फसल कविता/नागार्जुन की फसल कविता/Fasal kavita ka saar/Nagarjun ki kavita fasal/Fasal kavita ka bhavarth/Nagarjun ki bhasha shaili


नागार्जुन

फसल


एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढ़ेर सारी नदियों के पानी का जादू;
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा;
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म;
फसल क्या है?



प्रसंग:  प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज (भाग 2)' में संकलित कविता फसल से ली गई है। इन पंक्तियों के रचयिता हिंदी के जनवादी कवि नागार्जुन है। इस कविता में कवि ने यह बताया है कि प्रकृति और मानव के सहयोग से ही फसलों का सृजन होता है।


भावार्थ : हममें से अधिकतर लोग अपना खाना खाते हुए शायद ही कभी इस बात पर गौर करते हैं जिस फसल के कारण हमें भोजन मिलता है वह फसल कैसे उपजती है। इस कविता में कवि ने फसल में छिपे हुए गुणों और छिपी हुई ऊर्जा के बारे में बताया है।
कवि कहता है कि फसल में एक दो नहीं बल्कि ढ़ेर सारी नदियों के पानी का जादू समाया हुआ होता है। फसल में लाखों करोड़ों हाथों के स्पर्श की गरिमा भरी हुई होती है; क्योंकि फसल को तैयार करते समय असंख्य मजदूरों के हाथ लगते हैं। फसल में हजारों खेतों की मिट्टी का गुण धर्म भरा हुआ होता है।

और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
प्रसंग:  प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'क्षितिज (भाग 2)' में संकलित कविता फसल से ली गई है। इन पंक्तियों के रचयिता हिंदी के जनवादी कवि नागार्जुन है। इस कविता में कवि ने यह बताया है कि प्रकृति और मानव के सहयोग से ही फसलों का सृजन होता है।

भावार्थ : जिस फसल को हम किसी अनाज या सब्जी या फल के रूप में देखते हैं, वह और कुछ नहीं बल्कि नदियों के पानी का जादू है। वह हाथों के स्पर्श की महिमा है। वह कई प्रकार की मिट्टी का गुण धर्म अपने में संजोए हुए है। वह सूरज की किरणों का रूपांतर है। आपने जीव विज्ञान के पाठ में पढ़ा होगा कि किस तरह सूरज की किरणों की ऊर्जा अपना रूप बदलकर पादपों में भोजन के रूप में जमा होती है। कवि को यह भी लगता है कि फसल में हवा की थिरकन का सिमटा हुआ संकोच भी भरा हुआ है।
फसल के तैयार होने में कई शक्तियों और अवयवों का योगदान होता है। फसल के तैयार होने में मिट्टी से जरूरी पोषक मिलते हैं। फिर पानी, धूप और हवा उसके तैयार होने में अपना योगदान देती है। लेकिन उसपर से हजारों किसानों की मेहनत ही फसल को समुचित रूप से तैयार कर पाती है।

नागार्जुन के काव्य की भाषागत विशेषताएं:-

 नागार्जुन की भाषा सहज सरल तथा प्रवाहमयीखड़ी बोली का प्रयोग किया है।  शब्द चयन सर्वथा उचित और सटीक है। पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। तत्सम व तद्भव शब्दावली का प्रयोग देखने को मिलता है एवं प्रसाद गुण सर्वत्र व्याप्त है।  नागार्जुन के काव्य में दृश्य बिंब का सफल प्रयोग हुआ है। वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।


अभ्यास के प्रश्न : 

प्रश्न :  कवि के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर: कवि के अनुसार फसल नदियों के पानी का जादू है, हाथों के स्पर्श की महिमा है, मिट्टी का गुण धर्म है सूर्य की किरणों का तेज है और हवा की थिरकन है।
प्रश्न : कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर: मिट्टी में उपस्थित पोषक, सूर्य की किरणें, पानी और हवा; ये सभी फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्व हैं। इनके साथ ही किसानों की मेहनत भी उतनी ही जरूरी है।
प्रश्न : फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर: इन शब्दों द्वारा कवि किसानों की महत्ता को उजागर करना चाहता है। कोई भी देश या समाज फसल के बिना नहीं रह सकता है और बिना किसान के फसल नहीं उगते हैं। इसलिए किसानों के हाथों का जादू हम सबके जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रश्न : भाव स्पष्ट कीजिए:
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
उत्तर: कवि कहता है कि फसल सूरज की किरणों का रूपांतर है। आपने जीव विज्ञान के पाठ में पढ़ा होगा कि किस तरह सूरज की किरणों की ऊर्जा अपना रूप बदलकर पादपों में भोजन के रूप में जमा होती है। कवि को यह भी लगता है कि फसल में हवा की थिरकन का सिमटा हुआ संकोच भी भरा हुआ है।

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