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देव के सवैयों की व्याख्या कक्षा 10 /देव के कवित की व्याख्या क्लास 10 Dev ke Kavit class 10 |
देव के सवैया की व्याख्या :
पाँयनि नूपुर
मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥
प्रसंग : प्रस्तुत सवैया कविवर ‘देव’ के श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य संबंधी सवैयों में से लिया गया है। इसमें उन्होंने बालक
श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का अत्यंत मनोरम चित्रण किया है।
व्याख्या : इस सवैये में कृष्ण के राजसी रूप का वर्णन किया गया है। कवि का
कहना है कि कृष्ण के पैरों के पायल मधुर धुन सुना रहे हैं। कृष्ण ने कमर में करघनी
पहन रखा है जिसकी धुन भी मधुर लग रही है। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र लिपटा
हुअ है और उनके गले में फूलों की माला बड़ी सुंदर लग रही है। उनके सिर पर मुकुट सजा
हुआ है जिसके नीचे उनकी चंचल आँखें सुशोभित हो रही हैं। उनका मुँह चाँद जैसा लग
रहा है जिससे मंद मंद मुसकान की चाँदनी बिखर रही है। श्रीकृष्ण का रूप ऐसे निखर
रहा है जैसे कि किसी मंदिर का दीपक जगमगा रहा हो।
देव के कवित्त की व्याख्या :
डार द्रुम पलना
बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥
प्रसंग : प्रस्तुत कवित हिंदी की
पाठ्यपुस्तक “क्षितिज भाग-2” में संकलित देव के कवितों में
से उद्धृत है। इस कविता में कवि ने बसंत ऋतु का प्राकृतिक चित्रण किया है। बसंत को
बालक रूप में चित्रित करके प्रकृति के साथ उसका रागात्मक संबंध दिखाया है।
देव के कवित्त की व्याख्या :
फटिक सिलानि
सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥
प्रसंग : प्रस्तुत कवित हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक “क्षितिज
भाग-2” में संकलित देव के कवितों में से लिया गया है। इस
कवित में कवि ने दूध से नहाई हुई पूर्णिमा की चांदनी रात का वर्णन किया है, चांद और तारों की छटा अनोखी है।
रीतिकाल के कवि देव
सवैया (अभ्यास के प्रश्न)
प्रश्न-1
: कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें
संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर: कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ का प्रयोग कृष्ण के लिए किया है। जिस तरह एक दीपक
पूरे मंदिर को रोशन कर देता है उसी तरह कृष्ण पूरे संसार को रोशन कर देते हैं।
इसलिए उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।
प्रश्न-2 : पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?
उत्तर: अनुप्रास अलंकार का प्रयोग निम्न पंक्तियों में हुआ है:
कटि
किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
रुपक अलंकार का प्रयोग निम्न पंक्ति में हुआ है:
मंद हँसी मुखचंद जुंहाई, जय जग-मंदिर-दीपक सुन्दर।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
रुपक अलंकार का प्रयोग निम्न पंक्ति में हुआ है:
मंद हँसी मुखचंद जुंहाई, जय जग-मंदिर-दीपक सुन्दर।
प्रश्न-3 : निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:
पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
उत्तर:
इन पंक्तियों में कवि ने श्रृंगार रस का प्रयोग किया है। उन्होंने पायल और
कमरघनी से निकलने वाले संगीत की मधुरता का चित्रण किया है। इसके बाद उन्होंने
साँवले अंग पर पीले वस्त्रों की शोभा का बखान किया है। साथ में फूलों की माला का
बखान भी किया है। इसमें तरह-तरह के अलंकारों का प्रयोग हुआ और तुकबंदी भी अच्छी की
गई है।
प्रश्न-4 : दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज बसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है।
उत्तर: परंपरागत तरीके से बसंत को अधिकाँश कवि किसी युवक के रूप में दर्शाते हैं।
ऐसा इसलिए होता है कि बसंत को काम के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। लेकिन इस
कवित्त में बसंत को एक बालक के रूप में दर्शाया गया है। इसलिए यह वर्णन परंपरागत
वर्णन से अलग है।
प्रश्न-5 : ‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’ इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जब सुबह गुलाब की कलियाँ चटकती हैं तो ऐसा लगता है कि वे चुटकी बजाकर बसंत
को जगा रही हैं। ऐसा इसलिए कहा गया है कि ज्यादातर फूल सुबह में खिलते हैं और उसके
बाद दिन की शुरुआत होती है। बसंत की छटा दिन में ही देखने लायक होती है।
प्रश्न-6 : चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर: चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने कई रूपों में देखा है जैसे कि स्फटिक,
दही का समंदर, दूध का झाग, दर्पण, आदि। इन सब उपमाओं में सफेद रंग की बहुलता है
जो प्रकाश और शुद्धता का प्रतीक है।
प्रश्न-7 : ‘
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’ इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन सा अलंकार है?
उत्तर: कवि को लगता है कि चाँद जो है वह राधा के प्रतिबिंब सा लग रहा है। यहाँ पर
व्यतिरेक अलंकार का प्रयोग हुआ है क्योंकि चाँद को राधा न मानकर उसका प्रतिबिंब
माना गया है। इसका मतलब है कि चाँद को राधा से नीचे दर्जे का दिखाया गया है।
प्रश्न-8 : तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का
वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर:
चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए कवि ने स्फटिक की रोशनी,
दही के सफेद रंग, दूध के झाग, आदि उपमानों का प्रयोग किया है।
प्रश्न-9 : पठित कविताओं के आधार पर
कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: कवि देव ब्रजभाषा में लिखते थे। लेकिन उनके शब्दों के चयन से पता चलता है
कि वे बहुत ही सुसंस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे। कवि को यदि श्रृंगार रस का कवि
कहा जाये तो इसमे अतिशयोक्ति नहीं होगी। कवि को प्रकृति की सुंदरता के चित्रण में
महारत हासिल है। वे तरह तरह के अलंकारों का प्रयोग करते हैं।
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