविताओं में देश-प्रेम का स्वर विधमान है। इसलिए वे वर्तमान व्यवस्था से असंतुष्ट हैं। ‘दर्पण’ और ‘शपथ’ उनकी ऐसी ही कविताएं हैं जिनमें राष्ट्रीयता का स्वर सुनाई पड़ता है। ‘महा शत्रुओं की दाल न गलने देंगे’ कविता में कवि ने अपनी राष्ट्रीय भावनाओं को व्यक्त किया है। कवि देश के कण-कण से प्यार करता है-

  खेत हमारे, भूमि हमारी, सदा देश हमारा है

  इसीलिए तो हमको इसका चप्पा-चप्पा प्यारा है

प्रकृति प्रेम : नागार्जुन ने अपने काव्य में प्रकृति के मनोरम चित्र उतारे हैं। उन्होंने अपने काव्य में ग्रामीण और नगरीय दोनों ही प्रकृति छवियों का अंकन किया है। ‘नीम की टहनियां’, ‘बसंत की आगवानी’, ‘काल सप्तमी का चांद’ ऐसी कविताएं हैं जिसमें प्रकृति के विभिन्न रूपों का चित्रण हुआ है। एक उदाहरण देखिए-

बहुत दिनों के बाद 

अब की मैंने जी भर सूंघे  

मौलसिरी के ढेर से ताज़े टटके फूल

 

व्यंग्यात्मकता : नागार्जुन के काव्य की विशेषता व्यंग्यात्मकता है। उनका व्यंग्य तीखा, धारदार और चुभता हुआ है। उन्हें व्यंग्य करते समय राजनीतिक, दार्शनिक, समाज सुधारक तथा कलाकार किसी को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने सम-सामयिक समस्याओं का अपनी रचना में निर्भीकता से चित्रण किया है। ‘प्रेत का बयान’, ‘विज्ञापन सुंदरी’, ‘तालाब की मछलियां’ आदि कविताओं में उन्होंने खुलकर व्यंग्य किया है। ‘प्रेत का बयान’ कविता की इन पंक्तियों में कितना गहरा और तीखा व्यंग्य छिपा है-

 

 पेशा से प्राइमरी स्कूल का मास्टर था

 तनखा थी तीस रूपया, सो भी नहीं मिली

 मुश्किल से काटे हैं

 एक नहीं, दो नहीं, नौ नौ महीने

भाषा शैली : नागार्जुन के काव्य में कबीर जैसी सहजता और सरलता है। उनकी भाषा की भाषा है। उन्होंने खड़ी बोली का प्रयोग किया है। अंग्रेजी संस्कृत मैथिली उर्दू बंगला शब्दों का खूब मित्रण है। यदि उन्होंने लोकोक्तियां का प्रयोग किया है। लेकिन व्यंग्यात्मक उनकी भाषा के प्रमुख कवि का संपूर्ण कहते हैं। सीधी और सरल भाषा में कहते हैं। उनकी भाषा का प्रमुख भाषा का उदाहरण देखिए-

 

ओ रे प्रेत-

कड़क कर बोले नरक के मालिक यमराज 

सच सच बतला! 

कैसे मरा तूं?

भूख से, अकाल से

बुखार से, कालाजार से?

पेचिश, बदहजमी, प्लेग, महामारी से?

 कैसे मरा तू, सच सच बतला!

 (Nagarjun/kavi parichay/Yatri/Vaidhynatha mishr/Hindi Poet Nagarjun//नागार्जुन की साहित्यिक विशेषताएं)