महाकवि देव का जीवन परिचय/Dev ka Jiwan Parichay
महाकवि देव जी का वास्तविक नाम देवदत्त था। देव
जी को रीतिकाल के श्रेष्ठ श्रृंगारी कवि माना जाता है। उनका जन्म सन् 1673 ई. में उत्तरप्रदेश के इटावा के द्योसरिया
ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम प. बिहारीलाल थे। "भावविलास" के अनुसार ये कान्यकुब्ज थे और इटावा नगर के
पंसारी टोला बल्लालपुरा में रहते थे। देव जी जीवन भर भटकते रहे। एक के बाद दूसरे
आश्रयदाता के मुखापेक्षी रहे। आजमशाह, भवानी
दत्त वैद्य, कुशलसिंह, उद्योत
सिंह एवं भोगीलाल के आश्रय में रहे थे। जीवन के अंतिम दिनों में ये अकबर अली खां
के आश्रय में रहे और अपनी समस्त रचनाओं को "सुखसागर
तरंग" नाम से उन्हीं को समर्पित किया। उनका मृत्यु सन् 1767 ई. को हुआ।
देव का साहित्यिक
परिचय /Dev ki
sahityik visheshtayen
इनमें
"प्रेमचंद्रिका" में विषय-वासना के तिरस्कार,प्रेम के माहात्म्य और उसके विभिन्न रूपों का
वर्णन किया गया है। "रागरत्नाकर" संगीत
विषयक लक्षण-ग्रंथ है। "देवशतक" अध्यात्म
संबंधी ग्रंथ है, जिसमें जीवन और जगत की असारता, ब्रह्मतत्व तथा प्रेम के माहात्म्य का वर्णन है।
"देवचरित्र"
कृष्ण के जीवन से
संबंध प्ररबंधकाव्य है। "देवमायाप्रपंच" संस्कृत
के "प्रबोधच़द्रोदय" नाटक का पद्यबद्ध अनुवाद है। शेष ग्रंथ
काव्यांग-विवेचन संबंधी है। इनमें "भावविलास" के अंतर्गत
रस सामग्री और रस-भेदों, विशेषत: श्रृंगार रस और नायक नायिका भेद तथा ३९
अलंकारों के विवेचन में भानुदत्त मिश्र की "रसमंजरी" और "रसतरंगिणी", भामह के "काव्यालंकार", दंडी के "काव्यादर्श" तथा केशव की "रसिक प्रिया और "कविप्रिया" का
आश्रय लिया गया है।"शब्दरसायन" में
क्रमश: काव्यस्वरूप,शब्दशक्ति,नवरस, नायक-नायिका भेद, रीति, गुण, वृत्ति, अलंकार और पिंगल का विवेचन "काव्यप्रकाश", "साहित्य
दर्पण", "रसमंजरी" और "रसतरंगिणी" के आधार
पर किया गया है।शेष ग्रंथों में नायक-नायिका भेद और श्रृंगार रस से संबद्ध विवेचन
है। "सुखसागरतरंग" इन विषयों से संबद्ध कवित्त-सवैयों का संग्रह है
तथा "अष्टयाम" में दिन
के आठ पहरों के बीच होने वाले नायक-नायिका के विविध विलासों का वर्णन है। इन
ग्रंथों की रचना 1689-1767 ई. के
बीच हुई।
देव की काव्य
विशेषताएँ/Dev ki
kavy visheshtayen
3 टिप्पणियाँ
Thank you so much
जवाब देंहटाएंWaw sir ji
जवाब देंहटाएंये मेरे पूर्वज थे l
जवाब देंहटाएं