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महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय | Biography Of Mahatma Budha | |
महात्मा
बुद्ध का जीवन परिचय
महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। उनका आरंभिक नाम सिद्धार्थ था। 29 वर्ष की
आयु में उन्होंने सच्चे ज्ञान की खोज के उद्देश्य से ग्रह त्यााग दिया था। 35
वर्ष की आयु में गया नामक स्थान पर सच्चा ज्ञान प्राप्त किया।
महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में दिया। उन्होंने 45 वर्षों तक भारत के विभिन्न
स्थानों पर भ्रमण कर, लोगों में अपना ज्ञान बांटा। उनकी
शिक्षाओं ने लोगों के मनों पर जादुई प्रभाव डाला। उन्होंने 4 महान सत्य अष्ट मार्ग, कर्म सिद्धांत, अहिंसा तथा आपस में भाईचारे का प्रचार किया। वह यज्ञों, बलियों, वेदो, संस्कृत भाषा,
तपस्या, जाति प्रथा तथा ईश्वर में अविश्वास
रखते थे।
महात्मा
बुद्ध का जन्म समय
महात्मा बुद्ध का जन्म न
केवल भारत अपितु समस्त संसार के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी। उनकी जन्मतिथि
के संबंध में इतिहासकारों में
काफी मतभेद है। इतिहासकारों
के अनुसार महात्मा बुद्ध का जन्म 623 ईसा पूर्व, 577 ईसा पूर्व, 567 ईसा पूर्व तथा 563 ईसा पूर्व को हुआ। अधिकांश इतिहासकार 567 ईसा
पूर्व को महात्मा बुद्ध की जन्मतिथि स्वीकार करते हैं।
महात्मा
बुद्ध के माता-पिता
महात्मा बुद्ध के पिता का
नाम शुद्धोधन था। शुद्धोधन क्षत्रिय वंश से संबंधित
है, तथा वह नेपाल की तराई में स्थित एक छोटे से गणराज्य के
शासक थे। इस राज्य की राजधानी का नाम कपिलवस्तु था। शुद्धोधन की दो रानियां थीं। इनके नाम महामाया अथवा महादेवी एंव प्रजापति गौतमी थे। यह दोनों बहने थी तथा कोलिय गणराज्य की राजकुमारियां थी। महात्मा
बुद्ध की माता का नाम महामाया था।
गौतम
बुद्ध के जन्म से पहले प्रचलित कहानी
बौद्ध परंपरा के अनुसार
महात्मा बुद्ध के जन्म से पहले रानी महामाया ने एक विचित्र सपना देखा। इसमें उसने
देखा कि एक छ: दातों वाले सफेद हाथी जिसने अपनी सूंड में सफेद कमल पुष्प पकड़ रखा था ने उसके चारों ओर 3
चक्कर काट कर उसके गर्भ में प्रवेश किया है। रानी ने उपरोक्त स्वपन
के बारे में राजा शुद्धोधन को बताया। राजा ने इस संबंध में राज्य ज्योतिषियों से
सलाह ली। ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी की थी कि रानी महामाया एक पुत्र को जन्म
देगी जो या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या बुद्ध बनेगा।
गौतम
बुद्ध का जन्म
बच्चे के जन्म का समय
निकट आने पर परंपरा के अनुसार रानी महामाया ने राजा शुद्धोधन से अपने मायके देवदह
(कोलिय गणराज्य की राजधानी) जाने की आज्ञा मांगी। शुद्धौदन ने उसकी इच्छा को
स्वीकार करते हुए उसके साथ कुछ सेविकाएं भेजी। मार्ग में रानी कुछ देर विश्राम
करने के लिए लुंबिनी के बाग
में ठहरी। यहीं उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। तथा उन्होंने साल वृक्ष के नीचे एक सुंदर बालक को जन्म दिया।
वह पवित्र दिन वैशाख पूर्णिमा का दिन था। कहा जाता है कि जिस
समय बालक ने जन्म लिया उस समय अनेक देवी-देवताओं ने फूल की वर्षा की। बालक जन्म
लेते ही सात कदम चला तथा यह कहा कि यह उसका यह अंतिम जन्म है। जहां जहां बालक ने
कदम रखे वहां वहां कमल के फूल खिल उठे।
महात्मा
बुद्ध का नामकरण
रानी महामाया लुंबिनी से
नवजात शिशु को लेकर कपिलवस्तु लौटा आई। बच्चे के जन्म पर कपिल वस्तु तथा देवदेह
में काफी खुशियां मनाई गई। बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। इस समय राज्य के ज्योतिषी आसित ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह
बालक या तो संसार का एक महान सम्राट बनेगा या एक महान धार्मिक नेता।
महात्मा
बुद्ध की माता की मृत्यु
दुर्भाग्यवश सिद्धार्थ के जन्म के 7 दिन
बाद उसकी माता की मृत्यु हो गई। इसलिए सिद्धार्थ का पालन-पोषण
महामाया की छोटी बहन प्रजापति गौतमी ने किया। इस कारण सिद्धार्थ को गौतम भी कहा जाने
लगा।
महात्मा
बुद्ध का बाल्यकाल
सिद्धार्थका पालन-पोषण
बहुत लाड-प्यार से हुआ था। उन्हें विभिन्न प्रकार की शिक्षा देने के उचित प्रबंध
किए गए। बाल्यावस्था में ही सिद्धार्थ एक चिंतनशील और कोमल स्वभाव के थे। वह बहुदा
एकांत में रहना पसंद करते थे। यह देखकर उनके पिता को चिंता हुई। वह सिद्धार्थ का
ध्यान आध्यात्मिक विचारों से हटाना चाहते थे। ताकि उनका पुत्र एक महान सम्राट बने।
इसलिए सिद्धार्थ के भोग विलास के लिए राजमहल में यथासंभव प्रबंध किए गए। किंतु इन
सब राजसी सुखो का सिद्धार्थ के मन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
महात्मा
बुद्ध का विवाह
जब सिद्धार्थ की आयु 16 वर्ष की हुई, तब उनका
विवाह अति सुंदर राजकुमारी यशोधरा से कर दिया गया। कुछ समय बाद उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम राहुल ( जिसका मतलब होता है बंधन) रखा गया।
ग्रहस्थ जीवन भी सिद्धार्थ को सांस्कृतिक कार्यों की ओर आकर्षित नहीं कर सका।
चार महान
दृश्य तथा महान त्याग
यद्यपि सिद्धार्थ को अति
सुंदर महलों में रखा गया था किंतु उनका मन बाहरी संसार को देखने के लिए व्याकुल
रहता था। एक दिन महात्मा बुद्ध अपने सारथी को लेकर राज महल से बाहर निकले। रास्ते
में उन्होंने एक वृद्ध, एक रोगी,
एक अर्थी तथा एक साधु को देखा। मानव जीवन
के इन विभिन्न दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ का मन विचलित हो उठा। उन्होंने यह जान
लिया कि संसार दुखों का घर है, अतः सिद्धार्थ ने गृह त्याग
का निश्चय किया तथा एक रात अपनी पत्नी तथा पुत्र को सोते हुए छोड़कर सत्य की खोज
में निकल पड़े। इस घटना को महान त्याग कहा जाता है। उस
समय सिद्धार्थ की आयु 29 वर्ष थी।
गौतम
बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति
ग्रहत्याग करने के बाद
सिद्धार्थ ने सच्चे ज्ञान की खोज शुरू कर दी। इस उद्देश्य से वह सबसे पहले मगध की
राजधानी राजगृह पहुंचा। यहां उन्होंने अलारकलाम तथा उद्रक नामक दो प्रसिद्ध विद्वानों से ज्ञान के संबंध में
शिक्षा प्राप्त की, किंतु उनके मन को संतुष्टि न हुई अतः
सिद्धार्थ ने राजगृह छोड़ दिया। वह अनेक वनों तथा दुर्गम पहाड़ियों को लांग अंत
गया के समीप उरुवेला वन में पहुंचा। यहां सिद्धार्थ की मुलाकात पांच ब्राह्मण
साधुओं से हुई। इन ब्राह्मणों के कहने पर सिद्धार्थ ने कठोर तपस्या शुरू कर दी। 6
वर्षों की तपस्या के बाद उनका शरीर सूख कर काटा हो गया यहां तक कि
उनमें दो चार कदम चलने की भी शक्ति न रही। इसके बावजूद उन्हें वांछित ज्ञान नहीं
मिल सका।
वह इस परिणाम पर पहुंचे
कि शरीर को अत्यधिक कष्ट देना निरर्थक है। अतः उन्होंने भोजन ग्रहण किया इसके बाद
सिद्धार्थ ने निरंजना नदी के निकट पीपल के वृक्ष के नीचे समाधी लगा ली, तथा यह प्रण किया कि जब तक उन्हें ज्ञान प्राप्त नहीं होगा वह वहां से
नहीं उठेंगे। आठवें दिन वैशाख की पूर्णिमा को
सिद्धार्थ को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। सिद्धार्थ
को बुद्ध (जागृत) तथागत (जिसने सत्य को पा लिया हो) भी कहा जाने लगा। जिस वृक्ष के
नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था उसे महाबौद्धि
वृक्ष तथा गया को बौद्ध गया कहा जाने लगा। ज्ञान प्राप्ति के समय महात्मा बुद्ध की आयु 35 वर्ष थी।
बौद्ध
धर्म का प्रचार
ज्ञान प्राप्ति के बाद
महात्मा बुद्ध ने पीड़ित मानवता के उद्धार के लिए अपने ज्ञान का प्रचार करने का
संकल्प लिया। वह सबसे पहले वनारस के निकट सारनाथ पहुंचे।
यहां महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश अपने उन पांच साथियों को दिया जो गया में उनका साथ छोड़ गए थे। यह सभी बुद्ध के अनुयाई बन गए। इस घटना को धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है। शीघ्र ही महात्मा बुद्ध का यश
चारों ओर फैले लगा तथा उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। महात्मा बुद्ध ने
अपने धर्म को संगठित ढंग से प्रचार करने के उद्देश्य से मगध में बौद्ध संघ की स्थापना की। महात्मा बुद्ध ने 45 वर्षों
तक विभिन्न स्थानों पर जाकर अपने उपदेशों का प्रचार किया।
महात्मा
बुद्ध के प्रसिद्ध अनुयायी
महात्मा बुद्ध के उपदेशों
का लोगों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा वे बुद्ध के अनुयाई बनते चले गए। महात्मा बुद्ध के प्रसिद्ध अनुयायियों में मगध के शासक बिंबिसार तथा उसका
पुत्र अजातशत्रु, कौशल का शासक प्रसेनजित, उसकी रानी मल्लिका तथा वहां के प्रसिद्ध सेठ अनाथपिंडक, मल्ल गणराज्य का राज्य शासक भद्रिक तथा वहां का प्रसिद्ध ब्राह्मण आनंद,
कोसांबी का शासक उदयन वैशाली की प्रसिद्ध वेश्या अमरपाली तथा
कपिलवस्तु के शासक शुद्धोधन (बुद्ध के पिता) उसकी रानी प्रजापति गौतमी, महात्मा बुद्ध की पत्नी यशोधरा तथा उनके पुत्र राहुल के नाम उल्लेखनीय
हैं। महात्मा बुद्ध ने अपने परम शिष्य आनंद के आग्रह पर
स्त्रियों को भी बौद्ध संघ में सम्मिलित होने की आज्ञा दे दी।
महापरिनिर्वाण
महात्मा बुद्ध ने अपने
उपदेशों द्वारा भटकी हुई मानवता को ज्ञान का मार्ग दिखाया। अपने जीवन के अंतिम काल
में जब वह पावा पहुंचे तो उन्होंने वहां एक स्वर्णकार के घर भोजन किया। इसके बाद
उन्हें पेचिस हो गया। यहां से महात्मा बुद्ध कुशीनगर पहुंचे। यहां 80 वर्ष की आयु में 487 ईसा
पूर्व वैशाखी पूर्णिमा को अपना शरीर त्याग दिया। इस
घटना को बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा जाता है।
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