![]() गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी - Biography of Guru Tegh Bahadur in Hindi Jivani | गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी - Biography of Guru Tegh Bahadur in
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श्री गुरु तेग बहादुर जी का 400वां प्रकाश पर्व
देश भर में आज सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी का 400वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। गुरु तेग बहादुर सिंह एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे और उनका जन्म वैसाख कृष्ण पंचमी को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। इस दिन को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गुरु साहिब के इतिहास और शहादत के बारे में बताया जाता है। उनके द्वारा रचित 115 पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं। उन्होने कश्मीरी पण्डितों तथा अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने सबके सामने उनका सिर कटवा दिया। गुरुद्वारा शीश गंज साहिबगुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा
गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या
की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया। विश्व इतिहास में धर्म एवं
मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों
की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। गुरुजी का बलिदान
न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर
बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए
धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक
विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था। गुरु तेग बहादुर जी का प्रारंभिक जीवनगुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। ये गुरु हरगोविन्द जी के पाँचवें पुत्र थे। आठवें गुरु इनके पोते 'हरिकृष्ण राय' जी की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण जनमत द्वारा ये नवम गुरु बनाए गए। इन्होंने आनन्दपुर साहिब का निर्माण कराया और ये वहीं रहने लगे थे। उनका बचपन का नाम त्यागमल था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुग़लों के हमले के ख़िलाफ़ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया।त्यागमल से तेग़ बहादुरउनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग़ बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया। युद्धस्थल में भीषण रक्तपात से गुरु तेग़ बहादुर जी के वैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनका का मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर हुआ। धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग़ बहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्ष तक 'बाबा बकाला' नामक स्थान पर साधना की। आठवें गुरु हरकिशन जी ने अपने उत्तराधिकारी का नाम के लिए 'बाबा बकाले' का निर्देश दिया।
गुरु गोविंद सिंह जी का पटना साहिब में जन्मगुरु तेगबहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहाँ उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए।
आध्यात्मिकता, धर्म का ज्ञान बाँटा। रूढ़ियों, अंधविश्वासों की आलोचना कर नये आदर्श स्थापित
किए। उन्होंने परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ
बनवाना आदि कार्य भी किए। इन्हीं यात्राओं में 1666 में
गुरुजी के यहाँ पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ। जो दसवें गुरु- गुरु गोविंद
सिंह बने। पंडित के बेटे ने जाकर औरंगज़ेब को पूरी गीता
का अर्थ सुना दिया। गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगज़ेब को यह ज्ञान हो गया कि
प्रत्येक धर्म अपने आपमें महान है किन्तु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि वह अपने के
धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी। कश्मीरी पंडित और गुरु तेगबहादुर जीजुल्म से त्रस्त कश्मीरी पंडित गुरु
तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार इस्लाम स्वीकार करने के लिए
अत्याचार किया जा रहा है,
यातनाएं दी जा रही हैं। गुरु चिंतातुर
हो समाधान पर विचार कर रहे थे तो उनके नौ वर्षीय पुत्र बाला प्रीतम (गोविन्द
सिंह) ने उनकी चिंता का कारण पूछा, पिता ने उनको समस्त परिस्थिति से अवगत कराया और कहा इनको बचाने का
उपाय एक ही है कि मुझको प्राणघातक अत्याचार सहते हुए प्राणों का बलिदान करना
होगा। गुरु तेगबहादुर जी का बलिदानगुरुजी ने औरंगजेब से कहा कि यदि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए। औरंगजेब यह सुनकर आगबबूला हो गया। उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर का शीश काटने का हुक्म दिया और गुरु तेगबहादुर ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। गुरु तेगबहादुर जी का शहीदी दिवसगुरु तेगबहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर
गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीश गंज साहिब है। गुरु
तेगबहादुर जी की बहुत सारी रचनाएं गुरु ग्रंथ साहिब के महला 9 में संग्रहित हैं।। गुरुद्वारे के निकट लाल
किला, फिरोज शाह कोटला और जामा मस्जिद भी अन्य
आकर्षण हैं। गुरु तेगबहादुर जी की शहीदी के बाद उनके बेटे गुरु गोबिन्द राय को
गुरु गद्दी पर बिठाया गया। जो सिक्खों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी बने। दादी
माँ व माता गुजरी ने परामर्श दिया कि श्री आनंदपुर साहिब जी की नगरी गुरुदेव जी
ने स्वयँ बसाई हैं अतः उनके शीश की अँत्येष्टि वही की जाए। इस पर शीश को पालकी
में आंनदपुर साहिब लाया गया और वहाँ शीश का भव्य स्वागत किया गया सभी ने गुरुदेव
के पार्थिक शीश को श्रद्धा सुमन अर्पित किए तद्पश्चात विधिवत् दाह सँस्कार किया
गया। हिन्द की चादर गुरु तेगबहादुर जीसहनशीलता , कोमलता
और सौम्यता की मिसाल के साथ साथ गुरू तेग बहादुर जी ने हमेशा यही संदेश दिया कि
किसी भी इंसान को न तो डराना चाहिए और न ही डरना चाहिए । इसी की मिसाल दी गुरू
तेग बहादुर जी ने बलिदान देकर। जिसके कारण उन्हें हिन्द की चादर या भारत की ढाल
भी कहा जाता है उन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी। गुरू तेग
बहादुर जी को अगर अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरूष कह लिया
जाए तो कहना जऱा भी गलत न होगा पूरा गुरू चमत्कार या करमातें नहीं दिखाता। नवम पातशाही का बलिदानसंसार को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने जान तो दे दी, परंतु सत्य का त्याग नहीं किया। नवम पातशाह
श्री गुरु तेग बहादुर जी भी ऐसे ही बलिदानी थे। गुरु जी ने स्वयं के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के अधिकारों एवं विश्वासों की
रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। अपनी आस्था के लिए बलिदान देने
वालों के उदाहरणों से तो इतिहास भरा हुआ है, परंतु
किसी दूसरे की आस्था की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक मात्र मिसाल है-नवम
पातशाही का बलिदान। |
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