मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध – Essay on My Aim of Life in Hindi
मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध – Essay on My Aim of Life in Hindi
In this article, we are providing Essay on My Aim of Life in
Hindi. मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध।
मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध – Essay on My Aim of Life in Hindi
भूमिका-
यह तथ्य सर्वविदित
है कि पशु और मनुष्य में अन्तर उनकी विवेकशीलता के कारण ही होता है। मनुष्य अपनी
बुद्धि के द्वारा अपने जीवन को व्यतीत करने का प्रयत्न करता है। अनुकूल
परिस्थितियों के साथ वह समझौता करता है तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में वह संघर्ष
करके अपना अस्तित्व बनाए रखता है। इतना ही नहीं इन्हीं विपरीत परिस्थितियों में ही
वह असाधारण भी बन जाता है। उसका जीवन उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। अपने संकल्प
के द्वारा वह अपने जीवन को मनचाहे रास्ते की ओर से जा सकता है। हर व्यक्ति जीवन के
आरम्भ में ही कुछ विशेष बनने की कामना और संकल्प करता है। अपने जीवन का लक्ष्य
निर्धारित करके वह उसकी प्राप्ति के लिए निरंतर श्रम करता है।
मेरे जीवन का लक्ष्य-
मेरे
जीवन का लक्ष्य है-एक आदर्श अध्यापक बनना। भले ही कुछ लोग इसे साधारण उद्देश्य
समझे पर मेरे लिए यह गौरव की बात है। देश सेवा और समाज सेवा का सबसे बड़ा साधन यही
है। मैं व्यक्ति की अपेक्षा समाज और राष्ट्र को अधिक महत्व देता हूँ। स्वार्थ की
अपेक्षा परमार्थ का महत्व देता हूँ। मैं मानता हूँ कि जो ईट नींव बनती है, महल उसी
पर खड़ा होता है। मैं धन, कीर्ति और यश का भूखा नहीं। मेरे सामने तो
राष्ट्र-कवि श्री मैथलीशरण गुप्त का यह सिद्धान्त रहता है। ‘सर्मिष्ट
के लिए व्यष्टि हों बलिदान।” विद्यार्थी देश की नींव है। मैं उस नींव को मजबूत
बनाना चाहता हूं। हमारे समाज और संस्कृति में गुरु का बहुत महत्व रहा है। गुरु को
माता-पिता तथा ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। कबीर के अनुसार-
गुरु गोबिन्द दोनों खड़े, काके
लागू पाय बलिहारी,
गुरु आपने, जिन गोबिन्द दियो
बताय॥
अर्थात् गुरु और ईश्वर दोनों खड़े हों तो मैं पहले गुरु के चरणों में प्रणाम करूंगा। क्योंकि ईश्वर को दिखाने वाला तो गुरु ही है। माता-पिता तो जन्म देते हैं पर ज्ञान रूपी आँख देने वाला तो गुरु या अध्यापक ही होता है।
दृढ़ संकल्प के बिना लक्ष्य पूरा नहीं होता
क्या मेरी इच्छा पूरी होगी अथवा नहीं इस विषय पर जब भी मैं सोचता हूँ तो फ्रांस के क्रान्तिकारी नैपोलियन बोनापार्ट की पंक्ति याद हो आती है-असम्भव शब्द मूखों की डिक्शनरी में हैं। तब लगता है कि साहस, हिम्मत, दृढ़ संकल्प के बिना लक्ष्य पूरा नहीं होता। इनसे रहित व्यक्ति स्थिर मति के नहीं होते। वे कभी एक काम को छोड़ देते हैं केवल इसलिए कि काम कठिन है तो कभी दूसरा। जीवन में वही व्यक्ति लक्ष्य तक पहुँच ही जाता है जिसके इरादे पक्के होते हों, जो संकटों की परवाह न करे, जिसका ध्यान सदा अपने उद्देश्य की ओर रहे तो कोई कारण नहीं कि वह अपने जीवन के लक्ष्य में सफलता न पाए। इन सब बातों को देखकर लगता है कि यदि मैं हिम्मत न हारूं तो अवश्य ही अध्यापक बन जाऊँगा।
अध्यापक दीपक की भान्ति स्वयं जलकर दूसरों को प्रज्ज्वलित करता है
अध्यापक दीपक की भान्ति स्वयं जलकर दूसरों को प्रज्ज्वलित करता है। वह देश और जाति को उन्नति के शिखर पर ले जा सकता है। वह भारत के सभी नेताओं, डाक्टरों, इन्जीनियरों तथा विद्वानों का निर्माता है। वे अध्यापक और आचार्य ही थे जिन्होंने राम जैसे आदर्श पुत्र, पाण्डवों जैसे योद्धा, कालीदास तथा भवभूति जैसे महाकवि तथा हरिश्चन्द्र जैसे सत्यवादी महापुरुषों को शिक्षा और श्रेष्ठ लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयास- किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति सरलता से संभव नहीं होती है। आज कठिन प्रयास के द्वारा ही मानव कुछ प्राप्ति कर सकता है। अध्यापक बनने के लिए मुझे कठोर परिश्रम की आवश्यकता होगी। शिक्षा के क्षेत्र में अपने आप को एम. ए. स्तर तक शिक्षा प्राप्ति के लिए ले जाना होगा।
मैं हिंदी भाषा शिक्षक के रूप में काम करना चाहता हूं।
मैं हिंदी भाषा अध्यापक के रूप में काम करना चाहता हूं। इसके लिए भाषा के व्याकरण पक्ष और साहित्यिक पक्ष का ज्ञान आवश्यक है। व्याकरण में शुद्ध लिखना तथा भावानुकूल शब्दों मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग करने से भाषा का सौदर्य बढ़ता है। प्रभावशाली भाषा का विशेष महत्व होता है। साहित्यिक पक्ष के लिए भी विशेष व्यापक अध्ययन की आवश्यकता होती है। कवियों और लेखकों का परिचय उनकी रचनाओं का ज्ञान, रचनाओं की समीक्षा आदि अध्यापक को जानना आवश्यक है। हिन्दी साहित्य का विशाल क्षेत्र है। हिन्दी का ज्ञान संस्कृत पर भी आधारित है। अत: इसके लिए संस्कृत का ज्ञान भी आवश्यक होगा। अध्यापक बनने के लिए बी. एड. प्रशिक्षण की भी आवश्यकता होती है। यह प्रशिक्षण भी मुझे प्राप्त करना होगा। इस प्रशिक्षण में विषय को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षाणार्थियों को भी विद्यालयों में जाकर पढ़ाना होता है। इसके लिए भी परिश्रम की आवश्यकता होती है। आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति हुई है।
हमारे स्कूल में हमारे हिन्दी पढ़ाने वाले अध्यापक ने पी एच. डी. की उपाधि प्राप्त की हुई है। अन्य अध्यापक सभ्य लोगों की भांति व्यवहार करते हुए उन्हें डॉ. कहकर पुकारते हैं, जो उनके लिए सम्मान का प्रतीक है और उनके अध्ययन का प्रमाण है। मैं भी इसी लक्ष्य तक जाना चाहता हूँ और पी एच. डी. प्राप्त करने का प्रयास करना चाहता हूं। अध्यापक बनने के लिए मुझे परिश्रम करके प्रत्येक कक्षा में अच्छे प्रतिशत अंक प्राप्त करने होंगे। क्योंकि जो अध्यापक स्वयं अच्छे अंक प्राप्त नहीं करेगा, वह अपने विद्यार्थियों को कैसे प्रेरित कर सकेगा।
आदर्श और कर्तव्य-
अध्यापक का जीवन वास्तव में आदर्श होता है। उसे राष्ट्र का निर्माता कहा जाता है। हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने अपना जन्मदिन शिक्षक-दिवस’ के रूप में मनाने के लिए कहा था। क्योंकि शिक्षक का समाज में विशेष स्थान था। सिंकदर महान और अरस्तू को रास्ते में एक नदी को पार करना पड़ा। सिंकदर न कहा कि मैं पहले नदी को पार करूंगा। यदि नदि में जल अधिक हुआ और मैं डूब गया या बह गया तो कम से कम अरस्तु जैसे गुरु जीवित रहकर अन्य सिकंदर को बना सकेंगे। गुरु का महत्व इससे अभिव्यक्त होता है। आज के युग में आदर्श और कर्तव्य का लोप हो गया है। लेकिन सूर्य को आज भी लोग सूर्य ही बोलते हैं। अर्थात् जो अध्यापक आदर्श होता है, समाज में उसका आज भी सम्मान होता ही है।
अध्यापक के जीवन का सबसे बड़ा आदर्श तो उसका
मानवीय गुण और विषय का ज्ञान तथा पढ़ाने की विधि है। जो अध्यापक विद्यार्थियों के
साथ मित्र बनकर उनकी मानसिकता को समझकर, उनके वातावरण,
घरेलू स्थिति आदि को समझकर सभी के साथ उपयुक्त व्यवहार करता है,
भेद-भाव नहीं करता है वह अध्यापक आदर्श होता है। इसके साथ उसके पढ़ाने
का ढंग भी रुचिकर होना चाहिए। अपने विषय के अतिरिक्त भी वह विद्यार्थियों को
प्रेरित करता रहे तो उसे विद्यार्थी सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।
अध्यापक के कर्तव्य और आदर्श
अध्यापक के कर्तव्य और आदर्श एक दूसरे के पूरक हैं। उसके कर्तव्य ही आदर्श कर्तव्य हैं। मैं अपने कर्तव्य में एक ओर विद्यार्थियों को अपने विषय का व्यापक ज्ञान देना मानता हूं तो दूसरी ओर विद्यार्थियों को व्यावहारिक और सामयिक स्थिति से परिचित कराना आवश्यक मानता हूं। इससे भविष्य के प्रति उनका दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से बनता है और वे जीवन की दिशा निर्धारित करने में समक्ष होते हैं। विद्यार्थियों में निर्णयात्मक क्षमता का विकास करना आवश्यक है।
देशभक्ति की भावना, चरित्र की श्रेष्ठता, मानवता
के प्रति कर्तव्य, समर्पण और दृढ़ता विश्वास आदि गुणों का विकास
विद्यार्थियों में होना आवश्यक है और ऐसा एक आदर्श अध्यापक ही कर सकता है। जो
अध्यापक स्वयं आदर्श न हो जिसकी भाषा और व्यवहार में आकर्षण
न हो उससे विद्यार्थी प्रभावित नहीं होते हैं। पढ़ाने के प्रति उसमें विशेष रूचि
और गुण आवश्यक हैं। मैं अपने अध्यापक बनने में इस आदर्श और कर्तव्य को एक दूसरे का
पूरक मानकर चलूगा।
उपसंहार–
अध्यापक का सभी लोग
आदर करते हैं। यदि अध्यापक अपने कर्तव्य की सही पहचान करता है तो वर्तमान युग में
भी लोग उसे ‘गुरु’ जैसा सम्मान देते हैं। हमारी संस्कृति में
और साहित्य में गुरु को विशेष स्थान दिया गया है। वह राष्ट्र के लिए सदैव जागरूक नागरिक
बनाता है। समर्पित डॉक्टर और इंजीनियर, वकील और न्यायाधीश वैज्ञानिक और चिंतक,
समाज सेवक और धर्म गुरु सभी को विद्यार्थी काल में गुरु के पास बैठ कर
विद्या और दिशा ग्रहण करने होती है। अत: गुरु या अध्यापक का स्थान और सम्मान सदैव
ही ऊँचा रहेगा। वह सांसारिक व्यवहार भी सिखाता है और आध्यात्मिक ज्ञान,भी देता
है। इसीलिए मैं भविष्य में एक आदर्श अध्यापक बनना चाहता हूं कबीरदास जी के शब्दों
में गुरु का महत्व स्पष्ट होता है-
कबिरा ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और।
हरि रूदै। गुरु ठौर है, गुरु रुठे नहिं दौर॥
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