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Swami Vivekananda Quotes in Hindi/स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda/स्वामी विवेकानन्द के सुविचार |
Swami
Vivekananda Quotes in Hindi
स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान | स्वामी
विवेकानन्द के वचन | स्वामी
विवेकानन्द के सुविचार
उठो, जागो और तब तक रुको नही जब तक मंजिल प्राप्त न हो
जाये ।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
§ जो सत्य है, उसे
साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट
होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत
दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों
के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे
जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
§ तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने
सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है। सभी जीवंत
ईश्वर हैं–इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य है। जगत में जितने ईसा या
बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति
को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
§ मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस
सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं–निश्चय
ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह
मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
§ जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना
चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना
पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे
जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे
बढ़ सकते हैं।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन
समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण
हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ
विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के
बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति
का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ
में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन
व्यतीत करो।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
§ मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का
लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का
ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता
पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात्
मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
हमारी नैतिक प्रकृति
जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती
है।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
§ मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ
आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस
ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना
नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश
को भी प्राप्त कर सकता है।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
पहले स्वयं संपूर्ण
मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर
सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
सभी मरेंगे- साधु या
असाधु, धनी या दरिद्र- सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का
शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में
घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए
इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे
मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से
प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो
कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए
निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
हे सखे, तुम क्योँ रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों
लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं।
हे विद्वन! डरो मत्; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। जिस पथ के
अवलम्बन से यती लोग संसार-सागर के पार उतरे हैं, वही
श्रेष्ठ पथ मै तुम्हे दिखाता हूँ! (वि.स. ६/८)
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। छोटे-मोटे की तो बात
ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार
मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है। किसी के साथ
विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो -- यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण नहीं
है, माँ मेरे साथ हैं -- इस बार ऐसे कार्य होंगे कि
तुम चकित हो जाओगे। भय किस बात का? किसका
भय? वज्र जैसा हृदय बनाकर कार्य में जुट जाओ।
(विवेकानन्द साहित्य खण्ड-४पन्ना-३१५) (४/३१५)
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
तुमने बहुत बहादुरी
की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कुद कर सबके आगे पहुँच जाओगे।
जो अपना उध्दार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार
ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोर - गुल मचाओ की उसकी आवाज़ दुनिया के कोने
कोने में फैल जाय। कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि
दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नही चलता है।
जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढो।इसके बाद मैं भारत
पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूंगा। डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से साँप का विष भी नहीं रहता है। नहीं नहीं
कहने से तो 'नहीं' हो जाना
पडेगा। खूब शाबाश! छान डालो - सारी दूनिया को छान डालो! अफसोस इस बात का है कि यदि
मुझ जैसे दो - चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते -
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
तमाम संसार हिल
उठता। क्या करूँ धीरे - धीरे अग्रसर होना पड रहा है। तूफ़ान मचा दो तूफ़ान! (वि.स.
४/३८७)
स्वामी विवेकानन्द/ Swami Vivekananda
जिस प्रकार स्वर्ग
में, उसी प्रकार इस नश्वर जगत में भी तुम्हारी इच्छा
पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत में तुम्हारी ही
महिमा घोषित हो रही है एवं सब कुछ तुम्हारा ही राज्य है। (वि.स.१/३८७)
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