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Kriya in Hindi | क्रिया की परिभाषा, भेद, और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण |
Kriya in Hindi
| क्रिया की परिभाषा, भेद, और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण
परिभाषा, धातु, मूल, क्रिया, प्रकार,
प्रयोग, काल, भेद,
परिवर्तन, वाच्य, प्रकार, वाच्य, परिवर्तन.
क्रिया वाक्य को पूर्ण बनाती है। इसे ही वाक्य का ‘विधेय’ कहा जाता है। वाक्य
में किसी काम के करने या होने का भाव क्रिया ही बताती है। अतएव, ‘जिससे काम का होना या करना समझा जाय, उसे ही ‘क्रिया’ कहते हैं।’ जैसे-
लड़का मन से पढ़ता है और परीक्षा पास करता है।
उक्त वाक्य में ‘पढ़ता है’ और ‘पास करता है’ क्रियापद
हैं।
1. क्रिया का सामान्य रूप ‘ना’ अन्तवाला होता है। यानी क्रिया के सामान्य रूप में ‘ना’ लगा रहता है।
जैसे-
खाना : खा
पढ़ना : पढ़
सुनना : सुन
लिखना : लिख आदि।
नोट : यदि किसी काम या व्यापार का बोध न हो तो ‘ना’ अन्तवाले शब्द क्रिया
नहीं कहला सकते।
जैसे-
सोना महँगा है। (एक धातु है)
वह व्यक्ति एक आँख से काना है। (विशेषण)
उसका दाना बड़ा ही पुष्ट है। (संज्ञा)
2. क्रिया का साधारण रूप क्रियार्थक संज्ञा का काम भी करता है।
जैसे-
सुबह का टहलना बड़ा ही अच्छा होता है।
इस वाक्य में ‘टहलना’ क्रिया नहीं है।
निम्नलिखित क्रियाओं के सामान्य रूपों का प्रयोग क्रियार्थक संज्ञा के
रूप में करें :
नहाना
कहना
गलना
रगड़ना
सोचना
हँसना
देखना
बचना
धकेलना
रोना
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त क्रियार्थक संज्ञाओं को रेखांकित
करें :
1. माता से बच्चों का रोना देखा नहीं जाता।
2. अपने माता-पिता का कहना मानो।
3. कौन देखता है मेरा तिल-तिल करके जीना।
4. हँसना जीवन के लिए बहुत जरूरी है।
5. यहाँ का रहना मुझे पसंद नहीं।।
6. घर जमाई बनकर रहना अपमान का घूट पीना है।
7. मजदूरों का जीना भी कोई जीना है?
8. सर्वशिक्षा अभियान का चलना बकवास नहीं तो और क्या है?
9. बड़ों से उनका अनुभव जानना जीने का आधार बनता है।
10. गाँधी को भला-बुरा कहना देश का अपमान करना है।
मुख्यतः क्रिया के दो प्रकार होते हैं- Types of Kriya in Hindi Grammar
1. सकर्मक क्रिया
“जिस क्रिया का फल कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़े, उसे ‘सकर्मक क्रिया’
(Transitive verb) कहते हैं।”
अतएव, यह आवश्यक है कि
वाक्य की क्रिया अपने साथ कर्म लाये। यदि क्रिया अपने साथ कर्म नहीं लाती है तो वह
अकर्मक ही कहलाएगी। नीचे लिखे वाक्यों को देखें :
(i) प्रवर अनू पढ़ता है। (कर्म-विहीन क्रिया)
(ii) प्रवर अनू पुस्तक पढ़ता है। (कर्मयुक्त क्रिया)
प्रथम और द्वितीय दोनों वाक्यों में ‘पढ़ना’ क्रिया का प्रयोग हुआ है; परन्तु प्रथम वाक्य की क्रिया अपने साथ कर्म न लाने के कारण अकर्मक हुई,
जबकि द्वितीय वाक्य की वही क्रिया अपने साथ कर्म लाने के कारण
सकर्मक हुई।
2. अकर्मक क्रिया
“वह क्रिया, जो अपने साथ कर्म
नहीं लाये अर्थात् जिस क्रिया का फल या व्यापार कर्ता पर ही पड़े, वह अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb) कहलाती
है।”
जैसे-
उल्लू दिनभर सोता है।
इस वाक्य में ‘सोना’ क्रिया का व्यापार उल्लू (जो कर्ता है) ही करता है और वही सोता भी है।
इसलिए ‘सोना’ क्रिया अकर्मक हुई।
कुछ क्रियाएँ अकर्मक सकर्मक दोनों होती हैं। नीचे लिखे उदाहरणों को
देखें-
1. उसका सिर खुजलाता है। (अकर्मक)
2. वह अपना सिर खुजलाता है। (सकर्मक)
3. जी घबराता है।
(अकर्मक)
4. विपत्ति मुझे घबराती है। (सकर्मक)
5. बूंद-बूंद से तालाब भरता है। (अकर्मक)
6. उसने आँखें भर के कहा (सकर्मक)
7. गिलास भरा है।
(अकर्मक)
8. हमने गिलास भरा है। (सकर्मक)
जब कोई अकर्मक क्रिया अपने ही धातु से बना हुआ या उससे मिलता-जुलता
सजातीय कर्म चाहती है तब वह सकर्मक कहलाती है।
जैसे-
सिपाही रोज एक लम्बी दौड़ दौड़ता है।
भारतीय सेना अच्छी लड़ाई लड़ना जानती है/लड़ती है।
यदि कर्म की विवक्षा न रहे, यानी क्रिया का केवल कार्य ही प्रकट हो, तो
सकर्मक क्रिया भी अकर्मक-सी हो जाती है। जैसे-
ईश्वर की कृपा से बहरा सुनता है और अंधा देखता है।
एक प्रेरणार्थक क्रिया होती है, जो सदैव सकर्मक ही होती है। जब धातु में आना, वाना,
लाना या लवाना, जोड़ा जाता है तब वह धातु
‘प्रेरणार्थक क्रिया’ का रूप
धारण कर लेता है। इसके दो रूप होते हैं :
धातु – प्रथम प्रेरणार्थक
– द्वितीय प्रेरणार्थक
हँस – हँसाना – हँसवाना
जि – जिलाना – जिलवाना
सुन – सुनाना – सुनवाना
धो – धुलाना – धुलवाना
शेष में आप आना, वाना, लाना, लवाना, जोड़कर
प्रेरणार्थक रूप बनाएँ :
कह पढ़ जल मल भर गल सोच बन देख निकल रह पी रट छोड़ जा भेजना भिजवाना
टूट तोड़ना तुड़वाना अर्थात् जब किसी क्रिया को कर्ता कारक स्वयं नहीं करके किसी
अन्य को करने के लिए प्रेरित करे तब वह क्रिया ‘प्रेरणार्थक क्रिया’ कहलाती है।
प्रेरणार्थक रूप अकर्मक एवं सकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं
से बनाया जाता है। प्रेरणार्थक क्रिया बन जाने पर अकर्मक क्रिया भी सकर्मक रूप
धारण कर लेती है।
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त क्रियाओं को छाँटकर उनके प्रकार
लिखें : [C.B.S.E]
1. हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाये।
2. कैप्टन बार-बार मर्ति पर चश्मा लगा देता था।
3. गाड़ी छूट रही थी।
4. एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
5. नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
6. अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
7. दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
8. जेब से चाकू निकाला।
9. नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
10. पानवाला नया पान खा रहा था।
11. मेघ बरस रहा था।
12. वह विद्यालय में पढ़ता-लिखता है।
नोट : कुछ धातु वास्तव में मूल अकर्मक या सकर्मक है; परन्तु स्वरूप में प्रेरणार्थक से जान पड़ते हैं।
जैसे-
घबराना, कुम्हलाना,
इठलाना आदि।
अकर्मक से सकर्मक बनाने के नियम :
1. दो अक्षरों के धातु के प्रथम अक्षर को और तीन अक्षरों के धातु के
द्वितीयाक्षर को दीर्घ करने से अकर्मक धातु सकर्मक हो जाता है। जैसे-
अकर्मक – सकर्मक
लदना – लादना
फँसना – फाँसना
गड़ना – गाड़ना
लुटना – लूटना
कटना – काटना
कढ़ना – काढ़ना
उखड़ना – उखाड़ना
सँभलना – सँभालना
मरना – मारना
पिसना – पीसना
निकलना – निकालना
बिगड़ना – बिगाड़ना
टलना – टालना
पिटना – पीटना
2. यदि अकर्मक धातु के प्रथमाक्षर में ‘इ’
या ‘उ’ स्वर
रहे तो इसे गुण करके सकर्मक धातु बनाए जाते हैं। जैसे
घिरना – घेरना
फिरना – फेरना
छिदना – छेदना
मुड़ना – मोड़ना
खुलना – खोलना
दिखना – देखना।
3. ‘ट’ अन्तवाले अकर्मक धातु के ‘ट’ को ‘ड’ में बदलकर पहले या दूसरे नियम से सकर्मक धातु बनाते हैं।
जैसे-
फटना – फोड़ना
जुटना – जोड़ना
छूटना – छोड़ना
टूटना – तोड़ना
क्रिया के अन्य प्रकार
1. पूर्वकालिक क्रिया
“जब कोई कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरी क्रिया करता है तब पहली
क्रिया ‘पूर्वकालिक क्रिया’ कहलाती
है।” जैसे-
चोर उठ भागा। (पहले उठना फिर भागना)
वह खाकर सोता है। (पहले खाना फिर सोना)
उक्त दोनों वाक्यों में ‘उठ’ और ‘खाकर’
पूर्वकालिक क्रिया हुईं। पूर्वकालिक क्रिया प्रयोग में अकेली
नहीं आती है, वह दूसरी क्रिया के साथ ही आती है। इसके
चिह्न हैं—
धातु + ० – उठ, जाना। ……………
धातु + के – उठके, जाग के ……………
धातु + कर – उठकर, जागकर ……………
धातु + करके – उठकरके, जागकरके ……………
नोट : परन्तु, यदि दोनों साथ-साथ
हों तो ऐसी स्थिति में वह पूर्वकालिक न होकर क्रियाविशेषण का काम करता है। जैसे—वह बैठकर पढ़ता है।
इस वाक्य में ‘बैठना’ और ‘पढ़ना’ दोनों
साथ-साथ हो रहे हैं। इसलिए ‘बैठकर’ क्रिया विशेषण है। इसी तरह निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों पर
विचार करें-
(a) बच्चा दौड़ते-दौड़ते थक गया। (क्रियाविशेषण)
(b) खाया मुँह नहाया बदन नहीं छिपता। (विशेषण)
(c) बैठे-बैठे मन नहीं लगता है। (क्रियाविशेषण)
2. संयुक्त क्रिया
“जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के योग से बनकर नया अर्थ देती है
यानी किसी एक ही क्रिया का काम करती है, वह ‘संयुक्त क्रिया’ कहलाती
है।” जैसे
उसने खा लिया है। (खा + लेना)
तुमने उसे दे दिया था। (दे + देना)
अर्थ के विचार से संयुक्त क्रिया के कई प्रकार होते हैं-
1. निश्चयबोधक : धातु के आगे
उठना, बैठना, आना, जाना, पड़ना, डालना,
लेना, देना, चलना
और रहना के लगने से निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया का निर्माण होता है। जैसे
(a) वह एकाएक बोल उठा।
(b) वह देखते-ही-देखते उसे मार बैठा।
(c) मैं उसे कब का कह आया हूँ।
(d) दाल में घी डाल देना।
(e) बच्चा खेलते-खेलते गिर पड़ा।
2. शक्तिबोधक : धातु के आगे ‘सकना’ मिलाने से शक्तिबोधक
क्रियाएँ बनती हैं। जैसे
दादाजी अब चल-फिर सकते हैं।
वह रोगी अब उठ सकता है।
कर्ण अपना सब कुछ दे सकता है।
3. समाप्तिबोधक : जब धातु के
आगे ‘चुकना’ रखा जाता है,
तब वह क्रिया समाप्तिबोधक हो जाती है। जैसे
मैं आपसे कह चुका हूँ।
वह भी यह दृश्य देख चुका है।
4. नित्यताबोधक : सामान्य
भूतकाल की क्रिया के आगे ‘करना’ जोड़ने से नित्यताबोधक क्रिया बनती है। जैसे-
तुम रोज यहाँ आया करना।
तुम रोज चैनल देखा करना।
5. तत्कालबोधक : सकर्मक
क्रियाओं के सामान्य भूतकालिक पुं० एकवचन रूप के अंतिम स्वर ‘आ’ को ‘ए’ करके आगे ‘डालना’
या ‘देना’ लमाने
से
तत्कालबोधक क्रियाएँ बनती हैं। जैसे-
कहे डालना, कहे देना, दिए डालना आदि।
6. इच्छाबोधक : सामान्य
भूतकालिक क्रियाओं के आगे ‘चाहना’ लगाने से इच्छाबोधक क्रियाएँ बनती हैं। इनसे तत्काल व्यापार का बोध
होता है। जैसे-
लिखा चाहना, पढ़ा चाहना,
गया चाहना आदि।
7. आरंभबोधक : क्रिया के
साधारण रूप ‘ना’ को
‘ने’ करके लगना मिलाने से आरंभ
बोधक क्रिया बनती है। जैसे-
आशु अब पढ़ने लगी है।
मेघ बरसने लगा।
8. अवकाशबोधक : क्रिया के
सामान्य रूप के ‘ना’ को ‘ने’ करके ‘पाना’ या ‘देना’
मिलाने से अवकाश बोधक क्रियाएँ बनती हैं। जैसे-
अब उसे जाने भी दो।
देखो, वह जाने न पाए।
आखिर तुमने उसे बोलने दिया।
9. परतंत्रताबोधक : क्रिया के
सामान्य रूप के आगे ‘पड़ना’ लगाने से परतंत्रताबोधक क्रिया बनती है। जैसे-
उसे पाण्डेयजी की आत्मकथा लिखनी पड़ी।
आखिरकार बच्चन जी को भी यहाँ आना पड़ा।
10 एकार्थकबोधक : कुछ संयुक्त
क्रियाएँ एकार्थबोधक होती हैं। जैसे-
वह अब खूब बोलता-चालता है।
वह फिर से चलने-फिरने लगा है।
नोट : 1. संयुक्त क्रियाएँ
केवल सकर्मक धातुओं के मिलने अथवा केवल अकर्मक धातुओं के मिलने से या दोनों के
मिलने से बनती हैं। जैसे-
मैं तुम्हें देख लूँगा।
वह उठ बैठा है।
वह उन्हें दे आया था।
2. संयुक्त क्रिया के आद्य खंड को ‘मुख्य या
प्रधान क्रिया’ और अंत्य खंड को ‘सहायक क्रिया’ कहते हैं।
जैसे-
वह घर चला जाता है।
मु. क्रि. स. क्रिया
नामधातु :
“क्रिया को छोड़कर दूसरे शब्दों से (संज्ञा, सर्वनाम एवं विशेषण) से जो धातु बनते हैं, उन्हें ‘नामधातु’ कहते
हैं।” जैसे
पुलिस चोर को लतियाते थाने ले गई।
वे दोनों बतियाते चले जा रहे थे।
मेहमान के लिए जरा चाय गरमा देना।
नामधातु बनाने के नियम :
1. कई शब्दों में ‘आ’ कई
में ‘या’ और कई में ‘ला’ के लगने से नामधातु बनते हैं। जैसे-
मेरी बहन मुझसे ही लजाती है। (लाज-लजाना)
तुमने मेरी बात झुठला दी है। (झूठ-झूठलाना)
जरा पंखे की हवा में ठंडा लो, तब कुछ कहना। (ठंडा-ठंडाना)
2. कई शब्दों में शून्य प्रत्यय लगाने से नामधातु बनते हैं। जैसे
रंग : रँगना गाँठ : गाँठना
चिकना : चिकनाना आदि।
3. कुछ अनियमित होते हैं। जैसे
दाल : दलना, चीथड़ा : चिथेड़ना
आदि।
4. ध्वनि विशेष के अनुकरण से भी नामधातु बनते हैं। जैसे
भनभन : भनभनाना
छनछन : छनछनाना
टर्र : टरटराना/टर्राना
प्रकार (अर्थ,
वृत्ति)
क्रियाओं के प्रकारकृत तीन भेद होते हैं :
1. साधारण क्रिया : वह क्रिया, जो सामान्य अवस्था की हो और जिसमें संभावना अथवा
आज्ञा का भाव नहीं हो। जैसे-
मैंने देखा था। उसने क्या कहा?
2. संभाव्य क्रिया : जिस क्रिया
में संभावना अर्थात् अनिश्चय, इच्छा अथवा संशय
पाया जाय। जैसे-
यदि हम गाते थे तो आप क्यों नहीं रुक गए?
यदि धन रहे तो सभी लोग पढ़-लिख जाएँ।
मैंने देखा होगा तो सिर्फ आपको ही।
नोट : हेतुहेतुमद् भूत, संभाव्य भविष्य एवं संदिग्ध क्रियाएँ इसी श्रेणी में आती है।
3. आज्ञार्थक क्रिया या विधिवाचक क्रिया : इससे आज्ञा, उपदेश और
प्रार्थनासूचक क्रियाओं का बोध होता है। जैसे-
तुम यहाँ से निकलो।
गरीबों की मदद करो।
कृपा करके मेरे पत्र का उत्तर अवश्य दीजिए।
kriya in Hindi
Worksheet Exercise with Answers
1. सामान्यतया क्रिया के …………….. भेद होते हैं।
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
उत्तर :
(a) दो
2. धातु में ‘ना’ जोड़ने
पर क्या बनता है?
(a) यौगिक क्रिया
(b) सामान्य क्रिया
(c) विधिवाचक क्रिया
उत्तर :
(b) सामान्य क्रिया
3. ‘जाना’ से प्रेरणार्थक रूप बनता है-
(a) जनाना
(b) जनवाना
(c) भेजना
उत्तर :
(c) भेजना
4. ‘बात’ से नामधातु बनेगा
(a) बताना
(b) बाताना
(c) बतवाना
(d) बतियाना
उत्तर :
(d) बतियाना
5. ‘मेघ बरसने लगा’ में किस तरह की क्रिया का
प्रयोग हुआ है?
(a) पूर्वकालिक
(b) संयुक्त
(c) नाम धातु
उत्तर :
(b) संयुक्त
6. निम्नलिखित वाक्यों में से किसमें पूर्वकालिक क्रिया नहीं है?
(a) वह खाकर विद्यालय जाता है।
(b) वह खाकर टहलता है।
(c) वह खाकर नहाता है।
(d) वह लेटकर खाता है।
उत्तर :
(d) वह लेटकर खाता है।
7. निम्नलिखित वाक्यों में से किसमें नामधातु का प्रयोग हुआ है?
(a) चाय ठंडी हो गई है थोड़ा गरमा देना।
(b) उनकी कहानी समाप्त हो गई है।
(c) प्रदूषण काफी बढ़ गया है।
(d) पेड़-पौधे सूख चुके हैं।
उत्तर :
(a) चाय ठंडी हो गई है थोड़ा गरमा देना।
8. प्रेरणार्थक क्रिया के कितने रूप होते हैं?
(a) दो
(b) चार
(c) छह
उत्तर :
(a) दो
9. क्रिया सामान्यतया वाक्य में …….. का काम करती
है।
(a) उद्देश्य
(b) विधेय
(c) अव्यय
उत्तर :
(a) उद्देश्य
10. ‘मुख्य’ क्रिया’ और ‘सहायक क्रिया’ ये दोनों किस क्रिया के अंतर्गत
आती हैं।
(a) पूर्वकालिक
(b) सामान्य
(c) संयुक्त
उत्तर :
(b) सामान्य
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