हिंदी भाषा का जन्म कैसे हुआ  | Hindi Bhasha ka janam kaise hua
हिंदी भाषा का जन्म कैसे हुआ  | Hindi Bhasha ka janam kaise hua 

हिंदी भाषा का जन्म कैसे हुआ  | Hindi Bhasha ka janam kaise hua 

हिन्दीभाषाई विविधता का एक ऐसा स्वरूप है, जिसने वर्तमान में अपनी व्यापकता में कितनी ही बोलियों और भाषाओं को सँजोया है। जिस तरह हमारी सभ्यता ने हजारों सावन और हजारों पतझड़ देखें हैंठीक उसी तरह हिन्दी भी उस शिशु के समान हैजिसने अपनी माता के गर्भ में ही हर तरह के मौसम देखने शुरू कर दिए थे। हिन्दी की यह माता थी - संस्कृत भाषा।  जिसके अति क्लिष्ट स्परूप और अरबीफारसी जैसी विदेशी और पालीप्राकृत जैसी देशी भाषाओं के मिश्रण ने हिन्दी को अस्तित्व प्रदान किया। जिस शिशु को इतनी सारी भाषाएँ अपने प्रेम से सींचे उसके गठन की मजबूती का अंदाज लगाना बहुत मुश्किल है।

हिंदी भाषा का जन्म कैसे हुआ

सातवीं शताब्दी (ई.पू.) से दसवीं शताब्दी (ई.पू) के बीच संस्कृत भाषा के अपभ्रंश के रूप में उत्पन्न हिन्दी अभी अपनी माँ के गर्भ में ही थी। हजारों साल पुराना हमारी सभ्यता का सफर है। 2500 ई.पू. से सैंधव सभ्यता की शक्ल में हमने विश्व की प्राचीनतम संस्कृति होने का गौरव प्राप्त किया है। समय बदलापरिस्थितियाँ बदलीं। साथ ही बदलने लगी हमारी जरूरतेंहमारा रहन-सहन और हमारी भाषा। भाषा पर अगर गौर करें तो उस दौरान पाली और पाकृत जैसी भाषाओं का प्रभाव उनके चरम पर था। यह वही समय था जब बौद्ध धर्म पूर्णतः परिपक्व हो चुका था और पाली व पाकृत जैसी आसान भाषाओं में इसका व्यापक प्रसार हो रहा था।

देखा जाए तो पुरातन हिन्दी का अपभ्रंश के रूप में जन्म 400 ई. से 550 ई. में हुआ। जब वल्लभी के शासक धारसेन ने अपने अभिलेख में अपभ्रंश साहित्य’ का वर्णन किया। हमारे पास प्राप्त प्रमाणों में 933 ई. की श्रावकचर’ नामक पुस्तक ही अपभ्रंश हिन्दी का पहला उदाहरण है। परंतु हिन्दी का वास्तविक जन्मदाता तो अमीर खुसरो ही थाजिसने 1283 में खड़ी हिन्दी को जन्म देते हुए इस शिशु का नामकरण ‘‍हिन्दवी किया।

खुसरो दरिया प्रेम काउलटी वा की धार,

जो उतरा सो डूब गयाजो डूबा सो पार

(अमीर खुसरो की एक रचना – ‘हिन्दवी’ में…)

वहीं दूसरी ओर इस समय भक्ति आंदोलन भी काफी क्रियाशील हो चुके थेजिन्होंने कबीर (1398- 1518 ई.)रामानंद (1450 ई.)बनारसी दास (1601 ई.)तुलसीदास (1532-1623 ई.) जैसे प्रकांड विद्वानों को जन्म दिया। इन्होंने हिन्दी को अपभ्रंशखड़ी और आधुनिक हिन्दी के अलंकारों से सुसज्जित करके हिन्दी का श्रृंगार किया। इस काल की एक और विशेषता यह भी थी कि इस काल में हिन्दी को अपनी छोटी बहन ‘उर्दू’ मिलीजो अरबीफारसी व हिन्दी के मिश्रण अस्तित्व में आई। इस कड़ी में मुगल बादशाह शाहजहाँ (1645 ई.) के योगदानों ने उर्दू को उसका वास्तविक आकार प्रदान किया।

विभिन्न सभ्यताओं ने आकर हिन्दुस्तान पर शासन किया। इनकी सभ्यता और भाषाई विविधता ने ही हिन्दी का पालन-पोषण किया और एक ‘अपभ्रंश’ शिशु व ‘खड़ी बोली’ किशोरी को अपार अलंकारों से सुसज्जित ‘आधुनिक हिन्दी’ रूपी युवती बनाया।

Hindi Bhasha ka janam kaise hua 

अँग्रेजी शासन तक यह अल्हड़ किशोरी शांत व गंभीर युवती के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी। अँग्रेजियत के समावेश ने हिन्दी को त्तकालीन परिवेश में एक नया परिधान दिया। अब आधुनिक हिन्दी में तरह-तरह के प्रयोग अपने शीर्ष पर थे। किताबोंउपन्यासोंग्रंथोंकाव्यों के साथ-साथ हिन्दी राजनीतिक चेतना का माध्यम बन रही थी। 1826 ई. में उद्दंत मार्तण्ड नामक पहला हिन्दी का समाचार तत्कालीन बुद्धिजीवियों का प्रेरणा स्रोत बन चुका था। अब हिन्दी में आधुनिकता का पूर्णतः समावेश हो चुका था। अँग्रेजों के शासन ने जहाँ हिन्दी को आधुनिकता का जामा पहनायावहीं हिन्दी उनके विरोध और स्वतंत्र भारत के स्वप्न का भी प्रभावी माध्यम रही। तमाम हिन्दी समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं ने देश के बुद्धिजीवियों में स्वतंत्रता की लहर दौड़ाई। स्वतंत्र भारत के कर्णधारों ने जो स्वतंत्रता का स्वप्न देखा उसमें स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा के रूप हमेशा हिन्दी को ही देखा।

हिंदी भाषा की उत्पति

शायद यही वजह है कि स्वतंत्रता के उपरांत हिन्दी को 1949-1950 में केंद्र की आधिकारिक भाषा का सम्मान मिला। वर्तमान में हिन्दी विश्व की सबसे अधिक प्रयोग में आने वाली भाषाओं में दूसरा स्थान रखती है। हो सकता है कि अँग्रेजी का प्रभाव प्रौढ़ा हिन्दी पर अधिक नजर आता होमगर इस हिन्दी ने अपने भीतर इतनी भाषाओं और बोलियों को समेटकर अपनी गंभीरता का ही परिचय दिया है। हो सकता है कि भविष्य में हिन्दी भी किसी अन्य ‘अपभ्रंश’ शिशु को जन्म देपर राष्ट्रभाषा का गौरव हर भारतीय में नैसर्गिक रूप से व्याप्त होगा।

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