भारतीय जीवन
में व्याप्त कुरीतियां पर निबंध/Bhartiya Jivan mein vyapt kuritiyan Essay in Hindi/Paragraph Writing /Passage Writing on Social Evil in Indian Society
भारतीय जीवन में व्याप्त कुरीतियां
प्रस्तावना :- किसी भी राष्ट्र की उन्नति अथवा अवनति उसके समाज पर निर्भर होती है। यदि समाज
समुन्नत होगा तो राष्ट्र भी समुन्नत होगा तथा समाज पत्तनोमुखी होगा तो राष्ट्र भी पत्तनोमुखी होगा। अतः राष्ट्र के बहुमुखी विकास के
लिए समाज का विकसित होना अत्यंत आवश्यक है। प्राचीन काल में जब भारतीय समाज हर
दृष्टि से सुखी और संपन्न था, तो भारत सोने की चिड़िया कहलाता था।
ज्ञान-विज्ञान, कला, उद्योग, व्यापार आदि सभी क्षेत्रों में भारत की धाक थी। लेकिन जैसे-जैसे भारतीय
जीवन कुरीतियों से ग्रस्त होता गया वैसे-वैसे भारतीय भी पतन के गर्त में गिरता गया। विदेशी
आक्रमणकारियों ने भारत की कमजोरियों का लाभ उठाया और वह यहां के शासक बन गए। विश्व
का एक महान देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ लिया गया।
जननी और
जन्मभूमि को स्वर्ग से बढ़कर मानने वाले हम भारतवासियों का यह कर्तव्य है कि
भारतीय जीवन में व्याप्त जिन कुरीतियों ने हमें पतन के गर्त में धकेला है, उन्हें हम
भारतीय जीवन से उखाड़ फेंके। हमें जिन कुरीतियों से लड़ना है, उनमें कुछ
इस प्रकार है-
वर्ण-व्यवस्था
:- भारतीय
जीवन में व्याप्त सबसे बड़ी कुरीति जन्म के आधार पर स्वीकार की जाने वाली वर्ण
व्यवस्था है। प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था कर्म पर आश्रित थी। उसमें ब्राह्मण
कुल में जन्म लेने पर भी बाल्मीकि को अपकर्मों में लिप्त होने पर शूद्र वर्ण में गिना
गया। लेकिन पश्चाताप की अग्नि में तप कर जब वे ब्रह्म ऋषि बन गए तो पुन: उनका वर्ण परिवर्तन कर दिया गया था।
जन्म के आधार पर स्वीकृत वर्ण व्यवस्था ने भारत को सर्वाधिक हानि पहुंचाई है। इस
प्रथा के कारण महारथी कर्ण को ‘सूर्यपुत्र’ होते हुए
भी ‘सूतपुत्र’ का सम्बोधन सहना पड़ा।
एकलव्य जैसे धनुर्धारी, कबीर जैसे सुधारक को वर्ण व्यवस्था का दंश सहना पड़ा। ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, तथा शूद्र
की चारदीवारी में भारतीय कैद होकर रह गया। राष्ट्रीय एकता की भावना भी इसी कारण
विकसित न हो सकी।
नारी के
प्रति असमानता और सम्मान का भाव :- भारतीय जीवन की यह एक प्रमुख कुरीति है। एक समय था जब कहा जाता था कि “जहां
नारियों की पूजा होती है वहीं देवता निवास करते हैं”। लेकिन कालांतर में नारी
के प्रति हमारे समाज में परिवर्तन आया। नारी पूजा के स्थान पर भोग्या बन कर रह गई। वह सहगामी के स्थान पर अनुगामी
बन गई। इतना ही नहीं इस पुरुष प्रधान समाज में उसे जुए के दांव पर लगाया, सती प्रथा
के नाम पर उसे जीवित जल जाने को बाध्य किया गया। आज भी कई राज्यों में उसे माता
पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार नहीं है। संविधान के पृष्ठों पर उसे भले ही समानता प्राप्त हो लेकिन
सत्य यही है कि वह आज भी सर्वाधिक प्रभावित है। वह परिवार में शिक्षा प्राप्ति के
अधिकार से भी वंचित है। नारी की स्थिति में थोड़ा बहुत परिवर्तन शहरों में अवश्य
आया है। गांव में वह आज भी ‘पराया-धन’ अथवा ‘दान’ की वस्तु है।
अंधविश्वास :- अंधविश्वास भारतीय समाज की सबसे बड़ी
कुरीति है। इस कुरीति का जन्म अशिक्षा और अज्ञान से
हुआ है। तंत्र-मंत्र, जादू-टोना आदि के जाल में भारतीय समाज आज की जकड़ा हुआ है। आज भी सड़कों पर बैठे ज्योतिषियों से अपनी भाग्य रेखा पढ़वाने वालों की भीड़ देखी जा सकती है । टोने-टोटके करने वाले ओझाओं के कारण अनेक लोग अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते है । तंत्र-मंत्र के फेर में पड़कर अनेक लोग
लूट पिटकर रोते देखे जाते हैं।
दहेज प्रथा :- भारतीय समाज में व्याप्त एक बड़ी कुरीति दहेज प्रथा है। यह कुरीति
हमारे समाज के लिए एक अभिशाप बन गई है। इस कुरीति ने विवाह जैसे पवित्र बंधन को एक
सौदा बना दिया है। लड़की के मां-बाप खुले बाजार से वर खरीदने को बाध्य होते हैं।
अपना मनचाहा दहेज पाने के लिए विवाहिता युवतियों को आए दिन प्रताड़ित किया जाता है।
पूरे देश में प्रतिवर्ष हजारों लड़कियों को दहेज के दानव के मुंह में जाने के लिए
बाध्य होना पड़ता है। सरकार ने इस कुरीति को समाप्त करने के लिए अनेक कानून भी
बनाए हैं। परंतु यह कुरीति आज भी बढ़ती जा रही है। इस कलंक को वैचारिक परिवर्तन
द्वारा ही मिटाया जा सकता है।
बाल विवाह :- भारतीय सामाजिक जीवन में बाल विवाह
भी एक बहुत बड़ी कुरीति है। 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की और 21 वर्ष से कम उम्र के लड़के का विवाह
दंडनीय अपराध घोषित किया जा चुका है। परंतु राजस्थान आदि प्रदेशों में आज भी बाल-विवाह
होते देखे जा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो बाल-विवाह एक सामान्य सी बात है।
इस कुरीति से बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर तो प्रतिकूल प्रभाव पड़ता ही है, साथ ही
जनसंख्या वृद्धि जैसी समस्या को भी बढ़ावा मिलता है।
इस प्रकार
हम देखते हैं कि भारतीय समाज आधुनिक वैज्ञानिक युग में भी अनेक कुरीतियों का शिकार
है। इन कुरीतियों को समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि देश में शिक्षा का प्रचार-प्रसार
किया जाए। शिक्षा के अभाव में इन कुरीतियों से मुक्ति नहीं पाई जा सकती।
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