हिन्दी के आरंभिक काल से लेकर आधुनिक व आज की भाषा में आधुनिकोत्तर काल तक
साहित्य इतिहास लेखकों के सौ से ज्यादा नाम गिनाये जा सकते हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहास को शब्दबद्ध करने का प्रश्न अधिक महत्वपूर्ण था। हिन्दी साहित्य के
इतिहास-लेखन का कार्य विभिन्न कालों में किसी न किसी रूप में अवश्य मिलता
है।
इतिहास लेखन का आरंभिक काल:
आरंभिक काल में मात्र कवियों के सूची संग्रह को इतिहास रूप
में प्रस्तुत कर दिया गया। “दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता”, “भक्तमाल”, “चौरासी वैष्णव की वार्ता”, “कविमाला” आदि ग्रन्थों में यदि भक्त कवियों का विवरण दिया भी गया
तो धार्मिक दृष्टिकोण तथा श्रद्धातिरेक की अभिव्यक्ति के अतिरिक्त उसकी और कुछ
उपलब्धि नहीं रही। 19वीं सदी में ही हिन्दी
भाषा और साहित्य
दोनों के विकास की रूपरेखा स्पष्ट करने के प्रयास होने लगे। प्रारंभ में निबंधों
में भाषा और साहित्य का मूल्यांकन किया गया जिसे एक अर्थ में साहित्य के इतिहास की
प्रस्तुति के रूप में भी स्वीकार किया गया। डॉ॰ रूपचंद पारीक, गार्सा-द-तासी (फ्रांस) के ग्रन्थ इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐन्दूई ऐन्दूस्तानी (1839) को हिन्दी
साहित्य का प्रथम इतिहास मानते हैं। उन्होंने लिखा है - हिन्दी
साहित्य का पहला इतिहास लेखक गार्सा-द-तासी हैं, इसमें संदेह नहीं है। परंतु डॉ॰
किशोरीलाल गुप्त का मंतव्य है- तासी ने अपने ग्रन्थ को 'हिन्दुई और हिन्दुस्तानी साहित्य का इतिहास' कहा
है, पर यह इतिहास नहीं हैं, क्योंकि इसमें
न तो कवियों का विवरण काल क्रमानुसार दिया गया है, न
काल विभाजन किया गया है और अब काल विभाजन ही नहीं
है तो प्रवृत्ति निरूपण की आशा ही कैसे की जा सकती है।
वैसे गार्सा-द-तासी के ग्रंथ इस्तवार द ला
लितेरात्यूर ऐंदुई ऐंदुस्तानी और शिवसिंह सेंगर की पुस्तक शिव सिंह सरोज (1883) को हिन्दी
साहित्य का प्रथम और द्वितीय इतिहास मानने वालों की संख्या कम नहीं है परंतु डॉ॰
गुप्त का विचार है कि “जॉर्ज ग्रियर्सन” का “द
माडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान” (1888) हिन्दी
साहित्य का प्रथम इतिहास है। डॉ॰ रामकुमार
वर्मा ने इसके विपरीत
अनुसंधानात्मक प्रवृत्ति की दृष्टि से तासी के प्रयास को अधिक महत्वपूर्ण निरूपित
किया है।
पाश्चात्य और प्राच्य विद्वानों ने हिन्दी के इतिहास लेखन के आरंभिक
काल में प्रशंसनीय भूमिका निभाई है। शिवसिंह
सरोज साहित्य इतिहास
लेखन के अनन्य सूत्र हैं। हिन्दी के वे पहले विद्वान हैं
जिन्होंने हिन्दी
साहित्य की परंपरा के सातत्य पर समदृष्टि डाली है। उसके बाद मिश्र बंधुओं ने
साहित्यिक इतिहास तथा राजनीतिक परिस्थितियों के पारस्परिक संबंधों का दर्शन कराया।
डॉ॰ सुमन राजे के शब्दों में - काल विभाजन की दृष्टि से भी मिश्रबंधु विनोद (1913) प्रगति
की दिशा में बढ़ता दिखाई देता है।
इतिहास लेखन का नया युग:
आचार्य
रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी
साहित्य का प्रथम व्यवस्थित इतिहास “हिन्दी साहित्य का इतिहास (1929) लिखकर
एक नये युग का समारंभ किया। उन्होंने लोकमंगल व लोक-धर्म की कसौटी पर कवियों और
कवि-कर्म की परख की और लोक चेतना की दृष्टि से उनके साहित्यिक अवदान की समीक्षा
की। यहीं से काल विभाजन और साहित्य इतिहास के नामकरण की सुदृढ़ परंपरा का
आरंभ हुआ। इस युग में डॉ॰ श्याम
सुन्दर दास, रमाशंकर शुक्ल 'रसाल', सूर्यकांत शास्त्री, अयोध्या सिंह उपाध्याय, डॉ॰
रामकुमार वर्मा, राजनाथ शर्मा आदि विद्वानों ने हिन्दी साहित्य के
इतिहास विषयक ग्रन्थों का प्रणयन कर अमूल्य योगदान दिया। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने शुक्ल युग के इतिहास लेखन के अभावों का गहराई से
अध्ययन किया और हिन्दी साहित्य की भूमिका (1940 ई.), हिन्दी साहित्य का आदिकाल (1952 ई.) और हिन्दी
साहित्य; उद्भव और विकास (1955 ई.) आदि ग्रन्थ लिखकर उस अभाव की पूर्ति की। काल
विभाजन में उन्होंने कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया। शैली की समग्रता उनकी अलग
विशेषता है।
आधुनिक काल
वर्तमान युग में आचार्य द्विवेदी के अतिरिक्त साहित्येतिहास
लेखन में अन्य प्रयास भी हुए परंतु इस दिशा में विकास को अपेक्षित गति नहीं मिल
पाई। वैसे डॉ॰ गणपति चंद्र गुप्त, डॉ॰ रामखेलावन पांडेय के अतिरिक्त डॉ॰ लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय, डॉ॰ कृष्णलाल, भोलानाथ तथा डॉ॰ शिवकुमार की कृतियों
के अतिरिक्त काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा
प्रकाशित हिन्दी साहित्य का इतिहास एवं डॉ नगेन्द्र के संपादन में
प्रकाशित हिन्दी
साहित्य का इतिहास आधुनिक युग की उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हैं। हरमहेन्द्र सिंह बेदी
ने भी हिन्दी साहित्येतिहास दर्शन की भूमिका लिखकर साहित्य के इतिहास और उसके
प्रति दार्शनिक दृष्टि को नये ढंग से रेखांकित किया है।
इस प्रकार हम कह सकते है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन
कि परंपरा लगभग सवा सौ वर्षों से चली आ रही है। इस छोटी सी अवधि में हिन्दी
साहित्य के इतिहास-लेखन कि परंपरा का पर्याप्त विकास हुआ है।
हिन्दी साहित्य के इतिहासकार और उनके ग्रन्थ:
1. गार्सा द तासी : इस्तवार द ला लितेरात्यूर ऐंदुई ऐंदुस्तानी (फ्रेंच भाषा में; फ्रेंच विद्वान, हिन्दी साहित्य के पहले इतिहासकार)
2. शिवसिंह सेंगर : शिव सिंह सरोज
3. जार्ज ग्रियर्सन : द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑफ हिंदोस्तान
4. मिश्र
बंधु : मिश्र
बंधु विनोद
5. रामचंद्र शुक्ल : हिन्दी साहित्य का इतिहास
6. हजारी प्रसाद द्विवेदी : हिन्दी साहित्य
की भूमिका; हिन्दी साहित्य का आदिकाल; हिन्दी
साहित्य :उद्भव और विकास
7. रामकुमार वर्मा : हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास
8. डॉ
धीरेन्द्र वर्मा : हिन्दी साहित्य
9. डॉ नगेन्द्र : हिन्दी साहित्य का इतिहास; हिन्दी वाङ्मय २०वीं शती
10. रामस्वरूप चतुर्वेदी : हिन्दी साहित्य और
संवेदना का विकास।
11. बच्चन सिंह : हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास।
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