Guru Gobind Singh | गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय
Guru Gobind Singh | गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय

Guru Gobind Singh : गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय

गुरु गो‍बिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु हैं। इनका जन्म पौष सुदी 7वीं सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ। उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे। उन्हीं के वचनोंनुसार गुरुजी का नाम गोविंद राय रखा गया, और सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए। उनके बचपन के पांच साल पटना में ही गुजरे।

Guru Gobind Singh : गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय

1675 को कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर श्री गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली के चांदनी चौक में बलिदान दिया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी 11 नवंबर 1675 को गुरु गद्दी पर विराजमान हुए। धर्म एवं समाज की रक्षा हेतु ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की। पांच प्यारे बनाकर उन्हें गुरु का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन जाते हैं और कहते हैं-जहां पांच सिख इकट्ठे होंगे, वहीं मैं निवास करूंगा। उन्होंने सभी जातियों के भेद-भाव को समाप्त करके समानता स्थापित की और उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी पैदा की।

गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नियां, माता जीतो जी, माता सुंदरी जी और माता साहिबकौर जी थीं। बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह आपके बड़े साहिबजादे थे जिन्होंने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की थीं। और छोटे साहिबजादों में बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरहंद के नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था। युद्ध की दृष्‍टि से आपने केसगढ़, फतेहगढ़, होलगढ़, अनंदगढ़ और लोहगढ़ के किले बनवाएं। पौंटा साहिब आपकी साहित्यिक गतिविधियों का स्थान था।

दमदमा साहिब में आपने अपनी याद शक्ति और ब्रह्मबल से श्री गुरुग्रंथ साहिब का उच्चारण किया और लिखारी (लेखक) भाई मनी सिंह जी ने गुरुबाणी को लिखा। गुरुजी रोज गुरुबाणी का उच्चारण करते थे और श्रद्धालुओं को गुरुबाणी के अर्थ बताते जाते और भाई मनी सिंह जी लिखते जाते। इस प्रकार लगभग पांच महीनों में लिखाई के साथ-साथ गुरुबाणी की जुबानी व्याख्या भी संपूर्ण हो गई।

इसके साथ ही आप धर्म, संस्कृति और देश की आन-बान और शान के लिए पूरा परिवार कुर्बान करके नांदेड में अबचल नगर (श्री हुजूर साहिब) में गुरुग्रंथ साहिब को गुरु का दर्जा देते हुए और इसका श्रेय भी प्रभु को देते हुए कहते हैं- 'आज्ञा भई अकाल की तभी चलाइयो पंथ, सब सिक्खन को हुक्म है गुरु मान्यो ग्रंथ।' गुरु गोबिंद सिंह जी ने 42 वर्ष तक जुल्म के खिलाफ डटकर मुकाबला करते हुए सन् 1708 को नांदेड में ही सचखंड गमन कर दिया।

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