{14} तपति उसास औधि रूधिये कहां लौ दैया,

बात बूझें सैननि ही उतर उचारियै

उड़ि चल्यो रंग कैसें राखियै कलंकी मुख,

अनलेखे कहां लौं न बूंघट उघारियै

जरि बरि छार हवै न जाय हाय ऐसी बैसि,

चित-चढ़ी मूरति सुजान क्यों उतारियै।

कठिन कुदायँ आय घिरी हौं अनंदघन,

रावरी बसाय तो बसाय न उजारियै ॥

 


शब्दार्थ-तपति = गर्म। उसास = साँसें। औधि = अवधि। रूंधिये = रोकूँ। बूझें = पूछती हैं। सैननि = आँखों । जलकर छार = राख। बेहिसाब। उघारियै के संकेत से। उचारियै बैसी = उम्र, अवस्था। चित्त-चढ़ी = मन में बसी हुई। उतारियै = हटाना। कुदायँ = बुरा समय। बसाय = बसाना। खोलूँ। जरि बरि बताइए। अनलेखे

 

{15} अकुलानि के पानि पर्यो दिनराति सु ज्यौ छिनकानै कहूं बहरै।

फिरिबोई करै चित चेटक चाक लौं, धीरज को ठिकु क्यों ठहरै।

भये कागद नाव उपाय सबै, घनानन्द नेह नदी गहरै।

बिन जान सजीवन कौन हरै, सजनी! विरहा विष की लहरै ॥

 

शब्दार्थ-अकुलानि = बेचैनी, व्याकुलता। पानि पर्यो = हाथ पड़ना। छिनकानै = क्षणभर के लिए। बहरै - बहलाना। चेटक = जादू। फिरिबोई = चलायमान । चाक = कुम्हार का चक्कर । लौं = समान। ठिकु = ठिकाना । कागद नाव = कागज की नाव, अस्थिर। नेह नदी = प्रेम की नदी। हरै=दूर करना।

 

 

{16}

जान प्यारी! हौं तो अपराधनि सों पूरन हौं,

कहा कहीं ऐसी गति, आवत गर्यो रुक्यो।

साध मारै सुधा तो सुभाय के मिठासै, ताकी, ,

आसा ल दहति, मैं चरन कंज सों ढुक्यो।

इतै पे जो रोष कै रसीली हियो पोठ्यौ करौं,

तौ न कहूं गैर जी को, वे हू झगरो चुक्यो ।

ऐसें सोच-आंचनि अनंदघन सुखनिधि।

लपट कढ़े न नेकौ हा हा जात ज्यौं फुक्यौ।

 

शब्दार्थ-जान प्यारी = प्यारी=प्यारी सुजान। हौं = मैं। पूरन = भरा हुआ। गर्यो = भरा हुआ। गर्यो = गला। रुक्यो = रुक जाता है, रुंध जाता है। साध = तीव्र इच्छा। सुभाय = सहज। दहति = जलती है। चरन-कंज = चरण-कमल । दुक्यो = छिपता हूँ। रोष = जोश, हिम्मत। पोढ्यौ दृढ़। गैर अन्य, दूसरा। आंचनि = तपन, आग। सुखनिधि = सुख के सागर। फुक्यो फूंकता है।

 

{17}

सुधा ते खवतं विष, फूल में जमत सूल,

तम उगिलत चंद, भई नई रीति है।

जल जारे अंग, ओर राग को सुरभंग,

संपति विपति पारे, बड़ी विपरीति है।

महागुन गहै दोषै, औषद हू रोग पोषै,

ऐसे जान! रस मांहि विरस अनीति है।

दिनन को फेर मोहि, तुम मन फेरि डार्यो,

अहो घन आनन्द न जानौं कैसी बीति है।

शब्दार्थ-स्रवतं टपकना। जमत उत्पन्न होना। सूल = काँटा। तम = अन्धेरा। उगिलत उगलना। रीति=परम्परा। राग = रागिनी। सुरभंग = स्वर खंडित। विपति = संकट, दुःख। पारै = पड़े। औषद = औषधि । पोषै = पोषण करना। विरस शोक। दिनन को फेर = बुरा समय आना।

 

{18}

लगी है लगनि प्यारे, पगी है सुरति तोसों,

जगी है विकलताई ठगी सी सदा रहौं।

जियरा उड्यो-सो डोले, हियरा धक्यौई करै,

पियराई छाई तन, सियराई दौ दहौं।

ऊनो भयो जीबो अब सूनो सब जग दीसै

दूनो-दूनो दुख एक एक छिन में सहौं।

तेरे तौ न लेखो, मोहिं मारत परैखो महा,

जान घन आनन्द पै खोइबो लहा लहौं।

 

शब्दार्थ-लगनि = लगाव। पगी है सुरति = स्मृति में लीन है। विकलताई= व्याकुलता। जियरा = जी। हियरा=हृदय। पियराई = पीलापन। सियराई दौ = धीरे-धीरे सुलगने वाली आग। दहौं = जलती हूँ। ऊनो = कम। परैखो = पश्चात्ताप। खोइबो = खो देना। लहा = लाभ। लहौं = पाती हूँ। दीसै = दिखाई देता है।

 

(19)

अधिक बधिक ते सुजान! रीति रावरी है,

कपट-युगो दे फिरि निपट करो बुरी।

गुनर्नि पकरि लै, निपांख करि छोरि देहु,

मरहि न जिये, महा विषम दया-छुरी।

हाँ न जानों, कोन यों ही या में सुद्ध स्वास्थ की,

लखि क्यों परति प्यारे अंतर कया दुरि

कैसे आसा-द्रुम पे बसेरो लहे प्रान खम,

बनक-निकाई पन आनन्द नई जुरी।

 

शब्दार्थ-वधिक = बहेलिया। रीति = दंग। रावरी = तुम्हारी। युगौ = चारा। निपट - नितान्त । गुननि = गुणों से। पकरि लै = पकड़कर। निपांख पंख रहित। विषम भयंकर। दया-दुरी - दया की छुरी। हों - मैं। कौन बौं - न जाने कौन। लखि - दिखाई देना। अंतर कथा - हृदय की छुपी हुई बात। आसा-द्रुम = आशा रूपी वृक्ष। प्रान खग = प्राण रूपी पक्षी। बनक-निकाई - पक्षियों को लुभाने की नई वस्तु।

 

{20} इत बांट परी सुधि, रावरे भूलनि, कैसें उराहनो दीजिये जू।

अब तो सब सीस चढ़ाय लयी जु कुछू मन भाई सु कीजियै जू।

घन आनंद जीवन प्रान सुजान! तिहारियै बातनि जीजिये जू।

नित नीके रहो, तुम्है चाड़ कहा पै असीस हमारियौ लीजियै जू।

 

शब्दार्थ-बांट परी=हिस्से में। रावरे = तुम्हारे। भूलनि= भूलकर। उराहनो = उलाहना। सीस= शीश। तिहारियै=तुम्हारी ही। बातनि = बातों। जीजिये = जीता हूँ।

 

(21)

एरे बीर पौन! तेरो सब ओर गौन, बीरी,

तो सो और कौन, मनै दरकौंही बानी दै।

जगत के प्रान, ओछे बड़े सो समान घन-

आनंद-निधान सुखदान दुखियानि दै।

जान उजियारे गुन-भारे अंत मोहि प्यारे,

अब है अमोही बैठे पीठि पहिचानि दै।

बिरह-बिथाहि मूरि, आँखिन में राखौं पूरि,

धूरि तिन पायन को हा-हा नेकु आनि दै।

 

शब्दार्थ-बीर भाई। पौन=वायु, हवा। गौन=गमन, गति। मनें = मुझे। ढरकौंही ढलने वाली।

बानी=वाणी। दुखियानि = दुखियों की। उजियारे उज्ज्वल। अंत=अन्यत्र। पीठि दै= पीठ मोड़कर।गुन-भारे = गुणों से युक्त। अमोही = निर्मोही। बिरह-बियाहि = वियोग की पीड़ा। मूरि= पूर्णतया। धूरि = धूल।तिन पायन कोउसके पैरों की। नेकु = थोड़ी।

 

(22)

एकै आस एकै बिसवास प्रान गहें बास,

और पहचानि इन्हें रही काहू सों न है।

चातिक लौं चाहै घनआनंद तिहारी ओर,

आठौ जाम नाम ले, बिसारि दीनी मौन है।

जीवन आधार जान सुनियै पुकार नेकु,

आनाकानी दैबो दैया घाय कैसो लौन है।

नेह-निधि-प्यारे गुन-भारे हुवै न रूखे हूजे

ऐसौ तुम करौ तौ विचारन के कौन है।

 

शब्दार्थ-आस = आशा। बिसवास = भरोसा। आठौ जाम = आठो पहर । बिसारि = भूला देना। नेकु = थोड़ी-सी।आनाकानी = सुनकर न सुनना। घाय = घाव। लौन= नमक। रूखे रुक्ष, स्नेह-विहीन।

 

(23)

अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं।
घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।।

शब्दार्य-सूचो-सीधा, सरल। सनेह - प्रेम। नेक- तनिक। सयानप - चतुराई, बुद्धिमला। बाँक

बुद्धिमत्ता- वक्रता,टेढ़ापना आपुनपो-अहंकार । प्रार्क - शिशकते हैं। निसांक - निःशंक। मन - हदय, मनभर तोला लेहु - लेते हो।

 

(24)

कारी कूर कोकिला कहाँ को बैर काढ़ति री,
कूकि-कूकि अबही करेजो किन कोरि रै।
पैंड़ परै पापी ये कलापी निसि द्यौस ज्यों ही,
चातक रे घातक ह्वै तुहू कान फोरि लै।
आनंद के घन प्रान जीवन सुजान बिना,
जानि कै अकेली सब घेरो दल जोरि लै।
जौ लौं करै आवन विनोद बरसावन वे,
तौ लौं रे डरारे बजमारे घन घोरि लै।।

 

शब्दार्थ-कारी काली। कूर-कूर, निर्दयी। बैर - शत्रता। कादति- निकालती है। करेजो- कलेजा। किन कोरि लै - क्यों नहीं निकाल लेती। पैड़े परे - पीछे पड़े हैं। कलापी- मोर। निस द्यौस - दिन-रात। घातक - देने वाला। तू ही- तू भी। येरौ दल जोरि लै - अपना दल जोड़कर मुझे घेर ले। विनोद-बरसावन - सुख देने वाले। उसरे- डरावने। बजमारे - बेशर्म, दुष्ट, बुरे। योरि लै = गर्ज ले।

 

(25) मही दूध सम गनै हंस-बक भेद न जाने।

कोकिल-काक न ज्ञान, कांच-मनि एक प्रमानै।

चंदन-ढाक समान, रांग-रूपौ सम तोलै।

बिन बिबेक गुन दोष, मूढ़ कबि ब्यौरि न बोले।

प्रेम नेम हित-चतुरई, जे न बिचारत नेकु मन।

सपने हून बिलंबिये, छिन तिन ढिग आनन्दघन।

 

शब्दार्थ-मही=दही। गनै = समझें। बक = बगुला। काक = कौआ। काँच-मनि = काँच और मणि। ढाक -= राँगा। विबेक = ज्ञान । मूढ़ = मूर्ख। ब्यौरि = निर्णय करके। नेकु = थोड़ा-सा। ढिग = पास।