पंडित बाल कृष्ण भट्ट का जीवन परिचय | Pandit Balkrishan Bhatt Biography in Hindi |
पंडित बाल कृष्ण भट्ट का जीवन परिचय | Pandit Balkrishan Bhatt Biography in Hindi
पंडितबाल कृष्ण भट्ट भारतेन्दु युग के हिन्दी के सफल पत्रकार, नाटककार और प्रतिष्ठित निबंधकार थे। भारतेंदु काल के निबंध-लेखकों में
भट्ट जी का सर्वोच्च स्थान है। उन्हें आज की गद्य प्रधान कविता का जनक माना जा
सकता है। हिन्दी गद्य साहित्य के निर्माताओं में भी उनका प्रमुख स्थान है।
पंडित बाल कृष्ण भट्ट का जन्म
पंडित
बाल कृष्ण भट्ट का जन्म ३ जून १८४४ को प्रयाग के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था।
उनके पिता का नाम पं. वेणी प्रसाद था। स्कूल में दसवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त
करने के बाद भट्ट जी ने घर पर ही संस्कृत का अध्ययन किया। संस्कृत के अतिरिक्त
उन्हें हिंदी अंग्रेज़ी, उर्दू, फारसी भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान हो गया। भट्ट जी स्वतंत्र प्रकृति के
व्यक्ति थे। उन्होंने व्यापार का कार्य किया तथा वे कुछ समय तक कायस्थ पाठशाला
प्रयाग में संस्कृत के अध्यापक भी रहे किंतु उनका मन किसी में नहीं रमा। भारतेंदु
जी से प्रभावित होकर उन्होंने हिंदी-साहित्य सेवा का व्रत ले लिया। भट्ट जी ने
हिंदी-प्रदीप नामक मासिक पत्र निकाला। इस पत्र के वे स्वयं संपादक थे। उन्होंने इस
रस पत्र के द्वारा निरंतर ३२ वर्ष तक हिंदी की सेवा की। काव्य, नाटक प्रचारिणी सभा द्वारा आयोजित हिंदी शब्द सागर के संपादन में भी
उन्होंने बाबू श्याम सुंदर दास तथा शुक्ल जी के साथ कार्य किया।
पंडित बाल कृष्ण भट्ट का परिवार और शिक्षा
भट्ट
जी की माता अपने पति की अपेक्षा अधिक पढ़ी-लिखी और विदुषी थीं। उनका प्रभाव
बालकृष्ण भट्ट जी पर अधिक पड़ा। भट्ट जी मिशन स्कूल में पढ़ते थे। वहाँ के
प्रधानाचार्य एक ईसाई पादरी थे। उनसे वाद-विवाद हो जाने के कारण इन्होंने मिशन
स्कूल जाना बंद कर दिया। इस प्रकार वह घर पर रह कर ही संस्कृत का अध्ययन करने लगे।
वे अपने सिद्धान्तों एवं जीवन-मूल्यों के इतने दृढ़ प्रतिपादक थे कि कालान्तर में
इन्हें अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण मिशन स्कूल तथा कायस्थ पाठशाला के संस्कृत
अध्यापक के पद से त्याग-पत्र देना पड़ा था। जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने कुछ समय
तक व्यापार भी किया परन्तु उसमें इनकी अधिक रुचि न होने के कारण सफलता नहीं मिल
सकी। आपकी अभिरुचि आरंभ से ही साहित्य सेवा में थी। अत: सेवा-वृत्ति को तिलांजलि
देकर वे यावज्जीवन हिन्दी साहित्य की सेवा ही करते रहे। भट्टजी का २० जुलाई १९१४
देहवसान हो गया।
कार्यक्षेत्र
भट्ट जी एक अच्छे और सफल पत्रकार भी थे। हिन्दी प्रचार के लिए उन्होंने संवत् 1933 में प्रयाग में हिन्दी वर्द्धिनी नामक सभा की स्थापना की। उसकी ओर से एक हिन्दी मासिक पत्र का प्रकाशन भी किया, जिसका नाम था “हिन्दी प्रदीप”। वह बत्तीस वर्ष तक इसके संपादक रहे और इसे नियमित रूप से भली – भाँति चलाते रहे। हिन्दी प्रदीप के अतिरिक्त बालकृष्ण भट्ट जी ने दो-तीन अन्य पत्रिकाओं का संपादन भी किया। भट्ट जी भारतेन्दु युग के प्रतिष्ठित निबंधकार थे। अपने निबंधों द्वारा हिन्दी की सेवा करने के लिए उनका नाम सदैव अग्रगण्य रहेगा। उनके निबंध अधिकतर हिन्दी प्रदीप में प्रकाशित होते थे। उनके निबंध सदा मौलिक और भावना पूर्ण होते थे। वह इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें पुस्तकें लिखने के लिए अवकाश ही नहीं मिलता था। अत्यन्त व्यस्त समय होते हुए भी उन्होंने “सौ अजान एक सुजान”, “रेल का विकट खेल”, “नूतन ब्रह्मचारी”, “बाल विवाह” तथा “भाग्य की परख” आदि छोटी-मोटी दस-बारह पुस्तकें लिखीं। वैसे आपने निबंधों के अतिरिक्त कुछ नाटक, कहानियाँ और उपन्यास भी लिखे हैं।प्रमुख कृतियाँ
भट्ट जी ने हिंदी साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में लिखा। उन्हें
मूलरूप से निबंध लेखक के रूप में जाना जाता है लेकिन उन्होंने दो उपन्यास भी लिखे।
निबंध-
संग्रह साहित्य सुमन और भट्ट निबंधावली।
उपन्यास- नूतन ब्रह्मचारी तथा सौ अजान एक सुजान।
मौलिक नाटक- दमयंती, स्वयंवर, बाल-विवाह, चंद्रसेन, रेल का विकट खेल, आदि।
अनुवाद- भट्ट जी ने बंगला तथा संस्कृत के नाटकों के अनुवाद भी
किए जिनमें वेणीसंहार, मृच्छकटिक, पद्मावती आदि प्रमुख हैं।
भाषा
भाषा की दृष्टि से अपने समय के लेखकों में भट्ट जी का स्थान बहुत
ऊँचा है। उन्होंने अपनी रचनाओं में यथाशक्ति शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया। भावों के
अनुकूल शब्दों का चुनाव करने में भट्ट जी बड़े कुशल थे। कहावतों और मुहावरों का
प्रयोग भी उन्होंने सुंदर ढंग से किया है। भट्ट जी की भाषा में जहाँ तहाँ पूर्वीपन
की झलक मिलती है। जैसे- समझा-बुझा के स्थान पर समझाय-बुझाय लिखा गया है। बालकृष्ण
भट्ट की भाषा को दो कोटियों में रखा जा सकता है। प्रथम कोटि की भाषा तत्सम शब्दों
से युक्त है। द्वितीय कोटि में आने वाली भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के
साथ-साथ तत्कालीन उर्दू, अरबी, फारसी
तथा ऑंग्ल भाषीय शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। वह हिन्दी की परिधि का विस्तार
करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने भाषा को विषय एवं प्रसंग
के अनुसार प्रचलित हिन्दीतर शब्दों से भी समन्वित किया है। आपकी भाषा जीवंत तथा
चित्ताकर्षक है। इसमें यत्र-तत्र पूर्वी बोली के प्रयोगों के साथ-साथ मुहावरों का
प्रयोग भी किया गया है , जिससे भाषा अत्यन्त रोचक और
प्रवाहमयी बन गई है।
वर्ण्य विषय
भट्ट जी ने जहाँ आँख, कान, नाक, बातचीत जैसे साधारण विषयों पर लेख लिखे हैं, वहाँ आत्मनिर्भरता, चारु चरित्र जैसे गंभीर विषयों पर भी लेखनी चलाई है। साहित्यिक और सामाजिक विषय भी भट्ट जी से अछूते नहीं बचे। ‘चंद्रोदय’ उनके साहित्यिक निबंधों में से है। समाज की कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने सामाजिक निबंधों की रचना की। भट्ट जी के निबंधों में सुरुचि-संपन्नता, कल्पना, बहुवर्णन शीलता के साथ-साथ हास्य व्यंग्य के भी दर्शन होते हैं।
भट्ट जी की लेखन – शैली
भट्ट जी की लेखन – शैली को भी दो
कोटियों में रखा जा सकता है। प्रथम कोटि की शैली को परिचयात्मक शैली कहा जा सकता
है। इस शैली में उन्होंने कहानियाँ और उपन्यास लिखे हैं। द्वितीय कोटि में आने
वाली शैली गूढ़ और गंभीर है। इस शैली में भट्ट जी को अधिक नैपुण्य प्राप्त है।
आपने “आत्म-निर्भरता” तथा “कल्पना” जैसे गम्भीर विषयों के अतिरिक्त ,
“आँख”, “नाक”, तथा
“कान”, आदि अति सामान्य विषयों
पर भी सुन्दर निबंध लिखे हैं। आपके निबंधों में विचारों की गहनता, विषय की विस्तृत विवेचना, गम्भीर चिन्तन के
साथ एक अनूठापन भी है। यत्र-तत्र व्यंग्य एवं विनोद उनकी शैली को मनोरंजक बना देता
है। उन्होंने हास्य आधारित लेख भी लिखे हैं, जो अत्यन्त
शिक्षादायक हैं। भट्ट जी का गद्य गद्य न होकर गद्यकाव्य सा प्रतीत होता है।
वस्तुत: आधुनिक कविता में पद्यात्मक शैली में गद्य लिखने की परंपरा का सूत्रपात
श्री बालकृष्ण भट्ट जी ने ही किया था। उन्हें
१.
वर्णनात्मक शैली- वर्णनात्मक शैली में भट्ट जी ने व्यावहारिक तथा सामाजिक विषयों
पर निबंध लिखे हैं। जन साधारण के लिए भट्ट जी ने इसी शैली को अपनाया। उनके उपन्यास
की शैली भी यही है, किंतु इसे उनकी प्रतिनिधि
शैली नहीं कहा जा सकता।
इस शैली की भाषा सरल और मुहावरेदार है। वाक्य कहीं छोटे और कहीं
बड़े हैं।
२.
विचारात्मक शैली- भट्ट जी द्वारा गंभीर विषयों पर लिखे गए निबंध इसी शैली के
अंतर्गत आते हैं। तर्क और विश्वास, ज्ञान और
भक्ति, संभाषण आदि निबंध विचारात्मक शैली के उदाहरण हैं।
इस शैली की भाषा में संस्कृत के शब्दों की अधिकता है।
३.
भावात्मक शैली- इस शैली का प्रयोग भट्ट जी ने साहित्यिक निबंधों में किया है। इसे
भट्ट जी की प्रतिनिधि शैली कहा जा सकता है।
इस शैली में शुद्ध हिंदी का प्रयोग हुआ है। भाषा प्रवाहमयी,
संयत और भावानुकूल है। इस शैली में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग भी
हुआ है। अलंकारों के प्रयोग से भाषा में विशेष सौंदर्य आ गया है। भावों और विचार
के साथ कल्पना का भी सुंदर समन्वय हुआ। इसमें गद्य काव्य जैसा आनंद होता है।
चंद्रोदय निबंध का एक अंश देखिए- यह गोल-गोल प्रकाश का पिंड देख भाँति-भाँति की
कल्पनाएँ मन में उदय होती है कि क्या यह निशा अभिसारिका के मुख देखने की आरसी है
या उसके कान का कुंडल अथवा फूल है यह रजनी रमणी के ललाट पर दुक्के का सफ़ेद तिलक
है।
४.
व्यंग्यात्मक शैली- इस शैली में हास्य और व्यंग्य की प्रधानता है। विषय के अनुसार
कहीं व्यंग्य अत्यंत मार्मिक और तीखा हो गया है।
इस शैली की भाषा में उर्दू शब्दों की अधिकता है और वाक्य
छोटे-छोटे हैं।
साहित्य
सेवा और स्थान- भारतेंदु काल के निबंध-लेखकों में भट्ट जी का सर्वोच्च स्थान है।
उन्होंने पत्र, नाटक, काव्य,
निबंध, लेखक, उपन्यासकार
अनुवादक विभिन्न रूपों में हिंदी की सेवा की और उसे धनी बनाया।
साहित्य
की दृष्टि से भट्ट जी के निबंध अत्यंत उच्चकोटि के हैं। इस दिशा में उनकी तुलना
अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध निबंधकार चार्ल्स लैंब से की जा सकती है। गद्य काव्य की
रचना भी सर्वप्रथम भट्ट जी ने ही प्रारंभ की। इनसे पूर्वक हिंदी में गद्य काव्य का
नितांत अभाव था।
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